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जीवन के अभारतीय याने शासनाधिष्ठित प्रतिमान के कारण विद्यालयों में पढाए जानेवाले विषय भी शासकीय व्यवस्था से जुड़े हुए ही होते हैं| जैसे भूगोल पढ़ाते समय भारत का शासकीय नक्शा लेकर पढ़ाया जाता है| इस नक्शेमें कुछ कम अधिक हो जानेपर हो-हल्ला मच जाता है| हमें इतिहास भी पढ़ाया जाता है वह राजकीय इतिहास ही होता है| वर्तमान में पढ़ाया जानेवाला सम्पत्ति शास्त्र (इकोनोमिक्स) भी राजकीय सम्पत्ति शास्त्र (पोलिटिकल इकोनोमी) है| भारतीय परम्परा इन सभी शास्त्रों को सांस्कृतिक दृष्टी से अध्ययन की रही है| एकात्मता और समग्रता के सन्दर्भ में अध्ययन की रही है| सर्वे भवन्तु सुखिन: की दृष्टी से अध्ययन की रही है|
 
जीवन के अभारतीय याने शासनाधिष्ठित प्रतिमान के कारण विद्यालयों में पढाए जानेवाले विषय भी शासकीय व्यवस्था से जुड़े हुए ही होते हैं| जैसे भूगोल पढ़ाते समय भारत का शासकीय नक्शा लेकर पढ़ाया जाता है| इस नक्शेमें कुछ कम अधिक हो जानेपर हो-हल्ला मच जाता है| हमें इतिहास भी पढ़ाया जाता है वह राजकीय इतिहास ही होता है| वर्तमान में पढ़ाया जानेवाला सम्पत्ति शास्त्र (इकोनोमिक्स) भी राजकीय सम्पत्ति शास्त्र (पोलिटिकल इकोनोमी) है| भारतीय परम्परा इन सभी शास्त्रों को सांस्कृतिक दृष्टी से अध्ययन की रही है| एकात्मता और समग्रता के सन्दर्भ में अध्ययन की रही है| सर्वे भवन्तु सुखिन: की दृष्टी से अध्ययन की रही है|
 
वर्तमान में पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है ऐसा लोगों को लगने लगा है| इसलिए शिक्षा केवल अर्थार्जन के लिए याने पैसा कमाने के लिए होती है ऐसा सबको लगता है| इसीलिए जिन पाठ्यक्रमों के पढ़ने से अधिक पैसा मिलेगा ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भीड़ लग जाती है| इतिहास, भूगोल जैसे पाठ्यक्रमों की उपेक्षा होती है| सामान्यत: मनुष्य वही बातें याद रखने का प्रयास करता है जिनका उसे पैसा कमाने के लिए उपयोग होता है या हो सकता है ऐसा उसे लगता है| भूगोल (खगोलका ही एक हिस्सा) यह भी एक ऐसा विषय है जो बच्चे सामान्यत: पढ़ना नहीं चाहते| बच्चों के माता-पिता भी बच्चों को भूगोल पढ़ाना नहीं चाहते| उन्हें लगता है कि इसका बड़े होकर पैसा कमाने में कोई उपयोग नहीं है| इसमें बच्चों का दोष नहीं है| उनके माता-पिता का भी दोष नहीं है| यह दोष है शिक्षा क्षेत्र के नेतृत्व का, शिक्षाविदों का|  
 
वर्तमान में पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है ऐसा लोगों को लगने लगा है| इसलिए शिक्षा केवल अर्थार्जन के लिए याने पैसा कमाने के लिए होती है ऐसा सबको लगता है| इसीलिए जिन पाठ्यक्रमों के पढ़ने से अधिक पैसा मिलेगा ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भीड़ लग जाती है| इतिहास, भूगोल जैसे पाठ्यक्रमों की उपेक्षा होती है| सामान्यत: मनुष्य वही बातें याद रखने का प्रयास करता है जिनका उसे पैसा कमाने के लिए उपयोग होता है या हो सकता है ऐसा उसे लगता है| भूगोल (खगोलका ही एक हिस्सा) यह भी एक ऐसा विषय है जो बच्चे सामान्यत: पढ़ना नहीं चाहते| बच्चों के माता-पिता भी बच्चों को भूगोल पढ़ाना नहीं चाहते| उन्हें लगता है कि इसका बड़े होकर पैसा कमाने में कोई उपयोग नहीं है| इसमें बच्चों का दोष नहीं है| उनके माता-पिता का भी दोष नहीं है| यह दोष है शिक्षा क्षेत्र के नेतृत्व का, शिक्षाविदों का|  
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