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− | कथाप्रवेशः
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− | रो[लो]महर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सौतिः पौराणिको नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर्द्वादशवार्षिके सत्रे ऋषीनभ्यागतानुपतस्थे॥ 1-4-1
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− | पौराणिकः पुराणे कृतश्रमः स कृताञ्जलिस्तानुवाच॥ किं भवन्तः श्रोतुमिच्छन्ति किमहं ब्रवाणीति॥ 1-4-2 | + | कथाप्रवेशः |
− | | + | रो[लो]महर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सौतिः पौराणिको नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर्द्वादशवार्षिके सत्रे ऋषीनभ्यागतानुपतस्थे॥ 1-4-1 |
− | तमृषय ऊचुः परमं रौ[लौ]महर्षणे वक्ष्यामस्त्वां न प्रतिवक्ष्यसि वचः शुश्रूषतां कथायोगं नः कथायोगे॥ 1-4-3 | + | पौराणिकः पुराणे कृतश्रमः स कृताञ्जलिस्तानुवाच॥ किं भवन्तः श्रोतुमिच्छन्ति किमहं ब्रवाणीति॥ 1-4-2 |
− | | + | तमृषय ऊचुः परमं रौ[लौ]महर्षणे वक्ष्यामस्त्वां न प्रतिवक्ष्यसि वचः शुश्रूषतां कथायोगं नः कथायोगे॥ 1-4-3 |
− | तत्र भवान्कुलपतिस्तु शौनकोऽग्निशरणमध्यास्ते॥ 1-4-4 | + | तत्र भवान्कुलपतिस्तु शौनकोऽग्निशरणमध्यास्ते॥ 1-4-4 |
− | | + | योऽसौ दिव्याः कथा वेद देवतासुरसंश्रिताः। |
− | योऽसौ दिव्याः कथा वेद देवतासुरसंश्रिताः। | + | मनुष्योरगगन्धर्वकथा वेद च सर्वशः॥ 1-4-5 |
− | | + | स चाप्यस्मिन्मखे सौते विद्वान्कुलपतिर्द्विजः। |
− | मनुष्योरगगन्धर्वकथा वेद च सर्वशः॥ 1-4-5 | + | दक्षो धृतव्रतो धीमाञ्छास्त्रे चारण्यके गुरुः॥ 1-4-6 |
− | | + | सत्यवादी शमपरस्तपस्वी नियतव्रतः। |
− | स चाप्यस्मिन्मखे सौते विद्वान्कुलपतिर्द्विजः। | + | सर्वेषामेव नो मान्यः स तावत्प्रतिपाल्यताम्॥ 1-4-7 |
− | | + | तस्मिन्नध्यासति गुरावासनं परमार्चितम्। |
− | दक्षो धृतव्रतो धीमाञ्छास्त्रे चारण्यके गुरुः॥ 1-4-6 | + | ततो वक्ष्यसि यत्त्वां स प्रक्ष्यति द्विजसत्तम॥ 1-4-8 |
− | | + | सौतिरुवाच |
− | सत्यवादी शमपरस्तपस्वी नियतव्रतः। | + | एवमस्तु गुरौ तस्मिन्नुपविष्टे महात्मनि। |
− | | + | तेन पृष्टः कथाः पुण्या वक्ष्यामि विविधाश्रयाः॥ 1-4-9 |
− | सर्वेषामेव नो मान्यः स तावत्प्रतिपाल्यताम्॥ 1-4-7 | + | सोऽथ विप्रर्षभः सर्वं कृत्वा कार्यं यथाविधि। |
− | | + | देवान्वाग्भिः पितॄनद्भिस्तर्पयित्वाऽऽजगाम ह॥ 1-4-10 |
− | तस्मिन्नध्यासति गुरावासनं परमार्चितम्। | + | यत्र ब्रह्मर्षयः सिद्धाः सुखासीना धृतव्रताः। |
− | | + | यज्ञायतनमाश्रित्य सूतपुत्रपुरःसराः॥ 1-4-11 |
− | ततो वक्ष्यसि यत्त्वां स प्रक्ष्यति द्विजसत्तम॥ 1-4-8 | + | ऋत्विक्ष्वथ सदस्येषु स वै गृहपतिस्तदा। |
− | | + | उपविष्टेषूपविष्टः शौनकोऽथाब्रवीदिदम्॥ 1-4-12 |
− | सौतिरुवाच | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि कथाप्रवेशो नाम चतुर्थोऽध्यायः॥ 4 |
− | | + | [[:Category:Ugrashrava|''Ugrashrava'']] [[:Category:talks|''talks'']] [[:Category:Naimisharanya|''Naimisharanya'']] |
− | एवमस्तु गुरौ तस्मिन्नुपविष्टे महात्मनि। | + | [[:Category:sages|''sages'']] [[:Category:Shaunak|''Shaunak'']] |
− | | + | [[:Category:उग्रश्रवा|''उग्रश्रवा'']] [[:Category:नैमिषारण्य़|''नैमिषारण्य़'']] [[:Category:ऋषि|''ऋषि'']] [[:Category:संवाद|''संवाद'']] |
− | तेन पृष्टः कथाः पुण्या वक्ष्यामि विविधाश्रयाः॥ 1-4-9 | + | [[:Category:प्रतीक्षा|''प्रतीक्षा'']] |
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− | सोऽथ विप्रर्षभः सर्वं कृत्वा कार्यं यथाविधि। | |
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− | देवान्वाग्भिः पितॄनद्भिस्तर्पयित्वाऽऽजगाम ह॥ 1-4-10 | |
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− | यत्र ब्रह्मर्षयः सिद्धाः सुखासीना धृतव्रताः। | |
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− | यज्ञायतनमाश्रित्य सूतपुत्रपुरःसराः॥ 1-4-11 | |
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− | ऋत्विक्ष्वथ सदस्येषु स वै गृहपतिस्तदा। | |
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− | उपविष्टेषूपविष्टः शौनकोऽथाब्रवीदिदम्॥ 1-4-12 | |
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− | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि कथाप्रवेशो नाम चतुर्थोऽध्यायः॥ 4 ॥ | |