Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारि
Line 1,746: Line 1,746:  
दारानगर , वाराणसी ।
 
दारानगर , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== बिंदु माधव (काशी खण्डोक्त) ===
 +
श्री हरि विष्णु का अग्निबिन्दु ऋषि से संवाद-
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_हरि_विष्णु_का_अग्निबिन्दु_ऋषि_से_संवाद
+
प्रतिक्षपं कार्तिकिके कुर्वन ज्योत्स्नां प्रदीपजाम् । ममाग्रे भक्ति संयुक्तो गर्भध्वान्तं न  संविशेत्  ||
   −
प्रतिक्षपं कार्तिकिके कुर्वन ज्योत्स्नां प्रदीपजाम् |
+
आज्यवर्तिकमुर्जे  यो दीपं  मेःग्रे प्रभोधयेत् बुद्धिभ्रंशं न चाप्नोति महामृत्युभये सति ||(काशीखण्ड)
 
  −
ममाग्रे भक्ति संयुक्तो गर्भध्वान्तं न  संविशेत्  ||
  −
 
  −
आज्यवर्तिकमुर्जे  यो दीपं  मेःग्रे प्रभोधयेत् |
  −
 
  −
बुद्धिभ्रंशं न चाप्नोति महामृत्युभये सति ||
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
~  कार्तिक मास की प्रत्येक रात्रि में मेरे आगे भक्तिपूर्वक दीप जलाने से व्यक्ति को गर्भ के अंधकार में नही पड़ना पड़ता (अर्थात मुक्ति मिल जाती है)
 
~  कार्तिक मास की प्रत्येक रात्रि में मेरे आगे भक्तिपूर्वक दीप जलाने से व्यक्ति को गर्भ के अंधकार में नही पड़ना पड़ता (अर्थात मुक्ति मिल जाती है)
Line 1,764: Line 1,757:  
जो कोई कार्तिक महीने में घी की बत्ती का दिया मेरे आगे जला देता है , महामृत्यु के भय होने पर भी उसकी बुद्धि में कुछ भ्रम नही पड़ता (अर्थात अंत समय मे भी उसकी मति नही खराब होती)
 
जो कोई कार्तिक महीने में घी की बत्ती का दिया मेरे आगे जला देता है , महामृत्यु के भय होने पर भी उसकी बुद्धि में कुछ भ्रम नही पड़ता (अर्थात अंत समय मे भी उसकी मति नही खराब होती)
   −
<nowiki>#</nowiki>धनवंतरेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== धनवंतरेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
श्री धन्वंतरि जी प्राचीन विग्रह-
<nowiki>#</nowiki>श्री_धन्वंतरि_जी_प्राचीन_विग्रह
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>माता_अन्नपूर्णा
     −
<nowiki>#</nowiki>आदि_अन्नपूर्णा_विश्वभुजा_गौरी
+
माता अन्नपूर्णा आदि अन्नपूर्णा विश्वभुजा गौरी
   −
<nowiki>#</nowiki>धनवंतरेश्वर महादेव जो श्री धन्वंतरि जी द्वारा पूजित और स्थापित है।
+
धनवंतरेश्वर महादेव जो श्री धन्वंतरि जी द्वारा पूजित और स्थापित है।
    
आज के दिन यहां दर्शन करने से आरोग्य लाभ मिलता है ।
 
आज के दिन यहां दर्शन करने से आरोग्य लाभ मिलता है ।
Line 1,778: Line 1,768:  
कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
 
कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
   −
2 नवंबर 2021, मंगलवार को धनतेरस का त्योहार देशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस दिन मां लक्ष्मी, कुबेर देव और भगवान धनवंतरी की पूजा का विधान है. धनतेरस हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है. धनतेरस को धनत्रयोदशी और धनवंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि इस दिन सुमद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी प्रकट हुए थे, इसलिए आज के दिन इनकी पूजा की जाती है. कहते हैं कि जो भक्त विधि-विधान के साथ इनकी पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें सालभर धन की कमी नहीं होती और मां लक्ष्मी की कृपा उनके परिवार पर बनी रहती है.
+
मंगलवार को धनतेरस का त्योहार देशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस दिन मां लक्ष्मी, कुबेर देव और भगवान धनवंतरी की पूजा का विधान है. धनतेरस हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है. धनतेरस को धनत्रयोदशी और धनवंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि इस दिन सुमद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी प्रकट हुए थे, इसलिए आज के दिन इनकी पूजा की जाती है. कहते हैं कि जो भक्त विधि-विधान के साथ इनकी पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें सालभर धन की कमी नहीं होती और मां लक्ष्मी की कृपा उनके परिवार पर बनी रहती है.
    
धनतेरस के दिन भगवान गणेश, कुबेर जी और मां लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है ।
 
धनतेरस के दिन भगवान गणेश, कुबेर जी और मां लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>महिमा
+
===== माहात्म्य =====
 
   
धन्वन्तरि जी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
 
धन्वन्तरि जी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
   Line 1,804: Line 1,793:  
आदि अन्नपूर्णा , मीरघाट , विशालाक्षी देवी के पास धर्मकुप के सामने
 
आदि अन्नपूर्णा , मीरघाट , विशालाक्षी देवी के पास धर्मकुप के सामने
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_बिंदु_माधव        #काशी_खण्डोक्त
+
=== श्री बिंदु माधव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
बड़े बड़े पापियो के एकत्रित पाप पंचगंगा तीर्थ में कार्तिक मास में एक बार गोता लगाने से यही छूट जाते है ।
 
बड़े बड़े पापियो के एकत्रित पाप पंचगंगा तीर्थ में कार्तिक मास में एक बार गोता लगाने से यही छूट जाते है ।
   Line 1,822: Line 1,810:  
यहां कार्तिक मास में स्नान के अनगिनत पुण्य है
 
यहां कार्तिक मास में स्नान के अनगिनत पुण्य है
   −
कृते धर्मनदं  नाम त्रेतायां    धूतपापकम् |
+
कृते धर्मनदं  नाम त्रेतायां    धूतपापकम् द्वापरे बिन्दु तीर्थे च कलौ पञ्चनदं स्मृतम॥(काशी_खण्ड)
 
  −
द्वापरे बिन्दु तीर्थे च कलौ पञ्चनदं स्मृतम ||
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
      
यह तीर्थ सतयुग में धर्मनद , त्रेता में धुतपापक , द्वापर में बिंदूतीर्थ और कलियुग में पंचनद(पंचगंगा) नाम से कहा गया है।
 
यह तीर्थ सतयुग में धर्मनद , त्रेता में धुतपापक , द्वापर में बिंदूतीर्थ और कलियुग में पंचनद(पंचगंगा) नाम से कहा गया है।
   −
न धूतपापा सदृश्यं तीर्थे क्वापि महीतले |
+
न धूतपापा सदृश्यं तीर्थे क्वापि महीतले। यदेकस्नानतो नश्येदधम जन्मत्रयर्जित् ।। (काशी_खण्ड)
 
  −
यदेकस्नानतो नश्येदधम जन्मत्रयर्जित् ।।
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
      
धूतपापा के समान कोई भी तीर्थ भूतल पर कही भी नही है , जो केवल एक ही बार स्नान करने से तीन जन्म के संचित पापों को विनष्ट कर डालता हो।
 
धूतपापा के समान कोई भी तीर्थ भूतल पर कही भी नही है , जो केवल एक ही बार स्नान करने से तीन जन्म के संचित पापों को विनष्ट कर डालता हो।
   −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== बिंदु माधव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
कार्तिक मास महात्म्य
<nowiki>#</nowiki>कार्तिक_मास_महात्म्य
  −
 
  −
ऐकादशीं  समासाद्द  प्रबोधकरणीं मम |
  −
 
  −
बिन्दुतीर्थ कृतस्नानो रात्रौ जागरणान्वितः ||
  −
 
  −
दीपान् प्रबोध्यबहुशो ममालाङ्गकृत्य शक्तितः |
     −
तौर्य त्रिकविनोदेन पुराणश्रवणा दिभिः ||
+
ऐकादशीं समासाद्द  प्रबोधकरणीं मम | बिन्दुतीर्थ कृतस्नानो रात्रौ जागरणान्वितः ||
   −
तत्रान्नदानं बहुशः कृत्वा  मत्प्रीतये नरः |
+
दीपान् प्रबोध्यबहुशो ममालाङ्गकृत्य शक्तितः | तौर्य त्रिकविनोदेन पुराणश्रवणा दिभिः ||
   −
महापातकयुक्तोःपि  न विशेत्प्रमदोदरम ||
+
तत्रान्नदानं  बहुशः कृत्वा  मत्प्रीतये नरः | महापातकयुक्तोःपि  न विशेत्प्रमदोदरम ||
    
~प्रबोधिनी एकादशी के दिन बिंदूतीर्थ (पंचगंगाघाट,वाराणसी) में स्नान कर रात्रि जागरण करता हुआ व्यक्ति , बहुत से दियो को जला कर और यथा शक्ति मुझे अलंकृत कर , नाच , गाने , भजन , गायन विनोद के सहित तथा पुराण इत्यादि के श्रवण से बड़ा भारी महोत्सव करे (जब तक तिथि पूर्ण न होजाये) यदि वहां पर मेरे प्रीति के लिए बहुत सा अन्नदान अथवा जरूरतमंदो के लिए भंडार करें , तोह वह मनुष्य महापापी होने पर भी फिर किसी स्त्री के गर्भ में प्रवेश नही करता (मतलब मोक्ष को प्राप्त होता है) |
 
~प्रबोधिनी एकादशी के दिन बिंदूतीर्थ (पंचगंगाघाट,वाराणसी) में स्नान कर रात्रि जागरण करता हुआ व्यक्ति , बहुत से दियो को जला कर और यथा शक्ति मुझे अलंकृत कर , नाच , गाने , भजन , गायन विनोद के सहित तथा पुराण इत्यादि के श्रवण से बड़ा भारी महोत्सव करे (जब तक तिथि पूर्ण न होजाये) यदि वहां पर मेरे प्रीति के लिए बहुत सा अन्नदान अथवा जरूरतमंदो के लिए भंडार करें , तोह वह मनुष्य महापापी होने पर भी फिर किसी स्त्री के गर्भ में प्रवेश नही करता (मतलब मोक्ष को प्राप्त होता है) |
  −
प्रबोधिनी एकादशी 14 नवंबर 2021 से शुरू होकर 15 नवंबर को 6:40 को खत्म होगा ।
      
बिंदु माधव मंदिर काशी में पंचगंगा घाट पर स्थित काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है ।
 
बिंदु माधव मंदिर काशी में पंचगंगा घाट पर स्थित काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_हरि_विष्णु_का_अग्नि_बिंदु_ऋषि_से_संवाद
+
श्री_हरि_विष्णु_का_अग्नि_बिंदु_ऋषि_से_संवाद
    
बिंदु तीर्थ (पंचगंगा घाट, काशी) में स्नान करके जो कोई यहां पर बिंदु माधव नाम से मेरी पूजा करता है , वही निर्वाण को प्राप्त होता है , हे मुने ! सतयुग में मैं अभी आदिमाधव के नाम से पूज्य हूँ , त्रेता में मुझे सर्व सिद्धि दायक अनंत माधव नाम से समझना चाहिए , द्वापर में पर्मार्थकर्ता मैं ही श्रीदमाधव संज्ञक हूँ और कलियुग में कलिमलध्वंशी बिंदुमाधव नाम से मुझे जानना चाहिए ।
 
बिंदु तीर्थ (पंचगंगा घाट, काशी) में स्नान करके जो कोई यहां पर बिंदु माधव नाम से मेरी पूजा करता है , वही निर्वाण को प्राप्त होता है , हे मुने ! सतयुग में मैं अभी आदिमाधव के नाम से पूज्य हूँ , त्रेता में मुझे सर्व सिद्धि दायक अनंत माधव नाम से समझना चाहिए , द्वापर में पर्मार्थकर्ता मैं ही श्रीदमाधव संज्ञक हूँ और कलियुग में कलिमलध्वंशी बिंदुमाधव नाम से मुझे जानना चाहिए ।
Line 1,876: Line 1,847:  
ते नर करहीं कल्प भर , घोर नरक महं वास
 
ते नर करहीं कल्प भर , घोर नरक महं वास
   −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== बिंदु माधव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
श्री बिंदु माधव की कथा
 
श्री बिंदु माधव की कथा
   Line 1,890: Line 1,860:  
श्री हरि विष्णु - श्री माधव ने काशीवास् का भी बड़ा महात्म्य बताते हुवे कहा --
 
श्री हरि विष्णु - श्री माधव ने काशीवास् का भी बड़ा महात्म्य बताते हुवे कहा --
   −
स एव विद्वान जगति  स एव विजितेन्द्रियः |
+
स एव विद्वान जगति  स एव विजितेन्द्रियः। तावत्स्थास्याम्यहं चात्र यावत्काशी मुने त्तिवः ||
 
  −
तावत्स्थास्याम्यहं चात्र यावत्काशी मुने त्तिवः ||
     −
प्रलयेःपि न्  नाशोस्याः शिवशूलाग्रसुस्थितेः |
+
प्रलयेःपि न्  नाशोस्याः शिवशूलाग्रसुस्थितेः। इत्याकर्ण गिरं विष्णोरगिन बिन्दुमर्हामुनिः ||
 
  −
इत्याकर्ण गिरं विष्णोरगिन बिन्दुमर्हामुनिः ||
      
संसार मे वही पंडित है , वही जितेंद्रिय है , वही धन्य पुण्यवान है जो काशी को पाकर फिर न छोड़े ।
 
संसार मे वही पंडित है , वही जितेंद्रिय है , वही धन्य पुण्यवान है जो काशी को पाकर फिर न छोड़े ।
Line 1,904: Line 1,870:  
बिंदु माधव मंदिर , पंचगंगा घाट , वाराणसी (काशी) .
 
बिंदु माधव मंदिर , पंचगंगा घाट , वाराणसी (काशी) .
   −
<nowiki>#</nowiki>धर्मेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त_लिंग
+
धर्मेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त)
    
माता पार्वती ने शंकर से पूछा हे शम्भो , आनंद कानन में कौन सा ऐसा शिव लिंग है , जो समस्त पापो का नाशक तथा स्मरण , दर्शनादि , असीम कल्याण का दाता है ?
 
माता पार्वती ने शंकर से पूछा हे शम्भो , आनंद कानन में कौन सा ऐसा शिव लिंग है , जो समस्त पापो का नाशक तथा स्मरण , दर्शनादि , असीम कल्याण का दाता है ?
   −
शिव जी ने कहा
+
शिव जी ने कहा-
    
आनंद कानन (काशी) में धर्मेश्वर लिंग का स्थान धर्म पीठ नाम से प्रसिद्ध है । इसका दर्शन सर्व पापमोचक है । सूर्य पुत्र( यम)
 
आनंद कानन (काशी) में धर्मेश्वर लिंग का स्थान धर्म पीठ नाम से प्रसिद्ध है । इसका दर्शन सर्व पापमोचक है । सूर्य पुत्र( यम)
Line 1,930: Line 1,896:  
पता- विश्व भुजा गौरी के पास मीरघाट वाराणसी ।
 
पता- विश्व भुजा गौरी के पास मीरघाट वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कार्तिक_कृष्ण_पक्ष_पंचमी 25/10/21
+
=== पंचक्रोशेश्वर महादेव ===
 
+
आज के ही दिन शिव जी माता पार्वती और अपने गण (वीरभद्र , भैरव , यक्षों आदि) के साथ पंचक्रोशी यात्रा की थी।
<nowiki>#</nowiki>पंचक्रोशेश्वर_महादेव
  −
 
  −
आज के ही दिन शिव जी माता पार्वती और अपने गण (वीरभद्र , भैरव , यक्षों आदि) के साथ #पंचक्रोशी यात्रा की थी।
     −
इसीलिए आज के दिन काशी में पंचक्रोशी यात्रा करने का विधान प्राचीन समय से ही आरहा है पंचक्रोशी यात्रा करने से
+
इसीलिए आज के दिन काशी में पंचक्रोशी यात्रा करने का विधान प्राचीन समय से ही आरहा है पंचक्रोशी यात्रा करने से
    
यात्रियो के पाप नष्ट होते है , विघ्न और कष्ट दूर होते है और अंत मे मोक्ष प्राप्त होता है ।
 
यात्रियो के पाप नष्ट होते है , विघ्न और कष्ट दूर होते है और अंत मे मोक्ष प्राप्त होता है ।
Line 1,946: Line 1,909:  
Ck5/32 गोला गली , चौक , वाराणसी ।
 
Ck5/32 गोला गली , चौक , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>पंचगंगेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
+
=== पंचगंगेश्वर महादेव  (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
काशी के पंचगंगा घाट पर तैलंग स्वामी मंदिर के दीवार से सटा हुआ यह शिव लिंग जमीन से 20 ft नीचे है , स्थानीय लोगो के हिसाब से कुछ लोग इसे स्वयम्भू शिव लिंग मानते है तोह कुछ लोग का मानना है कि पंचगंगा तीर्थ द्वारा स्थापित किया गया है , और कुछ का कहना है कि यहां दर्शन करने से पंचगंगा स्नान का फल मिलता है ।
 
काशी के पंचगंगा घाट पर तैलंग स्वामी मंदिर के दीवार से सटा हुआ यह शिव लिंग जमीन से 20 ft नीचे है , स्थानीय लोगो के हिसाब से कुछ लोग इसे स्वयम्भू शिव लिंग मानते है तोह कुछ लोग का मानना है कि पंचगंगा तीर्थ द्वारा स्थापित किया गया है , और कुछ का कहना है कि यहां दर्शन करने से पंचगंगा स्नान का फल मिलता है ।
    
काशी खण्ड पुराण के अनुसार यह लिंग अति शुभप्रद है , यहां दर्शन पूजन करने से जीवन मे शुभता आने लगती है ।
 
काशी खण्ड पुराण के अनुसार यह लिंग अति शुभप्रद है , यहां दर्शन पूजन करने से जीवन मे शुभता आने लगती है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव_आरती_दर्शन
+
बिंदु_माधव_आरती_दर्शन
   −
यैर्न पन्चनदे स्नातं कार्तिके पापहारिणी |
+
यैर्न पन्चनदे स्नातं कार्तिके पापहारिणी | तेःद्यापि गर्भेतिष्ठ्ति पुनस्ते गर्भवासिनः ||
   −
तेःद्यापि गर्भेतिष्ठ्ति पुनस्ते गर्भवासिनः ||
+
कीर्णाधुतपापे च तस्मिन् धर्मनदे शुभे | स्त्रवन्त्यौपापसंहन्त्रयो वाराणस्यां शुभ द्रवे ||
   −
कीर्णाधुतपापे तस्मिन् धर्मनदे शुभे |
+
किरणा धूतपापा पुण्यतोया सरस्वती | गङ्गा च यमुना चैव पन्चनद्दौत्र् प्रकीर्तिता || (काशी खण्ड)
   −
स्त्रवन्त्यौपापसंहन्त्रयो वाराणस्यां शुभ द्रवे ||
+
जिन लोगो ने कार्तिक मास में पापहारी पंचनद तीर्थ में स्नान नही किया है , वे आज भी गर्भ में है और आगे भी गर्भ में वास करेंगे ।  वाराणसी में शुभ द्रव गंगा जी मे पवित्र दो धर्मनद किरणा , धूतपापा गिरती है जो सभी पापों का संहार करती हैं । किरणा , धूत पापा , पवित्र जल वाली सरस्वती , गंगा , और यमुना ये पांच है ।
 
  −
किरणा धूतपापा च पुण्यतोया सरस्वती |
  −
 
  −
गङ्गा च यमुना चैव पन्चनद्दौत्र् प्रकीर्तिता ||
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
  −
 
  −
जिन लोगो ने कार्तिक मास में पापहारी पंचनद तीर्थ में स्नान नही किया है , वे आज भी गर्भ में है और आगे भी गर्भ में वास करेंगे ।  वाराणसी में शुभ द्रव गंगा जी मे पवित्र दो धर्मनद+किरणा , धूतपापा गिरती है जो सभी पापों का संहार करती हैं । किरणा , धूत पापा , पवित्र जल वाली सरस्वती , गंगा , और यमुना ये पांच है ।
      
पूरे कार्तिक मास बीतने तक गंगा जी या पंचगंगा तीर्थ में स्नान करके व्रत दान यज्ञ तथा तपस्या आदि साधना करनी चाहिए , क्योंकि जन्म से आज तक जो समय बीत गया है वह पुनः नही आएगा और तत्काल समय का लाभ जरूर लेना चाहिए ।
 
पूरे कार्तिक मास बीतने तक गंगा जी या पंचगंगा तीर्थ में स्नान करके व्रत दान यज्ञ तथा तपस्या आदि साधना करनी चाहिए , क्योंकि जन्म से आज तक जो समय बीत गया है वह पुनः नही आएगा और तत्काल समय का लाभ जरूर लेना चाहिए ।
Line 1,974: Line 1,928:  
पूरे कार्तिक मास में पंचगंगा घाट पर स्नान कर बिंदु माधव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और घाट पर आकाश दीप जलाने से पित्रो को मोक्ष मिलता है
 
पूरे कार्तिक मास में पंचगंगा घाट पर स्नान कर बिंदु माधव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और घाट पर आकाश दीप जलाने से पित्रो को मोक्ष मिलता है
   −
<nowiki>#</nowiki>कार्तिक_मास_स्नान 21/10/21 से 19/11/21 तक
+
कार्तिक मास स्नान
 
  −
<nowiki>#</nowiki>नित्य_बिंदु_माधव_दर्शन
  −
 
  −
पन्चनद  नाम  तीर्थं  त्रय्लोक्यविश्रुतं  |
  −
 
  −
तत्राप्लुतो न गृह्णीयाद्देहंना पाञ्चभौतिकम् ||
     −
आस्मिन् पन्चनदीनां च सम्भेदेघौघभेदिनि |
+
नित्य बिंदु माधव दर्शन
   −
स्नानमात्रात्प्रयात्येव भित्वा ब्रह्माण्डमण्डपं ||
+
पन्चनद  नाम  तीर्थं  त्रय्लोक्यविश्रुतं  | तत्राप्लुतो न गृह्णीयाद्देहंना पाञ्चभौतिकम् ||
   −
(काशीखण्ड)
+
आस्मिन् पन्चनदीनां च सम्भेदेघौघभेदिनि | स्नानमात्रात्प्रयात्येव भित्वा ब्रह्माण्डमण्डपं ||(काशीखण्ड)
    
पंचनद पंचगंगा तीर्थ तीनो लोको में विख्यात है , वहाँ स्नान करने से पंच भौतिक शरीर प्राप्त नही होता अर्थात पुनः जन्म नही लेना पड़ता । पंच गंगा में स्नान करते ही मनुष्य ब्रह्मांड का भेदन करके प्रयाण करता है और ब्रह्मलोक को जाता है ।
 
पंचनद पंचगंगा तीर्थ तीनो लोको में विख्यात है , वहाँ स्नान करने से पंच भौतिक शरीर प्राप्त नही होता अर्थात पुनः जन्म नही लेना पड़ता । पंच गंगा में स्नान करते ही मनुष्य ब्रह्मांड का भेदन करके प्रयाण करता है और ब्रह्मलोक को जाता है ।
   −
प्रयागमाघमासेतु सम्यक् स्नातस्य यत्फ़लम् |
+
प्रयागमाघमासेतु सम्यक् स्नातस्य यत्फ़लम् | तत्फ़लम  स्याद्दिनैकेन  काश्यां  पञ्चनदे  ||
 
  −
तत्फ़लम  स्याद्दिनैकेन  काश्यां  पञ्चनदे ||
  −
 
  −
स्नात्वा पन्चनदे तीर्थे  कृत्वा  च  पित्रतर्पणं |
  −
 
  −
बिन्दुमाधवंभ्यचर्य  न  म्योजन्मभाग्भवेत् ||
     −
(काशीखण्ड)
+
स्नात्वा पन्चनदे तीर्थे  कृत्वा  च  पित्रतर्पणं | बिन्दुमाधवंभ्यचर्य  न  म्योजन्मभाग्भवेत्  || (काशीखण्ड)
    
प्रयागराज में माघ में अच्छी तरह एक मास तक स्नान करके जो फल प्राप्त होता है वह फल केवल एक बार पंचगंगा में स्नान करने से प्राप्त होता है । पंचगंगा में स्नान करके देव , ऋषि , पितर तर्पण कर बिंदु माधव का दर्शन करने से पुनर्जन्म नही होता है ।
 
प्रयागराज में माघ में अच्छी तरह एक मास तक स्नान करके जो फल प्राप्त होता है वह फल केवल एक बार पंचगंगा में स्नान करने से प्राप्त होता है । पंचगंगा में स्नान करके देव , ऋषि , पितर तर्पण कर बिंदु माधव का दर्शन करने से पुनर्जन्म नही होता है ।
Line 2,004: Line 1,946:  
पंच गंगा घाट , बिंदु माधव मंदिर , वाराणसी
 
पंच गंगा घाट , बिंदु माधव मंदिर , वाराणसी
   −
<nowiki>#</nowiki>वाल्मीकेश्वर_महादेव  #काशीखण्डोक्त
+
=== वाल्मीकेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
अश्विन शुक्ल पक्ष (पूर्णिमा दर्शन यात्रा)
<nowiki>#</nowiki>अश्विन_शुक्ल_पक्ष_पूर्णिमा_दर्शन_यात्रा
      
महर्षि वाल्मीकि द्वारा स्थापित इस लिंग के दर्शन से अदभुद ज्ञान की प्राप्ति होती है और शास्त्रो में रुचि बढ़ती है ।
 
महर्षि वाल्मीकि द्वारा स्थापित इस लिंग के दर्शन से अदभुद ज्ञान की प्राप्ति होती है और शास्त्रो में रुचि बढ़ती है ।
Line 2,030: Line 1,971:  
4. त्रिलोचन लिंग के बगल में बड़ा लिंग , त्रिलोचन घाट a 2/ 80 , वाराणसी ।
 
4. त्रिलोचन लिंग के बगल में बड़ा लिंग , त्रिलोचन घाट a 2/ 80 , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>काशी_खण्डोक्त_लिंग
+
=== कंबलाश्वतरेश्वर महादेव  राहु रूपात्मक शिव लिंग एवं अश्वतरेश्वर महादेव      केतु रूपात्मक शिव लिंग (काशी खण्डोक्त) ===
 +
कंबलाश्वतरेश्वर जिनको बहुत से लोग राह्वीश्वर और अश्वतरेश्वर को केतविश्वर के रूप में भी जानते है । स्थानीय लोगों के मत अनुसार यह दोनों लिंग त्रेतायुग कालीन है , इनके दर्शन से राहु और केतु ग्रह की शांति और इनसे सम्बंधित अनुकूल फल मिलने लगते है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कंबलाश्वतरेश्वर महादेव    #राहु_रूपात्मक_शिव_लिंग
+
काशी में नवग्रह लिंग यात्रा में (यात्रा के जानकर लोग) राहु केतु के रुप में इन्ही का दर्शन कर के लाभ ग्रहण करते आये है।
 
  −
<nowiki>#</nowiki>अश्वतरेश्वर महादेव      #केतु_रूपात्मक_शिव_लिंग
      
पता - ck8/13 गोमठ काका राम की गली,गढ़वासी टोला, चौक, वाराणसी।
 
पता - ck8/13 गोमठ काका राम की गली,गढ़वासी टोला, चौक, वाराणसी।
   −
कंबलाश्वतरेश्वर जिनको बहुत से लोग राह्वीश्वर और अश्वतरेश्वर को केतविश्वर के रूप में भी जानते है । स्थानीय लोगों के मत अनुसार यह दोनों लिंग त्रेतायुग कालीन है , इनके दर्शन से राहु और केतु ग्रह की शांति और इनसे सम्बंधित अनुकूल फल मिलने लगते है ।
+
ताम्र वराह (काशी खण्डोक्त)
 
  −
काशी में नवग्रह लिंग यात्रा में (यात्रा के जानकर लोग) राहु केतु के रुप में इन्ही का दर्शन कर के लाभ ग्रहण करते आये है।
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>ताम्र_वराह  #काशी_खण्डोक्त
     −
<nowiki>#</nowiki>एकादशी_विष्णु_दर्शन
+
एकादशी विष्णु दर्शन
    
ताम्र वराह जो श्री हरि विष्णु जी के ही रूप है , इनका प्रादुर्भाव ताम्र द्वीप से काशी में हुआ है , (कोई विद्वान श्रीलंका को ताम्र द्वीप मानते है तोह कोई बर्मा को ताम्रद्वीप मानते है)
 
ताम्र वराह जो श्री हरि विष्णु जी के ही रूप है , इनका प्रादुर्भाव ताम्र द्वीप से काशी में हुआ है , (कोई विद्वान श्रीलंका को ताम्र द्वीप मानते है तोह कोई बर्मा को ताम्रद्वीप मानते है)
Line 2,052: Line 1,988:  
पता - ck 33 / 57 नील कंठ मोहल्ला , चौक वाराणसी ।
 
पता - ck 33 / 57 नील कंठ मोहल्ला , चौक वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>नीलकंठ_महादेव    #काशीखण्डोक्त
+
=== नीलकंठ  महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
नीलकंठ महादेव (कालंजर मध्यप्रदेश)
<nowiki>#</nowiki>नीलकंठ_महादेव      #कालंजर_मध्यप्रदेश
      
अश्विन मास विजय दशमी यात्रा  एवं एकादशी यात्रा
 
अश्विन मास विजय दशमी यात्रा  एवं एकादशी यात्रा
   −
15/10/21 से 16/10/21 तक
+
===== नीलकंठ पक्षी महिमा =====
 
  −
<nowiki>#</nowiki>नीलकंठ_पक्षी_महिमा
  −
 
   
मान्यता यह है कि भगवान श्रीराम ने सुबह नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने के बाद युद्धभूमि में रावण का वध किया था। इस कारण नीलकंठ को पूज्य पक्षी माना जाता है और आज भी लोग दशहरे के दिन सुबह-सुबह नीलकंठ पंछी के दर्शन कर यह त्योहार मनाते हैं। विजयादशमी के इस दिन पर क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं, तो ब्राह्मण शमी वृक्ष की पूजा करते हैं।
 
मान्यता यह है कि भगवान श्रीराम ने सुबह नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने के बाद युद्धभूमि में रावण का वध किया था। इस कारण नीलकंठ को पूज्य पक्षी माना जाता है और आज भी लोग दशहरे के दिन सुबह-सुबह नीलकंठ पंछी के दर्शन कर यह त्योहार मनाते हैं। विजयादशमी के इस दिन पर क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं, तो ब्राह्मण शमी वृक्ष की पूजा करते हैं।
   Line 2,068: Line 2,000:  
नीलकंठ से जुड़ी कई कहावतें भी हैं, जैसे-नीलकंठ का दर्शन होय। मनवांछित फल पाए सोय। या नीलकंठ तुम नीले रहियो, हम पर कृपा बनाए रहियो।
 
नीलकंठ से जुड़ी कई कहावतें भी हैं, जैसे-नीलकंठ का दर्शन होय। मनवांछित फल पाए सोय। या नीलकंठ तुम नीले रहियो, हम पर कृपा बनाए रहियो।
   −
<nowiki>#</nowiki>काशी_में_नीलकंठ
+
===== काशी में नीलकंठ =====
 
+
नीलकंठेश्वरं लिङ्गं काश्यां यै परि पूजितं। नीलकठास्त ऐव स्युस्त ऐव शशिभूषणा॥
नीलकंठेश्वरं लिङ्गं काश्यां यै परि पूजितं
  −
 
  −
नीलकठास्त ऐव स्युस्त ऐव शशिभूषणा
      
जो लोग काशी धाम में नीलकंठेश्वर लिंग की पूजा करते हैं , वे स्वयं नीलकंठ और चंद्रभूषण हो जाते है ।
 
जो लोग काशी धाम में नीलकंठेश्वर लिंग की पूजा करते हैं , वे स्वयं नीलकंठ और चंद्रभूषण हो जाते है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कालंजर_में_नीलकंठ
+
कालंजर में नीलकंठ
    
किले में नीलकंठ महादेव मंदिर है। जहां समुद्र मंथन से निकले विष के रहस्य छिपे हुए हैं। कहा जाता है कि महादेव ने विषपान के बाद यहीं तपस्या कर विष के प्रभाव को खत्म कर काल की गति को मात दी थी। पांच फीट ऊंचा शिवलिंग विश्व का अनूठा और इकलौता है जिसमें विष पसीना बनकर रिसता रहता है।
 
किले में नीलकंठ महादेव मंदिर है। जहां समुद्र मंथन से निकले विष के रहस्य छिपे हुए हैं। कहा जाता है कि महादेव ने विषपान के बाद यहीं तपस्या कर विष के प्रभाव को खत्म कर काल की गति को मात दी थी। पांच फीट ऊंचा शिवलिंग विश्व का अनूठा और इकलौता है जिसमें विष पसीना बनकर रिसता रहता है।
Line 2,090: Line 2,019:  
दूसरे नीलकंठ गौरीकेदारेश्वर मंदिर के पहले केदार घाट पर
 
दूसरे नीलकंठ गौरीकेदारेश्वर मंदिर के पहले केदार घाट पर
   −
<nowiki>#</nowiki>पृथ्वीश्वर_महादेव        #काशी_खण्डोक्त
+
=== पृथ्वीश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
विश्व के पहले राजा और राम जी के पूर्वज राजा पृथु द्वारा स्थापित लिंग ।
 
विश्व के पहले राजा और राम जी के पूर्वज राजा पृथु द्वारा स्थापित लिंग ।
   Line 2,108: Line 2,036:  
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/18A3CqG5nuckmsQR8</nowiki>
 
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/18A3CqG5nuckmsQR8</nowiki>
   −
<nowiki>#</nowiki>गोकर्णेश्वर_महादेव        #काशी_खण्डोक्त_लिंग
+
=== गोकर्णेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
काशी में गोकर्णेश्वर लिंग को शिव जी के कान का हिस्सा माना जाता है ।
 
काशी में गोकर्णेश्वर लिंग को शिव जी के कान का हिस्सा माना जाता है ।
    
काशी में गोकर्णेश्वर लिंग , कर्नाटक में गोकर्ण शहर और रावण से संबंधित महाबलेश्वर लिंग का प्रतिनिधित्व करता है । महाबलेश्वर लिंग को गोकर्णेश्वर नाम से भी जाना जाता है ।
 
काशी में गोकर्णेश्वर लिंग , कर्नाटक में गोकर्ण शहर और रावण से संबंधित महाबलेश्वर लिंग का प्रतिनिधित्व करता है । महाबलेश्वर लिंग को गोकर्णेश्वर नाम से भी जाना जाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>गोकर्ण_अर्थात_गाय का कान ,  यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि नदियों के संगम पर बसे इस गाँव का आकार भी गाय के कान जैसा ही प्रतीत होता है। यहाँ अनेक ख़ूबसूरत मंदिर हैं, जो लोगों की आस्था का केन्द्र हैं। यहाँ दो महत्त्वपूर्ण नदियों, 'गंगावली' और 'अघनाशिनी' का संगम भी देखने को मिलता है।
+
गोकर्ण_अर्थात_गाय का कान ,  यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि नदियों के संगम पर बसे इस गाँव का आकार भी गाय के कान जैसा ही प्रतीत होता है। यहाँ अनेक ख़ूबसूरत मंदिर हैं, जो लोगों की आस्था का केन्द्र हैं। यहाँ दो महत्त्वपूर्ण नदियों, 'गंगावली' और 'अघनाशिनी' का संगम भी देखने को मिलता है।
 
  −
<nowiki>#</nowiki>कथा
      +
===== कथा =====
 
लंका का राजा रावण जो भगवान शिव का परम भक्त था, उसने एक बार कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। इस तप से प्रसन्न होकर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। वरदान स्वरूप रावण ने शिव जी से अत्मलिंग की मांग रखी। इस पर भगवान शिव ने उसे वह शिवलिंग दे दिया, परंतु साथ ही एक निर्देश देते हुए कहा की यदि वह इस शिवलिंग को जहाँ भी जमीन मे रखेगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा और फिर वहाँ से इसे कोई डिगा नहीं सकेगा। अत: इसे जमीन पर मत रखना। रावण अत्मलिंग को हाथ में लेकर लंका के लिए निकल पड़ा। इस लिंग की प्राप्ति से वह और भी ज़्यादा ताकतवर एवं अमर हो सकता था। नारद मुनि को इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान गणेश से इस दुविधा को हल करने की मदद मांगी। इस पर भगवान गणेश को एक तरकीब सूझी, जिसके तहत उन्होंने सूर्य को ढँक कर संध्या का भ्रम निर्मित किया।
 
लंका का राजा रावण जो भगवान शिव का परम भक्त था, उसने एक बार कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। इस तप से प्रसन्न होकर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। वरदान स्वरूप रावण ने शिव जी से अत्मलिंग की मांग रखी। इस पर भगवान शिव ने उसे वह शिवलिंग दे दिया, परंतु साथ ही एक निर्देश देते हुए कहा की यदि वह इस शिवलिंग को जहाँ भी जमीन मे रखेगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा और फिर वहाँ से इसे कोई डिगा नहीं सकेगा। अत: इसे जमीन पर मत रखना। रावण अत्मलिंग को हाथ में लेकर लंका के लिए निकल पड़ा। इस लिंग की प्राप्ति से वह और भी ज़्यादा ताकतवर एवं अमर हो सकता था। नारद मुनि को इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान गणेश से इस दुविधा को हल करने की मदद मांगी। इस पर भगवान गणेश को एक तरकीब सूझी, जिसके तहत उन्होंने सूर्य को ढँक कर संध्या का भ्रम निर्मित किया।
   Line 2,128: Line 2,054:  
काशी में गोकर्णेश्वर का पता - d 50 /33 कोदई की चौकी  दैलु की गली
 
काशी में गोकर्णेश्वर का पता - d 50 /33 कोदई की चौकी  दैलु की गली
   −
<nowiki>#</nowiki>ज्ञानवापी_तीर्थ    #काशी_खण्डोक्त
+
=== ज्ञानवापी तीर्थ (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
सर्वेभ्यस्तितिर्थमुख्येभ्यः प्रत्यक्ष ज्ञानदा मुने | सर्वज्ञानमयी  चैषा सर्व लिङ्ग मयि  शुभा ||
~सर्वेभ्यस्तितिर्थमुख्येभ्यः प्रत्यक्ष ज्ञानदा मुने |
  −
 
  −
सर्वज्ञानमयी  चैषा सर्व लिङ्ग मयि  शुभा ||
     −
साक्षाछिवमयि मूर्ति ज्ञार्नकृज्ज्ञान वापिका |
+
साक्षाछिवमयि मूर्ति ज्ञार्नकृज्ज्ञान वापिका | (काशीखण्ड)
 
  −
(#काशीखण्ड्)
      
यह ज्ञानवापी सम्पूर्ण तीर्थो में मुख्य , प्रत्यक्ष ज्ञान देने वाली और सम्पूर्ण ज्ञानरूप पवित्र सम्पूर्ण लिंगमयी साक्षात शिव मूर्ति को धारण करने वाली , ज्ञान कराने वाली ज्ञानवापी नाम से प्रसिद्ध है ।
 
यह ज्ञानवापी सम्पूर्ण तीर्थो में मुख्य , प्रत्यक्ष ज्ञान देने वाली और सम्पूर्ण ज्ञानरूप पवित्र सम्पूर्ण लिंगमयी साक्षात शिव मूर्ति को धारण करने वाली , ज्ञान कराने वाली ज्ञानवापी नाम से प्रसिद्ध है ।
   −
~दुर्लभं तु कलो देवैस्तजलम हय्म्रितो पमम् |
+
दुर्लभं तु कलो देवैस्तजलम हय्म्रितो पमम् | तरणं  सर्वजन्तुनां  पानात्पापस्य नाशनं  || (शिवपुराण )
 
  −
तरणं  सर्वजन्तुनां  पानात्पापस्य नाशनं  ||
  −
 
  −
(#शिवपुराण )
      
सभी प्राणियो को मुक्ति देने वाला तथा अमृत के सदृश्य उस वापि का जल कलियुग मे देवताओ को भी दुर्लभ  है | उसके जल को पिने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट जाते है
 
सभी प्राणियो को मुक्ति देने वाला तथा अमृत के सदृश्य उस वापि का जल कलियुग मे देवताओ को भी दुर्लभ  है | उसके जल को पिने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट जाते है
   −
~देवस्य दक्षिणे भागे वापि तिष्ठति शोभना |
+
देवस्य दक्षिणे भागे वापि तिष्ठति शोभना | तस्यास्तथोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते || (लिङ्गपुराण)
 
  −
तस्यास्तथोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ||
  −
 
  −
(#लिङ्गपुराण)
      
अविमुक्तेश्वर लिङ्ग के दक्षिण दिशा मे एक सुन्देर वापि है, जिसके जल पिने से मनुष्य का पुनर्जन्म नही होता |
 
अविमुक्तेश्वर लिङ्ग के दक्षिण दिशा मे एक सुन्देर वापि है, जिसके जल पिने से मनुष्य का पुनर्जन्म नही होता |
   −
~यैस्तु तत्र जलं पीतं कृतास्ते हि मानवाः |
+
यैस्तु तत्र जलं पीतं कृतास्ते हि मानवाः | तेषां तु तारकं ज्ञानमुत्पत्स्यति न संशयः || (तिर्थचिन्तामणि)
 
  −
तेषां तु तारकं ज्ञानमुत्पत्स्यति न संशयः ||
  −
 
  −
(#तिर्थचिन्तामणि)
      
जो मनुष्य ज्ञान वापि का जल पिते है, उनके सभी मनोरथ सिद्ध् हो जाते है, इसमे लेश मात्र भी संशय नही है |
 
जो मनुष्य ज्ञान वापि का जल पिते है, उनके सभी मनोरथ सिद्ध् हो जाते है, इसमे लेश मात्र भी संशय नही है |
   −
~उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं |
+
उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं | क्षणेन  तदपा कृत्य ज्ञानवान जायते  नरः  || (स्कन्दपुराण)
 
  −
क्षणेन  तदपा कृत्य ज्ञानवान जायते  नरः  ||
  −
 
  −
(#स्कन्दपुराण)
      
कर्म करने के लिये विहित काल के लोप होने के कारण उत्पन्न पाप, ज्ञान वापि मे संध्या करने से एक क्षण मे हि दुर होजाते है और मनुष्य ज्ञान वान हो जाता है |
 
कर्म करने के लिये विहित काल के लोप होने के कारण उत्पन्न पाप, ज्ञान वापि मे संध्या करने से एक क्षण मे हि दुर होजाते है और मनुष्य ज्ञान वान हो जाता है |
   −
~ज्ञानोदतीर्थंसंस्पर्शादश्चमेधफलं  लभेत् |
+
ज्ञानोदतीर्थंसंस्पर्शादश्चमेधफलं  लभेत् | स्पर्शनाचमनाभ्यां च राजसुयाश्मेधयोः || (पद्मपुराण)
 
  −
स्पर्शनाचमनाभ्यां च राजसुयाश्मेधयोः ||
  −
 
  −
(#पद्मपुराण)
      
ज्ञानवापी तीर्थ के दर्शन से अश्वमेध यज्ञ फल की प्राप्ति होती है , और उसके स्पर्श और आचमन से राजसूय अश्वमेध फल की प्राप्ति होती है ।
 
ज्ञानवापी तीर्थ के दर्शन से अश्वमेध यज्ञ फल की प्राप्ति होती है , और उसके स्पर्श और आचमन से राजसूय अश्वमेध फल की प्राप्ति होती है ।
Line 2,182: Line 2,083:  
पता- काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी
 
पता- काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी
   −
<nowiki>#</nowiki>सिद्धेश्वर_महादेव    #काशीखण्डोक्त_लिंग
+
=== सिद्धेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
सिद्धकुण्डे नरः स्नात्वा दृष्ट्वा सिद्धेश्वरं महत् | सर्वासामेव सिद्धीनां पारं  मच्यछति मानवः ||(काशी खण्ड)
~सिद्धकुण्डे नरः स्नात्वा दृष्ट्वा सिद्धेश्वरं महत् |
  −
 
  −
सर्वासामेव सिद्धीनां पारं  मच्यछति मानवः ||
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
      
सिद्धकुण्ड(चन्द्रकूप) में स्नान करके तथा सिद्धेश्वर भगवान का दर्शन करके व्यक्ति सभी सिद्धियो में पारंगत होता है अर्थात सभी सिद्धियां पा जाता है ।
 
सिद्धकुण्ड(चन्द्रकूप) में स्नान करके तथा सिद्धेश्वर भगवान का दर्शन करके व्यक्ति सभी सिद्धियो में पारंगत होता है अर्थात सभी सिद्धियां पा जाता है ।
Line 2,198: Line 2,094:  
पता - ck7/124  सिद्धेश्वरी गली , सिद्धेश्वरी मंदिर , संकटा मंदिर मार्ग , चौक , वाराणसी ।
 
पता - ck7/124  सिद्धेश्वरी गली , सिद्धेश्वरी मंदिर , संकटा मंदिर मार्ग , चौक , वाराणसी ।
   −
नित्यं विश्वेश  विश्वेश विश्वनाथेति यो जपेत् |
+
नित्यं विश्वेश  विश्वेश विश्वनाथेति यो जपेत् | त्रिसन्ध्यं    तंसुकृतिनं    जपाम्य्ह्म  पिध्रुवं || (पद्म पुराण)
 
  −
त्रिसन्ध्यं    तंसुकृतिनं    जपाम्य्ह्म  पिध्रुवं ||
  −
 
  −
(#पद्म_पुराण)
      
जो नित्य विश्वेश्वर विश्वेश्वर , हे विश्वनाथ विश्वनाथ ऐसा जपता है , विश्वनाथ जी कहते है कि तीनों संध्यायो में मैं भी उसे जपता हु अर्थात मै उनको इस संसार से तार देता हूं ।
 
जो नित्य विश्वेश्वर विश्वेश्वर , हे विश्वनाथ विश्वनाथ ऐसा जपता है , विश्वनाथ जी कहते है कि तीनों संध्यायो में मैं भी उसे जपता हु अर्थात मै उनको इस संसार से तार देता हूं ।
Line 2,220: Line 2,112:  
शिव शिव ,  काशी काशी  ,  गंगा गंगा
 
शिव शिव ,  काशी काशी  ,  गंगा गंगा
   −
1 #महेश्वर   ( #काशी_खण्ड_स्वयम्भू_लिंग )
+
=== महेश्वर यात्रा ===
 +
 
 +
==== महेश्वर (काशी खण्ड स्वयम्भू लिंग ) ====
   −
2 #पिता_महेश्वर ( #काशी_खण्ड_स्वयम्भू_लिंग )
+
===== पिता महेश्वर (काशी खण्ड स्वयम्भू लिंग ) =====
   −
3 #पर_पिता_महेश्वर ( #काशी_खण्ड_स्वयम्भू_लिंग)
+
====== परपिता महेश्वर (काशी खण्ड स्वयम्भू लिंग) ======
   −
<nowiki>#</nowiki>महेश्वर_यात्रा
     −
1. #महेश्वर या #उमा_महेश्वर यह स्वयंभू लिंग मणिकर्णिका घाट की सीढ़ी पर मढ़ी के नीचे इनका स्थान है यह  काशी विश्वनाथ के आह्वान पर काशी आये थे । यह साक्षात ही शिव रूप है और इनके पूजा से शिव जी और माता पार्वती तुरन्त प्रसन्न हो जाते है। महेश्वर लिंग काशी के विशाल शिव लिंगो में आते है ।
+
महेश्वर या उमा महेश्वर यह स्वयंभू लिंग मणिकर्णिका घाट की सीढ़ी पर मढ़ी के नीचे इनका स्थान है यह  काशी विश्वनाथ के आह्वान पर काशी आये थे । यह साक्षात ही शिव रूप है और इनके पूजा से शिव जी और माता पार्वती तुरन्त प्रसन्न हो जाते है। महेश्वर लिंग काशी के विशाल शिव लिंगो में आते है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>Maheshwar_mahadev (kashi khand)
+
Maheshwar mahadev (kashi khand)
    
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/8U1zMrPy6Zmsh4WUA</nowiki>
 
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/8U1zMrPy6Zmsh4WUA</nowiki>
   −
2. #पिता_महेश्वर शिव जी का( पिता रूपात्मक  लिंग ) यह स्वयंभू लिंग भी मणिकर्णिका के (काशी खण्ड में लिखित )परिक्षेत्र में ही पड़ता । यह भी काशी विश्वनाथ के आह्वान पर गया क्षेत्र से काशी में आये यहां ऐसा मानना है कि यहां शास्त्रोक्त पूजा अर्चना करने से हमारे 20 पित्रो को मुक्ति मिल जाती है , प्राचीन समय मे यह मंदिर सिद्धेश्वरी देवी मंदिर (चन्द्रेश्वर + चन्द्रकूप ) से जुड़ा हुआ था(पर अब दोनों मंदिर के मार्ग अलग होगये है ) चन्द्रकूप में सोमवती अमावस्या के दिन यहां श्राद्ध तर्पण से पित्रो को मुक्ति मिलती है ।
+
पिता महेश्वर शिव जी का( पिता रूपात्मक  लिंग ) यह स्वयंभू लिंग भी मणिकर्णिका के (काशी खण्ड में लिखित )परिक्षेत्र में ही पड़ता । यह भी काशी विश्वनाथ के आह्वान पर गया क्षेत्र से काशी में आये यहां ऐसा मानना है कि यहां शास्त्रोक्त पूजा अर्चना करने से हमारे 20 पित्रो को मुक्ति मिल जाती है , प्राचीन समय मे यह मंदिर सिद्धेश्वरी देवी मंदिर (चन्द्रेश्वर + चन्द्रकूप ) से जुड़ा हुआ था(पर अब दोनों मंदिर के मार्ग अलग होगये है ) चन्द्रकूप में सोमवती अमावस्या के दिन यहां श्राद्ध तर्पण से पित्रो को मुक्ति मिलती है ।
    
पित्र पक्ष में भी यहां पूजा से पित्र प्रसन्न होते है और शिवरात्रि में भी विशेष पूजा होती है यहां । बहुत तेजोमय जागृत लिंग होने के कारण यहां 40 ft ऊपर से ही दर्शन होता है और सावन के सोमवार और शिवरात्रि को ही नीचे जा कर दर्शन मिलता है ।
 
पित्र पक्ष में भी यहां पूजा से पित्र प्रसन्न होते है और शिवरात्रि में भी विशेष पूजा होती है यहां । बहुत तेजोमय जागृत लिंग होने के कारण यहां 40 ft ऊपर से ही दर्शन होता है और सावन के सोमवार और शिवरात्रि को ही नीचे जा कर दर्शन मिलता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>pita_maheshwar (#kashikhandokt)
+
pita maheshwar (#kashikhandokt)
    
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/xnSgNsc3KYnnsdYX9</nowiki>
 
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/xnSgNsc3KYnnsdYX9</nowiki>
   −
3. #पर_पिता_महेश्वर शिव जी का परपिता ( दादा )रूपात्मक यह स्वयंभू लिंग मणिकर्णिका के परिक्षेत्र में पड़ता है और पिता महेश्वर मंदिर के गली में ठीक पहले इनका (लिंग) स्थान  शीतला माता के मंदिर परिसर में है ।
+
परपिता महेश्वर शिव जी का परपिता ( दादा )रूपात्मक यह स्वयंभू लिंग मणिकर्णिका के परिक्षेत्र में पड़ता है और पिता महेश्वर मंदिर के गली में ठीक पहले इनका (लिंग) स्थान  शीतला माता के मंदिर परिसर में है ।
    
यह भी काशी विश्वनाथ के आह्वान (बुलाने ) पर यह काशी आये ।
 
यह भी काशी विश्वनाथ के आह्वान (बुलाने ) पर यह काशी आये ।
   −
<nowiki>#</nowiki>Shital_mata_mandir
+
Shital_mata_mandir
    
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/BJAE8b4BpHDWXgoZA</nowiki>
 
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/BJAE8b4BpHDWXgoZA</nowiki>
   −
यह तीनों लिंग काशी के मणिकर्णिका क्षेत्र में है और क्रूर निर्दयी मुग़लो के आतंक से बचे हुवे है । काशी में ज्यादातर शिव लिंग और प्राचीन मंदिर  मुग़लो द्वारा  तोड़ दी गयी थी जिसमे ज्यादातर लिंगो और मंदिरों की पुनःस्थापना हुई है ।
+
यह तीनों लिंग काशी के मणिकर्णिका क्षेत्र में है और क्रूर निर्दयी मुग़लो के आतंक से बचे हुवे है। काशी में ज्यादातर शिव लिंग और प्राचीन मंदिर  मुग़लो द्वारा  तोड़ दी गयी थी जिसमे ज्यादातर लिंगो और मंदिरों की पुनःस्थापना हुई है ।
 
     −
<nowiki>#</nowiki>बद्रीनाथ_जी          #काशीखण्डोक्त
+
=== बद्रीनाथ जी (काशी खण्डोक्त) ===
 
  −
<nowiki>#</nowiki>पौष_शुक्ल_पूर्णिमा_दर्शन
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>काशी_खण्डोक्त_चारधाम_यात्रा
      +
==== काशी खण्डोक्त चारधाम यात्रा (पौष शुक्ल पूर्णिमा दर्शन) ====
 
काशी में बद्रीनारायण घाट पर ही बद्रीनारायण का मंदिर है , घाट के समक्ष गंगा में नर-नारायण तीर्थ की स्थिति मानी गई है। स्कन्दपुराण में ऐसी मान्यता है कि नर.नारायण तीर्थ में स्नान के पश्चात बद्रीनारायण के दर्शन-पूजन से उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ जी के दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता है।
 
काशी में बद्रीनारायण घाट पर ही बद्रीनारायण का मंदिर है , घाट के समक्ष गंगा में नर-नारायण तीर्थ की स्थिति मानी गई है। स्कन्दपुराण में ऐसी मान्यता है कि नर.नारायण तीर्थ में स्नान के पश्चात बद्रीनारायण के दर्शन-पूजन से उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ जी के दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता है।
   Line 2,265: Line 2,154:  
काशी में चार धाम भी है , जहां दर्शन करने से उस धाम का पूर्ण फल प्राप्त होता है ।
 
काशी में चार धाम भी है , जहां दर्शन करने से उस धाम का पूर्ण फल प्राप्त होता है ।
   −
1. #बद्रीनारायण  -- 1/72 बद्रीनारायण घाट
+
बद्रीनारायण  -- 1/72 बद्रीनारायण घाट
   −
2. #जगन्नाथ  -- रामघाट b1/151
+
जगन्नाथ  -- रामघाट b1/151
   −
3. #सेतुबंधरामेश्वरम -- मान मन्दिर घाट d 16/2
+
सेतुबंधरामेश्वरम -- मान मन्दिर घाट d 16/2
   −
4. #द्वारकानाथ  -- संकुल धारा b 22/ 195
+
द्वारकानाथ  -- संकुल धारा b 22/ 195
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_गौरी_केदारेश्वर    #काशी_खण्डोक्त
+
=== श्री गौरी केदारेश्वर (काशी खण्डोक्त) ===
 +
काशी के केदारखण्ड के प्रधान लिंग
   −
<nowiki>#</nowiki>काशी के केदारखण्ड के प्रधान लिंग
+
मकर संक्रांति प्राकट्य दिवस
 
  −
<nowiki>#</nowiki>मकर_संक्रांति_प्राकट्य_दिवस
  −
 
  −
गौरी_केदारेश्वर_महात्म्य :-
      +
==== गौरी केदारेश्वर महात्म्य : ====
 
पार्वती जी के केदारेश्वर लिंग की महात्म्य की कथा पूछने पर शिव जी कहते है कि ---
 
पार्वती जी के केदारेश्वर लिंग की महात्म्य की कथा पूछने पर शिव जी कहते है कि ---
   Line 2,293: Line 2,180:  
हरपाप कुंड (गौरी कुंड) पर श्राध्द करने से सात पितरो का उद्धार हो शिव लोक में निवास पाता है ।
 
हरपाप कुंड (गौरी कुंड) पर श्राध्द करने से सात पितरो का उद्धार हो शिव लोक में निवास पाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>प्राचीन_कथा  जिसको शिव जी ने माता पार्वती की सुनाया था :-
+
प्राचीन_कथा  जिसको शिव जी ने माता पार्वती की सुनाया था :-
    
एक ब्राह्मण का लड़का पिता के यज्ञोपवीत कर देने पर ब्रह्मचर्य का व्रत धारण कर उज्जैनी से काशी में आया , वह काशी आकर बहुत प्रसन्न हुआ और अपने आचार्य से उसने परमोत्तम पाशुपत व्रत को ग्रहण किया ।
 
एक ब्राह्मण का लड़का पिता के यज्ञोपवीत कर देने पर ब्रह्मचर्य का व्रत धारण कर उज्जैनी से काशी में आया , वह काशी आकर बहुत प्रसन्न हुआ और अपने आचार्य से उसने परमोत्तम पाशुपत व्रत को ग्रहण किया ।
Line 2,349: Line 2,236:  
पता- काशी में केदार घाट पर गौरी केदारेश्वर नाम से प्रसिद्ध मंदिर ।
 
पता- काशी में केदार घाट पर गौरी केदारेश्वर नाम से प्रसिद्ध मंदिर ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कामेश्वर_महादेव        #काशी_खण्डोक्त
+
=== कामेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
(शनि प्रदोष यात्रा )
<nowiki>#</nowiki>शनि_प्रदोष_यात्रा 15- 01-22
     −
~ एक समय महातपस्वी दुर्वासा ऋषि जब शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी आये और यहां की सुंदरता देख कहने लगे कि यह काशी पूरी तोह पशु पक्षियों के भी आनंद को बढ़ाने वाली है और यह विश्वनाथपूरी मेरे चित्त को जिस प्रकार आकृष्ट कर रही है वैसा आकर्षण न पूरे भूमण्डल , आकाश , पाताल और ना ही स्वर्ग में है । इस प्रकार काशी के प्रशंसा कर के दुर्वासा ऋषि शिव लिंग स्थापना और शिव पूजा के लिए कुंड तैयार करके शांत चित्त से विशेष कठोर तपस्या में लीन होगये , परन्तु जब तपस्या का कोई फल नही दिखा तोह वह क्रोधित होकर कहने लगे कि मुझे और मेरे कठोर तप को धिक्कार और सभी को अपने माया जाल से ठगने वाली काशी को धिक्कार है ।
+
एक समय महातपस्वी दुर्वासा ऋषि जब शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी आये और यहां की सुंदरता देख कहने लगे कि यह काशी पूरी तोह पशु पक्षियों के भी आनंद को बढ़ाने वाली है और यह विश्वनाथपूरी मेरे चित्त को जिस प्रकार आकृष्ट कर रही है वैसा आकर्षण न पूरे भूमण्डल , आकाश , पाताल और ना ही स्वर्ग में है । इस प्रकार काशी के प्रशंसा कर के दुर्वासा ऋषि शिव लिंग स्थापना और शिव पूजा के लिए कुंड तैयार करके शांत चित्त से विशेष कठोर तपस्या में लीन होगये , परन्तु जब तपस्या का कोई फल नही दिखा तोह वह क्रोधित होकर कहने लगे कि मुझे और मेरे कठोर तप को धिक्कार और सभी को अपने माया जाल से ठगने वाली काशी को धिक्कार है ।
    
ऐसा कहते हुवे दुर्वासा ऋषि काशी में किसी को भी मुक्ति न मिले ऐसा श्राप देने को उठ खड़े हुवे तभी एक प्रहसीतेश्वर नामक शिवलिंग दुर्वासा ऋषि के श्राप से काशी को बचाने के लिए प्रकट हुआ और शिव जी ने दुर्वासा ऋषि के तप से प्रसन्न हो कर वर मांगने को कहा - - इतना सुन कर श्राप देने को तैयार मुद्रा में खड़े दुर्वासा ऋषि लज्जित हो गए और कहा कि जो भी व्यक्ति काशी के नाम को जपता है वही बड़ा तपस्वी है और सभी यज्ञों का फल उसी को मिलता है और गर्भवास से भी मुक्ति मिलती है ।
 
ऐसा कहते हुवे दुर्वासा ऋषि काशी में किसी को भी मुक्ति न मिले ऐसा श्राप देने को उठ खड़े हुवे तभी एक प्रहसीतेश्वर नामक शिवलिंग दुर्वासा ऋषि के श्राप से काशी को बचाने के लिए प्रकट हुआ और शिव जी ने दुर्वासा ऋषि के तप से प्रसन्न हो कर वर मांगने को कहा - - इतना सुन कर श्राप देने को तैयार मुद्रा में खड़े दुर्वासा ऋषि लज्जित हो गए और कहा कि जो भी व्यक्ति काशी के नाम को जपता है वही बड़ा तपस्वी है और सभी यज्ञों का फल उसी को मिलता है और गर्भवास से भी मुक्ति मिलती है ।
Line 2,365: Line 2,251:  
पता -मछोदरी मार्ग पर प्रसिद्ध मंदिर
 
पता -मछोदरी मार्ग पर प्रसिद्ध मंदिर
   −
<nowiki>#</nowiki>पवनेश्वर_महादेव        #काशीखण्ड
+
=== पवनेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
(वायु देव द्वारा स्थापित)
<nowiki>#</nowiki>वायु_देव_द्वारा_स्थापित
  −
 
  −
पुरा कश्यपदायादः  पुतात्मेति च विश्रुतः।
  −
 
  −
धुर्जटे राजधान्यां स चचार विपुलं तपः।।
  −
 
  −
वाराणस्यां माहाभागो वर्षाणांयुतं  शतं ।
     −
स्थापयित्वा महालिङ्गं पावनं पवनेश्वरम् ।।
+
पुरा कश्यपदायादः  पुतात्मेति च विश्रुतः। धुर्जटे राजधान्यां स चचार विपुलं तपः।।
   −
यस्य दर्शनमात्रेन पूतात्मा जायते नरः
+
वाराणस्यां माहाभागो वर्षाणांयुतं  शतं स्थापयित्वा महालिङ्गं पावनं पवनेश्वरम् ।।
   −
पापकञ्चुकमूत्सृज्य स वसेत् पावने पुरे ।।
+
यस्य दर्शनमात्रेन पूतात्मा जायते नरः । पापकञ्चुकमूत्सृज्य स वसेत् पावने पुरे ।। (काशीखण्ड)
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
पूर्वकाल में कश्यप ऋषि के पुत्र जो कि पूतात्मा नाम से प्रसिद्द थे , उन महाभाग ने शिव की राजधानी वाराणसी पूरी में अत्यंत पावन लिंग स्थापित कर के दस लाख वर्ष कर कठिन तपस्या किया जिससे उस पवन लिंग का नाम पवनेश्वर हुआ ।
 
पूर्वकाल में कश्यप ऋषि के पुत्र जो कि पूतात्मा नाम से प्रसिद्द थे , उन महाभाग ने शिव की राजधानी वाराणसी पूरी में अत्यंत पावन लिंग स्थापित कर के दस लाख वर्ष कर कठिन तपस्या किया जिससे उस पवन लिंग का नाम पवनेश्वर हुआ ।
Line 2,393: Line 2,270:  
और कहा कि
 
और कहा कि
   −
तव लिङ्गमिदं दिव्यं ये द्रक्ष्यन्तिह मानवाः।
+
तव लिङ्गमिदं दिव्यं ये द्रक्ष्यन्तिह मानवाः।सर्व भोगसमृधास्ते त्वल्लोक सुखभागिनः॥(काशीखण्ड)
 
  −
सर्व भोगसमृधास्ते त्वल्लोक सुखभागिनः ।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
जो लोग तुम्हारे द्वारा स्थापित इस दिव्य लिंग का दर्शन करेंगे , वे सब यहां समस्त भोगों से परिपूर्ण होकर अंत मे तुम्हारे लोक के सुखभागी होंगे ।
 
जो लोग तुम्हारे द्वारा स्थापित इस दिव्य लिंग का दर्शन करेंगे , वे सब यहां समस्त भोगों से परिपूर्ण होकर अंत मे तुम्हारे लोक के सुखभागी होंगे ।
   −
और साथ ही
+
और साथ ही जो मनुष्य , जन्मभर में एक बार भी पवनेश्वर लिंग का सुगंधित जल से स्नान एवं सुगंधित चंदन पुष्पादि के द्वारा यथोक्त विधि से पूजन कर लेता है , वह मेरे लोक में ससम्मान सहित निवास करता है । ज्येष्ठेश्वर के पश्चिम भाग में और वायुकुण्ड के उत्तर दिशा में पवनेश्वर लिंग की आराधना करने से तत्काल ही पवित्र होजाता है । इतना कह कर शिव जी इसी पवनेश्वर लिंग में समाहित होगये ।
 
  −
जो मनुष्य , जन्मभर में एक बार भी पवनेश्वर लिंग का सुगंधित जल से स्नान एवं सुगंधित चंदन पुष्पादि के द्वारा यथोक्त विधि से पूजन कर लेता है , वह मेरे लोक में ससम्मान सहित निवास करता है । ज्येष्ठेश्वर के पश्चिम भाग में और वायुकुण्ड के उत्तर दिशा में पवनेश्वर लिंग की आराधना करने से तत्काल ही पवित्र होजाता है । इतना कह कर शिव जी इसी पवनेश्वर लिंग में समाहित होगये ।
      
पहले यहां पवन देव (वायुदेव) द्वारा बनाया गया वायु कुंड भी था जो अब लुप्त हो चुका है । यह लिंग अत्यंत ही प्राचीन और जमीन के 20 " फ़ीट नीचे है ।
 
पहले यहां पवन देव (वायुदेव) द्वारा बनाया गया वायु कुंड भी था जो अब लुप्त हो चुका है । यह लिंग अत्यंत ही प्राचीन और जमीन के 20 " फ़ीट नीचे है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>वायव्य दिशा : उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान है। इस दिशा के देव वायुदेव हैं और इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है।
+
वायव्य दिशा : उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान है। इस दिशा के देव वायुदेव हैं और इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है।
    
पता -  भूत भैरव गली , करनघन्टा , वाराणासी ।
 
पता -  भूत भैरव गली , करनघन्टा , वाराणासी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कुबेरेश्वर_महादेव  या #धनदेश्वर_महादेव
+
=== कुबेरेश्वर महादेव या धनदेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
(पौष मास की यात्रा)
<nowiki>#</nowiki>काशीखण्डोक्त
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>पौष_मास_की_यात्रा  20/12/21 से  17/1/22 तक
      
प्राचीन समय की बात है जब ब्रह्मा के मानस पुत्र विश्रवा उत्पन्न हुवे और विश्रवा के पुत्र वैश्रवण (कुबेर)हुवे जिनका निवास स्थान अलकापुरी था ।
 
प्राचीन समय की बात है जब ब्रह्मा के मानस पुत्र विश्रवा उत्पन्न हुवे और विश्रवा के पुत्र वैश्रवण (कुबेर)हुवे जिनका निवास स्थान अलकापुरी था ।
Line 2,427: Line 2,295:  
वही जब माता पार्वती पर कुबेर की बायीं नजर पड़ी तोह माता का सौभाग्य देख कर अचंभित हो गए , जिससे उनकी बायीं आँख फुट गयी और माता ने उनको एकलिंग नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया और कुबेर नाम की उपाधि भी दी और कहा कि :-
 
वही जब माता पार्वती पर कुबेर की बायीं नजर पड़ी तोह माता का सौभाग्य देख कर अचंभित हो गए , जिससे उनकी बायीं आँख फुट गयी और माता ने उनको एकलिंग नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया और कुबेर नाम की उपाधि भी दी और कहा कि :-
   −
त्वयेदं स्थापितं लिङ्गं तव नाम्ना भविष्यति ।
+
त्वयेदं स्थापितं लिङ्गं तव नाम्ना भविष्यति । सिद्धिदं  साधकानां  च सर्व पापहरं परम्  ।।
 
  −
सिद्धिदं  साधकानां  च सर्व पापहरं परम् ।।
  −
 
  −
न धनेन वियुज्येत न सख्या न च बान्धवैः ।
  −
 
  −
कुबेरेश्वरलिङ्गस्य कुर्याद्यो    दर्शनं  नरः ।।
     −
विश्वेशाद्दक्षीणे भागे कुबेरेशं    समर्चयेत
+
न धनेन वियुज्येत न सख्या न च बान्धवैः । कुबेरेश्वरलिङ्गस्य कुर्याद्यो    दर्शनं नरः  ।।
   −
नरो लिप्येत नो पापैर्न दरिद्र्येन नोःसुखैः ।।
+
विश्वेशाद्दक्षीणे भागे कुबेरेशं    समर्चयेत  । नरो लिप्येत नो पापैर्न दरिद्र्येन नोःसुखैः ।। (काशीखण्ड)
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
तुम्हारा स्थापित यह लिंग शिव साधको के लिए परम सिद्धिप्रद और पापहर एवं तुम्हारे नाम से विदित होगा ।
 
तुम्हारा स्थापित यह लिंग शिव साधको के लिए परम सिद्धिप्रद और पापहर एवं तुम्हारे नाम से विदित होगा ।
Line 2,453: Line 2,313:  
यह कुबरेश्वर महादेव का लिंग अन्नपूर्णा मन्दिर परिषर में है , और एक दूसरा कुबरेश्वर का बड़ा लिंग जो विश्वनाथ मंदिर के पास जमीन में था उसको विश्वनाथ कॉरिडोर के तहत तोड़ दिया गया है ।
 
यह कुबरेश्वर महादेव का लिंग अन्नपूर्णा मन्दिर परिषर में है , और एक दूसरा कुबरेश्वर का बड़ा लिंग जो विश्वनाथ मंदिर के पास जमीन में था उसको विश्वनाथ कॉरिडोर के तहत तोड़ दिया गया है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>वृषेश्वर_महादेव   #काशी_खण्डोक्त
+
=== वृषेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 +
आगादिह महादेवो वृषेशो वृषभध्वजात्  । बाणेश्वरस्य  लिङ्गष्य   समीपे वृषदः सदा ।। (काशीखण्ड)
   −
आगादिह महादेवो वृषेशो वृषभध्वजात्  ।
+
धर्मप्रद लिंग वृषेश्वर , जो कि वृषभध्वज तीर्थ से यहाँ आकर बाणेश्वर महादेव के समीप में सदैव शोभायान रहते है ।
 
  −
बाणेश्वरस्य  लिङ्गष्य  समीपे वृषदः सदा ।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड्)
  −
 
  −
~धर्मप्रद लिंग वृषेश्वर , जो कि वृषभध्वज तीर्थ से यहाँ आकर बाणेश्वर महादेव के समीप में सदैव शोभायान रहते है ।
      
काशी में वृषेश्वर लिंग का स्थापना महादेव के परम भक्त नंदी द्वारा किया गया है।
 
काशी में वृषेश्वर लिंग का स्थापना महादेव के परम भक्त नंदी द्वारा किया गया है।
Line 2,483: Line 2,338:  
इस मंदिर से थोड़ा पहले बाणेश्वर महादेव का भी मन्दिर है।
 
इस मंदिर से थोड़ा पहले बाणेश्वर महादेव का भी मन्दिर है।
   −
<nowiki>#</nowiki>अत्युग्रह_नरसिंह      #काशीखण्डोक्त
+
=== अत्युग्रह नरसिंह (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
अतिउग्र नरसिंह यह नरसिंह भगवान का रूप काशी में बहुत ही उग्र रूप से निवास करते है । काशी और काशीवासियो की सदैव रक्षा करते रहते है ।
 
अतिउग्र नरसिंह यह नरसिंह भगवान का रूप काशी में बहुत ही उग्र रूप से निवास करते है । काशी और काशीवासियो की सदैव रक्षा करते रहते है ।
    
इस तीर्थ के बारे में भगवान माधव विष्णु ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा था कि :--
 
इस तीर्थ के बारे में भगवान माधव विष्णु ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा था कि :--
   −
अतिउग्र नरसिंहोःहं  कल्शेश्वर पश्चिमे।
+
अतिउग्र नरसिंहोःहं  कल्शेश्वर पश्चिमे। अत्युग्रमपि पापोघं  हरामि श्रध्यार्चितः।।(काशीखण्ड)
 
  −
अत्युग्रमपि पापोघं  हरामि श्रध्यार्चितः।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
कल्शेश्वर शिव लिङ्ग के पश्चिम भाग में मैं अत्युग्रह नरसिंह के नाम से राहत हूं । श्रद्धा से उनका पूजन करने पर बड़ी उग्र पापराशि (जो अक्षय कर्मो के बाद भी इंसान को दुख देती है और पीछा नही छोड़ती) को भी दूर कर देता हूं ।
 
कल्शेश्वर शिव लिङ्ग के पश्चिम भाग में मैं अत्युग्रह नरसिंह के नाम से राहत हूं । श्रद्धा से उनका पूजन करने पर बड़ी उग्र पापराशि (जो अक्षय कर्मो के बाद भी इंसान को दुख देती है और पीछा नही छोड़ती) को भी दूर कर देता हूं ।
    
पता -ck 8/21 गौमठ (संकठा जी मन्दिर मार्ग के पास) , चौक , वाराणसी
 
पता -ck 8/21 गौमठ (संकठा जी मन्दिर मार्ग के पास) , चौक , वाराणसी
731

edits

Navigation menu