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− | सौतिरुवाच
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− | जनमेजयः पारीक्षितः सह भ्रातृभिः कुरुक्षेत्रे दीर्घसत्रमुपास्ते॥
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− | तस्य भ्रातरस्त्रयः श्रुतसेन उग्रसेनो भीमसेन इति॥ | + | सौतिरुवाच |
| + | जनमेजयः पारीक्षितः सह भ्रातृभिः कुरुक्षेत्रे दीर्घसत्रमुपास्ते॥ |
| + | तस्य भ्रातरस्त्रयः श्रुतसेन उग्रसेनो भीमसेन इति॥ |
| + | तेषु तत्सत्रमुपासीनेष्वागच्छत्सारमेयः॥ 1-3-1 |
| + | स जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतो रोरूयमाणो मातुः समीपमुपागच्छत्॥ 1-3-2 |
| + | तं माता रोरूयमाणमुवाच॥ |
| + | किं रोदिषि केनास्यभिहत इति॥ 1-3-3 |
| + | स एवमुक्तो मातरं प्रत्युवाच जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतोऽस्मीति॥ 1-3-4 |
| + | तं माता प्रत्युवाच व्यक्तं त्वया तत्रापराद्धं येनास्यभिहत इति॥ 1-3-5 |
| + | स तां पुनरुवाच नापराध्यामि किंचिन्नावेक्षे हवींषि नावलिह इति॥ 1-3-6 |
| + | तच्छ्रुत्वा तस्य माता सरमा पुत्रदुःखार्ता तत्सत्रमुपागच्छद्यत्र स जनमेजयः सह भ्रातृभिर्दीर्घसत्रमुपास्ते॥ 1-3-7 |
| + | स तया क्रुद्धया तत्रोक्तोऽयं मे पुत्रो न किंचिदपराध्यति नावेक्षते हवींषि नावलेढि किमर्थमभिहत इति॥ 1-3-8 |
| + | न किंचिदुक्तवन्तस्ते सा तानुवाच यस्मादयमभिहतोऽनपकारी तस्माददृष्टं त्वां भयमागमिष्यतीति॥ 1-3-9 |
| + | [जनमेजय] एवमुक्तो देवशुन्या सरमया भृशं सम्भ्रान्तो विषण्णश्चासीत्॥ 1-3-10 |
| + | [[:Category:Uttank|''Uttank'']] [[:Category:conversation|''conversation'']] [[:Category:Janamejaya|''Janamejaya'']] |
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− | तेषु तत्सत्रमुपासीनेष्वागच्छत्सारमेयः॥ 1-3-1
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− | स जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतो रोरूयमाणो मातुः समीपमुपागच्छत्॥ 1-3-2
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− | तं माता रोरूयमाणमुवाच॥
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− | किं रोदिषि केनास्यभिहत इति॥ 1-3-3
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− | स एवमुक्तो मातरं प्रत्युवाच जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतोऽस्मीति॥ 1-3-4
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− | तं माता प्रत्युवाच व्यक्तं त्वया तत्रापराद्धं येनास्यभिहत इति॥ 1-3-5
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− | स तां पुनरुवाच नापराध्यामि किंचिन्नावेक्षे हवींषि नावलिह इति॥ 1-3-6
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− | तच्छ्रुत्वा तस्य माता सरमा पुत्रदुःखार्ता तत्सत्रमुपागच्छद्यत्र स जनमेजयः सह भ्रातृभिर्दीर्घसत्रमुपास्ते॥ 1-3-7
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− | स तया क्रुद्धया तत्रोक्तोऽयं मे पुत्रो न किंचिदपराध्यति नावेक्षते हवींषि नावलेढि किमर्थमभिहत इति॥ 1-3-8
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− | न किंचिदुक्तवन्तस्ते सा तानुवाच यस्मादयमभिहतोऽनपकारी तस्माददृष्टं त्वां भयमागमिष्यतीति॥ 1-3-9
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− | [जनमेजय] एवमुक्तो देवशुन्या सरमया भृशं सम्भ्रान्तो विषण्णश्चासीत्॥ 1-3-10
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| स तस्मिन्सत्रे समाप्ते हास्तिनपुरं प्रत्येत्य पुरोहितमनुरूपमन्विच्छमानः परं यत्नमकरोद्यो मे पापकृत्यां शमयेदिति॥ 1-3-11 | | स तस्मिन्सत्रे समाप्ते हास्तिनपुरं प्रत्येत्य पुरोहितमनुरूपमन्विच्छमानः परं यत्नमकरोद्यो मे पापकृत्यां शमयेदिति॥ 1-3-11 |