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| अनाध्यात्मिक भौतिक है और भारत आध्यात्मिक भौतिक | | अनाध्यात्मिक भौतिक है और भारत आध्यात्मिक भौतिक |
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| + | है । आध्यात्मिक भौतिक होने के कारण भारत में समृद्धि के |
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| + | साथ साथ संस्कृति भी विकसित होती है जबकि पश्चिम में |
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| संस्कृति को छोड़कर ही समृद्धि सम्भव | | संस्कृति को छोड़कर ही समृद्धि सम्भव |
| है । समृद्धि और संस्कृति को एकसाथ प्राप्त करने के लिये | | है । समृद्धि और संस्कृति को एकसाथ प्राप्त करने के लिये |
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| शिक्षाक्षेत्र उल्टी दिशा में चला है इसलिए वह कठिन तो है | | शिक्षाक्षेत्र उल्टी दिशा में चला है इसलिए वह कठिन तो है |
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− | है । आध्यात्मिक भौतिक होने के कारण भारत में समृद्धि के... परन्तु अनिवार्य रूप से करणीय है ।
| + | ... परन्तु अनिवार्य रूप से करणीय है । |
− | साथ साथ संस्कृति भी विकसित होती है जबकि पश्चिम में
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− | ७. संस्कृति
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| + | == संस्कृति == |
| संस्कृति का अर्थ है जीवनशैली । संस्कृति संज्ञा का | | संस्कृति का अर्थ है जीवनशैली । संस्कृति संज्ञा का |
| संबन्ध धर्म के साथ है । धर्म विश्वनियम है । धर्म एक | | संबन्ध धर्म के साथ है । धर्म विश्वनियम है । धर्म एक |
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| आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है । | | आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है । |
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− | युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है ।
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− | छोड़ना यह भारतीय संस्कृति की रीत है । भूतमात्र का हित... जीवन में जब आनन्द का अनुभव होता है तो वह नृत्य,
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− | चाहना यह भारतीय संस्कृति की रीत है । भोजन को ब्रह्म... गीत, काव्य आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होता है।
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− | मानना और उसे जठराय़ि को आहुती देने के रूप में ग्रहण. सौन्दर्य की. अनुभूति वस्त्रालंकार, शिल्पस्थापत्य में
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− | करना भारतीय संस्कृति की रीत है । अभिव्यक्त होती है । इसलिए सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में रस
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− | धर्म और संस्कृति साथ साथ प्रयुक्त होने वाली संज्ञायें. है, आनन्द है, सौन्दर्य है । जीवन में सत्य और धर्म की
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− | हैं। इसका अर्थ यही है कि संस्कृति धर्म का अनुसरण अभिव्यक्ति को भी सुन्दर बना देना भारतीय संस्कृति की
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− | करती है । विशेषता है ।
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| == संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध == | | == संस्कृति और सभ्यता का सम्बन्ध == |
− | नेपोलियन १५३ से.मी. का नाटा नर था । अपनी. है। किन्तु मन्दिर की मूर्ति का वर्णन थोड़ा ही मिलता है ।
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− | पहुँच से ऊँचे स्थान पर स्थित किसी चीज को उन्होंने. उस छोटी सी मूर्ति के बिना मन्दिर की कल्पना सम्भव
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− | देखा; उन्होंने उस ओर नजर डाल दी । इरादा समझकर... नहीं । किन्तु इसका विस्मरण होता है और वर्णन शिखर का
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− | पीछे खड़े तगड़े चौड़े सेनानी सहायक ने तुरन्त उस चीज. रहता है । वास्तव में संस्कृति का स्थान मूर्ति का है और
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− | को लाकर उनको दिया और मजाक में कहा आपसे तो... सभ्यता का स्थान शिखर का है । जैसे मूर्ति के बिना मन्दिर
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− | ऊँचा हूँ। झट से बन्दूक की गोली जैसा उत्तर निकल पड़ा, .. का शिखर अचिन्त्य है वैसे ही संस्कृति के बिना सभ्यता
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− | “लम्बा कहो, ऊँचा मत कहो ।' संस्कृति और सभ्यता दोनों. असम्भव है । संस्कृति विहीन सभ्यता को असभ्यता कहना
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− | का विवेचन करते समय इस छोटे से प्रसंग की याद आती... पड़ेगा । वह मानव को विकृत दिशा में ले जायेगी और
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− | है। तात्पर्य यही है कि संस्कृति ऊँची है और सभ्यता. उसको निस्कुश बनायेगी ।
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− | लम्बी है । सभ्यता का विकास कैसे होता है ? सभ्यता का बीज
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− | आद्य शंकराचार्य के निर्वाणाष्टक में विरोधाभास का... संस्कृति है । साधारणतः मानव संस्कृति की प्रेरणा से ऊँचा
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− | एक शब्द है “निराकार रूप: । निराकार का आकार कैसे... जाना चाहता है, नीचे गिरना नहीं चाहता । ऊँचा जाने का
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− | हो सकता है ? किन्तु निराकारिता ही जिसका आकार है... काम पहाड़ चढ़ने का काम है । स्वयं सँभलकर सावधानी
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− | उसको दूसरे शब्द में कैसे कहें ? संस्कृति इस श्रेणी में. से एक एक कदम ऊपर चढ़ना होगा । उसके लिए मानव
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− | आती है । वह निराकार रूपी है। अतः स्थूल दृष्टि से. ध्यान देकर अपने पास जितनी साधन सामग्री है उससे
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− | देखना परखना सम्भव नहीं हो पाता । किन्तु सभ्यता उसके... सुविधाजनक व्यवस्था करता है । धीरे धीरे वह चट्टानों पर
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− | परिचायक छोटी बड़ी वस्तुओं के रूप में दृष्टिगत होती है ।.. सीढ़ियाँ बनाता है । सीढ़ियों के दोनों ओर दीवारें खड़ी
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− | यह भी मानव की प्रकृति है । सामान्य मानव को सूक्ष्मट्ूकू करता है । पकड़कर चढ़ने के लिए हथधरी (रांप) लगाता
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− | होना कठिन है और स्थूलदूक् होना सरल है। इसीलिए है । इसी प्रकार संस्कृति के मूल्यों को पकड़कर उत्कृष्टता
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− | मापदण्ड संस्कृति पर कम लगता है । इसके विपरीत सभ्यता... की ओर जाने के लिए मनुष्य नाना प्रकार के प्रयास करता
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− | पर अधिक लगता है । है । उससे सभ्यता जन्म लेती है ।
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− | रामेश्वरं, चिदंबरं, श्रीरंगं, मद जैसे प्राचीन मन्दिरों की संस्कृति, जो निराकार रूपी है, को प्रकट करने के
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− | बात सोचें । सर्वत्र वहाँ के गगनचुंबी गोपुर, स्वर्ण मंडित. लिए कोई माध्यम चाहिए; जैसे बिजली को प्रकट करने के
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− | शिखर, सहस्र स्तम्भ मण्डप आदि का चकार्चौंध वर्णन होता... लिए किसी धातु की तार । उसी प्रकार जीवन में संस्कृति
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| को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों | | को प्रगट और प्रयोजक बनाने के लिए अन्यान्य माध्यमों |