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| == परिभाषा == | | == परिभाषा == |
− | '''ऋतुभिर्हि संवत्सरः शक्नोति स्थातुम्।''' | + | <blockquote>'''ऋतुभिर्हि संवत्सरः शक्नोति स्थातुम्।'''</blockquote>अर्थात् जिसमें ऋतुएं वास करती हों वह वर्ष या संवत्सर कहलाता है। |
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− | अर्थात् जिसमें ऋतुएं वास करती हों वह वर्ष या संवत्सर कहलाता है। | |
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| == ज्योतिष में संवत्सर == | | == ज्योतिष में संवत्सर == |
| ज्योतिषग्रंथों में संवत्सरों का विवेचन प्राप्त होता है। ज्योतिष गणित में संवत्सर को प्राण माना गया है। क्योंकि गणना के विना ज्योतिष की गति नहीं है इसलिए संवत्सर को ज्योतिष शस्त्र का प्राण कहा गया है। ज्योतिषशास्त्र में साठ संवत्सरों को माना गया है। | | ज्योतिषग्रंथों में संवत्सरों का विवेचन प्राप्त होता है। ज्योतिष गणित में संवत्सर को प्राण माना गया है। क्योंकि गणना के विना ज्योतिष की गति नहीं है इसलिए संवत्सर को ज्योतिष शस्त्र का प्राण कहा गया है। ज्योतिषशास्त्र में साठ संवत्सरों को माना गया है। |
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− | अग्निपुराण में साठ संवत्सरों का परिगणन एवं फलों का वर्णन है – | + | अग्निपुराण में साठ संवत्सरों का परिगणन एवं फलों का वर्णन है –<blockquote>'''षष्ट्यब्दानां प्रवक्ष्यामि शुभाशुभमतः शृणु।'''</blockquote>संवत्सर शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए कहा गया है – संवसन्ति ऋतवोऽत्र, संवस् + सरन अर्थात वर्ष। ऋग्वेद में संवत्सर शब्द का प्रयोग वर्ष के लिए अनेक बार हुआ है। वेदांग ज्योतिष में सौर मास, सावन मास, चांद्र मास, तथा नाक्षत्र मास का वर्णन मिलता है। |
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− | '''षष्ट्यब्दानां प्रवक्ष्यामि शुभाशुभमतः शृणु।''' | |
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− | संवत्सर शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए कहा गया है – संवसन्ति ऋतवोऽत्र, संवस् + सरन अर्थात वर्ष। ऋग्वेद में संवत्सर शब्द का प्रयोग वर्ष के लिए अनेक बार हुआ है। वेदांग ज्योतिष में सौर मास, सावन मास, चांद्र मास, तथा नाक्षत्र मास का वर्णन मिलता है। | |
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| एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है। संहिता स्कन्ध में गुरु की मध्यम राशि के भोग काल को संवत्सर कहते हैं। यह काल भी एक वर्ष का माना जाता है। संवत्सर ६० होते हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं- | | एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है। संहिता स्कन्ध में गुरु की मध्यम राशि के भोग काल को संवत्सर कहते हैं। यह काल भी एक वर्ष का माना जाता है। संवत्सर ६० होते हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं- |
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| यह 360 दिनों का होता है। संवत्सर का मोटा सा हिसाब इसी से लगाया जाता है। इसमें एक मास की अवधि पूरे तीस दिन की होती है। | | यह 360 दिनों का होता है। संवत्सर का मोटा सा हिसाब इसी से लगाया जाता है। इसमें एक मास की अवधि पूरे तीस दिन की होती है। |
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− | काल गणना में वर्ष के अंतर्गत प्रयोग होने वाले सावन वर्ष में एक सावन दिन का व्यवहार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का काल सावन दिन कहलाता है। अर्थात सैद्धांतिक रूप से समझने का प्रयास करें तो एक ही क्षितिज पर दो सूर्योदयों के मध्य का काल सावन दिन होता है। प्रायः यह देखा जाता है कि सूर्य पश्चिम दिशा की ओर गमन कर रहा है, परंतु पृथ्वी के अक्ष भ्रमण के कारण इस प्रकार की प्रतीति होती है। इसी दो सूर्योदय के मध्य के काल को भू-दिन अथवा सावन दिन भी कहा जाता है। हमारे व्यवहार में भी हम दिन के अर्थ में इसी काल का प्रयोग करते हैं। यह मान भी दो प्रकार का होता है एक स्पष्ट सावन और दूसरा मध्यम सावन। मध्यम सावन का मान 60 घटी + रवि गति कला के तुल्य असु के बराबर एवं स्पष्ट सावन मान 60 घटी + रवि गति कला से उत्पन्न असु के मान के बराबर होता है। परंतु एक वर्ष में मध्यम सावन मान और स्पष्ट सावन दिनों की संख्या समान ही होती है। जैसा कि श्री भास्कराचार्य जी के अनुसार एक सौर वर्ष (360 सौर दिन) में 365.15.30.22.30 (दिन-घटी-पल-विपल-प्रतिविपल) सावन दिन होते हैं। जैसे – | + | काल गणना में वर्ष के अंतर्गत प्रयोग होने वाले सावन वर्ष में एक सावन दिन का व्यवहार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का काल सावन दिन कहलाता है। अर्थात सैद्धांतिक रूप से समझने का प्रयास करें तो एक ही क्षितिज पर दो सूर्योदयों के मध्य का काल सावन दिन होता है। प्रायः यह देखा जाता है कि सूर्य पश्चिम दिशा की ओर गमन कर रहा है, परंतु पृथ्वी के अक्ष भ्रमण के कारण इस प्रकार की प्रतीति होती है। इसी दो सूर्योदय के मध्य के काल को भू-दिन अथवा सावन दिन भी कहा जाता है। हमारे व्यवहार में भी हम दिन के अर्थ में इसी काल का प्रयोग करते हैं। यह मान भी दो प्रकार का होता है एक स्पष्ट सावन और दूसरा मध्यम सावन। मध्यम सावन का मान 60 घटी + रवि गति कला के तुल्य असु के बराबर एवं स्पष्ट सावन मान 60 घटी + रवि गति कला से उत्पन्न असु के मान के बराबर होता है। परंतु एक वर्ष में मध्यम सावन मान और स्पष्ट सावन दिनों की संख्या समान ही होती है। जैसा कि श्री भास्कराचार्य जी के अनुसार एक सौर वर्ष (360 सौर दिन) में 365.15.30.22.30 (दिन-घटी-पल-विपल-प्रतिविपल) सावन दिन होते हैं। जैसे –<blockquote>पंचांगरामास्तिथयः खरामाः सार्द्धद्विदस्राः कुदिनाद्यमब्दे। अस्यार्कमासोsर्कलवः प्रदिष्टस्त्रिंशद्दिनः सावनमास एव॥ (सि०शिरो० गो० मध्य० श्लो० ८)</blockquote>स्पष्ट सावनमान चल होने के कारण मध्यम सावन मान का ही व्यवहार सामान्यतः किया जाता है। इस सावनमान से ही यज्ञादि कार्यों के लिए समय का निर्धारण किया जाता है तथा जन्म का सूतक और चान्द्रायण आदि व्रत की सीमा, दिन, मास और वर्ष के स्वामियों का निश्चय, ग्रहों की मध्यम गति आदि की गणना इसी सूर्य संबंधि सावन दिन से ही की जाती है। |
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− | पंचांगरामास्तिथयः खरामाः सार्द्धद्विदस्राः कुदिनाद्यमब्दे। अस्यार्कमासोsर्कलवः प्रदिष्टस्त्रिंशद्दिनः सावनमास एव॥ (सि०शिरो० गो० मध्य० श्लो० ८) | |
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− | स्पष्ट सावनमान चल होने के कारण मध्यम सावन मान का ही व्यवहार सामान्यतः किया जाता है। इस सावनमान से ही यज्ञादि कार्यों के लिए समय का निर्धारण किया जाता है तथा जन्म का सूतक और चान्द्रायण आदि व्रत की सीमा, दिन, मास और वर्ष के स्वामियों का निश्चय, ग्रहों की मध्यम गति आदि की गणना इसी सूर्य संबंधि सावन दिन से ही की जाती है। | |
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| === नाक्षत्र वर्ष === | | === नाक्षत्र वर्ष === |
| == सारांश == | | == सारांश == |
| + | इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में अनेक वर्ष गणनायें प्रचलित हैं। इनमें से कुछ चन्द्रमा की गति के आधार पर हैं तो कुछ सूर्य की गति के आधार पर। चन्द्र और सूर्य की गति में अन्तर होने के कारण प्रत्येक २३ महीने पर चान्द्रमास एक मास पीछे रह जाता है, जिसका तालमेल सौर वर्ष के साथ मिलाने के लिए एक मास का अधिकमास के रूप में समावेश किया जाता है।<blockquote>गते वर्षद्वये सार्द्धे पञ्चपक्षे दिनद्वये। दिवसस्याऽष्टमे भागे पतत्येकोऽधिमासकः॥(स्क०पु०)<ref>[https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/dharmayan-vol-128/ स्कन्दपुराण], वैष्णव खण्ड, अयोध्यामाहात्म्यम्, अध्याय०३, श्लोक ५६।</ref></blockquote>अर्थात् आधा के साथ दो वर्ष यानी ढाई वर्ष के बीत जाने पर इसके बाद पाँच पक्ष यानी ढाई मास बीतने के बाद फिर दो दिन बीतने के बाद दिन के आठवें भाग में एक अधिमास पड जाता है। इस प्रकार ३२ महीना १८ दिन, सात मुहूर्त बीतने पर एक अधिमास का समावेश होता है। |
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |