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− | स तस्मिन्सत्रे समाप्ते हास्तिनपुरं प्रत्येत्य पुरोहितमनुरूपमन्विच्छमानः परं यत्नमकरोद्यो मे पापकृत्यां शमयेदिति॥ 1-3-11 | + | स तस्मिन्सत्रे समाप्ते हास्तिनपुरं प्रत्येत्य पुरोहितमनुरूपमन्विच्छमानः परं यत्नमकरोद्यो मे पापकृत्यां शमयेदिति॥ 1-3-11 |
| + | स कदाचिन्मृगयां गतः पारीक्षितो जनमेजयः कस्मिंश्चित्स्वविषय आश्रममपश्यत्॥ 1-3-12 |
| + | तत्र कश्चिदृषिरासांचक्रे श्रुतश्रवा नाम॥ |
| + | तस्य तपस्यभिरतः पुत्र आस्ते सोमश्रवा नाम॥ 1-3-13 |
| + | तस्य तं पुत्रमभिगम्य जनमेजयः पारीक्षितः पौरोहित्याय वव्रे॥ 1-3-14 |
| + | स नमस्कृत्य तमृषिमुवाच भगवन्नयं तव पुत्रो मम पुरोहितोऽस्त्विति॥ 1-3-15 |
| + | स एवमुक्तः प्रत्युवाच जनमेजयं भो जनमेजय पुत्रोऽयं मम सर्पाज्ज्या[सर्प्याजा]तो महातपस्वी स्वाध्यायसम्पन्नो मत्तपोवीर्यसम्भृतो मच्छुक्रं पीतवत्यास्तस्याः कुक्षौ जातः॥ 1-3-16 |
| + | समर्थोऽयं भवतः सर्वाः पापकृत्याः शमयितुमन्तरेण महादेवकृत्याम्॥ 1-3-17 |
| + | अस्य त्वेकमुपांशुव्रतं यदेनं कश्चिद्ब्राह्मणः कंचिदर्थमभियाचेत्तं तस्मै दद्यादयं यद्येतदुत्सहसे ततो नयस्वैनमिति॥ 1-3-18 |
| + | तेनैवमुक्तो जनमेजयस्तं प्रत्युवाच भगवंस्तत्तथा भविष्यतीति॥ 1-3-19 |
| + | स तं पुरोहितमुपादायोपावृत्तो भ्रातॄनुवाच मयायं वृत उपाध्यायो यदयं ब्रूयात्तत्कार्यमविचारयद्भिर्भवद्भिरिति॥ |
| + | तेनैवमुक्ता भ्रातरस्तस्य तथा चक्रुः॥ |
| + | स तथा भ्रातॄन्संदिश्य तक्षशिलां प्रत्यभिप्रतस्थे तं च देशं वशे स्थापयामास॥ 1-3-20 |
| + | [[:Category:Janamejaya|''Janamejaya'']] [[:Category:accepts|''accepts'']] [[:Category:Somshrava|''Somshrava'']] |
| + | [[:Category:जनमेजयद्वारा सोमश्रवाका पुरोहितके पदपर वरण|''जनमेजयद्वारा सोमश्रवाका पुरोहितके पदपर वरण'']] |
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| + | [[:Category:वरण|''वरण'']] |
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− | स कदाचिन्मृगयां गतः पारीक्षितो जनमेजयः कस्मिंश्चित्स्वविषय आश्रममपश्यत्॥ 1-3-12
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− | तत्र कश्चिदृषिरासांचक्रे श्रुतश्रवा नाम॥
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− | तस्य तपस्यभिरतः पुत्र आस्ते सोमश्रवा नाम॥ 1-3-13
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− | तस्य तं पुत्रमभिगम्य जनमेजयः पारीक्षितः पौरोहित्याय वव्रे॥ 1-3-14
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− | स नमस्कृत्य तमृषिमुवाच भगवन्नयं तव पुत्रो मम पुरोहितोऽस्त्विति॥ 1-3-15
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− | स एवमुक्तः प्रत्युवाच जनमेजयं भो जनमेजय पुत्रोऽयं मम सर्पाज्ज्या[सर्प्याजा]तो महातपस्वी स्वाध्यायसम्पन्नो मत्तपोवीर्यसम्भृतो मच्छुक्रं पीतवत्यास्तस्याः कुक्षौ जातः॥ 1-3-16
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− | समर्थोऽयं भवतः सर्वाः पापकृत्याः शमयितुमन्तरेण महादेवकृत्याम्॥ 1-3-17
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− | अस्य त्वेकमुपांशुव्रतं यदेनं कश्चिद्ब्राह्मणः कंचिदर्थमभियाचेत्तं तस्मै दद्यादयं यद्येतदुत्सहसे ततो नयस्वैनमिति॥ 1-3-18
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− | तेनैवमुक्तो जनमेजयस्तं प्रत्युवाच भगवंस्तत्तथा भविष्यतीति॥ 1-3-19
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− | स तं पुरोहितमुपादायोपावृत्तो भ्रातॄनुवाच मयायं वृत उपाध्यायो यदयं ब्रूयात्तत्कार्यमविचारयद्भिर्भवद्भिरिति॥
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− | तेनैवमुक्ता भ्रातरस्तस्य तथा चक्रुः॥
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− | स तथा भ्रातॄन्संदिश्य तक्षशिलां प्रत्यभिप्रतस्थे तं च देशं वशे स्थापयामास॥ 1-3-20
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| एतस्मिन्नन्तरे कश्चिदृषिर्धौम्यो नामायोदस्तस्य शिष्यास्त्रयो बभूवुरुपमन्युरारुणिर्वेदश्चेति॥ 1-3-21 | | एतस्मिन्नन्तरे कश्चिदृषिर्धौम्यो नामायोदस्तस्य शिष्यास्त्रयो बभूवुरुपमन्युरारुणिर्वेदश्चेति॥ 1-3-21 |