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| == वैश्विकता == | | == वैश्विकता == |
− | वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है। | सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये। वैश्विक मापदण्ड | + | वैश्विकता वर्तमान समय की लोकप्रिय संकल्पना है। | सबको सबकुछ वैश्विक स्तर का चाहिये। वैश्विक मापदण्ड श्रेष्ठ मापदण्ड माने जाते हैं। लोग कहते हैं कि संचार माध्यमों के प्रताप से हम विश्व के किसी भी कोने में क्या हो रहा है यह देख सकते हैं, सुन सकते हैं और उसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यातायात के दृतगति साधनों के कारण से विश्व में कहीं भी जाना हो तो चौबीस घण्टे के अन्दर अन्दर पहुंच सकते हैं। कोई भी वस्तु कहीं भी भेजना चाहते हैं या कहीं से भी मँगवाना चाहते हैं तो वह सम्भव है। विश्व अपने टीवी के पर्दे में और टीवी अपने बैठक कक्ष में या शयनकक्ष में समा गया है। यह केवल जानकारी का ही प्रश्न नहीं है। देश एकदूसरे के इतने नजदीक आ गये हैं कि वे एकदसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। विश्व अब एक ग्राम बन गया है। इसलिए अब एक ही विश्वसंस्कृति की बात करनी चाहिये। अब राष्ट्रों की नहीं विश्वनागरिकता की बात करनी चाहिये |
− | श्रेष्ठ मापदण्ड माने जाते हैं। लोग कहते हैं कि संचार माध्यमों के प्रताप से हम विश्व के किसी भी कोने में क्या | हो रहा है यह देख सकते हैं, सुन सकते हैं और उसकी | |
− | जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यातायात के दृतगति साधनों के कारण से विश्व में कहीं भी जाना हो तो चौबीस घण्टे के अन्दर अन्दर पहुंच सकते हैं। कोई भी वस्तु कहीं भी भेजना चाहते हैं या कहीं से भी मँगवाना चाहते हैं तो वह सम्भव है। विश्व अपने टीवी के पर्दे में और टीवी अपने बैठक कक्ष में या शयनकक्ष में समा गया है। यह केवल जानकारी का ही प्रश्न नहीं है। देश एकदूसरे के इतने नजदीक आ गये हैं कि वे एकदसरे से प्रभावित हुए बिना | नहीं रह सकते। विश्व अब एक ग्राम बन गया है। इसलिए | अब एक ही विश्वसंस्कृति की बात करनी चाहिये। अब | राष्ट्रों की नहीं विश्वनागरिकता की बात करनी चाहिये।। | |
− | अब राष्ट्र की बात करना संकुचितता मानी जाती है। शिक्षा में पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक वैश्विक | स्तर के संस्थान खुल गये हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ व्यापार
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− | कर रही हैं। भौतिक पदार्थों से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा | तक के लिए वैश्विक स्तर के मानक स्थापित हो गये हैं। | लोग नौकरी और व्यवसाय के लिए एक देश से दूसरे देश | में आबनजावन सरलता से करते हैं।
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− | |अब विश्वभाषा, विश्वसंस्कृति, विश्वनागरिकता की। बात हो रही है।
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− | भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक हीं दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में
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− | अभारतीयता की छाप दिखाई देती है। इसलिए इस विषय में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है। | इस वैश्विकता का मूल कहाँ है यह जानना बहुत उपयोगी रहेगा।
| + | अब राष्ट्र की बात करना संकुचितता मानी जाती है। शिक्षा में पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक वैश्विक स्तर के संस्थान खुल गये हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ व्यापार कर रही हैं। भौतिक पदार्थों से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा तक के लिए वैश्विक स्तर के मानक स्थापित हो गये हैं। लोग नौकरी और व्यवसाय के लिए एक देश से दूसरे देश में आवनजावन सरलता से करते हैं। अब विश्वभाषा, विश्वसंस्कृति, विश्वनागरिकता की बात हो रही है। |
− | पांचसौं वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वयात्रा शुरू की। विश्व के पूर्वी देशों की समृद्धि का उन्हें आकर्षण था। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में तथाकथित औद्योगिक क्रान्ति हुई। यन्त्रों का आविष्कार हुआ, बड़े बड़े कारखानों में विपुल मात्रा में उत्पादन होने लगा। इन उत्पादनों के लिये उन देशों को बाजार चाहिये था। उससे भी पूर्व यूरोप के देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये।। अठारहवीं शताब्दी में अमेरीका स्वतन्त्र देश हो गया। इसके बाद आफ्रिका और एशिया के देशों में बाजार स्थापित करने का कार्य और तेज गति से शुरू हुआ। सत्रहवीं शताब्दी में भारत में ब्रिटिश राज स्थापित होने लगा। ब्रिटीशों का मुख्य उद्देश्य भारत की समृद्धि को लूटना ही था। इस कारण से भारत में लूट और अत्याचार का दौर चला।।
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− | पश्चिम का चिन्तन अर्थनिष्ठ था। आज भी है। इसलिए पश्चिम को अब विश्वभर में आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना है इस उद्देश्य से यह वैश्वीकरण कि योजना हो रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, आंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्वबैंक आदि उसके साधन हैं। विज्ञापन, करार, विश्वव्यापार संगठन आदि उसके माध्यम हैं।।
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− | भारत को वैश्विकता का बहुत आकर्षण है। परन्तु आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है।
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− | जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है। यह अन्तर हमें
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− | समझ लेना चाहिये। भारत ने भी
| + | भारत में वैश्विकता का आकर्षण कुछ अधिक हीं दिखाई देता है। भाषा से लेकर सम्पूर्ण जीवनशैली में अभारतीयता की छाप दिखाई देती है। इसलिए इस विषय में जरा स्पष्टता करने की आवश्यकता है। इस वैश्विकता का मूल कहाँ है यह जानना बहुत उपयोगी रहेगा। |
− | प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की। भारत के लोग
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− | अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं। विश्व के
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− | देशों को उन्होंने कलाकारी की विद्यार्ये सिखाई हैं। विश्व के
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− | हर देश में आज भी भारत की संस्कृति के अवशेष मिलते
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− | हैं। पश्चिम जहां भी गया अपने साथ उसने गुलामी,
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− | अत्याचार, पंथपरिवर्तन, लूट का कहर ढाया। भारत जहां
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− | भी गया अपने साथ ज्ञान, संस्कार और विद्या लेकर गया।
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− | भारत की वैश्विकता के सूत्र हैं ...
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− | कृण्वन्तो विश्वमार्यमू। अर्थात विश्व को आर्य
| + | पांच सौ वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वयात्रा शुरू की। विश्व के पूर्वी देशों की समृद्धि का उन्हें आकर्षण था। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में तथाकथित औद्योगिक क्रान्ति हुई। यन्त्रों का आविष्कार हुआ, बड़े बड़े कारखानों में विपुल मात्रा में उत्पादन होने लगा। इन उत्पादनों के लिये उन देशों को बाजार चाहिये था। उससे भी पूर्व यूरोप के देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। अठारहवीं शताब्दी में अमेरीका स्वतन्त्र देश हो गया। इसके बाद अफ्रीका और एशिया के देशों में बाजार स्थापित करने का कार्य और तेज गति से शुरू हुआ। सत्रहवीं शताब्दी में भारत में ब्रिटिश राज स्थापित होने लगा। ब्रिटीशों का मुख्य उद्देश्य भारत की समृद्धि को लूटना ही था। इस कारण से भारत में लूट और अत्याचार का दौर चला। पश्चिम का चिन्तन अर्थनिष्ठ था। आज भी है। इसलिए पश्चिम को अब विश्वभर में आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना है इस उद्देश्य से यह वैश्वीकरण की योजना हो रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्वबैंक आदि उसके साधन हैं। विज्ञापन, करार, विश्वव्यापार संगठन आदि उसके माध्यम हैं। भारत को वैश्विकता का बहुत आकर्षण है। परन्तु आज जिस वैश्विकता का प्रचार चल रहा है वह आर्थिक है। जबकि भारत की वैश्विकता सांस्कृतिक है। यह अन्तर हमें समझ लेना चाहिये। |
− | बनायें। आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनायें
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− | उदास्वरितानाम तु वसुधैव peavey | frat
| + | भारत ने भी प्राचीन समय से निरन्तर विश्वयात्रा की। भारत के लोग अपने साथ ज्ञान, कारीगरी, कौशल लेकर गये हैं। विश्व के देशों को उन्होंने कलाकारी की विद्यार्ये सिखाई हैं। विश्व के हर देश में आज भी भारत की संस्कृति के अवशेष मिलते हैं। पश्चिम जहां भी गया अपने साथ उसने गुलामी, अत्याचार, पंथपरिवर्तन, लूट का कहर ढाया। भारत जहां भी गया अपने साथ ज्ञान, संस्कार और विद्या लेकर गया। |
− | हृदय उदार होता है उनके लिये तो सम्पूर्ण बसुधा कुटुंब है।
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− | वसुधा में केवल मनुष्य का नहीं तो चराचर सृष्टि का
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− | समावेश होता है।
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− | सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। अर्थात | + | भारत की वैश्विकता के सूत्र हैं: <blockquote>कृण्वन्तो विश्वमार्यमू। अर्थात विश्व को आर्य बनायें। आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनायें</blockquote><blockquote>उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् || <ref>महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक ७१</ref></blockquote><blockquote>उदार हृदय के व्यक्तियों के लिये तो सम्पूर्ण बसुधा कुटुंब है। वसुधा में केवल मनुष्य का नहीं तो चराचर सृष्टि का समावेश होता है।</blockquote><blockquote>सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। </blockquote><blockquote>अर्थात सब सुखी हों, सब निरामय हों। सब में केवल भारतीय नहीं हैं, चराचर सृष्टि सहित पूरा विश्व है।</blockquote>तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है। |
− | सब सुखी हों, सब निरामय हों। सब में केवल भारतीय | |
− | नहीं हैं, चराचर सृष्टि सहित पूरा विश्व है। | |
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− | तात्पर्य यह है कि भारत का चिन्तन तो हमेशा वैश्विक
| + | आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में उलझ गया है। पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को अपना बाजार बनाना चाहती है। परन्तु जो भी अर्थनिष्ठ बनाता है वह अनात्मीय व्यवहार करता है। भारत के सुज्ञ सुभाषितकार ने कहा है:<blockquote>अर्थातुराणां न गुरुर्न बन्धु:</blockquote><blockquote>अर्थात जो अर्थ के पीछे पड़ता है उसे न कोई गुरु होता है न स्वजन।</blockquote>ऐसे अनात्मीय सम्बन्ध से स्पर्धा, हिंसा, संघर्ष, |
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− | ही रहा है। भारत की जीवनदृष्टि अर्थनिष्ठ नहीं अपितु धर्मनिष्ठ है इसलिए भारत की वैश्विकता भी सांस्कृतिक है।
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− | आज स्थिति यह है कि भारत आर्थिक वैश्विकता में | |
− | उलझ गया है। पश्चिम की यह आर्थिक वैश्विकता विश्व को | |
− | अपना बाजार बनाना चाहती है। परन्तु जो भी अर्थनिष्ठ | |
− | बनाता है वह अनात्मीय व्यवहार करता है। भारत के सुज्ञ | |
− | सुभाषितकार ने कहा है, अर्थातुराणाम न गुरुर्न बंधु:' अर्थात | |
− | जो अर्थ के पीछे पड़ता है उसे न कोई गुरु होता है न | |
− | स्वजन। ऐसे अनात्मीय सम्बन्ध से स्पर्धा, हिंसा, संघर्ष, | |
| विनाश ही फैलते हैं। पश्चिमी देशों की अर्थनिष्ठा उन्हें भी | | विनाश ही फैलते हैं। पश्चिमी देशों की अर्थनिष्ठा उन्हें भी |
| विनाश की ओर ही ले जा रही है। हम यदि उसका ही | | विनाश की ओर ही ले जा रही है। हम यदि उसका ही |