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| वर्तमान में जीवन का प्रतिमान अभारतीय है| इसमें कुटुम्ब व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था, कौशल विधा याने जाति व्यवस्था ये व्यवस्थाएँ दुर्बल हो गईं हैं| और दुर्बल होती जा रहीं हैं| राष्ट्र की सभी व्यवस्थाओं के तंत्र पूर्णत: अभारतीय हैं| इसलिए हमें दो प्रकार के प्रयास करने होंगे| | | वर्तमान में जीवन का प्रतिमान अभारतीय है| इसमें कुटुम्ब व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था, कौशल विधा याने जाति व्यवस्था ये व्यवस्थाएँ दुर्बल हो गईं हैं| और दुर्बल होती जा रहीं हैं| राष्ट्र की सभी व्यवस्थाओं के तंत्र पूर्णत: अभारतीय हैं| इसलिए हमें दो प्रकार के प्रयास करने होंगे| |
| १. कुटुम्ब व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था, कौशल विधा याने जाति व्यवस्था व्यवस्थाओं के दोष दूर कर उनका शुद्धिकरण करना होगा| यह काम निम्न पद्धति से होगा| | | १. कुटुम्ब व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था, कौशल विधा याने जाति व्यवस्था व्यवस्थाओं के दोष दूर कर उनका शुद्धिकरण करना होगा| यह काम निम्न पद्धति से होगा| |
− | १.१ राष्ट्र और राष्ट्र की इन प्रणालियों की श्रेष्ठ व्यवस्थाओं की सैद्धांतिक प्रस्तुति करनी होगी|
| + | १.१ राष्ट्र और राष्ट्र की इन प्रणालियों की श्रेष्ठ व्यवस्थाओं की सैद्धांतिक प्रस्तुति करनी होगी| |
− | १.२ स्थानस्थानपर इनके अस्थाई अध्ययन और मार्गदर्शन के लिए केन्द्र निर्माण करने होंगे| इन केन्द्रों के माध्यम से लोकमत परिष्कार करना होगा|
| + | १.२ स्थानस्थानपर इनके अस्थाई अध्ययन और मार्गदर्शन के लिए केन्द्र निर्माण करने होंगे| इन केन्द्रों के माध्यम से लोकमत परिष्कार करना होगा| |
− | १.३ इन प्रणालियों के परिष्कार के उपरांत भी इनमें से कुछ केन्द्र निरन्तर काम करेंगे| इन स्थाई केन्द्रों का काम इन प्रणालियों का निरंतर अध्ययन करना, कुछ गलत होता हो तो उसे जान कर उसके सुधार की प्रक्रिया चलाने का होगा|
| + | १.३ इन प्रणालियों के परिष्कार के उपरांत भी इनमें से कुछ केन्द्र निरन्तर काम करेंगे| इन स्थाई केन्द्रों का काम इन प्रणालियों का निरंतर अध्ययन करना, कुछ गलत होता हो तो उसे जान कर उसके सुधार की प्रक्रिया चलाने का होगा| |
| २. राष्ट्रीय स्तरपर समृद्धि शास्त्र के बिन्दुओं का क्रियान्वयन सर्वप्रथम शिक्षा के क्षेत्र से प्रारम्भ कर पीछे पीछे अन्य सभी व्यवस्थाओं को अनुकूल बनाना होगा| इसकी प्रक्रिया निम्न पद्धति से चलेगी| | | २. राष्ट्रीय स्तरपर समृद्धि शास्त्र के बिन्दुओं का क्रियान्वयन सर्वप्रथम शिक्षा के क्षेत्र से प्रारम्भ कर पीछे पीछे अन्य सभी व्यवस्थाओं को अनुकूल बनाना होगा| इसकी प्रक्रिया निम्न पद्धति से चलेगी| |
| २.१ सर्वप्रथम उन व्यवस्थाओं के शास्त्रों के भारतीय स्वरूपों की बुद्धियुक्त प्रस्तुति करना| यह काम धर्म और शिक्षा से सम्बंधित विद्वानों का है| | | २.१ सर्वप्रथम उन व्यवस्थाओं के शास्त्रों के भारतीय स्वरूपों की बुद्धियुक्त प्रस्तुति करना| यह काम धर्म और शिक्षा से सम्बंधित विद्वानों का है| |
| २.२ शासन के सहयोग से भारतीय व्यवस्थाओं के स्थानिक स्तर के कुछ प्रयोग करने होंगे| प्रयोगों के लिए अनुकूल स्थान का चयन करना होगा| इन प्रयोगों के द्वारा शास्त्रों की प्रस्तुतियों की उचितता और श्रेष्ठता को जांचना होगा| आवश्यकतानुसार शास्त्रों की प्रस्तुतियों में सुधार करने होंगे| स्थानिक स्तरपर सफलता मिलने के बाद जनपद या प्रांत के स्तरपर प्रयोग करने होंगे| अनुकूल प्रांत में शासन की सहमति और सहयोग से ये प्रयोग किये जाएंगे| आगे अन्य अनुकूल प्रान्तों में और सबसे अंत में समूचे राष्ट्र में इस परिवर्तन की प्रक्रिया को चलाना होगा| | | २.२ शासन के सहयोग से भारतीय व्यवस्थाओं के स्थानिक स्तर के कुछ प्रयोग करने होंगे| प्रयोगों के लिए अनुकूल स्थान का चयन करना होगा| इन प्रयोगों के द्वारा शास्त्रों की प्रस्तुतियों की उचितता और श्रेष्ठता को जांचना होगा| आवश्यकतानुसार शास्त्रों की प्रस्तुतियों में सुधार करने होंगे| स्थानिक स्तरपर सफलता मिलने के बाद जनपद या प्रांत के स्तरपर प्रयोग करने होंगे| अनुकूल प्रांत में शासन की सहमति और सहयोग से ये प्रयोग किये जाएंगे| आगे अन्य अनुकूल प्रान्तों में और सबसे अंत में समूचे राष्ट्र में इस परिवर्तन की प्रक्रिया को चलाना होगा| |
| २.३ परिवर्तन की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत भी इन व्यवस्थाओं के निरंतर अध्ययन और परिष्कार की स्थाई व्यवथा बनानी होगी| | | २.३ परिवर्तन की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत भी इन व्यवस्थाओं के निरंतर अध्ययन और परिष्कार की स्थाई व्यवथा बनानी होगी| |
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| ==References== | | ==References== |
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