Line 362: |
Line 362: |
| | | |
| | | |
− | सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। | + | सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। |
| + | भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥@ |
| + | तस्य वृक्षस्य वक्ष्यामि शाखापु[शश्वत्पु]ष्पफलोदयम्॥ 1-1-100 |
| + | स्वादुमेध्यरसोपेतमच्छेद्यममरैरपि। |
| + | मातुर्नियोगाद्धर्मात्मा गाङ्गेयस्य च धीमतः॥ 1-1-101 |
| + | क्षेत्रे विचित्रवीर्यस्य कृष्णद्वैपायनः पुरा। |
| + | त्रीनग्नीनिव कौरव्यान्जनयामास वीर्यवान्॥ 1-1-102 |
| + | उत्पाद्य धृतराष्ट्रं च पाण्डुं विदुरमेव च। |
| + | जगाम तपसे धीमान्पुनरेवाश्रमं प्रति॥ 1-1-103 |
| + | तेषु जातेषु वृद्धेषु गतेषु परमां गतिम्। |
| + | अब्रवीद्भारतं लोके मानुषेऽस्मिन्महानृषिः॥ 1-1-104 |
| + | जनमेजयेन पृष्टः सन्ब्राह्मणैश्च सहस्रशः। |
| + | शशास शिष्यमासीनं वैशम्पायनमन्तिके॥ 1-1-105 |
| + | ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्। |
| + | [[:Category:Vyasdev|''Vyasdev'']] [[:Category:beget|''beget'']] [[:Category:Dhrtarashtra|''Dhrtarashtra'']] |
| + | [[:Category:Pandu|''Pandu'']] [[:Category:Vidur|''Vidur'']] [[:Category:व्यासदेव|''व्यासदेव'']] [[:Category:तीन|''तीन'']] |
| + | [[:Category:पुत्र|''पुत्र'']] [[:Category:धृतराष्ट्र|''धृतराष्ट्र'']] [[:Category:पाण्डु|''पाण्डु'']] [[:Category:विदुर|''विदुर'']] |
| | | |
− | भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥@
| |
− |
| |
− | तस्य वृक्षस्य वक्ष्यामि शाखापु[शश्वत्पु]ष्पफलोदयम्॥ 1-1-100
| |
− |
| |
− | स्वादुमेध्यरसोपेतमच्छेद्यममरैरपि।
| |
− |
| |
− | मातुर्नियोगाद्धर्मात्मा गाङ्गेयस्य च धीमतः॥ 1-1-101
| |
− |
| |
− | क्षेत्रे विचित्रवीर्यस्य कृष्णद्वैपायनः पुरा।
| |
− |
| |
− | त्रीनग्नीनिव कौरव्यान्जनयामास वीर्यवान्॥ 1-1-102
| |
− |
| |
− | उत्पाद्य धृतराष्ट्रं च पाण्डुं विदुरमेव च।
| |
− |
| |
− | जगाम तपसे धीमान्पुनरेवाश्रमं प्रति॥ 1-1-103
| |
− |
| |
− | तेषु जातेषु वृद्धेषु गतेषु परमां गतिम्।
| |
− |
| |
− | अब्रवीद्भारतं लोके मानुषेऽस्मिन्महानृषिः॥ 1-1-104
| |
− |
| |
− | जनमेजयेन पृष्टः सन्ब्राह्मणैश्च सहस्रशः।
| |
− |
| |
− | शशास शिष्यमासीनं वैशम्पायनमन्तिके॥ 1-1-105
| |
− |
| |
− | ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्।
| |
| | | |
| कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106 | | कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106 |