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| == भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा == | | == भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा == |
− | प्रारंभ में केवल परमात्मा था। उसने अपने में से ही सरे विश्व का सृजन किया। सारे विश्व के अस्तित्व ये परमात्मा के ही भिन्न भिन्न रूप हैं। इसलिए चराचर विश्व में परस्पर संबंधों का आधार एकात्मता है। आत्मीयता है। प्यार है। कुटुम्ब भावना है। विश्व निर्माण की इस भारतीय मान्यता के कारण भारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं। | + | प्रारंभ में केवल परमात्मा था। उसने अपने में से ही सरे विश्व का सृजन किया। सारे विश्व के अस्तित्व ये परमात्मा के ही भिन्न भिन्न रूप हैं। इसलिए चराचर विश्व में परस्पर संबंधों का आधार एकात्मता है। आत्मीयता है। प्यार है। कुटुम्ब भावना है। विश्व निर्माण की इस भारतीय मान्यता के कारण भारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं: |
− | चराचर विश्व के परस्पर सम्बन्ध एकात्मता के हैं। एकात्मता की व्यावहारिक अभिव्यक्ति कुटुम्ब भावना है। | + | # चराचर विश्व के परस्पर सम्बन्ध एकात्मता के हैं। एकात्मता की व्यावहारिक अभिव्यक्ति कुटुम्ब भावना है। |
− | विश्व में परस्परावलंबन और चक्रीयता है। जिस प्रकार विश्व परमात्मा में से बना उसी तरह विश्व परमात्मा में विलीन हो जाएगा। | + | # विश्व में परस्परावलंबन और चक्रीयता है। जिस प्रकार विश्व परमात्मा में से बना उसी तरह विश्व परमात्मा में विलीन हो जाएगा। |
− | कर्म ही मानव जीवन का नियमन करते हैं। कर्म सिद्धांत इसका विवरण देता है। | + | # कर्म ही मानव जीवन का नियमन करते हैं। कर्म सिद्धांत इसका विवरण देता है। |
− | परमात्मा अनंत चेतनावान है। उससे ही बना होने के कारण सारा विश्व चेतन से बना है। विश्व में जड़ कुछ भी नहीं है। अक्रिय या निम्न स्तरीय चेतना को ही जड़ कहा गया है। चेतना के जड़ से ऊँचे चेतना के स्तरपर वनस्पति, पेड पौधे आते हैं। इससे ऊँचे चेतना के स्तर को प्राणी कहते हैं। मानव का स्तर इन सबसे ऊपर का है। | + | # परमात्मा अनंत चेतनावान है। उससे ही बना होने के कारण सारा विश्व चेतन से बना है। विश्व में जड़ कुछ भी नहीं है। अक्रिय या निम्न स्तरीय चेतना को ही जड़ कहा गया है। चेतना के जड़ से ऊँचे चेतना के स्तरपर वनस्पति, पेड पौधे आते हैं। इससे ऊँचे चेतना के स्तर को प्राणी कहते हैं। मानव का स्तर इन सबसे ऊपर का है। |
− | मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। परमात्मपद प्राप्ति है। कुटुम्ब के साथ, समाज के साथ, पर्यावरण के साथ, विश्व के साथ एकात्मता का विकास ही परमात्मपद प्राप्ति है। कुटुम्ब भावना का असीम विस्तार और विकास ही मोक्ष है। | + | # मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। परमात्मपद प्राप्ति है। कुटुम्ब के साथ, समाज के साथ, पर्यावरण के साथ, विश्व के साथ एकात्मता का विकास ही परमात्मपद प्राप्ति है। कुटुम्ब भावना का असीम विस्तार और विकास ही मोक्ष है। |
− | उपर्युक्त जीवनदृष्टि के अनुसार भारतीय जीवनशैली के जो व्यवहार सूत्र बनते हैं वे निम्न हैं। | + | उपर्युक्त जीवनदृष्टि के अनुसार भारतीय जीवनशैली के जो व्यवहार सूत्र बनते हैं वे निम्न हैं: |
− | नर करनी करे तो नारायण बन जाए। जिस के परोपकार की कोई सीमा नहीं होती वह नारायण बन जाता है। | + | # नर करनी करे तो नारायण बन जाए। जिस के परोपकार की कोई सीमा नहीं होती वह नारायण बन जाता है। |
− | आत्मवत् सर्वभूतेषु । मैं अपने लिए औरों से जैसे व्यवहार की अपेक्षा करता हूँ वैसा ही व्यवहार मैं औरों से करूँ। इसी का विस्तार है – मातृवत परदारेषु, काष्ठवत परद्रव्येषु आदि। | + | # आत्मवत् सर्वभूतेषु । मैं अपने लिए औरों से जैसे व्यवहार की अपेक्षा करता हूँ वैसा ही व्यवहार मैं औरों से करूँ। इसी का विस्तार है – मातृवत परदारेषु, काष्ठवत परद्रव्येषु आदि। |
− | सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सब सुखी हों। सबका स्वास्थ्य अच्छा रहे। | + | # सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सब सुखी हों। सबका स्वास्थ्य अच्छा रहे। |
− | वसुधैव कुटुम्बकम । सारा विश्व एक कुटुम्ब है। हमारा आदर्श भगवान शंकर का कुटुम्ब है। | + | # वसुधैव कुटुम्बकम । सारा विश्व एक कुटुम्ब है। हमारा आदर्श भगवान शंकर का कुटुम्ब है। |
− | कृण्वन्तो विश्वमार्यम । हम अपने श्रेष्ठ व्यवहार से सारे विश्व को आर्य याने “सर्वे भवन्तु” का व्यवहार करनेवाला बनाएँगे। इसके लिए बलप्रयोग नहीं होगा। हमारे श्रेष्ठ व्यवहार से सीख लेकर विश्व के लोग हम जैसा बनेंगे। | + | # कृण्वन्तो विश्वमार्यम । हम अपने श्रेष्ठ व्यवहार से सारे विश्व को आर्य याने “सर्वे भवन्तु” का व्यवहार करनेवाला बनाएँगे। इसके लिए बलप्रयोग नहीं होगा। हमारे श्रेष्ठ व्यवहार से सीख लेकर विश्व के लोग हम जैसा बनेंगे। |
− | अपने कर्तव्य और अन्यों के अधिकारों की पुर्ति का आग्रह करना। जब सब अपने अपने कर्तव्य करते हैं तो सभी के अधिकारों की पूर्ति तो अपने आप ही हो जाती है। | + | # अपने कर्तव्य और अन्यों के अधिकारों की पूर्ति का आग्रह करना। जब सब अपने अपने कर्तव्य करते हैं तो सभी के अधिकारों की पूर्ति तो अपने आप ही हो जाती है। |
− | ऋणमुक्ति : ५ प्रकार के ऋण होते हैं। देव ऋण, पितर ऋण, ऋषि ऋण, नृऋण और भूत ऋण। भारतीय मान्यता है कि जब ये ऋण बढ़ाते जाते हैं हम अगले जन्म में अधम गति को याने हीं जन्म को प्राप्त होते हैं। और इस जन्म में यदि ऋणों से अधिक ऋण मुक्ति होती है तो हम श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं। | + | # ऋणमुक्ति : ५ प्रकार के ऋण होते हैं। देव ऋण, पितर ऋण, ऋषि ऋण, नृऋण और भूत ऋण। भारतीय मान्यता है कि जब ये ऋण बढ़ाते जाते हैं हम अगले जन्म में अधम गति को याने हीं जन्म को प्राप्त होते हैं। और इस जन्म में यदि ऋणों से अधिक ऋण मुक्ति होती है तो हम श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं। |
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| == कृषि सम्बन्धी भारतीय दृष्टि == | | == कृषि सम्बन्धी भारतीय दृष्टि == |
− | भारतीय मान्यता है – उत्तम खेती माध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी। | + | # भारतीय मान्यता है – उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी। |
− | भारतीय मान्यता के अनुसार अन्न को परब्रह्म माना गया है। इस परब्रह्म का निर्माता तो सृष्टि निर्माता का ही लघुरूप होता है। | + | # भारतीय मान्यता के अनुसार अन्न को परब्रह्म माना गया है। इस परब्रह्म का निर्माता तो सृष्टि निर्माता का ही लघुरूप होता है। |
− | किसान अन्नदाता है। अन्न से शरीर बनता है। और शरीर धर्म के आचरण के लिए और उसके माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है। इस कारण किसान का समाज में अनन्य साधारण महत्त्व है। जिस समाज में किसान की उपेक्षा होती है वह समाज धीरे धीरे नष्ट हो जाता है। खेती कर अन्न उपजाना यह महापुण्य का काम होता है। इसलिए भारत में तो जनक राजा, बलिराजा जैसे कई राजा भी खेती किया करते थे। | + | # किसान अन्नदाता है। अन्न से शरीर बनता है। और शरीर धर्म के आचरण के लिए और उसके माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है। इस कारण किसान का समाज में अनन्य साधारण महत्त्व है। जिस समाज में किसान की उपेक्षा होती है वह समाज धीरे धीरे नष्ट हो जाता है। खेती कर अन्न उपजाना यह महापुण्य का काम होता है। इसलिए भारत में तो जनक राजा, बलिराजा जैसे कई राजा भी खेती किया करते थे। |
− | मोक्ष प्राप्ति यह मानव जीवन का लक्ष्य है। जितना अधिक परोपकारी जीवन उतना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए हर कार्य करते समय उसे नि:स्वार्थ भावना से करना मोक्ष की दिशा में आगे बढना है। इसके लिए किसान को तो उसका सहज और स्वाभाविक कार्य ही याने अन्न उत्पादन ही करना होता है। वह करते समय स्वार्थ की भावना नहीं रखनीं चाहिये। | + | # मोक्ष प्राप्ति यह मानव जीवन का लक्ष्य है। जितना अधिक परोपकारी जीवन उतना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए हर कार्य करते समय उसे नि:स्वार्थ भावना से करना मोक्ष की दिशा में आगे बढना है। इसके लिए किसान को तो उसका सहज और स्वाभाविक कार्य ही याने अन्न उत्पादन ही करना होता है। वह करते समय स्वार्थ की भावना नहीं रखनीं चाहिये। |
− | जब कोई वस्तु नि:स्वार्थ भाव से दी जाती है तो उसे दान कहते हैं। प्राणदान अत्यंत श्रेष्ठ दान होता है। और अन्नदान एक दृष्टि से प्राणदान ही होता है। | + | # जब कोई वस्तु नि:स्वार्थ भाव से दी जाती है तो उसे दान कहते हैं। प्राणदान अत्यंत श्रेष्ठ दान होता है। और अन्नदान एक दृष्टि से प्राणदान ही होता है। |
− | गो आधारित भारतीय खेती चिरंजीवी खेती होती है। कृषि कार्य में पूर्णत्व की प्रणाली होती है। | + | # गो आधारित भारतीय खेती चिरंजीवी खेती होती है। कृषि कार्य में पूर्णत्व की प्रणाली होती है। |
− | अति प्राचीन काल से भारत में जैविक खेती ही होती रही है। | + | # अति प्राचीन काल से भारत में जैविक खेती ही होती रही है। |
− | विश्व का हर अस्तित्व याने चराचर हमारे कुटुम्ब का हिस्सा होता है। उसी तरह हमारी जमीन हमारी माता होती है। प्रकृति हमारी माता होती है। जिसकी कोख से हमने जन्म लिया है उस माता की तरह ही ये दोनों आदरणीय और पवित्र होती है। | + | # विश्व का हर अस्तित्व याने चराचर हमारे कुटुम्ब का हिस्सा होता है। उसी तरह हमारी जमीन हमारी माता होती है। प्रकृति हमारी माता होती है। जिसकी कोख से हमने जन्म लिया है उस माता की तरह ही ये दोनों आदरणीय और पवित्र होती है। |
− | श्रीमदभगवदगीता (अध्याय ३) में यज्ञचक्र का वर्णन है। अन्न का निर्माण यह उस यज्ञचक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह यज्ञ ठीक चलता है तो दुनियाँ ठीक चलती है। यज्ञचक्र ठीक से चलाना यह एक दृष्टि से परमात्मा का ही काम है जो किसान करता है। | + | # श्रीमदभगवदगीता (अध्याय ३) में यज्ञचक्र का वर्णन है। अन्न का निर्माण यह उस यज्ञचक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह यज्ञ ठीक चलता है तो दुनियाँ ठीक चलती है। यज्ञचक्र ठीक से चलाना यह एक दृष्टि से परमात्मा का ही काम है जो किसान करता है। |
− | अन्न उपजाना किसान का जातिधर्म भी होता है। भारतीय समाज में व्यावसायिक कुशलताओं की बीनापर जातियाँ बनाई गईं थीं। इन जातियों के माध्यम से पुरे समाज की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हुआ करती थी। किसान के पास अन्न उपजाने की कुशलता होती है। इसलिए विपुल मात्रा में अन्न पैदा करना किसान का जातिधर्म होता है। | + | # अन्न उपजाना किसान का जातिधर्म भी होता है। भारतीय समाज में व्यावसायिक कुशलताओं की बीनापर जातियाँ बनाई गईं थीं। इन जातियों के माध्यम से पुरे समाज की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हुआ करती थी। किसान के पास अन्न उपजाने की कुशलता होती है। इसलिए विपुल मात्रा में अन्न पैदा करना किसान का जातिधर्म होता है। |
− | आयुर्वेद और एलोपेथी में जैसा अन्तर है वैसा ही अन्तर भारतीय और अभारतीय कृषि में होता है। भारतीय कृषि अहिंसक होती है। इस में अनिष्ट जीव जंतुओं को मारने के स्थानपर श्रेष्ठ गोमूत्र, गोबर अदि के उपयोग से उपज की अवरोध शक्ति बढाई जाती है। | + | # आयुर्वेद और एलोपेथी में जैसा अन्तर है वैसा ही अन्तर भारतीय और अभारतीय कृषि में होता है। भारतीय कृषि अहिंसक होती है। इस में अनिष्ट जीव जंतुओं को मारने के स्थानपर श्रेष्ठ गोमूत्र, गोबर अदि के उपयोग से उपज की अवरोध शक्ति बढाई जाती है। |
− | भारत में कृषि को हमेशा अदेवमातृका रखने को कहा है। खेती के लिए पानीपर निर्भर होना टाला नहीं जा सकता। अदेवमातृका का अर्थ है जो खेती बारिश के दिनों में तो होगी ही, लेकिन किसी साल बारिश नहीं हुई तो भी खेती तो होनी चाहिए। और बारिश के काल के बाद में भी संचित पानीपर कृषि की जा सके ऐसी पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। इस दृष्टि से विपुल संख्या में बड़े बड़े तालाब बनाए जाते थे। हर गाँव के लिए न्यूनतम १ या २ बड़े बड़े तालाब तो होते ही थे। इन तालाबों का निर्माण और रखरखाव किसान और गाँव के लोग आपस में मिलकर करते थे। संचेतन विद्या (बाँध), संहरण विद्या (कुंदों का जाल) और स्तम्भन (तालाब) विद्या आदि का उपयोग इस जल-संचय के लिए किया जाता था। | + | # भारत में कृषि को हमेशा अदेवमातृका रखने को कहा है। खेती के लिए पानीपर निर्भर होना टाला नहीं जा सकता। अदेवमातृका का अर्थ है जो खेती बारिश के दिनों में तो होगी ही, लेकिन किसी साल बारिश नहीं हुई तो भी खेती तो होनी चाहिए। और बारिश के काल के बाद में भी संचित पानीपर कृषि की जा सके ऐसी पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। इस दृष्टि से विपुल संख्या में बड़े बड़े तालाब बनाए जाते थे। हर गाँव के लिए न्यूनतम १ या २ बड़े बड़े तालाब तो होते ही थे। इन तालाबों का निर्माण और रखरखाव किसान और गाँव के लोग आपस में मिलकर करते थे। संचेतन विद्या (बाँध), संहरण विद्या (कुंदों का जाल) और स्तम्भन (तालाब) विद्या आदि का उपयोग इस जल-संचय के लिए किया जाता था। |
− | भारतीय कृषि में प्रकृति सुसंगतता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसलिए खनिज तेल की उर्जा का उपयोग नहीं किया जाता था। मनुष्य की और पशुओं की शक्ति का उपयोग किया जाता था। इससे पर्यावरण स्वच्छ और शुद्ध रहता था। लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता था। शारीरिक परिश्रम की आदत के कारण लोग दीर्घायु होते हैं। | + | # भारतीय कृषि में प्रकृति सुसंगतता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसलिए खनिज तेल की उर्जा का उपयोग नहीं किया जाता था। मनुष्य की और पशुओं की शक्ति का उपयोग किया जाता था। इससे पर्यावरण स्वच्छ और शुद्ध रहता था। लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता था। शारीरिक परिश्रम की आदत के कारण लोग दीर्घायु होते हैं। |
− | भारतीय कृषि गो आधारित होती है। खेती के लिए लगनेवाले मानव, जमीन, बीज, हवा से मिलनेवाला नत्र वायु और पानी ये ५ बातें छोड़कर सभी बातें भारतीय गो से प्राप्त होती है। इसीलिए भी गो को हम गोमाता मानते हैं। अभारतीय गायों के दूध में मानव के लिए हानिकारक ऐसा बीसीएम ७ यह रसायन पाया जाता है। केवल भारतीय गो के दूध में यह विषैला रसायन नहीं होता। इससे मिलनेवाले बैल खेती के लिए गोबर और गोमूत्र देने के साथ ही धान्य और सामान के वहन के लिए उपयुक्त होते है। इन के उपयोग से खनिज तेल की आवश्यकता नहीं रह जाती। गोबर के बारे में हम मानते हैं की गोबर में तो लक्ष्मीजी का वास होता है। गोबर गैस का उपयोग चूल्हा जलाने के लिए भी होता है। दूध तो गो से मिलनेवाला आनुशंगिक लाभ होता था। | + | # भारतीय कृषि गो आधारित होती है। खेती के लिए लगनेवाले मानव, जमीन, बीज, हवा से मिलनेवाला नत्र वायु और पानी ये ५ बातें छोड़कर सभी बातें भारतीय गो से प्राप्त होती है। इसीलिए भी गो को हम गोमाता मानते हैं। अभारतीय गायों के दूध में मानव के लिए हानिकारक ऐसा बीसीएम ७ यह रसायन पाया जाता है। केवल भारतीय गो के दूध में यह विषैला रसायन नहीं होता। इससे मिलनेवाले बैल खेती के लिए गोबर और गोमूत्र देने के साथ ही धान्य और सामान के वहन के लिए उपयुक्त होते है। इन के उपयोग से खनिज तेल की आवश्यकता नहीं रह जाती। गोबर के बारे में हम मानते हैं की गोबर में तो लक्ष्मीजी का वास होता है। गोबर गैस का उपयोग चूल्हा जलाने के लिए भी होता है। दूध तो गो से मिलनेवाला आनुशंगिक लाभ होता था। |
− | भारतीय मान्यता के अनुसार किसानों को यदि जीने के लिए संगठन बनाने की आवश्यकता निर्माण होती है तो या तो किसान नष्ट हो जाएगा या फिर वह समाज क नष्ट कर देगा। वर्तमान में किसान जीने के लिए संघर्ष कर रहा है। वर्तमान जीवन के अभारतीय प्रतिमान में किसानों का संगठित होना अत्यधिक कठिन होने के कारण किसान नष्ट ही होंगे। यही हो रहा है। | + | # भारतीय मान्यता के अनुसार किसानों को यदि जीने के लिए संगठन बनाने की आवश्यकता निर्माण होती है तो या तो किसान नष्ट हो जाएगा या फिर वह समाज क नष्ट कर देगा। वर्तमान में किसान जीने के लिए संघर्ष कर रहा है। वर्तमान जीवन के अभारतीय प्रतिमान में किसानों का संगठित होना अत्यधिक कठिन होने के कारण किसान नष्ट ही होंगे। यही हो रहा है। |
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| == किसान को पुन: प्रतिष्ठित कैसे करें? == | | == किसान को पुन: प्रतिष्ठित कैसे करें? == |
− | वर्तमान में जिस प्रतिमान में हम जी रहे हैं वह अभारतीय या यूरो अमरीकी जीवन का प्रतिमान है। इस प्रतिमान में हमारे किसानों को कोइ स्थान नहीं है। इस प्रतिमान में तो ठेके की कृषि ही चलेगी। औद्योगिक कृषि ही चलेगी। जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन करना सरल बात नहीं है। यह परिवर्तन की प्रक्रिया जैसे शिक्षा क्षेत्र में चलानी चाहिए उसी प्रकार शासकीय , आर्थिक ऐसे सभी क्षेत्रों में एकसाथ चलनी चाहिए। | + | वर्तमान में जिस प्रतिमान में हम जी रहे हैं वह अभारतीय या यूरो अमरीकी जीवन का प्रतिमान है। इस प्रतिमान में हमारे किसानों को कोइ स्थान नहीं है। इस प्रतिमान में तो ठेके की कृषि ही चलेगी। औद्योगिक कृषि ही चलेगी। जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन करना सरल बात नहीं है। यह परिवर्तन की प्रक्रिया जैसे शिक्षा क्षेत्र में चलानी चाहिए उसी प्रकार शासकीय , आर्थिक ऐसे सभी क्षेत्रों में एकसाथ चलनी चाहिए। |
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| लेकिन चलाएगा कौन? सामान्यत: तो इसका उत्तर जो समस्या से पीड़ित है और जो पीड़ितों की पीड़ा को समझते हैं और दूर भी करना चाहते हैं वे लोग ही परिवर्तन के लिए पहल करेंगे। हमारी मान्यता है – उद्धरेत् आत्मनात्मानाम् । मेरा उद्धार कोई अन्य नहीं कर सकता। अन्यों की मदद मिल सकती है। पहल तो मुझे ही करनी होगी। और करनेवाले को तो ईश्वर भी सहायता करता है। | | लेकिन चलाएगा कौन? सामान्यत: तो इसका उत्तर जो समस्या से पीड़ित है और जो पीड़ितों की पीड़ा को समझते हैं और दूर भी करना चाहते हैं वे लोग ही परिवर्तन के लिए पहल करेंगे। हमारी मान्यता है – उद्धरेत् आत्मनात्मानाम् । मेरा उद्धार कोई अन्य नहीं कर सकता। अन्यों की मदद मिल सकती है। पहल तो मुझे ही करनी होगी। और करनेवाले को तो ईश्वर भी सहायता करता है। |
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| == किसान को क्या करना होगा? == | | == किसान को क्या करना होगा? == |
− | किसान को यह समझ लेना चाहिए कि ग्राम यदि ग्राम बने रहेंगे तो वह बचेगा। शहरीकरण में उसका नष्ट होना सुनिश्चित है। ग्राम की व्याख्या है – स्थानिक संसाधनों के आधारपर जीनेवाला परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय। एक ढंग से एक बड़ा ग्राम-कुटुम्ब। किसान को निम्न बातें करनी होंगी। | + | किसान को यह समझ लेना चाहिए कि ग्राम यदि ग्राम बने रहेंगे तो वह बचेगा। शहरीकरण में उसका नष्ट होना सुनिश्चित है। ग्राम की व्याख्या है – स्थानिक संसाधनों के आधारपर जीनेवाला परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय। एक ढंग से एक बड़ा ग्राम-कुटुम्ब। किसान को निम्न बातें करनी होंगी: |
− | १. अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम करना। व्यय को कम से कम रखना।
| + | # अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम करना। व्यय को कम से कम रखना। |
− | २. अनिवार्यता की स्थिति में ही ऋण लेना। योगेश्वर कृषि जैसे प्रयोग अपने गाँव में चलाना।
| + | # अनिवार्यता की स्थिति में ही ऋण लेना। योगेश्वर कृषि जैसे प्रयोग अपने गाँव में चलाना। |
− | ३. कितना भी अच्छा वर हो अपनी बेटी को शहर में नहीं ब्याहना। ग्राम का ही किसान पति खोजना।
| + | # कितना भी अच्छा वर हो अपनी बेटी को शहर में नहीं ब्याहना। ग्राम का ही किसान पति खोजना। |
− | ४. अपने ग्राम को जो वर्तमान में व्हिलेज या शहर बनने चल पडा है, उसे फिर से ग्राम बनाना। ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली ग्राम कुल की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी, आज कैसी होनी चाहिए इसे ठीक से समझकर क्रियान्वयन करना। (अध्याय १७ ग्रामकुल देखें)
| + | # अपने ग्राम को जो वर्तमान में व्हिलेज या शहर बनने चल पडा है, उसे फिर से ग्राम बनाना। ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली ग्राम कुल की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी, आज कैसी होनी चाहिए इसे ठीक से समझकर क्रियान्वयन करना। ([[Grama Kul (ग्रामकुल)|यह]] देखें) |
− | ५. इस दृष्टि से पैसे का विनिमय कम कम करते जाना। ग्राम में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना।
| + | # इस दृष्टि से पैसे का विनिमय कम कम करते जाना। ग्राम में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना। |
− | ६. खेती को अदेवमातृका बनाने के लिए ग्राम के लोगों की शक्ति से गाँव के तालाब का निर्माण या पुनर्निर्माण करना और उसका रखरखाव करना।
| + | # खेती को अदेवमातृका बनाने के लिए ग्राम के लोगों की शक्ति से गाँव के तालाब का निर्माण या पुनर्निर्माण करना और उसका रखरखाव करना। |
− | ७. खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना।
| + | # खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना। |
− | ८. बच्चों को भी वर्तमान शिक्षा केन्द्रों से दूर रखकर अच्छी शिक्षा के लिए किसी वानप्रस्थी त्यागमयी योग्य शिक्षक की व्यवस्था करना। शिक्षक की आजीविका की चिंता ग्राम करे ऐसी व्यवस्था बिठाना। सीखने के लिए सारा विश्व ही ग्राम है, लेकिन जीने के लिए ग्राम ही विश्व है ऐसा जिन का दृढ़ निश्चय है ऐसे बच्चों को ही केवल अध्ययन के लिए, नई उपयुक्त बातें सीखने के लिए ही ग्राम से बाहर भेजना।
| + | # बच्चों को भी वर्तमान शिक्षा केन्द्रों से दूर रखकर अच्छी शिक्षा के लिए किसी वानप्रस्थी त्यागमयी योग्य शिक्षक की व्यवस्था करना। शिक्षक की आजीविका की चिंता ग्राम करे ऐसी व्यवस्था बिठाना। सीखने के लिए सारा विश्व ही ग्राम है, लेकिन जीने के लिए ग्राम ही विश्व है ऐसा जिन का दृढ़ निश्चय है ऐसे बच्चों को ही केवल अध्ययन के लिए, नई उपयुक्त बातें सीखने के लिए ही ग्राम से बाहर भेजना। |
− | ९. यथासंभव ग्राम में से धन, पानी और जीने के लिए युवक बाहर नहीं जाए यह देखना होगा।
| + | # यथासंभव ग्राम में से धन, पानी और जीने के लिए युवक बाहर नहीं जाए यह देखना होगा। |
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| == किसान की पीड़ा को समझनेवाले लोगों को क्या करना होगा? == | | == किसान की पीड़ा को समझनेवाले लोगों को क्या करना होगा? == |