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→‎मन की शिक्षा: लेख सम्पादित किया
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साक्षरा विपरिताश्चेत राक्षसा एव केवलम् । सरसो विपरिताश्चेत सरसत्वं न मुंचते ॥
 
साक्षरा विपरिताश्चेत राक्षसा एव केवलम् । सरसो विपरिताश्चेत सरसत्वं न मुंचते ॥
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भावार्थ : मनुष्य शिक्षण के द्वारा केवल साक्षर हुवा होगा तो विपरीत परिस्थिती में उस में छिपा हीन भाव ही प्रकट होगा। राक्षस ही प्रकट होगा। किन्तु उसे यदि मन की शिक्षा मिली है, उस का मन सुसंस्कृत हुवा है तो वह विपरीत परिस्थिती में भी अपने संस्कार नहीं छोडेगा।
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भावार्थ : मनुष्य शिक्षण के द्वारा केवल साक्षर हुआ होगा तो विपरीत परिस्थिती में उस में छिपा हीन भाव ही प्रकट होगा। राक्षस ही प्रकट होगा। किन्तु उसे यदि मन की शिक्षा मिली है, उस का मन सुसंस्कृत हुआ है तो वह विपरीत परिस्थिती में भी अपने संस्कार नहीं छोडेगा।
महाराष्ट्र की संत बहिणाबाई मन की चंचलता का वर्णन करते समय कहती हैं - मन वढाय वढ़ाय उभ्या पिकातलं ढोर ।  किती हाका फिरूनि येतं पिकावर ॥  
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महाराष्ट्र की संत बहिणाबाई मन की चंचलता का वर्णन करते समय कहती हैं -  
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मन वढाय वढ़ाय उभ्या पिकातलं ढोर ।  किती हाका फिरूनि येतं पिकावर ॥
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अर्थ : हरेभरे खेत में घुसा जानवर जिस प्रकार उसे भगानेपर या मारनेपर भी बारबार खेत में घुसने का प्रयास करता रहता है, मन भी वैसा ही विषयों के प्रति आकर्षित होता है। उन को छोड़ता नहीं है।
 
अर्थ : हरेभरे खेत में घुसा जानवर जिस प्रकार उसे भगानेपर या मारनेपर भी बारबार खेत में घुसने का प्रयास करता रहता है, मन भी वैसा ही विषयों के प्रति आकर्षित होता है। उन को छोड़ता नहीं है।
बहिरंग योग ज्ञानार्जन प्रक्रिया के विकास का एक अत्यंत मौलिक और प्रभावी साधन है। इसलिये शिक्षा का विचार इस के बिना संभव नहीं है। बहिरंग योग में भी यम-नियम (सामाजिक वर्तनसूत्र और व्यक्तिगत वर्तनसूत्र) यह श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिये अत्यंत अनिवार्य ऐसे विषय है। इन के सुयोग्य विकास के आधारपर ही एक प्रभावी और श्रेष्ठ व्यक्तित्व की नींव रखी जा सकती है। किन्तु वर्तमान योग शिक्षण में यम और नियमों की उपेक्षा ही होती दिखाई देती है। इन्हे आवश्यक महत्व नहीं दिया जाता। यम, नियमों का आधार बनाए बिना योग में आगे बढने का अर्थ है सदाचार की मानसिकता बनाए बगैर व्यक्तित्व (अधूरे या शायद विकृत भी) का विकास। यम, नियमों की उपेक्षा करने से, अहंकार से भरे योगिराज चांगदेव बन सकते हैं। यम, नियमों की मदद से मनुष्य सदाचारी बनता है। ज्ञानेश्वर बन सकता है। सदाचार की मानसिकता से उस का शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। आसन और प्राणायाम की मदद से श्रेष्ठ शारिरिक और मानसिक क्षमताएं विकसित होती है। और प्रत्याहार के माध्यम से मन संयमी, एकाग्र और नियंत्रित होता है।  
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बहिरंग योग ज्ञानार्जन प्रक्रिया के विकास का एक अत्यंत मौलिक और प्रभावी साधन है। इसलिये शिक्षा का विचार इस के बिना संभव नहीं है। बहिरंग योग में भी यम-नियम (सामाजिक वर्तनसूत्र और व्यक्तिगत वर्तनसूत्र) यह श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिये अत्यंत अनिवार्य ऐसे विषय है। इन के सुयोग्य विकास के आधार पर ही एक प्रभावी और श्रेष्ठ व्यक्तित्व की नींव रखी जा सकती है। किन्तु वर्तमान योग शिक्षण में यम और नियमों की उपेक्षा ही होती दिखाई देती है। इन्हे आवश्यक महत्व नहीं दिया जाता। यम, नियमों का आधार बनाए बिना योग में आगे बढने का अर्थ है सदाचार की मानसिकता बनाए बगैर व्यक्तित्व (अधूरे या शायद विकृत भी) का विकास। यम, नियमों की उपेक्षा करने से, अहंकार से भरे योगिराज चांगदेव बन सकते हैं। यम, नियमों की मदद से मनुष्य सदाचारी बनता है। ज्ञानेश्वर बन सकता है। सदाचार की मानसिकता से उस का शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। आसन और प्राणायाम की मदद से श्रेष्ठ शारिरिक और मानसिक क्षमताएं विकसित होती है। और प्रत्याहार के माध्यम से मन संयमी, एकाग्र और नियंत्रित होता है।
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यम नियमों की शिक्षा तो गर्भधारणा से ही शुरू होनी चाहिए। गर्भ धारणा से आगे जितनी अधिक देरी होगी उतनी बालक के द्वारा यम नियमों के ग्रहण करने में कठिनाई बढती जाएगी। यम नियमों की शिक्षा यह तो प्रमुखत: कुटुम्ब शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा है। इसी प्रकार से बड़ी आयु में आसन ठीक से लग सकें इस हेतु आवश्यक शारीरिक लचीलेपन को बनाए रखने के प्रयास भी छोटी आयु में ही करने होते हैं। बढ़ी आयु में आसन प्राणायाम जैसी अन्य बातें शायद सिखाई जा सकती होंगी, लेकिन यम नियम नहीं सिखाए जा सकते।
 
यम नियमों की शिक्षा तो गर्भधारणा से ही शुरू होनी चाहिए। गर्भ धारणा से आगे जितनी अधिक देरी होगी उतनी बालक के द्वारा यम नियमों के ग्रहण करने में कठिनाई बढती जाएगी। यम नियमों की शिक्षा यह तो प्रमुखत: कुटुम्ब शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा है। इसी प्रकार से बड़ी आयु में आसन ठीक से लग सकें इस हेतु आवश्यक शारीरिक लचीलेपन को बनाए रखने के प्रयास भी छोटी आयु में ही करने होते हैं। बढ़ी आयु में आसन प्राणायाम जैसी अन्य बातें शायद सिखाई जा सकती होंगी, लेकिन यम नियम नहीं सिखाए जा सकते।
  
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