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सुख
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सुख ही मनुष्य की सभी गतिविधियों की प्रेरणा है| समस्याएँ दु:ख फैलातीं हैं| वर्तमान में मानव जीवन छोटी मोटी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है| जीवन का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो समस्याओं को झेल नहीं रहा| समस्याओं का निराकरण ही सुख की आश्वस्ति है|
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समस्याएँ यद्यपि अनेकों हैं| एक एक समस्या का निराकरण करना संभव नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है| कुछ जड़ की बातें ऐसीं होतीं हैं जो कई समस्याओं को जन्म देतीं हैं| इन्हें समस्या मूल कह सकते हैं| समस्याओं के मूल संख्या में अल्प होते हैं| इन समस्या मूलों का निराकरण करने से सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता है|
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ही मनुष्य की सभी गतिविधियों की प्रेरणा है| समस्याएँ दु:ख फैलातीं हैं| वर्तमान में मानव जीवन छोटी मोटी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है| जीवन का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो समस्याओं को झेल नहीं रहा| समस्याओं का निराकरण ही सुख की आश्वस्ति है|
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== समस्याओं की सूची ==
समस्याएँ यद्यपि अनेकों हैं| एक एक समस्या का निराकरण करना संभव नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है| कुछ जड़ की बातें ऐसीं होतीं हैं जो कई समस्याओं को जन्म देतीं हैं| इन्हें समस्या मूल कह सकते हैं| समस्याओं के मूल संख्या में अल्प होते हैं| इन समस्या मूलों का निराकरण करने से सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता है|
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समस्याओं की सूचि
   
वर्तमान में केवल भारत ही नहीं पूरा विश्व अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसी कुछ समस्याओं की सूचि नीचे दे रहे हैं।
 
वर्तमान में केवल भारत ही नहीं पूरा विश्व अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसी कुछ समस्याओं की सूचि नीचे दे रहे हैं।
 
१  रासायनिक प्रदूषण  २ पगढ़ीलापन  ३ टूटते कुटुम्ब  ४ गोवंश नाश  ५ टूटते कौटुम्बिक उद्योग          ६ गलाकाट स्पर्धा    ७ अधिकारों के रक्षण के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ            ७ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  ८ संपर्क भाषा    ९  लंबित न्याय  १० अक्षम न्याय व्यवस्था      ११ नौकरों का समाज  १२ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण १३ मँहंगाई                १४ कुटुम्ब भी बाजार भावना से चलना  १५ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १६ किसानों की आत्महत्याएँ        १७ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  १८ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १९ विपरीत शिक्षा  २० असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २१ संस्कारहीनता  २२ स्वैराचार    २३ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २४ जातिभेद  २५ शिशू-संगोपन गृह  २६ अनाथाश्रम  २७ वृध्दाश्रम  २८ अपंगाश्रम  २९ बाल सुधार गृह  ३० विधवाश्रम  ३१ श्रध्दाहीनता  ३२ अपराधीकरण  ३३ व्यसनाधीनता  ३४ प्रज्ञा पलायन  ३५ आत्मसंभ्रम    ३६ विदेशियों का अंधानुकरण  ३७ आतंकवाद  ३८ संपर्क भाषा  ३९ असामाजिकीकरण  ४० प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४१ नदी-जल विवाद  ४२ विदेशियों की घूसखोरी  ४३ विदेशी शक्तियों का समर्थन  ४४ राष्ट्रीय हीनताबोध                ४५ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४६ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)      ४७ अस्वच्छता  ४८ स्त्रियोंपर अत्याचार   ४९ अयोग्यों को अधिकार  ५० सांस्कृतिक प्रदूषण      ५२ भ्रष्टाचार (जीवन के सभी क्षेत्रों में)  ५३ लव्ह जिहाद  ५४ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार        ५५ सामाजिक विद्वेष  ५६ जातियों में वैमनस्य  ५७ सृष्टि का शोषण    ५८ वैचारिक प्रदूषण        ५९ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६० आंतरजाल का दुरूपयोग  ६१ मजहबी मूलतत्त्ववाद            ६२ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६३ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६४ कुपोषण      ६५ उपभोक्तावाद  ६६ बालमृत्यू    ६७ स्त्रियों का पुरूषीकरण/बढती नपुंसकता  ६८ बेरोजगारी    ६९ भुखमरी  ७० भ्रूणहत्या ७१ स्त्री भ्रूण हत्या    ७२ तनाव    ७३ जिद्दी बच्चे     ७४ घटता पौरुष-घटता स्त्रीत्व    ७५ बढती घरेलू हिंसा  ७६ झूठे विज्ञापन  ७७ घटता संवाद      ७८ देशी भाषाओं का नाश    ७९ बालकों-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८० बढते दुर्धर रोग      ८१ असंगठित सज्जन  ८२ उपभोक्तावाद  ८३ बढती अश्लीलता  ८४ अणू, प्लॅस्टिक जैसे लाजबाब कचरे  ८५ बढते शहर -उजडते गाँव      ८६ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८७ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ८८ लोकशिक्षा का अभाव      ८९ बूढा समाज  ९० राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९१ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन      ९२ जीवन की असहनीय तेज गति  
 
१  रासायनिक प्रदूषण  २ पगढ़ीलापन  ३ टूटते कुटुम्ब  ४ गोवंश नाश  ५ टूटते कौटुम्बिक उद्योग          ६ गलाकाट स्पर्धा    ७ अधिकारों के रक्षण के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ            ७ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  ८ संपर्क भाषा    ९  लंबित न्याय  १० अक्षम न्याय व्यवस्था      ११ नौकरों का समाज  १२ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण १३ मँहंगाई                १४ कुटुम्ब भी बाजार भावना से चलना  १५ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १६ किसानों की आत्महत्याएँ        १७ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  १८ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १९ विपरीत शिक्षा  २० असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २१ संस्कारहीनता  २२ स्वैराचार    २३ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २४ जातिभेद  २५ शिशू-संगोपन गृह  २६ अनाथाश्रम  २७ वृध्दाश्रम  २८ अपंगाश्रम  २९ बाल सुधार गृह  ३० विधवाश्रम  ३१ श्रध्दाहीनता  ३२ अपराधीकरण  ३३ व्यसनाधीनता  ३४ प्रज्ञा पलायन  ३५ आत्मसंभ्रम    ३६ विदेशियों का अंधानुकरण  ३७ आतंकवाद  ३८ संपर्क भाषा  ३९ असामाजिकीकरण  ४० प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४१ नदी-जल विवाद  ४२ विदेशियों की घूसखोरी  ४३ विदेशी शक्तियों का समर्थन  ४४ राष्ट्रीय हीनताबोध                ४५ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४६ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)      ४७ अस्वच्छता  ४८ स्त्रियोंपर अत्याचार   ४९ अयोग्यों को अधिकार  ५० सांस्कृतिक प्रदूषण      ५२ भ्रष्टाचार (जीवन के सभी क्षेत्रों में)  ५३ लव्ह जिहाद  ५४ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार        ५५ सामाजिक विद्वेष  ५६ जातियों में वैमनस्य  ५७ सृष्टि का शोषण    ५८ वैचारिक प्रदूषण        ५९ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६० आंतरजाल का दुरूपयोग  ६१ मजहबी मूलतत्त्ववाद            ६२ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६३ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६४ कुपोषण      ६५ उपभोक्तावाद  ६६ बालमृत्यू    ६७ स्त्रियों का पुरूषीकरण/बढती नपुंसकता  ६८ बेरोजगारी    ६९ भुखमरी  ७० भ्रूणहत्या ७१ स्त्री भ्रूण हत्या    ७२ तनाव    ७३ जिद्दी बच्चे     ७४ घटता पौरुष-घटता स्त्रीत्व    ७५ बढती घरेलू हिंसा  ७६ झूठे विज्ञापन  ७७ घटता संवाद      ७८ देशी भाषाओं का नाश    ७९ बालकों-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८० बढते दुर्धर रोग      ८१ असंगठित सज्जन  ८२ उपभोक्तावाद  ८३ बढती अश्लीलता  ८४ अणू, प्लॅस्टिक जैसे लाजबाब कचरे  ८५ बढते शहर -उजडते गाँव      ८६ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८७ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ८८ लोकशिक्षा का अभाव      ८९ बूढा समाज  ९० राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९१ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन      ९२ जीवन की असहनीय तेज गति  
परिवर्तन की या समस्याओं के निराकरण की दृष्टि
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समस्या निराकरण की वर्तमान दृष्टि के कारण ही समस्याओं और समाधान का दुष्ट चक्र निर्माण हुआ दिखाई देता है। इसलिये इस दृष्टि के दोष दूर करने होंगे या स्वच्छ दृष्टि से समस्याओं का निराकरण करना होगा। हमारा काम समस्या निराकरण की वर्तमान दृष्टि का अध्ययन करना और निर्दोष दृष्टि की प्रतिष्ठापना करनाहै| निर्दोष दृष्टि से समस्याओं का समाधान निकालना होगा। इस दृष्टि के महत्त्वपूर्ण पहलू निम्न होंगे।
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== परिवर्तन की या समस्याओं के निराकरण की दृष्टि ==
एकात्मता और समग्रता की दृष्टि से समस्याओं को देखना
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समस्या निराकरण की वर्तमान दृष्टि के कारण ही समस्याओं और समाधान का दुष्ट चक्र निर्माण हुआ दिखाई देता है। इसलिये इस दृष्टि के दोष दूर करने होंगे या स्वच्छ दृष्टि से समस्याओं का निराकरण करना होगा। हमारा काम समस्या निराकरण की वर्तमान दृष्टि का अध्ययन करना और निर्दोष दृष्टि की प्रतिष्ठापना करनाहै| निर्दोष दृष्टि से समस्याओं का समाधान निकालना होगा। इस दृष्टि के महत्त्वपूर्ण पहलू निम्न होंगे।
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== एकात्मता और समग्रता की दृष्टि से समस्याओं को देखना ==
 
१. अंतिम लक्ष्य को ओझल नहीं होने देना : मानव जो कुछ करता है सुख पाने के लिए करता है| सुख का सबसे उन्नत स्तर है “परमसुख”| मानव के व्यक्तिगत जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। परमसुख की प्राप्ती ही मोक्ष है| और उसका मार्ग है ‘आत्मनो मोक्षार्थं जगत् हिताय च’। जगत् हिताय च का ही अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’। सुख के और हित के भिन्न भिन्न स्तर होते हैं।
 
१. अंतिम लक्ष्य को ओझल नहीं होने देना : मानव जो कुछ करता है सुख पाने के लिए करता है| सुख का सबसे उन्नत स्तर है “परमसुख”| मानव के व्यक्तिगत जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। परमसुख की प्राप्ती ही मोक्ष है| और उसका मार्ग है ‘आत्मनो मोक्षार्थं जगत् हिताय च’। जगत् हिताय च का ही अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’। सुख के और हित के भिन्न भिन्न स्तर होते हैं।
 
निम्नतम स्तर - मम सुखाय, मम हिताय
 
निम्नतम स्तर - मम सुखाय, मम हिताय
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लेकिन प्रत्यक्ष में कोई बात करणीय है या नहीं इस बारे में कई बार संभ्रम पैदा हो जाता है। इस संभ्रम को दूर करने के लिये कृपया निम्न विश्लेषण देखें|
 
लेकिन प्रत्यक्ष में कोई बात करणीय है या नहीं इस बारे में कई बार संभ्रम पैदा हो जाता है। इस संभ्रम को दूर करने के लिये कृपया निम्न विश्लेषण देखें|
 
सर्वे भवन्तु सुखिन: - के लिये करणीय अकरणीय विवेक
 
सर्वे भवन्तु सुखिन: - के लिये करणीय अकरणीय विवेक
कृतियों के वर्ग
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== कृतियों के वर्ग ==
 
कृतियाँ के दो वर्ग किये जा सकते हैं।
 
कृतियाँ के दो वर्ग किये जा सकते हैं।
 
१  करणीय : करणीय का अर्थ है करना चाहिये ऐसी कृति। करणीय कृति उसे कहते हैं जिस के करने से किसी का अहित नहीं होता किन्तु एक से अधिक लोगों का लाभ होता है या चराचर को लाभ होता है|
 
१  करणीय : करणीय का अर्थ है करना चाहिये ऐसी कृति। करणीय कृति उसे कहते हैं जिस के करने से किसी का अहित नहीं होता किन्तु एक से अधिक लोगों का लाभ होता है या चराचर को लाभ होता है|
 
२ अकरणीय : अकरणीय कृति उसे कहते हैं जिस से किसी का भी अहित होता है।
 
२ अकरणीय : अकरणीय कृति उसे कहते हैं जिस से किसी का भी अहित होता है।
करणीय और अकरणीय विवेक  
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== करणीय और अकरणीय विवेक ==
 
करणीय का अर्थ है करने योग्य कृति। और अकरणीय का अर्थ है जो नहीं करना चाहिये ऐसी कृति। कोई कृति करने में कितनी सरल है या कठिन है इस से करणीयता तय नहीं होती। वह होती है उस कृति की सर्वहितकारिता से या किसी के अहित की नहीं होने से। वह कृति करने में कितनी भी कठिन हो वह यदि करणीय है तो करनी तो वही चाहिये। आज असंभव हो तो उसे सरल हिस्सों में बाँटकर क्रमश: करना चाहिये। लेकिन करना तो वही चाहिये जो करणीय है।
 
करणीय का अर्थ है करने योग्य कृति। और अकरणीय का अर्थ है जो नहीं करना चाहिये ऐसी कृति। कोई कृति करने में कितनी सरल है या कठिन है इस से करणीयता तय नहीं होती। वह होती है उस कृति की सर्वहितकारिता से या किसी के अहित की नहीं होने से। वह कृति करने में कितनी भी कठिन हो वह यदि करणीय है तो करनी तो वही चाहिये। आज असंभव हो तो उसे सरल हिस्सों में बाँटकर क्रमश: करना चाहिये। लेकिन करना तो वही चाहिये जो करणीय है।
कृतियों के प्रकार
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== कृतियों के प्रकार ==
 
कृतियाँ चार प्रकार की होतीं हैं।
 
कृतियाँ चार प्रकार की होतीं हैं।
 
१. सर्वहितकारी    
 
१. सर्वहितकारी    
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जो कृतियाँ एक व्यक्ति के या कुछ लोगों के हित में हैं लेकिन जिन के करने से किसी का अहित नहीं होता वे भी करणीय वर्ग में आतीं हैं। जैसे कला साधना, व्यायाम आदि।  
 
जो कृतियाँ एक व्यक्ति के या कुछ लोगों के हित में हैं लेकिन जिन के करने से किसी का अहित नहीं होता वे भी करणीय वर्ग में आतीं हैं। जैसे कला साधना, व्यायाम आदि।  
 
जो कृतियाँ कुछ लोगों के हित में और कुछ लोगों के अहित में होतीं हैं वे भी अकरणीय के वर्ग की होती हैं। सामान्यत: दुनियाँ भर की समस्याएँ इसी कृति के प्रकार के कारण होतीं हैं। जैसे रासायनिक उत्पादन। यह कारखाने के मालिक, कर्मचारी, मजदूर और ग्राहक के लिये तो हितकारी है। लेकिन उस के द्वारा फैलाए गये प्रदूषण से उस कारखाने के मालिक, कर्मचारी और मजदूरों समेत हजारों लोगों का स्वास्थ्य बिगडता है।
 
जो कृतियाँ कुछ लोगों के हित में और कुछ लोगों के अहित में होतीं हैं वे भी अकरणीय के वर्ग की होती हैं। सामान्यत: दुनियाँ भर की समस्याएँ इसी कृति के प्रकार के कारण होतीं हैं। जैसे रासायनिक उत्पादन। यह कारखाने के मालिक, कर्मचारी, मजदूर और ग्राहक के लिये तो हितकारी है। लेकिन उस के द्वारा फैलाए गये प्रदूषण से उस कारखाने के मालिक, कर्मचारी और मजदूरों समेत हजारों लोगों का स्वास्थ्य बिगडता है।
समस्या मूलों की पहचान
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== समस्या मूलों की पहचान ==
 
एक एक समस्या लेकर अन्य किसी भी प्रकार से बिगाड़ न करते हुए उसका निराकरण अत्यंत कठिन या लगभग असंभव बात है| क्यों कि जीवन टुकड़ों में नहीं जिया जाता| जीवन का हर पहलू दूसरे हर पहलू से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जुडा हुआ होता है| इसलिए समास्याओं का समस्यामूलों के आधारपर वर्गीकरण करना होगा| फिर समस्या मूलों को निर्मूल करने के लिए प्रयास करने होंगे| उपर्युक्त समस्याओं की सूचि का वर्गीकरण अलग अलग ढँग से किया जा सकता है।  
 
एक एक समस्या लेकर अन्य किसी भी प्रकार से बिगाड़ न करते हुए उसका निराकरण अत्यंत कठिन या लगभग असंभव बात है| क्यों कि जीवन टुकड़ों में नहीं जिया जाता| जीवन का हर पहलू दूसरे हर पहलू से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जुडा हुआ होता है| इसलिए समास्याओं का समस्यामूलों के आधारपर वर्गीकरण करना होगा| फिर समस्या मूलों को निर्मूल करने के लिए प्रयास करने होंगे| उपर्युक्त समस्याओं की सूचि का वर्गीकरण अलग अलग ढँग से किया जा सकता है।  
 
एक ढँग के वर्गीकरण से यह ध्यान में आएगा कि ये समस्याएँ मोटा मोटी निम्न दो समस्यामूलों की उपज हैं| धर्म को आई व्यापक ग्लानी की सूचक हैं|  
 
एक ढँग के वर्गीकरण से यह ध्यान में आएगा कि ये समस्याएँ मोटा मोटी निम्न दो समस्यामूलों की उपज हैं| धर्म को आई व्यापक ग्लानी की सूचक हैं|  
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