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| वनोंमें वृक्ष सदा फुलते और फलते हैं| हाथी और सिंह बैर भुलाकर एक साथ रहते हैं| पक्षी और पशु सभीने स्वाभाविक बैर भुलाकर आपसमें प्रेम बढा लिया है| पक्षी कुजते हैं, भांति-भांति के पशुओंके समूह वनमें निर्भय विचरते और आनंद करते हैं| शीतल, मंद, सुगन्धित पवन चलता रहता है| भौंरे पुष्पों का रस लेकर चलते हुए गुंजार करते जाते हैं| बेलें और वृक्ष माँगने से ही मधु टपका देते हैं| गौएँ मनचाहा दूध देतीं हैं| धरती सदा खेती से भरी रहती है| त्रेता में सत्ययुग की स्थिति हो जाती है| | | वनोंमें वृक्ष सदा फुलते और फलते हैं| हाथी और सिंह बैर भुलाकर एक साथ रहते हैं| पक्षी और पशु सभीने स्वाभाविक बैर भुलाकर आपसमें प्रेम बढा लिया है| पक्षी कुजते हैं, भांति-भांति के पशुओंके समूह वनमें निर्भय विचरते और आनंद करते हैं| शीतल, मंद, सुगन्धित पवन चलता रहता है| भौंरे पुष्पों का रस लेकर चलते हुए गुंजार करते जाते हैं| बेलें और वृक्ष माँगने से ही मधु टपका देते हैं| गौएँ मनचाहा दूध देतीं हैं| धरती सदा खेती से भरी रहती है| त्रेता में सत्ययुग की स्थिति हो जाती है| |
| समस्त जगतके आत्मा भगवानको जगतका राजा जानकर पर्वतोंने अनेक प्रकारकी मणियोंकी खान प्रकट करे दी| सब नदियाँ श्रेष्ठ, शीतल, निर्मल और सुखप्रद स्वादिष्ट जल बहाने लगीं हैं| समुद्र अपनी मर्यादा में रहते हैं| वे लहरोंके द्वारा किनारोंपर रत्न डाल देते हैं, जिन्हें मनुष्य प्राप्त कर लेते हैं| सब तालाब कमलोंसे परिपूर्ण हैं| दसों दिशाओं के प्रदेश अत्यंत प्रसन्न हैं| चन्द्रमा अपनी अमृतमयी किरणोंसे पृथ्वी को पूर्ण कर देते हैं| सूर्य उतना ही तपते हैं जितनी आवश्यकता होती है और मेघ माँगनेसे जहाँ जितना चाहिये उतना ही जल देते हैं| | | समस्त जगतके आत्मा भगवानको जगतका राजा जानकर पर्वतोंने अनेक प्रकारकी मणियोंकी खान प्रकट करे दी| सब नदियाँ श्रेष्ठ, शीतल, निर्मल और सुखप्रद स्वादिष्ट जल बहाने लगीं हैं| समुद्र अपनी मर्यादा में रहते हैं| वे लहरोंके द्वारा किनारोंपर रत्न डाल देते हैं, जिन्हें मनुष्य प्राप्त कर लेते हैं| सब तालाब कमलोंसे परिपूर्ण हैं| दसों दिशाओं के प्रदेश अत्यंत प्रसन्न हैं| चन्द्रमा अपनी अमृतमयी किरणोंसे पृथ्वी को पूर्ण कर देते हैं| सूर्य उतना ही तपते हैं जितनी आवश्यकता होती है और मेघ माँगनेसे जहाँ जितना चाहिये उतना ही जल देते हैं| |
− | साहित्य सूचि : १. महाभारत
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− | भारतीय राज्यशास्त्र, लेखक गो. वा. टोकेकर और मधुकर महाजन, प्रकाशक : विद्या प्रकाशन, मुम्बई | + | ==References== |
− | प्रजातंत्र अथवा वर्णाश्रम व्यवस्था, लेखक गुरुदत्त, प्रकाशक हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली | + | |
| + | १. महाभारत |
| + | २. भारतीय राज्यशास्त्र, लेखक गो. वा. टोकेकर और मधुकर महाजन, प्रकाशक : विद्या प्रकाशन, मुम्बई |
| + | ३. प्रजातंत्र अथवा वर्णाश्रम व्यवस्था, लेखक गुरुदत्त, प्रकाशक हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली |
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| [[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]] | | [[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]] |