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| == विज्ञान और शास्त्र == | | == विज्ञान और शास्त्र == |
− | सामान्यत: लोग इन दो शब्दों का प्रयोग इन के भिन्न अर्थों को समझे बिना ही करते रहते हैं| किसी पदार्थ की बनावट याने रचना को समझना विज्ञान है| और इस विज्ञान से प्राप्त जानकारी के आधारपर उस पदार्थ का क्यों, कैसे, किस के लिए उपयोग करना चाहिए आदि समझना यह शास्त्र है| जैसे मानव शरीर की रचना को जानना शरीर विज्ञान है| लेकिन इस विज्ञान के आधारपर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने की जानकारी को आरोग्य शास्त्र कहेंगे| विभिन्न प्रकारके मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे| जब की व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है| भारतीय दृष्टी से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है| इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे| जब की इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा| परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है| और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है| | + | सामान्यत: लोग इन दो शब्दों का प्रयोग इन के भिन्न अर्थों को समझे बिना ही करते रहते हैं| किसी पदार्थ की बनावट याने रचना को समझना विज्ञान है| और इस विज्ञान से प्राप्त जानकारी के आधारपर उस पदार्थ का क्यों, कैसे, किस के लिए उपयोग करना चाहिए आदि समझना यह शास्त्र है| जैसे मानव शरीर की रचना को जानना शरीर विज्ञान है| लेकिन इस विज्ञान के आधारपर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने की जानकारी को आरोग्य शास्त्र कहेंगे| विभिन्न प्रकारके मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे| जब की व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है| भारतीय दृष्टि से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है| इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे| जब की इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा| परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है| और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है| |
| तन्त्रज्ञान यह शास्त्र का ही एक हिस्सा है| क्यों कि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है| और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है| लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसने करना चाहिये, किसने नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किस लिए नहीं करना चाहिए इन सब बातों को जानना शास्त्र है| | | तन्त्रज्ञान यह शास्त्र का ही एक हिस्सा है| क्यों कि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है| और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है| लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसने करना चाहिये, किसने नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किस लिए नहीं करना चाहिए इन सब बातों को जानना शास्त्र है| |
| वर्तमान का वास्तव | | वर्तमान का वास्तव |
| मानव के सभी क्रियाकलापों का उद्देष्य सुख की प्राप्ति यही होता है। लेकिन जब मानव के सुख को या संतोष को भी वैज्ञानिकता की कसौटीपर तौला जाता है तब समस्याएँ खडीं होतीं हैं। वर्तमान में सारे विश्व में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ का बोलबाला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आतंक है यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी| | | मानव के सभी क्रियाकलापों का उद्देष्य सुख की प्राप्ति यही होता है। लेकिन जब मानव के सुख को या संतोष को भी वैज्ञानिकता की कसौटीपर तौला जाता है तब समस्याएँ खडीं होतीं हैं। वर्तमान में सारे विश्व में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ का बोलबाला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आतंक है यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी| |
− | मनुष्य यह सृष्टि का सबसे बुध्दिमान प्राणि माना जाता है। लेकिन वर्तमान शिक्षा के कारण वह सुविधाओं को ही सुख समझने लग गया है। सुविधाओं को याने शारीरिक सुख को वह मन के सुख से याने प्रेम, ममता, परोपकार, सहानुभूति आदि भावनाओं से या बुद्धि के सुख याने ज्ञान प्राप्ति के सुख आदि से अधिक श्रेष्ठ मानने लग गया है। | + | मनुष्य यह सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणि माना जाता है। लेकिन वर्तमान शिक्षा के कारण वह सुविधाओं को ही सुख समझने लग गया है। सुविधाओं को याने शारीरिक सुख को वह मन के सुख से याने प्रेम, ममता, परोपकार, सहानुभूति आदि भावनाओं से या बुद्धि के सुख याने ज्ञान प्राप्ति के सुख आदि से अधिक श्रेष्ठ मानने लग गया है। |
| गत २५०-३०० वर्षों में सायंस ने जो प्रगति की है वह ऑंखों को चौधियानेवाली है। इस प्रगति की व्याप्ति चहुँमुखी है। मानव जीवन का कोई पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है। हमारे सुबह (नींद से) उठने से लेकर दूसरे दिन फिर से सुबह उठनेतक के हमारे दैनंदिन जीवन का विचार करें तो समझ में आएगा कि हमारे जीवन में तन्त्रज्ञान की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण बन गई है। आईये ! एक सरसरी निगाह तन्त्रज्ञान की इस प्रगतिपर डालें। | | गत २५०-३०० वर्षों में सायंस ने जो प्रगति की है वह ऑंखों को चौधियानेवाली है। इस प्रगति की व्याप्ति चहुँमुखी है। मानव जीवन का कोई पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है। हमारे सुबह (नींद से) उठने से लेकर दूसरे दिन फिर से सुबह उठनेतक के हमारे दैनंदिन जीवन का विचार करें तो समझ में आएगा कि हमारे जीवन में तन्त्रज्ञान की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण बन गई है। आईये ! एक सरसरी निगाह तन्त्रज्ञान की इस प्रगतिपर डालें। |
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| सुख की प्राप्ति तो दूर रही बढते उपभोग, बढते केन्द्रीकरण, बढते प्रकृति के शोषण का सामना हमें करना पड रहा है। इसने पाश्चात्य या जिसे हम आधुनिक कहते हैं उस विकास की तथाकथित आधुनिक कल्पना और तथाकथित आधुनिक तन्त्रज्ञान के विश्वभर में चल रहे अंधानुकरण और वैज्ञानिक अंधश्रध्दापर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। | | सुख की प्राप्ति तो दूर रही बढते उपभोग, बढते केन्द्रीकरण, बढते प्रकृति के शोषण का सामना हमें करना पड रहा है। इसने पाश्चात्य या जिसे हम आधुनिक कहते हैं उस विकास की तथाकथित आधुनिक कल्पना और तथाकथित आधुनिक तन्त्रज्ञान के विश्वभर में चल रहे अंधानुकरण और वैज्ञानिक अंधश्रध्दापर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। |
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− | == भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टी और व्यवहार सूत्र == | + | == भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टि और व्यवहार सूत्र == |
− | इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं| इसलिए अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे| (अभारतीय जीवन दृष्टी के ३ और भारतीय जीवन दृष्टी के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र देखें अध्याय ७ और ८) | + | इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं| इसलिए अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे| (अभारतीय जीवन दृष्टि के ३ और भारतीय जीवन दृष्टि के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र देखें अध्याय ७ और ८) |
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| == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान के विकास की पृष्ठभूमि == | | == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान के विकास की पृष्ठभूमि == |
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| वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुवा है। इस विकास में ईसाई मत के कारण कई साईंटिस्टों को कष्ट सहन करने पडे| ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी तथा कारागृह में सडना पडा| फिर भी यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय ऐसा पराक्रम कर दिखाया। तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है। | | वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुवा है। इस विकास में ईसाई मत के कारण कई साईंटिस्टों को कष्ट सहन करने पडे| ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी तथा कारागृह में सडना पडा| फिर भी यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय ऐसा पराक्रम कर दिखाया। तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है। |
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− | == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टी == | + | == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टि == |
− | वर्तमान में भारतीय विज्ञान और तन्त्रज्ञान दृष्टी नष्ट हो गयी है| जो भी है वह अभारतीय साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टी ही है| रेने देकार्ते को इस यूरोपीय साईंस दृष्टि का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। उस के द्वारा प्रतिपादित साईंस दृष्टि के महत्वपूर्ण पहलू निम्न है। | + | वर्तमान में भारतीय विज्ञान और तन्त्रज्ञान दृष्टि नष्ट हो गयी है| जो भी है वह अभारतीय साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टि ही है| रेने देकार्ते को इस यूरोपीय साईंस दृष्टि का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। उस के द्वारा प्रतिपादित साईंस दृष्टि के महत्वपूर्ण पहलू निम्न है। |
| १. द्वैतवाद : इस का भारतीय द्वैतवाद से कोई संबंध नहीं है। इस में यह माना गया है कि विश्व में मैं और अन्य सारी सृष्टि ऐसे दो घटक है। मैं इस सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करने वाला हूं। मैं इस सृष्टि का भोग करनेवाला हूँ| मैं इस सृष्टी से भिन्न हूँ| | | १. द्वैतवाद : इस का भारतीय द्वैतवाद से कोई संबंध नहीं है। इस में यह माना गया है कि विश्व में मैं और अन्य सारी सृष्टि ऐसे दो घटक है। मैं इस सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करने वाला हूं। मैं इस सृष्टि का भोग करनेवाला हूँ| मैं इस सृष्टी से भिन्न हूँ| |
| २. वस्तुनिष्ठता : जो प्रत्येक सामान्य मनुष्य द्वारा समान रूप से जाना जा सकता है वही वस्तुनिष्ठ है। १ साडी की लम्बाई और चौडाई तो सभी महिलाओं के लिये एक जितनी ही होगी। किन्तु उसका स्पर्श का अनुभव हर स्त्री को भिन्न होगा। १ किलो लड्डू का वजन कोई भी करे वह १ किलो ही होगा। किन्तु उस लड्डू का स्वाद हर मनुष्य के लिये भिन्न हो सकता है। इस लिये जिसका मापन किया जा सकता है वह साईंस के दायरे में आता है। लेकिन स्पर्श, स्वाद आदि जो हर व्यक्ति के अनुसार भिन्न भिन्न होंगे वे साईंस के विषय नहीं बन सकते | | | २. वस्तुनिष्ठता : जो प्रत्येक सामान्य मनुष्य द्वारा समान रूप से जाना जा सकता है वही वस्तुनिष्ठ है। १ साडी की लम्बाई और चौडाई तो सभी महिलाओं के लिये एक जितनी ही होगी। किन्तु उसका स्पर्श का अनुभव हर स्त्री को भिन्न होगा। १ किलो लड्डू का वजन कोई भी करे वह १ किलो ही होगा। किन्तु उस लड्डू का स्वाद हर मनुष्य के लिये भिन्न हो सकता है। इस लिये जिसका मापन किया जा सकता है वह साईंस के दायरे में आता है। लेकिन स्पर्श, स्वाद आदि जो हर व्यक्ति के अनुसार भिन्न भिन्न होंगे वे साईंस के विषय नहीं बन सकते | |
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| ४. जडवाद : जड का अर्थ है अजीव। पूरी सृष्टि अजीव पदार्थों की बनीं है। साईंस के अनुसार सारी सृष्टि में चेतन कुछ भी नहीं है। स्वयंप्रेरणा, स्वत: कुछ करने की शक्ति सृष्टि में कहीं नहीं है। साईंस भावना, प्रेम, सहानुभूति आदि नहीं मानता। मिलर की परिकल्पना के अनुसार जिन्हे हम जीव् समझते है वे वास्तव में रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे होते है। | | ४. जडवाद : जड का अर्थ है अजीव। पूरी सृष्टि अजीव पदार्थों की बनीं है। साईंस के अनुसार सारी सृष्टि में चेतन कुछ भी नहीं है। स्वयंप्रेरणा, स्वत: कुछ करने की शक्ति सृष्टि में कहीं नहीं है। साईंस भावना, प्रेम, सहानुभूति आदि नहीं मानता। मिलर की परिकल्पना के अनुसार जिन्हे हम जीव् समझते है वे वास्तव में रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे होते है। |
| ५. यांत्रिक दृष्टिकोण : टुकडों के ज्ञान को जोडकर संपूर्ण को जानना तब ही संभव होगा जब उस पूर्ण की बनावट यांत्रिक होगी। यंत्र में एक एक पुर्जा कृत्रिम रूप से एक दूसरे के साथ जोडा जाता है। उसे अलग अलग कर उसके कार्य को समझना सरल होता है। ऐसे प्रत्येक पुर्जेका कार्य समझ कर पूरे यंत्र के कार्य को समझा जा सकता है। | | ५. यांत्रिक दृष्टिकोण : टुकडों के ज्ञान को जोडकर संपूर्ण को जानना तब ही संभव होगा जब उस पूर्ण की बनावट यांत्रिक होगी। यंत्र में एक एक पुर्जा कृत्रिम रूप से एक दूसरे के साथ जोडा जाता है। उसे अलग अलग कर उसके कार्य को समझना सरल होता है। ऐसे प्रत्येक पुर्जेका कार्य समझ कर पूरे यंत्र के कार्य को समझा जा सकता है। |
− | इस विचार में जड को समझने की, यंत्रों को समझने की सटीकता तो है। किन्तु चेतन को नकारने के कारण चेतन के क्षेत्र में इस का उपयोग मर्यादित रह जाता है। चेतन और जड़ मिलकर जीव बनाता है| जीव का निर्माण जड पंचमहाभूत और आत्म तत्त्व इन के योग से होता है। परिवर्तन तो जड में ही होता है। लेकिन वह चेतन की उपस्थिति के बिना नहीं हो सकता। इस लिये जीव का जितना भौतिक हिस्सा है उस हिस्से के लिये साईंस को प्रमाण मानना उचित ही है। इस भौतिक हिस्से के मापन की भी मर्यादा है। जड भौतिक शरीर के साथ जब आत्म शक्ति जुड जाति है तब वह केवल जड की भौतिक शक्ति नहीं रह जाती। और प्रत्येक जीव यह जड और चेतन का योग ही होता है। इस लिये चेतन के मन, बुध्दि, अहंकार आदि विषयों में फिझिकल साईंस की कसौटियों को प्रमाण नहीं माना जा सकता। | + | इस विचार में जड को समझने की, यंत्रों को समझने की सटीकता तो है। किन्तु चेतन को नकारने के कारण चेतन के क्षेत्र में इस का उपयोग मर्यादित रह जाता है। चेतन और जड़ मिलकर जीव बनाता है| जीव का निर्माण जड पंचमहाभूत और आत्म तत्त्व इन के योग से होता है। परिवर्तन तो जड में ही होता है। लेकिन वह चेतन की उपस्थिति के बिना नहीं हो सकता। इस लिये जीव का जितना भौतिक हिस्सा है उस हिस्से के लिये साईंस को प्रमाण मानना उचित ही है। इस भौतिक हिस्से के मापन की भी मर्यादा है। जड भौतिक शरीर के साथ जब आत्म शक्ति जुड जाति है तब वह केवल जड की भौतिक शक्ति नहीं रह जाती। और प्रत्येक जीव यह जड और चेतन का योग ही होता है। इस लिये चेतन के मन, बुद्धि, अहंकार आदि विषयों में फिझिकल साईंस की कसौटियों को प्रमाण नहीं माना जा सकता। |
| अनिश्चितता का प्रमेय (थियरी ऑफ अनसर्टेंटी), क्वॉटम मेकॅनिक्स, अंतराल भौतिकी (एस्ट्रो फिजीक्स), कण भौतिकी (पार्टिकल फिजीक्स) आदि प्रमेयों और साईंस की आधुनिक शाखाओं ने देकार्ते के प्रतिमान की मर्यादाएं स्पष्ट कर दीं है। | | अनिश्चितता का प्रमेय (थियरी ऑफ अनसर्टेंटी), क्वॉटम मेकॅनिक्स, अंतराल भौतिकी (एस्ट्रो फिजीक्स), कण भौतिकी (पार्टिकल फिजीक्स) आदि प्रमेयों और साईंस की आधुनिक शाखाओं ने देकार्ते के प्रतिमान की मर्यादाएं स्पष्ट कर दीं है। |
| अपने अधिकार कोई छोडना नहीं चाहता। यह बात स्वाभाविक है। इसी के कारण आज का साईंटिस्ट प्रमाण के क्षेत्र में अपना महत्व खोना नहीं चाहता। पुनर्जन्म से संबंधित कार्यक्रम कई दूरदर्शन की वाहिनियों ने प्रसारित किये हैं| सभी में वह दूरचित्र वाहिनी एक टोली बनाती है। इस टोली में एक साईंटिस्ट भी लिया जाता है। फिर टोली द्वारा सुने हुवे पुनर्जन्म के किस्सों की तहकीकात की जाती है। प्रत्यक्ष जिन बच्चों को पुर्वजन्म की कुछ स्मृतियाँ है उन से मिल कर उन से पूर्व जन्म की जानकारी ली जाती है। फिर उस बच्चे के पूर्व जन्म के स्थान पर जाकर बच्चे की दी हुई जानकारी को जाँचा जाता है। उसे सत्य पाया जाता है। ऐसी कई घटनाओं का प्रत्यक्ष प्रसारण वाहिनी के कार्यक्रम में होता है। अंत में उस तहकीकात करने वाली टोलि के सदस्य साईंटिस्ट को प्रश्न पूछ जाता है कि आपने यह सब प्रत्यक्ष देखा है। इस पर आप की क्या राय है? साईंटिस्ट का उत्तर होता है - यह सब तो ठीक है। किन्तु साईंस पुनर्जन्म को मान्यता नहीं देता। | | अपने अधिकार कोई छोडना नहीं चाहता। यह बात स्वाभाविक है। इसी के कारण आज का साईंटिस्ट प्रमाण के क्षेत्र में अपना महत्व खोना नहीं चाहता। पुनर्जन्म से संबंधित कार्यक्रम कई दूरदर्शन की वाहिनियों ने प्रसारित किये हैं| सभी में वह दूरचित्र वाहिनी एक टोली बनाती है। इस टोली में एक साईंटिस्ट भी लिया जाता है। फिर टोली द्वारा सुने हुवे पुनर्जन्म के किस्सों की तहकीकात की जाती है। प्रत्यक्ष जिन बच्चों को पुर्वजन्म की कुछ स्मृतियाँ है उन से मिल कर उन से पूर्व जन्म की जानकारी ली जाती है। फिर उस बच्चे के पूर्व जन्म के स्थान पर जाकर बच्चे की दी हुई जानकारी को जाँचा जाता है। उसे सत्य पाया जाता है। ऐसी कई घटनाओं का प्रत्यक्ष प्रसारण वाहिनी के कार्यक्रम में होता है। अंत में उस तहकीकात करने वाली टोलि के सदस्य साईंटिस्ट को प्रश्न पूछ जाता है कि आपने यह सब प्रत्यक्ष देखा है। इस पर आप की क्या राय है? साईंटिस्ट का उत्तर होता है - यह सब तो ठीक है। किन्तु साईंस पुनर्जन्म को मान्यता नहीं देता। |
| इस में समझने की कुछ बातें है। दूरचित्रवाहिनीवाले और वह साईंटिस्ट साईंस की सीमाएं या मर्यादाएं जानते नहीं हैं| इन मर्यादाओं को नहीं समझने के कारण वह साईंटिस्ट भी अपने अधिकार के क्षेत्र (भौतिक शास्त्र) के बाहर के विषयों में भी साईंस के आधार पर अपनी राय देता है। किन्तु वास्तव में तो यह पूरा कार्यक्रम साईंस की मर्यादा को ही स्पष्ट करता है। | | इस में समझने की कुछ बातें है। दूरचित्रवाहिनीवाले और वह साईंटिस्ट साईंस की सीमाएं या मर्यादाएं जानते नहीं हैं| इन मर्यादाओं को नहीं समझने के कारण वह साईंटिस्ट भी अपने अधिकार के क्षेत्र (भौतिक शास्त्र) के बाहर के विषयों में भी साईंस के आधार पर अपनी राय देता है। किन्तु वास्तव में तो यह पूरा कार्यक्रम साईंस की मर्यादा को ही स्पष्ट करता है। |
− | साईंस की कसौटि की मर्यादा समझने के उपरांत साईंस की मर्यादा से बाहर किसे प्रमाण मानना यह प्रश्न रह ही जाता है। इसे कैसे सुलझाएं? इसकी जानकारी हमने अध्याय ३० ‘भारतीय शोध दृष्टी’ में प्राप्त की है| | + | साईंस की कसौटि की मर्यादा समझने के उपरांत साईंस की मर्यादा से बाहर किसे प्रमाण मानना यह प्रश्न रह ही जाता है। इसे कैसे सुलझाएं? इसकी जानकारी हमने अध्याय ३० ‘भारतीय शोध दृष्टि’ में प्राप्त की है| |
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| == भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित भारतीय तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र == | | == भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित भारतीय तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र == |
| इस सन्दर्भ में हमें वर्तमान साईंस और भारतीय विज्ञान में अंतर को समझना होगा| वर्तमान साईंस का भारतीय विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोइ झगड़ा या विरोध नहीं है| उलटे वर्तमान साईंस यह भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है| इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है| | | इस सन्दर्भ में हमें वर्तमान साईंस और भारतीय विज्ञान में अंतर को समझना होगा| वर्तमान साईंस का भारतीय विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोइ झगड़ा या विरोध नहीं है| उलटे वर्तमान साईंस यह भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है| इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है| |
| १. विज्ञान की भारतीय व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार - | | १. विज्ञान की भारतीय व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार - |
− | भूमिरापोऽनलो वायू: खं मनो बुध्दिरेव च | + | भूमिरापोऽनलो वायू: खं मनो बुद्धिरेव च |
| अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ (श्लोक ४ अध्याय ७) | | अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ (श्लोक ४ अध्याय ७) |
| अर्थ :पृथ्वि, जल, तेज, वायु और आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्त्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है। | | अर्थ :पृथ्वि, जल, तेज, वायु और आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्त्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है। |
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| १. जिनकी बुद्धि तेज चलती है ऐसे कुछ लोगों के पीछे बडी संख्या में सामान्य मनुष्य घसीटा जाता है। बुद्धि के तेज चलने से तात्पर्य ठीक चलने से नहीं है। तेज चलना और ठीक चलना दो भिन्न बातें होतीं हैं। | | १. जिनकी बुद्धि तेज चलती है ऐसे कुछ लोगों के पीछे बडी संख्या में सामान्य मनुष्य घसीटा जाता है। बुद्धि के तेज चलने से तात्पर्य ठीक चलने से नहीं है। तेज चलना और ठीक चलना दो भिन्न बातें होतीं हैं। |
| २. संस्कृति नष्ट हो जाती है। संस्कृति विकास के लिये समाज जीवन में ठहराव आवश्यक होता है। ठहराव से तात्पर्य गतिशून्यता से नहीं है। सामाजिक जीवन का पूरा प्रतिमान बिगड जाता है। जीवनशैली और व्यवस्थाएँ बिगड जातीं हैं। | | २. संस्कृति नष्ट हो जाती है। संस्कृति विकास के लिये समाज जीवन में ठहराव आवश्यक होता है। ठहराव से तात्पर्य गतिशून्यता से नहीं है। सामाजिक जीवन का पूरा प्रतिमान बिगड जाता है। जीवनशैली और व्यवस्थाएँ बिगड जातीं हैं। |
− | ३. जीवन एक दौड की स्पर्धा का रूप ले लेता है। हर संभव तरीके से आगे जाने का प्रयास हर कोई करने लगता है। आगे जाने की होड लग जाती है। कम बुध्दिवाले लोग होड में पिछड जाते हैं। इस के कारण ईर्षा, द्वेष आदि व्यापक हो जाते हैं। पैनी बुध्दिवाले लोग कम बुध्दिवाले लोगों का उपयोग अपने लिये करने लगते हैं। स्पर्धा में असफल हुए पिछडे लोगोंद्वारा बुद्धि का दुरूपयोग होने लग जाता है। | + | ३. जीवन एक दौड की स्पर्धा का रूप ले लेता है। हर संभव तरीके से आगे जाने का प्रयास हर कोई करने लगता है। आगे जाने की होड लग जाती है। कम बुद्धिवाले लोग होड में पिछड जाते हैं। इस के कारण ईर्षा, द्वेष आदि व्यापक हो जाते हैं। पैनी बुद्धिवाले लोग कम बुद्धिवाले लोगों का उपयोग अपने लिये करने लगते हैं। स्पर्धा में असफल हुए पिछडे लोगोंद्वारा बुद्धि का दुरूपयोग होने लग जाता है। |
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| === जीवन को गति देनेवाले घटक === | | === जीवन को गति देनेवाले घटक === |