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सहकार दृष्टि
 
सहकार दृष्टि
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उपसंहार
 
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कौटुम्बिक भावना से चलाए गये उपक्रम सामने रखकर ही हमें भावी सहकारिता के क्षेत्र की पुनर्रचना करनी होगी । इस बातपर विचारपूर्वक और हिम्मत से प्रयोग करने की आवश्यकता है । ग्रामकुल जैसी व्यवस्थाएं कुछ गाँवों में क्षीण अवस्था में, लेकिन आज भी विद्यमान है । इन व्यवस्थाओं का और पू. दादा आठवलेजी ने किये प्रयोगों का अध्ययन करना होगा । भारतीयता की दृष्टि से ग्रामीण लोग अधिक भारतीय है । वर्तमान शिक्षा का असर उनपर उतना नहीं हुवा है जितना शहरी लोगोंपर हुवा है । ग्रामीण लोग अभी भी एकात्म मानव दर्शन के विचार से पूर्णत: विलग नहीं हुए है । इसीलिये सहकारिता में हो या अर्थशास्त्र में, परिवर्तन के प्रयोग हमें ग्रामीण क्षेत्र से ही प्रारभ करने होंगे ।
 
कौटुम्बिक भावना से चलाए गये उपक्रम सामने रखकर ही हमें भावी सहकारिता के क्षेत्र की पुनर्रचना करनी होगी । इस बातपर विचारपूर्वक और हिम्मत से प्रयोग करने की आवश्यकता है । ग्रामकुल जैसी व्यवस्थाएं कुछ गाँवों में क्षीण अवस्था में, लेकिन आज भी विद्यमान है । इन व्यवस्थाओं का और पू. दादा आठवलेजी ने किये प्रयोगों का अध्ययन करना होगा । भारतीयता की दृष्टि से ग्रामीण लोग अधिक भारतीय है । वर्तमान शिक्षा का असर उनपर उतना नहीं हुवा है जितना शहरी लोगोंपर हुवा है । ग्रामीण लोग अभी भी एकात्म मानव दर्शन के विचार से पूर्णत: विलग नहीं हुए है । इसीलिये सहकारिता में हो या अर्थशास्त्र में, परिवर्तन के प्रयोग हमें ग्रामीण क्षेत्र से ही प्रारभ करने होंगे ।
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==References==
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अन्य स्रोत:
    
वाचनीय साहित्य :
 
वाचनीय साहित्य :
 
योगेश्वर कृषि, लेखक पांडुरंग शास्त्री आठवले
 
योगेश्वर कृषि, लेखक पांडुरंग शास्त्री आठवले
   
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
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