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५.३ समृद्धि व्यवस्था का ढाँचा : वैसे तो कठोरतासे बाँधी हुई कोई भी व्यवस्था किसी भी समाज के लिये अच्छी नहीं होती। इसलिये समृद्धि व्यवस्था का मोटा मोटा ढाँचा ही बताया जा सकता है। वह निम्न होगा।
 
५.३ समृद्धि व्यवस्था का ढाँचा : वैसे तो कठोरतासे बाँधी हुई कोई भी व्यवस्था किसी भी समाज के लिये अच्छी नहीं होती। इसलिये समृद्धि व्यवस्था का मोटा मोटा ढाँचा ही बताया जा सकता है। वह निम्न होगा।
 
   
 
   
    धर्म  
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धर्म  
  शिक्षा
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शिक्षा
  कौशल विधा निर्धारण/नियमन व्यवस्था        स्वावलंबी ग्राम शासन       
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कौशल विधा निर्धारण/नियमन व्यवस्था        स्वावलंबी ग्राम शासन       
 
            प्र संगोपात्त हस्तक्षेप
 
            प्र संगोपात्त हस्तक्षेप
 
कौशल विधा निर्धारण  कौशल विधा व्यवस्था   प्रशासन  सुरक्षा  न्याय
 
कौशल विधा निर्धारण  कौशल विधा व्यवस्था   प्रशासन  सुरक्षा  न्याय
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  शोध  जातिधर्म    कौशल-विधा-पंचायत अनुसंधान  प्रचार     निरीक्षण/मार्गदर्शन   कौटुम्बिक उद्योग समूह   
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शोध  जातिधर्म    कौशल-विधा-पंचायत अनुसंधान  प्रचार     निरीक्षण/मार्गदर्शन   कौटुम्बिक उद्योग समूह   
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    कौशल प्रशिक्षण      उत्पादन विनिमय/क्रय/विक्रय
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कौशल प्रशिक्षण      उत्पादन विनिमय/क्रय/विक्रय
 
ऊपर बताया है कि समाज की व्यवस्थाओं का ढाँचा पक्का नहीं होता है। इसे हम उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे। किसी भी विशेष कौशल विधा में शोध और अनुसंधान की अलग से व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन वह अनिवार्य तो नहीं है। वह तो उस कौशल विधा के जानकार व्यक्तिश: अपने स्तरपर करते ही रहनेवाले हैं। लेकिन व्यवस्था का अर्थ है चराचर के हित में ऐसी अध्ययन और अनुसंधान की, स्वाध्याय की भावना समाज में व्याप्त होने से है। प्राचीन काल से गुरूकुलों में समावर्तन के समय दिये गये उपदेश/आदेश ‘स्वाध्यायान् मा प्रमद:’ का यही अर्थ होता है।
 
ऊपर बताया है कि समाज की व्यवस्थाओं का ढाँचा पक्का नहीं होता है। इसे हम उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे। किसी भी विशेष कौशल विधा में शोध और अनुसंधान की अलग से व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन वह अनिवार्य तो नहीं है। वह तो उस कौशल विधा के जानकार व्यक्तिश: अपने स्तरपर करते ही रहनेवाले हैं। लेकिन व्यवस्था का अर्थ है चराचर के हित में ऐसी अध्ययन और अनुसंधान की, स्वाध्याय की भावना समाज में व्याप्त होने से है। प्राचीन काल से गुरूकुलों में समावर्तन के समय दिये गये उपदेश/आदेश ‘स्वाध्यायान् मा प्रमद:’ का यही अर्थ होता है।
    
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
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