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सुधार जारि
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=== कपर्दीश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
=== कपर्दीश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
पिशाच मोचन विमल कुंड विमलोदक महातीर्थ
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पिशाच मोचन विमल कुंड विमलोदक महातीर्थ (अगहन शुक्ल चतुर्दशी यात्रा)
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अगहन शुक्ल चतुर्दशी यात्रा
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लोटा भंटा मेला( मार्गशीर्ष)
 
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लोटा भंटा मेला
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मार्गशीर्ष
      
ब्रह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य् पूजनात  | पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यतेः || (पद्मपुराण)
 
ब्रह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य् पूजनात  | पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यतेः || (पद्मपुराण)
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महादेव का बड़ा प्यारा गणों में प्रधान एक गण कपर्दी नामक है , जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी , साथ ही उन्होंने विमलोदक कुंड भी खोद दिया था । इस कुंड के जल का स्पर्श करने से मनुष्य की मलिनता छूट जाती है ।
 
महादेव का बड़ा प्यारा गणों में प्रधान एक गण कपर्दी नामक है , जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी , साथ ही उन्होंने विमलोदक कुंड भी खोद दिया था । इस कुंड के जल का स्पर्श करने से मनुष्य की मलिनता छूट जाती है ।
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पिशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिवयोगिनम् | कोटि भोज्यफ़लम् सम्यगेकैकपरिसंख्यया || (काशीखण्ड्)
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पिशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिवयोगिनम् | कोटि भोज्यफ़लम् सम्यगेकैकपरिसंख्यया || (काशीखण्ड)
    
इस पिशाच मोचन तीर्थ पर एक एक शिवयोगी के भोजन कराने से करोड़ करोड़ सन्यासी खिलाने के फल पूर्ण रीति से प्राप्त होता है ।
 
इस पिशाच मोचन तीर्थ पर एक एक शिवयोगी के भोजन कराने से करोड़ करोड़ सन्यासी खिलाने के फल पूर्ण रीति से प्राप्त होता है ।
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पिशाचमोचन तीर्थ पै , मेला लगतालाम ।
 
पिशाचमोचन तीर्थ पै , मेला लगतालाम ।
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<nowiki>#</nowiki>हस्तिपालेश्वर_महादेव        #काशी_खण्डोक्त
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=== हस्तिपालेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
काशी के अति प्रसिद्ध मृत्युंजय(दारानगर) मन्दिर परिसर में  हस्तिपालेश्वर महादेव का लिंग स्थापित है ।
 
काशी के अति प्रसिद्ध मृत्युंजय(दारानगर) मन्दिर परिसर में  हस्तिपालेश्वर महादेव का लिंग स्थापित है ।
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हस्तिपालेश्वरं लिङ्गं तस्य दक्षिणो मुने |
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हस्तिपालेश्वरं लिङ्गं तस्य दक्षिणो मुने | तस्य पुजनतो याति पुण्यं वै हस्तिदानजं (काशी खण्ड)
 
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तस्य पुजनतो याति पुण्यं वै हस्तिदानजं |
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(#काशी_खण्ड)
      
मृत्युञ्जय मन्दिर के दक्षिण में हस्तिपालेश्वर लिंग है । इनके पूजन से हस्तिदान (हाथी दान)का पुण्यलाभ होता है ।
 
मृत्युञ्जय मन्दिर के दक्षिण में हस्तिपालेश्वर लिंग है । इनके पूजन से हस्तिदान (हाथी दान)का पुण्यलाभ होता है ।
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सोना , घोड़ा , तिल , हाथी , दासी , रथ , भूमि , घर , कन्या , गाय ।
 
सोना , घोड़ा , तिल , हाथी , दासी , रथ , भूमि , घर , कन्या , गाय ।
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<nowiki>#</nowiki>भीष्म_केशव    #काशी_खण्डोक्त
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=== भीष्म केशव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
काशी में दारानगर में स्थित प्रसिद्ध मृत्युंजय महादेव मंदिर परिसर में स्थित यह श्री हरि विष्णु जी  अपने भक्तों के सभी मनोकामनाओं के पूर्ति के साथ उनके सभी अड़चनों और गंभीर विषयो को तत्काल में दूर कर देते है ।
 
काशी में दारानगर में स्थित प्रसिद्ध मृत्युंजय महादेव मंदिर परिसर में स्थित यह श्री हरि विष्णु जी  अपने भक्तों के सभी मनोकामनाओं के पूर्ति के साथ उनके सभी अड़चनों और गंभीर विषयो को तत्काल में दूर कर देते है ।
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<nowiki>#</nowiki>विष्णु_उवाचः
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विष्णु उवाचः
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भीष्मकेशवानामाःहं      वृद्धकालेशपश्चिमे |
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भीष्मकेशवानामाःहं      वृद्धकालेशपश्चिमे । उपसर्गान  हरे भीष्मान सेवितो  भक्तियुक्तिं॥ (काशी खण्ड)
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उपसर्गान  हरे भीष्मान सेवितो  भक्तियुक्तिं ||
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श्री विष्णु ने कहा
 
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(#काशीखण्ड्)
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<nowiki>#</nowiki>श्री_विष्णु_ने_कहा
      
वृद्धकाल के पश्चिम में मैं भीष्म केशव नाम से रहता हूं और भक्तिपूर्वक सेवा करने वाले का सभी उपद्रव(विपदा) को क्षण में दूर करदेता हूं ।
 
वृद्धकाल के पश्चिम में मैं भीष्म केशव नाम से रहता हूं और भक्तिपूर्वक सेवा करने वाले का सभी उपद्रव(विपदा) को क्षण में दूर करदेता हूं ।
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इस श्री विग्रह में विष्णु जी चक्र , गदा , शंख , पद्म भी लिए हुवे है , जिससे वह हमेशा अपने भक्तों का भला करते रहते है ।
 
इस श्री विग्रह में विष्णु जी चक्र , गदा , शंख , पद्म भी लिए हुवे है , जिससे वह हमेशा अपने भक्तों का भला करते रहते है ।
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<nowiki>#</nowiki>सुदर्शन_चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। यह दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सर्वहित शुभ मार्ग पर चलते हुए दृढ़ संकल्पित जीव अपने लक्ष्य को भेदने में सदा विजयी होता है। चक्र शिक्षा देता है कि जीव को दूरदर्शी व दृढ़ संकल्प वाला होना चाहिए।
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सुदर्शन_चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। यह दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सर्वहित शुभ मार्ग पर चलते हुए दृढ़ संकल्पित जीव अपने लक्ष्य को भेदने में सदा विजयी होता है। चक्र शिक्षा देता है कि जीव को दूरदर्शी व दृढ़ संकल्प वाला होना चाहिए।
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<nowiki>#</nowiki>गदा न्याय प्रणाली को दर्शाता है
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'''गदा न्याय प्रणाली को दर्शाता है'''
    
गदा ईश्वर की अनंत शक्ति, बल का प्रतीक है। कर्मों के अनुसार ईश्वर जीव को दंड प्रदान करते हैं। यह ईश्वरीय न्याय प्रणाली को दर्शाता है।
 
गदा ईश्वर की अनंत शक्ति, बल का प्रतीक है। कर्मों के अनुसार ईश्वर जीव को दंड प्रदान करते हैं। यह ईश्वरीय न्याय प्रणाली को दर्शाता है।
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<nowiki>#</nowiki>शंख ध्वनि का प्रतीक है
+
'''शंख ध्वनि का प्रतीक है'''
    
भगवान विष्णु द्वारा धारण किया गया शंख नाद (ध्वनि) का प्रतीक है। अध्यात्म में शंख ध्वनि ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह ध्वनि शिक्षा देती है कि ऐसा ही नाद हमारी देह में स्थित है। वह है आत्म नाद, जिसे आत्मा की आवाज कहते हैं। जो हर अच्छे-बुरे कर्म से पहले हमारे भीतर गूंजायमान होता है।
 
भगवान विष्णु द्वारा धारण किया गया शंख नाद (ध्वनि) का प्रतीक है। अध्यात्म में शंख ध्वनि ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह ध्वनि शिक्षा देती है कि ऐसा ही नाद हमारी देह में स्थित है। वह है आत्म नाद, जिसे आत्मा की आवाज कहते हैं। जो हर अच्छे-बुरे कर्म से पहले हमारे भीतर गूंजायमान होता है।
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<nowiki>#</nowiki>पद्म  मोह से मुक्त होने का शिक्षा देता है
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'''पद्म  मोह से मुक्त होने का शिक्षा देता है'''
    
पद्म (कमल पुष्प) सत्यता, एकाग्रता और अनासक्ति का प्रतीक है। जिस प्रकार कमल पुष्प कीचड़ में रहकर भी स्वयं को निर्लेप रखता है, ठीक वैसे ही जीव को संसार रूपी माया रूप कीचड़ में रहते हुए स्वयं को निर्लेप रखना चाहिए अर्थात संसार में रहें, लेकिन संसार को अपने भीतर न आने दें। कमल मोह से मुक्त होने व ईश्वरीय चेतना से जुड़ने की शिक्षा देता है। कीचड़ कमल के अस्तित्व की मात्र जरूरत है, जिस तरह संसारिक पदार्थ मनुष्य की जरूरत मात्र हैं।
 
पद्म (कमल पुष्प) सत्यता, एकाग्रता और अनासक्ति का प्रतीक है। जिस प्रकार कमल पुष्प कीचड़ में रहकर भी स्वयं को निर्लेप रखता है, ठीक वैसे ही जीव को संसार रूपी माया रूप कीचड़ में रहते हुए स्वयं को निर्लेप रखना चाहिए अर्थात संसार में रहें, लेकिन संसार को अपने भीतर न आने दें। कमल मोह से मुक्त होने व ईश्वरीय चेतना से जुड़ने की शिक्षा देता है। कीचड़ कमल के अस्तित्व की मात्र जरूरत है, जिस तरह संसारिक पदार्थ मनुष्य की जरूरत मात्र हैं।
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<nowiki>#</nowiki>स्वामी_कार्तिकेय
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=== स्वामी कार्तिकेय (काशी खण्डोक्त) ===
 
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षडानन षष्टि (स्कन्द षष्टि)
<nowiki>#</nowiki>षडानन_षष्टि  #स्कन्द_षष्टि
      
मार्गशीर्ष के षष्टि के दिन बामन पुराण में लिखा है कि आज के दिन कार्तिकेय जी के दर्शन पूजन करने से छः प्रकार के दोष  नष्ट हो जाते है और मोक्ष प्राप्त होता है ।
 
मार्गशीर्ष के षष्टि के दिन बामन पुराण में लिखा है कि आज के दिन कार्तिकेय जी के दर्शन पूजन करने से छः प्रकार के दोष  नष्ट हो जाते है और मोक्ष प्राप्त होता है ।
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स्कन्दतीर्थं      तत्राप्लुत्य        नरोतमः |
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स्कन्दतीर्थं      तत्राप्लुत्य        नरोतमः । दृष्ट्वा षडाननः चैवजम्ह्यात् षातकौशिकी तनुम ॥
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दृष्ट्वा षडाननः चैवजम्ह्यात् षातकौशिकी तनुम ||
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तारकेश्वरपुर्वेन दृष्ट्वा देवं षडाननं। वसेत् षडानने लोके कुमारं वपरुद्वहन॥ (काशीखण्ड)
 
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तारकेश्वरपुर्वेन दृष्ट्वा देवं षडाननं |
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वसेत् षडानने लोके कुमारं वपरुद्वहन ||
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(#काशीखण्ड्)
      
स्कन्द तीर्थ नामक इस उत्तम तीर्थ (कुंड)पर जहाँ उत्तम जन स्नान करने के पश्च्यात षडानन के दर्शन करने छह कोषों ( त्वचा , मास , रुधिर , नस , हड्डी और मज़्ज़ा)से परिपूर्ण शरीर फिर नही धारण करना पड़ता ।
 
स्कन्द तीर्थ नामक इस उत्तम तीर्थ (कुंड)पर जहाँ उत्तम जन स्नान करने के पश्च्यात षडानन के दर्शन करने छह कोषों ( त्वचा , मास , रुधिर , नस , हड्डी और मज़्ज़ा)से परिपूर्ण शरीर फिर नही धारण करना पड़ता ।
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तारकेश्वर के पूर्व स्वामी कार्तिकेय का दर्शन करने से , कुमार सा शरीर पा कर व्यक्ति को स्कंदलोक में वास मिलता है ।
 
तारकेश्वर के पूर्व स्वामी कार्तिकेय का दर्शन करने से , कुमार सा शरीर पा कर व्यक्ति को स्कंदलोक में वास मिलता है ।
   −
विश्वनाथ मंदिर के पास अब तारकेश्वर मंदिर को विश्व्नाथ कॉरिडोर में तोड़ कर लुप्त कर दिया गया है , साथ ही कार्तिकेय जी की मूर्ति भी थी वह भी अब अस्तित्व में नही रह गयी और स्कन्द तीर्थ तोह बहुत पहले औरंगजेब द्वारा तोड़ फोड़ के समय ही पाट दिया गया था ।
+
पता- अब इनका मंदिर मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर मंदिर के नीचे  सीढ़ी पर छोटे से मढ़ी में है जिसमे यह मयूर पर बैठे है ।
 
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<nowiki>#</nowiki>पता
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अब इनका मंदिर मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर मंदिर के नीचे  सीढ़ी पर छोटे से मढ़ी में है जिसमे यह मयूर पर बैठे है ।
      
कुछ मत के अनुसार कार्तिक तीर्थ(कुंड) जो जैतपुरा पर वागेश्वरी देवी मंदिर के पास था पर अब वह भी लुप्त हो चुका है ।
 
कुछ मत के अनुसार कार्तिक तीर्थ(कुंड) जो जैतपुरा पर वागेश्वरी देवी मंदिर के पास था पर अब वह भी लुप्त हो चुका है ।
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<nowiki>#</nowiki>महाबल_नरसिंह        #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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=== महाबल नरसिंह  (काशी खण्डोक्त) ===
 
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श्री बिन्दु माधव उवाचः
<nowiki>#</nowiki>श्री बिन्दु माधव उवाचः
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महाबलनृसिन्होःहमोंकारात्पूर्वतो    मुने |
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दूतान महाबलान्याम्यान्न पश्येत्तु तदर्चकः ||
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महाबलनृसिन्होःहमोंकारात्पूर्वतो    मुने ।दूतान महाबलान्याम्यान्न पश्येत्तु तदर्चकः॥
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<nowiki>#</nowiki>श्री बिंदु माधव ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा
+
श्री बिंदु माधव ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा-
    
~हे मुने ! ओंकारेश्वर के पूर्वभाग में मैं ही महाबल नृसिंग के नाम से वास करता हूँ । मेरी पूजा करने वाला नर कभी यमराज के महाबली दूतों को नही देख पाता~
 
~हे मुने ! ओंकारेश्वर के पूर्वभाग में मैं ही महाबल नृसिंग के नाम से वास करता हूँ । मेरी पूजा करने वाला नर कभी यमराज के महाबली दूतों को नही देख पाता~
Line 1,421: Line 1,393:  
पता- त्रिलोचन घाट पर कामेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में , मछोदरी , वाराणसी ।
 
पता- त्रिलोचन घाट पर कामेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में , मछोदरी , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>श्री_खखोलकादित्य(#विनितादित्य)
+
=== श्री खखोलकादित्य(विनितादित्य) (काशी खण्डोक्त) ===
 
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अत्यंत प्राचीन समय की बात है दक्षप्रजापति की दो पुत्रियां जिनका नाम कद्रू और विनता था , इन दोनों का विवाह मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप मुनि से हुआ ।
<nowiki>#</nowiki>काशी_खण्डोक्त
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अत्यंत प्राचीन समय की बात है , #दक्षप्रजापति की दो पुत्रियां जिनका नाम #कद्रू और #विनता था , इन दोनों का विवाह मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप मुनि से हुआ ।
      
विवाह पश्चात कद्रू सर्पो की माता बनी यह सर्पिणी , कुटिला , स्वार्थीन तथा चल कपटी थी और दूसरे तरफ विनता पक्षिणी थी और स्वभाव से अत्यंत विनीत , सरल , निश्चल और अपनी बहन कद्रू की छल और प्रपंच से हमेशा से ही अनजान रहीं ।
 
विवाह पश्चात कद्रू सर्पो की माता बनी यह सर्पिणी , कुटिला , स्वार्थीन तथा चल कपटी थी और दूसरे तरफ विनता पक्षिणी थी और स्वभाव से अत्यंत विनीत , सरल , निश्चल और अपनी बहन कद्रू की छल और प्रपंच से हमेशा से ही अनजान रहीं ।
Line 1,445: Line 1,414:  
कठिन तप के फल स्वरूप खखोलक रूप में सूर्य देव प्रकट हो कर विनता को अनेको वरदान दिए और पापनाशक शिव ज्ञान दिया और विनितादित्य नाम से प्रसिद्ध होकर वही निवास करने लगे।
 
कठिन तप के फल स्वरूप खखोलक रूप में सूर्य देव प्रकट हो कर विनता को अनेको वरदान दिए और पापनाशक शिव ज्ञान दिया और विनितादित्य नाम से प्रसिद्ध होकर वही निवास करने लगे।
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काश्यां पैशमगिले तीर्थे खखोल्कस्य विलोकनात |
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काश्यां पैशमगिले तीर्थे खखोल्कस्य विलोकनात। नरशिन्च्न्तित  माप्नोति निरोगो जायते क्षणात॥
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नरशिन्च्न्तित  माप्नोति निरोगो जायते क्षणात ||
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नरः  श्रुत्वैतदाख्यान    खखोलदित्य संभवं दर्शनेन  खखोलदित्य सर्व  पापेः प्रमुच्येत (काशीखण्ड)
 
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नरः  श्रुत्वैतदाख्यान    खखोलदित्य संभवं |
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दर्शनेन  खखोलदित्य सर्व  पापेः प्रमुच्येत ||
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( #काशीखण्ड)
      
काशी के पिलपिला तीर्थ में ( त्रिलोचन घाट पर) खखोलक आदित्य के दर्शन करने से ही मनुष्य समस्त पापों से छूट जाता है और अपने अभीष्ट फल को पा कर तुरन्त निरोग होजाता है।
 
काशी के पिलपिला तीर्थ में ( त्रिलोचन घाट पर) खखोलक आदित्य के दर्शन करने से ही मनुष्य समस्त पापों से छूट जाता है और अपने अभीष्ट फल को पा कर तुरन्त निरोग होजाता है।
Line 1,461: Line 1,424:  
पता- त्रिलोचन घाट के पास , कामेश्वर मंदिर के प्रांगण में , मछोदरी , वाराणासी ।
 
पता- त्रिलोचन घाट के पास , कामेश्वर मंदिर के प्रांगण में , मछोदरी , वाराणासी ।
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<nowiki>#</nowiki>श्री_निवासेश्वर_महादेव          #काशी_खण्डोक्त_लिंग
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=== श्री निवासेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
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दर्शनेन निवासेशः काशीवासफ़लप्रदः |(काशीखण्ड)
दर्शनेन निवासेशः काशीवासफ़लप्रदः |
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(#काशीखण्ड्)
      
निवासेश्वर लिंग के दर्शन करने से काशी वास् का फल सहजता से प्राप्त हो जाता है ।
 
निवासेश्वर लिंग के दर्शन करने से काशी वास् का फल सहजता से प्राप्त हो जाता है ।
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पता- भूत भैरव मुहल्ला , करनघन्टा चौक, वाराणसी।.
 
पता- भूत भैरव मुहल्ला , करनघन्टा चौक, वाराणसी।.
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_आदि_केशव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== श्री आदि केशव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी से पूर्णिमा (दर्शन यात्रा)
<nowiki>#</nowiki>मार्गशीर्ष_कृष्ण_पक्ष_एकादशी_से_पूर्णिमा
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<nowiki>#</nowiki>दर्शन_यात्रा
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30/11/21 से 19/12/21
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<nowiki>#</nowiki>बिन्दु माधव उवाच
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आदौ पदोदके तीर्थे त्यम कथ्यमानं मयाःधुना |
+
बिन्दु माधव उवाच
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अग्निबिन्दो महाप्राग्य भक्तानां मुक्तिदायकम ||
+
आदौ पदोदके तीर्थे त्यम कथ्यमानं मयाःधुना। अग्निबिन्दो महाप्राग्य भक्तानां मुक्तिदायकम ||
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अविमुक्तेमृते    क्षेत्रे येःचर्ययन्त्यादिकेशवं |
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अविमुक्तेमृते    क्षेत्रे येःचर्ययन्त्यादिकेशवं । तेःमृत्वं  भजन्त्येव  सर्व दुखः  विवर्जिताः ||
   −
तेःमृत्वं   भजन्त्येव  सर्व दुखः  विवर्जिताः ||
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सङ्गमेश   महालिङ्गं    प्रतिष्ठाप्यादिकेशवः। दर्शनादघहं  नृणा  भुक्तिं  मुक्तिं  दिशेत्सदा ||
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सङ्गमेश  महालिङ्गं    प्रतिष्ठाप्यादिकेशवः |
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बिन्दु माधव ने कहा
 
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दर्शनादघहं  नृणा  भुक्तिं  मुक्तिं  दिशेत्सदा ||
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  −
<nowiki>#</nowiki>बिन्दु माधव ने कहा
      
हे महा पण्डित अग्निबिन्दु प्रथम तोह मुझे  भक्त लोगो के मुक्ति दाता आदि केशव रूप को पादोदक तिर्थ् पर समझना चाहिए ।
 
हे महा पण्डित अग्निबिन्दु प्रथम तोह मुझे  भक्त लोगो के मुक्ति दाता आदि केशव रूप को पादोदक तिर्थ् पर समझना चाहिए ।
Line 1,505: Line 1,454:  
आदिकेशव दर्शन से ही पापनाशक संगमेश्वर नामक महालिंग की स्थापना कर मनुष्यो को सदैव भोग और मोक्ष का दान करते रहते है ।
 
आदिकेशव दर्शन से ही पापनाशक संगमेश्वर नामक महालिंग की स्थापना कर मनुष्यो को सदैव भोग और मोक्ष का दान करते रहते है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>केशवादित्य
+
==== केशवादित्य ====
 
   
भगवान केशव को संगमेश्वर लिंग की पूजा (शिवाराधना) करते देखकर सूर्यनारायण(आदित्य) ने उनसे पूछा कि आप जगदात्मा विशम्भर होकर भी किसकी अर्चना करते है ।
 
भगवान केशव को संगमेश्वर लिंग की पूजा (शिवाराधना) करते देखकर सूर्यनारायण(आदित्य) ने उनसे पूछा कि आप जगदात्मा विशम्भर होकर भी किसकी अर्चना करते है ।
   Line 1,513: Line 1,461:  
माघ शुक्ल सप्तमी(रथसप्तमी) को यदि रविवार पड़ जाए तोह इनके दर्शन पूजन का विशेष महात्म्य है ।
 
माघ शुक्ल सप्तमी(रथसप्तमी) को यदि रविवार पड़ जाए तोह इनके दर्शन पूजन का विशेष महात्म्य है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>वरुणासंगमेश्वर
+
===== वरुणासंगमेश्वर =====
 
   
संगमेश्वरमालोक्यं तत्प्राच्यां जायतेःनघः
 
संगमेश्वरमालोक्यं तत्प्राच्यां जायतेःनघः
    
संगमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से निष्पप्ता होती है (अर्थात किये गये सभी पाप कट जाते है)|
 
संगमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से निष्पप्ता होती है (अर्थात किये गये सभी पाप कट जाते है)|
   −
<nowiki>#</nowiki>स्वेतदीपेश्वर
+
====== स्वेतदीपेश्वर ======
 
   
पादोदक तिर्थ् (यानि आदिकेशव घाट ) को श्वेत दीप तिर्थ् भी कहते है वही पर यह लिङ्ग स्थापित है
 
पादोदक तिर्थ् (यानि आदिकेशव घाट ) को श्वेत दीप तिर्थ् भी कहते है वही पर यह लिङ्ग स्थापित है
   −
<nowiki>#</nowiki>नक्षत्रेश्वर
+
====== नक्षत्रेश्वर ======
 
   
काशीखण्ड् के कथा अनुसार जब 27 नक्षत्रियो द्वारा शिव लिंग स्थापना करके उग्र तपस्या के पश्चात जब शिव जी प्रकट होकर वर मांगने को कहते है तभी सभी नक्षत्रियो ने शिव समान की पराक्रमी और दिव्य गुणों वाला वर की इक्षा जाहिर की जिसके फल स्वरूप शिव जी ने उनको चंद्रमा से  विवाह करने को कहा तभी से इस लिंग को नक्षत्रेश्वर नाम से जाना जाता है ।
 
काशीखण्ड् के कथा अनुसार जब 27 नक्षत्रियो द्वारा शिव लिंग स्थापना करके उग्र तपस्या के पश्चात जब शिव जी प्रकट होकर वर मांगने को कहते है तभी सभी नक्षत्रियो ने शिव समान की पराक्रमी और दिव्य गुणों वाला वर की इक्षा जाहिर की जिसके फल स्वरूप शिव जी ने उनको चंद्रमा से  विवाह करने को कहा तभी से इस लिंग को नक्षत्रेश्वर नाम से जाना जाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कालमाधव             #काशी_खण्डोक्त
+
=== कालमाधव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
मार्गशीर्ष एकादशी (दर्शन यात्रा)
<nowiki>#</nowiki>मार्गशीर्ष_एकादशी_दर्शन_यात्रा  30/11/21
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कालमाधवनामाःहं      काल भैरव संनिधौ |
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कलिः कालो न कलयेन्मदभक्तिमिति निश्चितं ||
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मार्गशीर्षस्य    शुक्लायामेकादश्यामुयोषितः  |
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कालमाधवनामाःहं      काल भैरव संनिधौ । कलिः कालो न कलयेन्मदभक्तिमिति निश्चितं ||
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तत्र जागरणं कृत्वा यमं नालोकयेत् क्वचित् ||
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मार्गशीर्षस्य    शुक्लायामेकादश्यामुयोषितः  ।तत्र जागरणं कृत्वा यमं नालोकयेत् क्वचित् ||
    
काल भैरव जी के दक्षिण के पास में कालमाधव विराजमान हैं।
 
काल भैरव जी के दक्षिण के पास में कालमाधव विराजमान हैं।
Line 1,549: Line 1,489:  
पता- k 38/39 चौखम्बा सब्जी सट्टी , संतानेश्वर के मंदिर में पापभक्षेश्वर के पास , मोहल्ला कालभैरव , वाराणसी ।
 
पता- k 38/39 चौखम्बा सब्जी सट्टी , संतानेश्वर के मंदिर में पापभक्षेश्वर के पास , मोहल्ला कालभैरव , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>व्याघ्रेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त
+
=== व्याघ्रेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
प्राचीन समय मे दंडखात तीर्थ पर (जो कि अब भूत भैरव मोहल्ला नाम से जाना जाता है) अनेक ब्राह्मण लोग निष्काम होकर तपोरत थे । उस समय 'प्रह्लाद' का मामा 'दुन्दुभिनिह्नार्द'
 
प्राचीन समय मे दंडखात तीर्थ पर (जो कि अब भूत भैरव मोहल्ला नाम से जाना जाता है) अनेक ब्राह्मण लोग निष्काम होकर तपोरत थे । उस समय 'प्रह्लाद' का मामा 'दुन्दुभिनिह्नार्द'
   Line 1,565: Line 1,504:  
फलस्वरूप शिव जी भी उनको अनेको वरदान के साथ इस स्थान की सदैव रक्षा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया साथ ही कहा कि
 
फलस्वरूप शिव जी भी उनको अनेको वरदान के साथ इस स्थान की सदैव रक्षा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया साथ ही कहा कि
   −
<nowiki>#</nowiki>शिव_उवाचः
+
शिव उवाचः
 
  −
यो मामनेन रुपेन द्रक्ष्यन्ति श्रद्धयाःत्र वै |
  −
 
  −
तस्योपसर्गसंघातं घातयिष्याम्यसंशयं ||
  −
 
  −
ऐतलिङ्गं समभ्यच्र्य यो याति पथि मानवः |
  −
 
  −
चौरव्याघ्रादिसंभूतं भयं तस्य कुतो भवेत् ||
     −
मच्चरित्रमिदं श्रुत्वा स्मृत्वा लिङ्गमिदं हृदि |
+
यो मामनेन रुपेन द्रक्ष्यन्ति श्रद्धयाःत्र वै । तस्योपसर्गसंघातं घातयिष्याम्यसंशयं॥
   −
संग्रामे प्रविशन्मतर्यो जयमाप्नोति नान्यथा ||
+
ऐतलिङ्गं समभ्यच्र्य यो याति पथि मानवः। चौरव्याघ्रादिसंभूतं भयं तस्य कुतो भवेत् ||
   −
ईत्युक्त्वा देवदेवेशस्तस्मिलिन्ङ्गे लयं ययौ |
+
मच्चरित्रमिदं श्रुत्वा स्मृत्वा लिङ्गमिदं हृदि। संग्रामे प्रविशन्मतर्यो जयमाप्नोति नान्यथा ||
   −
सविस्मयास्ततो विप्राः प्रातयार्ता यथागतम् ||
+
ईत्युक्त्वा देवदेवेशस्तस्मिलिन्ङ्गे लयं ययौ। सविस्मयास्ततो विप्राः प्रातयार्ता यथागतम् ||(काशी खण्ड)
   −
(#काशी_खण्ड)
+
शिव जी ने कहा-
 
  −
<nowiki>#</nowiki>शिव_जी_ने_कहा
      
जो कोई यहाँ पर श्रद्धापूर्वक इसी रूप का(व्याघ्रेश्वर) दर्शन करेगा निसंदेह मैं उसके सभी उपद्रव को नष्ट कर दूंगा ।
 
जो कोई यहाँ पर श्रद्धापूर्वक इसी रूप का(व्याघ्रेश्वर) दर्शन करेगा निसंदेह मैं उसके सभी उपद्रव को नष्ट कर दूंगा ।
Line 1,599: Line 1,528:  
पता- भूत भैरव मोहल्ला , ज्येष्ठेश्वर मंदिर, वंदे काशी देवी(सप्तसागर) के निकट , बुलानाला , चौक , वाराणसी
 
पता- भूत भैरव मोहल्ला , ज्येष्ठेश्वर मंदिर, वंदे काशी देवी(सप्तसागर) के निकट , बुलानाला , चौक , वाराणसी
   −
<nowiki>#</nowiki>पापभक्षेश्वर_महादेव      #काशी_खण्डोक्त
+
=== पापभक्षेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
मनुष्य की बुद्धि से किये गए सभी पाप श्री काल भैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते हैं । प्राणियों के द्वारा करोड़ो करोड़ो जन्मों में किये गए पाप भी कालभैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते है । भैरव पीठ पर बैठ कर जो अपने इष्टदेव के मंत्र का जप करता है उसको कालभैरव की कृपा से छः महीने में सिद्धि होजाती है । कालभैरव का भक्त सैकड़ो पाप कर के भी #पापभक्षक भैरव के पास पहुँचने के कारण किसी से डरता नही है । कलयुग में काशी वासियों के पाप और काल को कालभैरव निगल जाते है । इसीलिए कालभैरव जी का नाम #पापभक्षक प्रसिद्ध हुआ है ।
 
मनुष्य की बुद्धि से किये गए सभी पाप श्री काल भैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते हैं । प्राणियों के द्वारा करोड़ो करोड़ो जन्मों में किये गए पाप भी कालभैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते है । भैरव पीठ पर बैठ कर जो अपने इष्टदेव के मंत्र का जप करता है उसको कालभैरव की कृपा से छः महीने में सिद्धि होजाती है । कालभैरव का भक्त सैकड़ो पाप कर के भी #पापभक्षक भैरव के पास पहुँचने के कारण किसी से डरता नही है । कलयुग में काशी वासियों के पाप और काल को कालभैरव निगल जाते है । इसीलिए कालभैरव जी का नाम #पापभक्षक प्रसिद्ध हुआ है ।
    
पता - कालभैरव से चौखम्बा सब्जी सट्टी मार्ग , वाराणसी ।
 
पता - कालभैरव से चौखम्बा सब्जी सट्टी मार्ग , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कालभैरव   (#भैरवनाथ)     #काशीखण्डोक्त
+
=== कालभैरव(भैरवनाथ) (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
कालभैरव जयंती (कालाष्टमी दर्शनयात्रा)
कालाष्टमी दर्शनयात्रा कालभैरव जयंती 27/11/21
     −
मार्गशीर्ष सिताष्टम्यां कालभैरव  सन्निधो |
+
मार्गशीर्ष सिताष्टम्यां कालभैरव  सन्निधो । नरो मार्गासिताष्टम्यां वार्षिकं विघ्नमूत्सृजेत् ॥
   −
नरो मार्गासिताष्टम्यां वार्षिकं विघ्नमूत्सृजेत् ||
+
अष्टम्यान्च चतुर्दरश्यां रविभूमिजवासरे । यात्रस्च भैरवीं कृत्वा कृतैः पापै प्रमुच्ते ॥
   −
अष्टम्यान्च चतुर्दरश्यां रविभूमिजवासरे |
+
कालभैरव भक्तानां सदा काशीनिवासिनां। विघ्नं यः कुरुतेमूढः स दुर्गतिमवाप्रुयात् ॥
   −
यात्रस्च भैरवीं कृत्वा कृतैः पापै प्रमुच्ते ||
+
तीर्थे कलोदक स्नात्वा कृत्वा तर्पनमत्त्वरः । विलोक्यं कालराजं च निरयादुध्दरेतपित्घन ||
   −
कालभैरव भक्तानां सदा काशीनिवासिनां |
+
कृत्वा च विविधा पूजां महासंभारविस्तरैः | उपोष्य जागरंकुर्वन्महापापापैः प्रमुच्यते || नरो न पापैलिर्प्येत मनोवाक्कायसंभवैः ||
 
  −
विघ्नं यः कुरुतेमूढः स दुर्गतिमवाप्रुयात् ||
  −
 
  −
तीर्थे कलोदक स्नात्वा कृत्वा तर्पनमत्त्वरः |
  −
 
  −
विलोक्यं कालराजं च निरयादुध्दरेतपित्घन ||
  −
 
  −
कृत्वा च विविधा पूजां महासंभारविस्तरैः |
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  −
उपोष्य जागरंकुर्वन्महापापापैः प्रमुच्यते ||
  −
 
  −
नरो न पापैलिर्प्येत मनोवाक्कायसंभवैः ||
      
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को श्री कालभैरव जी के पास वर्ष भर में किये हुवे पापों को छोड़े अर्थात भैरव जी के दर्शन करने मात्र से वर्ष भर में किये हुवे पाप नष्ट होजाते है ।
 
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को श्री कालभैरव जी के पास वर्ष भर में किये हुवे पापों को छोड़े अर्थात भैरव जी के दर्शन करने मात्र से वर्ष भर में किये हुवे पाप नष्ट होजाते है ।
Line 1,643: Line 1,558:  
जो नर नारी भैरव की आठ परिक्रमा करते है उनके सभी पाप तत्काल में नष्ट हो जाते है । उस भक्त को कायिक , वाचिक , तथा मानशिक कोई भी पाप पुनः नही लगता ।
 
जो नर नारी भैरव की आठ परिक्रमा करते है उनके सभी पाप तत्काल में नष्ट हो जाते है । उस भक्त को कायिक , वाचिक , तथा मानशिक कोई भी पाप पुनः नही लगता ।
   −
<nowiki>#</nowiki>बृहस्पतिश्वर_महादेव              #काशी_खण्डोक्त
+
=== बृहस्पतिश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
गुरुपुष्य नक्षत्र (गुरुवार दर्शन)
<nowiki>#</nowiki>गुरुपुष्य_नक्षत्र_गुरुवार_दर्शन    25/11/21
      
देव गुरु बृहस्तपति द्वारा स्थापित लिंग
 
देव गुरु बृहस्तपति द्वारा स्थापित लिंग
Line 1,651: Line 1,565:  
शिव उवाचः
 
शिव उवाचः
   −
गुरुपुष्यसमायोगे  लिङ्गमेतत्सम्चर्य च |
+
गुरुपुष्यसमायोगे  लिङ्गमेतत्सम्चर्य च | यत्करिष्यन्ति मनुजास्तत्सिम्धिधियास्ति ||
   −
यत्करिष्यन्ति मनुजास्तत्सिम्धिधियास्ति ||
+
अस्य सन्दर्शनादेव प्रतिभा प्रतिलभ्य्ते। (काशी खण्ड)
 
  −
अस्य सन्दर्शनादेव प्रतिभा प्रतिलभ्य्ते
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
      
शिव जी के कथन अनुसार
 
शिव जी के कथन अनुसार
Line 1,669: Line 1,579:  
ज्योतिष शास्त्र के सभी 27 नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों  को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरुपुष्य, और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी।
 
ज्योतिष शास्त्र के सभी 27 नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों  को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरुपुष्य, और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी।
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<nowiki>#</nowiki>पुष्य_नक्षत्र में गुरु का जन्म
+
पुष्य नक्षत्र में गुरु का जन्म
    
बृहस्पति देव और प्रभु श्री राम इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे ।तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ फलदाई कहे गये हैं
 
बृहस्पति देव और प्रभु श्री राम इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे ।तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ फलदाई कहे गये हैं
Line 1,677: Line 1,587:  
नक्षत्र देवता के नाम का मंत्र: ॐ बृहस्पतये नम:।
 
नक्षत्र देवता के नाम का मंत्र: ॐ बृहस्पतये नम:।
   −
<nowiki>#</nowiki>मंगल_विनायक      #काशी_खण्डोक्त
+
=== मंगल विनायक(काशी खण्डोक्त) ===
 +
मंगलवार की चतुर्थी (अंगारक चतुर्थी यात्रा)
   −
मंगलवार की चतुर्थी  (#अंगारक_चतुर्थी_यात्रा)
+
ऐश्यामैशीं पुरीं पायात समङ्गलविनायकः |(काशी खण्ड)
   −
ऐश्यामैशीं पुरीं पायात समङ्गलविनायकः |
+
काशी के ईशान कोण पर मंगल विनायक इस पूरी की रक्षा करते है और अपने भक्तों के विघ्नों को हरते है ।
   −
(#काशी_खण्ड)
+
मंगल की कामना से यहां दर्शनार्थी प्राचीन समय से ही आते रहे है , गंगा घाट के ऊपर स्थित मंगल विनायक भी अपने भक्तों का खूब मंगल करते ही रहते है ।
 
  −
~काशी के ईशान कोण पर मंगल विनायक इस पूरी की रक्षा करते है और अपने भक्तों के विघ्नों को हरते है ।
  −
 
  −
मंगल की कामना से यहां दर्शनार्थी प्राचीन समय से ही आते रहे है , गंगा घाट के ऊपर स्थित मंगल विनायक भी अपने भक्तों का खूब मंगल करते ही रहते है ।
      
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छप्पन विनायक यात्रा करने का विधान हजारों साल पहले से चला आरहा है । सोने पे सुहागा तब होता है जब आज के तिथि में मंगल वार भी पड़ जाए तोह इस तिथि को मंगल विनायक की यात्रा महायात्रा हो जाती है ।
 
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छप्पन विनायक यात्रा करने का विधान हजारों साल पहले से चला आरहा है । सोने पे सुहागा तब होता है जब आज के तिथि में मंगल वार भी पड़ जाए तोह इस तिथि को मंगल विनायक की यात्रा महायात्रा हो जाती है ।
Line 1,697: Line 1,604:  
प्राचीन समय से ही मंगलविनायक के स्थान के विषय मे विवाद है ,पर इस विवाद का निर्णय स्वयं हो जाता है कि मंगल तीर्थ के ऊपर मंगलागौरी तथा मांगलोदक कूप कहे गए है अतः मंगल विनायक का स्थान यही था ।
 
प्राचीन समय से ही मंगलविनायक के स्थान के विषय मे विवाद है ,पर इस विवाद का निर्णय स्वयं हो जाता है कि मंगल तीर्थ के ऊपर मंगलागौरी तथा मांगलोदक कूप कहे गए है अतः मंगल विनायक का स्थान यही था ।
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<nowiki>#</nowiki>मित्र_विनायक              #काशी_खण्डोक्त
+
=== मित्र विनायक (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
यमतीर्थादुदीच्यां च पूज्यो मित्र विनायकान् | कुर्वन्ति  रक्षां  क्षेत्रस्य॥ (काशी खण्ड)
यमतीर्थादुदीच्यां च पूज्यो मित्र विनायकान् |
  −
 
  −
कुर्वन्ति  रक्षां  क्षेत्रस्य
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
      
यमतीर्थ के उत्तर की ओर मित्र विनायक भी अति पूजनीय है और  काशी क्षेत्र की रक्षा करते है (रक्षक विनायक है)।
 
यमतीर्थ के उत्तर की ओर मित्र विनायक भी अति पूजनीय है और  काशी क्षेत्र की रक्षा करते है (रक्षक विनायक है)।
   −
<nowiki>#</nowiki>जो प्राणी मित्र विनायक की यात्रा करते रहते है , वे दुख और विघ्नों से छूटते रहते है । इनके दर्शन पूजन से  सर्वसम्पत्ति की प्राप्ति और मनोकामना की सिद्धि होती है और जीवन के अन्तकाल तक ज्ञान बना रहता है । इनके दर्शन का बड़ा ही महात्म्य है ।
+
जो प्राणी मित्र विनायक की यात्रा करते रहते है , वे दुख और विघ्नों से छूटते रहते है । इनके दर्शन पूजन से  सर्वसम्पत्ति की प्राप्ति और मनोकामना की सिद्धि होती है और जीवन के अन्तकाल तक ज्ञान बना रहता है । इनके दर्शन का बड़ा ही महात्म्य है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>मित्र_विनायक काशी वासियो को सदैव मित्रवत ही देखते है और प्राचीन काल से ही काशी के लोग भी इन्हें मित्र मान कर अपने सारे दुखो को बताते है जिसको सुनने के बाद श्री मित्र विनायक एक मित्र के तरह ही अपने भक्तों के सभी कष्टों को तत्काल में दूर कर देते है ।
+
मित्र विनायक काशी वासियो को सदैव मित्रवत ही देखते है और प्राचीन काल से ही काशी के लोग भी इन्हें मित्र मान कर अपने सारे दुखो को बताते है जिसको सुनने के बाद श्री मित्र विनायक एक मित्र के तरह ही अपने भक्तों के सभी कष्टों को तत्काल में दूर कर देते है ।
    
काशी में सिंधिया घाट जिसका शास्त्रोक्त परिमाण मणिकर्णिका घाट क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है इस पूरे क्षेत्र के रक्षक श्री मित्र विनायक ही है जो सदा भक्तों की भी रक्षा करते ही रहते है ।
 
काशी में सिंधिया घाट जिसका शास्त्रोक्त परिमाण मणिकर्णिका घाट क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है इस पूरे क्षेत्र के रक्षक श्री मित्र विनायक ही है जो सदा भक्तों की भी रक्षा करते ही रहते है ।
Line 1,715: Line 1,617:  
पता- सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में ck 7/158 . चौक वाराणसी ।
 
पता- सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में ck 7/158 . चौक वाराणसी ।
   −
~ये काश्यां धर्मभूमिष्ठा निवसन्ति मुनीश्वराः
+
=== बिंदु माधव एवं काशी विश्वनाथ ===
 
+
कार्तिक पूर्णिमा दर्शन (देव दीपावली)
ते तारयन्ति चात्मान शतपूर्वान शतापरान् ||
  −
 
  −
(#काशी_महात्म्य)
  −
 
  −
जो महात्मा सद्धर्म काशी में निवास करते है , वे अपने साथ पिछली सौ पीढ़ियों को भी लेकर इस संसार से पार उतर जाते है ।
  −
 
  −
~संवत्सरं वसंस्तत्र जितक्रोधो जितेन्द्रियः |
  −
 
  −
अपरस्वाद्विपुष्टान्गः    परान्नपरिवर्जकः ||
  −
 
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परापवाद रहितः किञ्चिद्दानपरायणः |
  −
 
  −
समाः सहसन्नमन्यत्र तेन तप्तं महत्तपः ||
  −
 
  −
(#काशी_खण्ड)
  −
 
  −
जो मनुष्य क्रोध एवं इंद्रियों को जीतकर स्वयं के धन से अपना पालन पोषण करता हुआ पराए अन्न तथा निंदा को त्याग कर , कुछ दान देता हुआ एक वर्ष तक काशी वास् करे तोह उसे 1000 साल तप करने का फल प्राप्त होता है ।
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव            #काशी_विश्वनाथ
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>कार्तिक_पूर्णिमा_दर्शन 19 - 11 - 21
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>देव_दीपावली
      
काशी में पूर्णिमा के स्नान में मुख्यत: गंगा स्नान का विधान है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस दिन को भगवान विष्णु नें मतस्य अवतार लिया था।
 
काशी में पूर्णिमा के स्नान में मुख्यत: गंगा स्नान का विधान है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस दिन को भगवान विष्णु नें मतस्य अवतार लिया था।
Line 1,755: Line 1,634:  
कार्तिक पूर्णिमा देवताओ का विजय दिवस है , आज के दिन दीप दान करने से वह सभी प्रकार के मनोवांक्षित फल तत्काल ही दे देते है ।
 
कार्तिक पूर्णिमा देवताओ का विजय दिवस है , आज के दिन दीप दान करने से वह सभी प्रकार के मनोवांक्षित फल तत्काल ही दे देते है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>हरिशचंद्रेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त
+
=== हरिशचंद्रेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
  −
<nowiki>#</nowiki>हरिश्चन्द्र_विनायक    #काशी_खण्डोक्त
      +
==== हरिश्चन्द्र विनायक (काशी खण्डोक्त) ====
 
सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र जी द्वारा स्थापित लिंग
 
सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र जी द्वारा स्थापित लिंग
   −
हरिश्चन्द्रे  महातीर्थे  तर्पयेयुः पितामहान् |
+
हरिश्चन्द्रे  महातीर्थे  तर्पयेयुः पितामहान् | शतंसमाः सुतृप्ताः स्युः प्रयच्छन्ति च् वाञ्छितं ||
 
  −
शतंसमाः सुतृप्ताः स्युः प्रयच्छन्ति च् वाञ्छितं ||
     −
हरिश्चन्द्रे महातीर्थे स्नात्वा श्रद्धान्वितो नरः |
+
हरिश्चन्द्रे महातीर्थे स्नात्वा श्रद्धान्वितो नरः | हरिश्चन्द्रेश्वरं  नत्वा न    सत्यात्परिहीयते ||
 
  −
हरिश्चन्द्रेश्वरं  नत्वा न    सत्यात्परिहीयते ||
      
हरिश्चन्द्र तीर्थ में अपने पितरो का तर्पण करने से सभी(पूर्व पुरुष) पितृ सौ वर्ष के लिए तृप्त होकर मनवांक्षित फल देते है।
 
हरिश्चन्द्र तीर्थ में अपने पितरो का तर्पण करने से सभी(पूर्व पुरुष) पितृ सौ वर्ष के लिए तृप्त होकर मनवांक्षित फल देते है।
Line 1,785: Line 1,659:  
पता -- Ck7/ 66 संकठा घाट , चौक , वाराणसी ( संकटा मंदिर के पीछे के तरफ)
 
पता -- Ck7/ 66 संकठा घाट , चौक , वाराणसी ( संकटा मंदिर के पीछे के तरफ)
   −
वही #हरिश्चन्द्र_विनायक जो काशी में चतुर्थ विनायक के अंतर्गत आते है इनके भी दर्शन से सत्य बोलने शक्ति मिलती है ,
+
वही हरिश्चन्द्र विनायक जो काशी में चतुर्थ विनायक के अंतर्गत आते है इनके भी दर्शन से सत्य बोलने शक्ति मिलती है ,
    
और यहां मोदक ब्राह्मण को दान देने से मनवांक्षित फल तत्काल ही गणेश जी की कृपा से मिल जाता है ।
 
और यहां मोदक ब्राह्मण को दान देने से मनवांक्षित फल तत्काल ही गणेश जी की कृपा से मिल जाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव    #काशी_खण्डोक्त
+
बिंदु माधव (काशी खण्डोक्त)
 
  −
अत्र पञ्चनदे तीर्थे स्नाति विश्वेश्वरः स्वयं |
  −
 
  −
ऊर्जे सदैव सगणः सस्कन्दः सपरिच्छदः ||
  −
 
  −
ब्रह्म सवेदः समखो ब्राह्मण्याद्याश्च् मातरः |
  −
 
  −
सप्ताब्धयः ससरितः स्नान्त्युर्जे धुत्पापके ||
     −
सचेतना हि यावन्तस्त्रैलोक्ये देहधारिणः |
+
अत्र पञ्चनदे तीर्थे स्नाति विश्वेश्वरः स्वयं | ऊर्जे सदैव सगणः सस्कन्दः सपरिच्छदः ||
   −
तावन्तः स्नातुमायान्ती कार्तिके धुत्पापके ||
+
ब्रह्म सवेदः समखो ब्राह्मण्याद्याश्च् मातरः | सप्ताब्धयः ससरितः स्नान्त्युर्जे धुत्पापके ||
   −
(#काशीखण्ड्)
+
सचेतना हि यावन्तस्त्रैलोक्ये देहधारिणः | तावन्तः स्नातुमायान्ती कार्तिके धुत्पापके || (काशीखण्ड)
    
इस पंचनद तीर्थ में स्वयं भगवान विश्वेश्वर भी गणराज , स्कंद और परिजनों के सहित सदैव कार्तिक मास में स्नान करते है ।
 
इस पंचनद तीर्थ में स्वयं भगवान विश्वेश्वर भी गणराज , स्कंद और परिजनों के सहित सदैव कार्तिक मास में स्नान करते है ।
Line 1,849: Line 1,715:  
17. जो मनुष्य वकुल और अशोक के फूलों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे सूर्य-चंद्रमा रहने तक किसी प्रकार का शोक नहीं पाते।
 
17. जो मनुष्य वकुल और अशोक के फूलों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे सूर्य-चंद्रमा रहने तक किसी प्रकार का शोक नहीं पाते।
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<nowiki>#</nowiki>मुचुकुंदेश्वर_महादेव (#बड़ादेव) #काशीखण्डोक्त_लिंग
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=== मुचुकुंदेश्वर महादेव(बड़ादेव) (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
इस लिंग के दर्शन पूजन करने से सभी पापों का नाश , काशी वास् का फल ,  लम्बी उम्र और सेहत की प्राप्ति होती है ।
 
इस लिंग के दर्शन पूजन करने से सभी पापों का नाश , काशी वास् का फल ,  लम्बी उम्र और सेहत की प्राप्ति होती है ।
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मुचुकुन्द श्री राम के पूर्वज थे। असुरो के खिलाफ देवों की सहायता करने के फल स्वरूप वे अत्यन्त थक गए थे इसलिए उन्हें चिरनिद्रा का वरदान दिया गया था। देवों के कार्यों में सहायता के लिए इंद्रदेव ने उन्हें मुक्ति के सिवाय कोई भी वर मांगने को कहा। उन्होंने बिन-अवरोध निद्रा मांगी, और यह भी अन्तर्गत किया गया कि उनकी निद्रा भंग करने वाला तुरंत भस्म हो जाएगा।
 
मुचुकुन्द श्री राम के पूर्वज थे। असुरो के खिलाफ देवों की सहायता करने के फल स्वरूप वे अत्यन्त थक गए थे इसलिए उन्हें चिरनिद्रा का वरदान दिया गया था। देवों के कार्यों में सहायता के लिए इंद्रदेव ने उन्हें मुक्ति के सिवाय कोई भी वर मांगने को कहा। उन्होंने बिन-अवरोध निद्रा मांगी, और यह भी अन्तर्गत किया गया कि उनकी निद्रा भंग करने वाला तुरंत भस्म हो जाएगा।
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<nowiki>#</nowiki>कालयवन_संहार
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==== कालयवन संहार ====
 
   
कालयवन, जो यवन महारथी थे, उनका संहार मुचुकुन्द की दृष्टि के प्रकोप से हुआ। दैविक आशीर्वाद के कारण, कालयवन को पराजित करना असंभव था। उसे पता चला कि सिर्फ श्री कृष्ण ही उनको पराजित कर सकते हैं। इस कारण कालयवन ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। कालयवन के आशीर्वाद की वजह से उसे पराजित करना कठिन था। श्री कृष्ण ने युक्ति लगाकर रण छोड़ दिया। इस कारण उन्हें रणछोड़दास का नाम मिला। श्री कृष्ण मुचुकुन्द की गुफा में घुस गए, उन पर अपने वस्त्र डाल दिये। इस कारण कालयवन को लगा की श्री कृष्ण वहां आकर सो गए हैं। अँधेरे में बिना देखे मुचुकुन्द को ललकार कर जगाया, और इसका परिणाम यह हुआ कि कालयवन भस्म हो गया।
 
कालयवन, जो यवन महारथी थे, उनका संहार मुचुकुन्द की दृष्टि के प्रकोप से हुआ। दैविक आशीर्वाद के कारण, कालयवन को पराजित करना असंभव था। उसे पता चला कि सिर्फ श्री कृष्ण ही उनको पराजित कर सकते हैं। इस कारण कालयवन ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। कालयवन के आशीर्वाद की वजह से उसे पराजित करना कठिन था। श्री कृष्ण ने युक्ति लगाकर रण छोड़ दिया। इस कारण उन्हें रणछोड़दास का नाम मिला। श्री कृष्ण मुचुकुन्द की गुफा में घुस गए, उन पर अपने वस्त्र डाल दिये। इस कारण कालयवन को लगा की श्री कृष्ण वहां आकर सो गए हैं। अँधेरे में बिना देखे मुचुकुन्द को ललकार कर जगाया, और इसका परिणाम यह हुआ कि कालयवन भस्म हो गया।
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पता- गोदौलिया में बड़ादेव नाम से प्रसिद्ध , वाराणसी ।
 
पता- गोदौलिया में बड़ादेव नाम से प्रसिद्ध , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>दक्षेश्वर_महादेव        #काशीखण्डोक्त_लिंग
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=== दक्षेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
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लिङ्गं दक्षेश्वराःह्वं च ततः कुपादुदग्दिशि | अपराधसहस्त्रं तु नश्येत्तस्य समर्चनात् ||
लिङ्गं दक्षेश्वराःह्वं च ततः कुपादुदग्दिशि |
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अपराधसहस्त्रं तु नश्येत्तस्य समर्चनात् ||
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वृद्धकाल कूप से उत्तर की ओर दक्षेश्वर लिंग है , जिसके समर्चन(विधिवत पूजा करने)से सहस्त्रों ही पाप खुद ही विनिष्ट हो जाते है ।
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वृद्धकाल कूप से उत्तर की ओर दक्षेश्वर लिंग है, जिसके समर्चन(विधिवत पूजा करने)से सहस्त्रों ही पाप खुद ही विनिष्ट हो जाते है ।
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<nowiki>#</nowiki>दक्षेश्वर लिङ्ग माता सति के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा स्थापित है।
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दक्षेश्वर लिङ्ग माता सति के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा स्थापित है।
    
दक्ष प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था। दक्ष प्रजापति का विवाह मनु स्वायम्भुव मनु की तृतीय कन्या प्रसूति के साथ हुआ था। दक्ष राजाओं के देवता थे। शिव पुराण के अनुसार सती आत्मदाह के बाद दक्ष को जब बकरे का सिर प्राप्त होता है तब बाद में वह प्रायश्चित करने के लिए अपनी पत्नी प्रसूति के साथ काशी में मृत्युंजय लिंग के पास  महामृत्युंजय का मंत्र जपते हुए  दक्षेश्वर लिंग की स्थापना करते है जिससे शिव जी प्रसन्न होकर दक्षेश्वर लिंग के पूजा करने वालो के समस्त गलतियों को क्षमा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया ( तभी से माना जाता है की दक्ष प्रजापति अपना निवास काशी में ही बनाये हुवे है और नित्य दक्षेश्वर लिंग की पूजा करते है)
 
दक्ष प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था। दक्ष प्रजापति का विवाह मनु स्वायम्भुव मनु की तृतीय कन्या प्रसूति के साथ हुआ था। दक्ष राजाओं के देवता थे। शिव पुराण के अनुसार सती आत्मदाह के बाद दक्ष को जब बकरे का सिर प्राप्त होता है तब बाद में वह प्रायश्चित करने के लिए अपनी पत्नी प्रसूति के साथ काशी में मृत्युंजय लिंग के पास  महामृत्युंजय का मंत्र जपते हुए  दक्षेश्वर लिंग की स्थापना करते है जिससे शिव जी प्रसन्न होकर दक्षेश्वर लिंग के पूजा करने वालो के समस्त गलतियों को क्षमा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया ( तभी से माना जाता है की दक्ष प्रजापति अपना निवास काशी में ही बनाये हुवे है और नित्य दक्षेश्वर लिंग की पूजा करते है)
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