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== अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ ==
 
== अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ ==
वर्तमान में हमने अभारतीय जीवन के प्रतिमान को अपनाया हुआ है। हमारी जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ सब अभारतीय हो गया है। जबतक हम इस भारतीय और अभारतीय प्रतिमान में जो अन्तर है उसे नहीं समझेंगे इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच सकेंगे। जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ ये सब मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है। अभारतीय जीवनदृष्टि का आधार उनकी विश्व निर्माण की कल्पना में है। उनकी समझ के अनुसार विश्व का निर्माण या तो अपने आप हुआ है या किसी गौड़ ने या अल्लाने किया है। किन्तु इसे बनाया गया है जड़ पदार्थ से ही। आधुनिक विज्ञान भी इसे जड़ से बना हुआ ही मानता है। इन जड़ पदार्थों में होनेवाली रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप जीव पैदा हो गया। सभी जीव रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे मात्र हैं। इसी तरह हमारा मनुष्य के रूप में जन्म हुआ है। इस जन्म से पहले मैं नहीं था। इस जन्म के बाद भी मैं नहीं रहूँगा। इन मान्यताओं के आधारपर इस अभारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं।
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वर्तमान में हमने अभारतीय जीवन के प्रतिमान को अपनाया हुआ है। हमारी जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ सब अभारतीय हो गया है। जब तक हम इस भारतीय और अभारतीय प्रतिमान में जो अन्तर है उसे नहीं समझेंगे इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच सकेंगे। जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ ये सब मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है। अभारतीय जीवनदृष्टि का आधार उनकी विश्व निर्माण की कल्पना में है। उनकी समझ के अनुसार विश्व का निर्माण या तो अपने आप हुआ है या किसी गौड़ ने या अल्लाह ने किया है। किन्तु इसे बनाया गया है जड़ पदार्थ से ही। आधुनिक विज्ञान भी इसे जड़ से बना हुआ ही मानता है। इन जड़ पदार्थों में होनेवाली रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप जीव पैदा हो गया। सभी जीव रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे मात्र हैं। इसी तरह हमारा मनुष्य के रूप में जन्म हुआ है। इस जन्म से पहले मैं नहीं था। इस जन्म के बाद भी मैं नहीं रहूँगा। इन मान्यताओं के आधारपर इस अभारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं:
व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता। इसलिए बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं। फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा। जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा। इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है। इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है। हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है।  
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# व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता। इसलिए बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं। फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा। जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा। इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है। इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है। हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है।
इहवादिता : इसका अर्थ है इसी जन्म को सबकुछ मानना। पुनर्जन्म को नहीं मानना। मेरा न इससे पहले कोई जन्म था और न ही आगे कोई जन्म होगा। ऐसा मानने से मानव उपभोगवादी बन जाता है।  
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# इहवादिता : इसका अर्थ है इसी जन्म को सबकुछ मानना। पुनर्जन्म को नहीं मानना। मेरा न इससे पहले कोई जन्म था और न ही आगे कोई जन्म होगा। ऐसा मानने से मानव उपभोगवादी बन जाता है।
जडवादिता : सारा विश्व जड़ से बना है ऐसा मानना। सजीव भी जड़ ही हैं, जड़ पदार्थों की रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है ऐसा मानने से औरों के प्रति प्रेम, आत्मीयता, सहानुभूति, स्नेह, सदाचार, सत्यनिष्ठा आदि का कोई अर्थ नहीं रहा जाता।
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# जडवादिता : सारा विश्व जड़ से बना है ऐसा मानना। सजीव भी जड़ ही हैं, जड़ पदार्थों की रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है ऐसा मानने से औरों के प्रति प्रेम, आत्मीयता, सहानुभूति, स्नेह, सदाचार, सत्यनिष्ठा आदि का कोई अर्थ नहीं रहा जाता।
उपर्युक्त जीवनदृष्टि के आधारपर अभारतीय समाज की जीवनशैली के व्यवहार सूत्र निम्न बनते हैं।
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उपर्युक्त जीवनदृष्टि के आधारपर अभारतीय समाज की जीवनशैली के व्यवहार सूत्र निम्न बनते हैं:
सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट ।बलवानों के लिए दुनियाँ है।
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# सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट। बलवानों के लिए दुनिया है।
एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक । दुर्बलों का शोषण।
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# एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक। दुर्बलों का शोषण।
फाइट फॉर सर्व्हायव्हल। जीने के लिए संघर्ष आवश्यक है।  
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# फाइट फॉर सर्व्हायव्हल। जीने के लिए संघर्ष आवश्यक है।
राइट्स एण्ड नो ड्यूटीज । मेरे अधिकार हैं। कर्तव्य नहीं हैं।  
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# राइट्स एण्ड नो ड्यूटीज। मेरे अधिकार हैं। कर्तव्य नहीं हैं।
फाइट फॉर राइट्स । अधिकारों के लिए संघर्ष।
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# फाइट फॉर राइट्स। अधिकारों के लिए संघर्ष।
पीसमील एप्रोच । मैं और अन्य ऐसा तुकडॉ में विचार करना।  
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# पीसमील एप्रोच। मैं और अन्य ऐसा टुकड़ों में विचार करना।
कंझ्युमेरिझम । उपभोक्तावादिता। चार्वाक जीवनदृष्टि। यावद् जीवेत सुखं जीवेत कृत्वा घृतं पिबेत। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनाय कुत:। अर्थ:जो भी है यही जन्म है। इसलिए जितना उपभोग कर सको कर लो। मरने के बाद आगे क्या होगा किसने देखा है?
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# कंझ्युमेरिझम । उपभोक्तावादिता। चार्वाक जीवनदृष्टि। यावद् जीवेत सुखं जीवेत कृत्वा घृतं पिबेत। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनाय कुत:। अर्थ:जो भी है यही जन्म है। इसलिए जितना उपभोग कर सको कर लो। मरने के बाद आगे क्या होगा किसने देखा है?
सभी सामाजिक संबंधों का आधार “स्वार्थ” है। सभी सामाजिक संबंध पति पत्नि का सम्बन्ध (विवाह) भी कॉन्ट्रैक्ट है।
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# सभी सामाजिक संबंधों का आधार “स्वार्थ” है। सभी सामाजिक संबंध पति पत्नि का सम्बन्ध (विवाह) भी कॉन्ट्रैक्ट है।
उपर्युक्त जीवनशैली के अनुसार जीने के लिए जो व्यवस्था समूह बना है उसका स्वरूप निम्न है।
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# उपर्युक्त जीवनशैली के अनुसार जीने के लिए जो व्यवस्था समूह बना है उसका स्वरूप निम्न है:
शासन व्यवस्था
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प्रशासन व्यवस्था   इकोनोमिक्स    न्याय व्यवस्था      शिक्षा व्यवस्था
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इस अभारतीय व्यवस्था समूह की विशेषताएँ निम्न हैं।
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शासन सर्वसत्ताधीश है। अंग्रेजी कहावत है – पॉवर करप्ट्स एण्ड अब्सोल्युट पॉवर करप्ट्स अब्सोल्युटली । सत्ता होती है तो भ्रष्टाचार होता ही है। और अमर्याद सत्ता होती है तो भ्रष्टाचार की भी कोई  
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इस अभारतीय व्यवस्था समूह की विशेषताएँ निम्न हैं:
 
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# शासन सर्वसत्ताधीश है। अंग्रेजी कहावत है – पॉवर करप्ट्स एण्ड अब्सोल्युट पॉवर करप्ट्स अब्सोल्युटली । सत्ता होती है तो भ्रष्टाचार होता ही है। और अमर्याद सत्ता होती है तो भ्रष्टाचार की भी कोई मर्यादा नहीं रह जाती। सारी व्यवस्थाएँ बलवानों के स्वार्थ को पोषक होतीं हैं। सभी सामाजिक संबंधों का आधार स्वार्थ होता है। गुरु विक्रेता होता है। शिष्य खरीददार।  
मर्यादा नहीं रह जाती।
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# अर्थव्यवस्था में स्वार्थ भावना के कारण गलाकाट स्पर्धा चलती है। किसान जैसा घटक इस स्पर्धा में नष्ट हो जाता है। जैसा दुनिया भर के प्रगत देशों में हुआ है।
सारी व्यवस्थाएँ बलवानों के स्वार्थ को पोषक होतीं हैं।
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# नौकरों का इकोनोमिक्स पनपता है। ९९ % नौकर और मुश्किल से १ % मालिक। सारा समाज नौकरों की मानसिकता का बन जाता है।  
सभी सामाजिक संबंधों का आधार स्वार्थ होता है। गुरु विक्रेता होता है। शिष्य खरीददार।  
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# व्यक्तिवादिता के कारण जो स्वार्थ भाव पनपता है वह मानव की सामाजिकता की और परस्परावलंबन की भावना को नष्ट कर देता है। कुटुम्ब टूट जाते हैं। समाज लिव्ह इन रिलेशनशिप याने स्वेच्छा सहनिवास की ओर बढ़ता है। आत्मनाश की दिशा प्राप्त करता है।  
अर्थव्यवस्था में स्वार्थ भावना के कारण गलाकाट स्पर्धा चलती है। किसान जैसा घटक इस स्पर्धा में नष्ट हो जाता है। जैसा दुनियाँभर के प्रगत देशों में हुआ है।  
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नौकरों का इकोनोमिक्स पनपता है। ९९ % नौकर और मुश्किल से १ % मालिक। सारा समाज नौकरों की मानसिकता का बन जाता है।
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व्यक्तिवादिता के कारण जो स्वार्थ भाव पनपता है वह मानव की सामाजिकता की और परस्परावलंबन की भावना को नष्ट कर देता है। कुटुम्ब टूट जाते हैं। समाज लिव्ह इन रिलेशनशिप याने स्वेच्छा सहनिवास की ओर बढ़ता है। आत्मनाश की दिशा प्राप्त करता है।
      
== भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा ==
 
== भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा ==
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