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→‎शासन व्यवस्था: लेख सम्पादित किया
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शासन का या न्यायदान का केन्द्र जितना दूर उतनी अन्याय की संभावनाएँ बढतीं हैं। इसलिये शासन विकेन्द्रित होना आवश्यक है। कुटुम्ब पंचायत, ग्रामपंचायत, जातिपंचायत, जनपद पंचायत आदि स्तरपर भी न्याय और शासन की व्यवस्था होने से अन्याय की संभावनाएँ न्यूनतम हो जातीं हैं।
 
शासन का या न्यायदान का केन्द्र जितना दूर उतनी अन्याय की संभावनाएँ बढतीं हैं। इसलिये शासन विकेन्द्रित होना आवश्यक है। कुटुम्ब पंचायत, ग्रामपंचायत, जातिपंचायत, जनपद पंचायत आदि स्तरपर भी न्याय और शासन की व्यवस्था होने से अन्याय की संभावनाएँ न्यूनतम हो जातीं हैं।
 
शासन के बारे में कहा है जो कम से कम शासन करे फिर भी किसीपर अन्याय नहीं हो तब वह अच्छा शासन होता है। किन्तु सामाजिक अनुशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी शिक्षा या धर्म क्षेत्र की होती है| शासन का काम तो अनुशासनहींनता का नियंत्रण मात्र होता है|
 
शासन के बारे में कहा है जो कम से कम शासन करे फिर भी किसीपर अन्याय नहीं हो तब वह अच्छा शासन होता है। किन्तु सामाजिक अनुशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी शिक्षा या धर्म क्षेत्र की होती है| शासन का काम तो अनुशासनहींनता का नियंत्रण मात्र होता है|
  २.१  सत्ता का (विकेंद्रित) स्वरूप      
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२.१  सत्ता का (विकेंद्रित) स्वरूप      
२.१.१ भौगोलिक : २.१.१.१ राष्ट्र       २.१.१.२ प्रदेश   २.१.१.३ जनपद/तीर्थक्षेत्र      २.१.१.४ महानगर/शहर  २.१.१.५ ग्राम
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२.१.१ भौगोलिक : २.१.१.१ राष्ट्र       २.१.१.२ प्रदेश   २.१.१.३ जनपद/तीर्थक्षेत्र      २.१.१.४ महानगर/शहर  २.१.१.५ ग्राम
    २.१.२ सामाजिक :  २.१.२.१ विद्वत्सभा    २.१.२.२ कौशल विधा पंचायत २.१.२.३ गुरुकुल  २.१.२.४ कुटुम्ब   
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२.१.२ सामाजिक :  २.१.२.१ विद्वत्सभा    २.१.२.२ कौशल विधा पंचायत २.१.२.३ गुरुकुल  २.१.२.४ कुटुम्ब   
  २.२ शासन के अंग  
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२.२ शासन के अंग  
    २.२.१ शासक : महत्वपूर्ण पहलू  
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२.२.१ शासक : महत्वपूर्ण पहलू  
- शासक धर्म शास्त्र का जानकार हो। शासन धर्म द्वारा नियंत्रित, नियमित और निर्देशित होना चाहिये।
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- शासक धर्म शास्त्र का जानकार हो। शासन धर्म द्वारा नियंत्रित, नियमित और निर्देशित होना चाहिये।
- अपने पीछे अपने से भी अधिक श्रेष्ठ शासक याने उत्तराधिकारी जनता को देना यह शासक का कर्तव्य है। इस दृष्टि से शासक के वंशानुगत होने से श्रेष्ठ भावि शासक के पैदा करने में, उस का संस्कार, शिक्षण और प्रशिक्षण करने में सुविधा होती है।
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- अपने पीछे अपने से भी अधिक श्रेष्ठ शासक याने उत्तराधिकारी जनता को देना यह शासक का कर्तव्य है। इस दृष्टि से शासक के वंशानुगत होने से श्रेष्ठ भावि शासक के पैदा करने में, उस का संस्कार, शिक्षण और प्रशिक्षण करने में सुविधा होती है।
    - शासक जन्मजात होता है। जिसका जन्मजात स्वभाव शासक का है वही श्रेष्ठ शासक बन सकता है। इसलिये शासक को जन्म देने से लेकर शासक निर्माण के प्रयास करने चाहिये। शसक निर्माण की प्रक्रिया आनुवंशिक बनाने से शासक निर्माण की प्रक्रिया में सफलता की संभावनाएँ बहुत अधिक होतीं हैं। शासक स्वभाववाले पति-पत्नि, घर में शासक बनने के लिये पोषक वातावरण, गर्भधारणा के समय पति-पत्नि का श्रेष्ठ शासक को जन्म देने का संकल्प, शासक के लिये अनुकूल गर्भ संस्कार, बालक का स्वभाव शासक जैसा है या नहीं यह जाँचने के लिये निरंतर स्वभाव का निरीक्षण और परीक्षण, शैशव में भी शासक निर्माण के लिये अनुकूल वातावरण के साथ शासक बनने के लिये योग्य संस्कार, विद्यालय में भी बालक का स्वभाव शासक जैसा है या नहीं यह जाँचने के लिये निरंतर स्वभाव का निरीक्षण और परीक्षण, शिक्षण और प्रशिक्षण इन बातों की आश्वस्ति करने से कोई कारण नहीं कि अच्छा शासक निर्माण न हो।
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- शासक जन्मजात होता है। जिसका जन्मजात स्वभाव शासक का है वही श्रेष्ठ शासक बन सकता है। इसलिये शासक को जन्म देने से लेकर शासक निर्माण के प्रयास करने चाहिये। शसक निर्माण की प्रक्रिया आनुवंशिक बनाने से शासक निर्माण की प्रक्रिया में सफलता की संभावनाएँ बहुत अधिक होतीं हैं। शासक स्वभाववाले पति-पत्नि, घर में शासक बनने के लिये पोषक वातावरण, गर्भधारणा के समय पति-पत्नि का श्रेष्ठ शासक को जन्म देने का संकल्प, शासक के लिये अनुकूल गर्भ संस्कार, बालक का स्वभाव शासक जैसा है या नहीं यह जाँचने के लिये निरंतर स्वभाव का निरीक्षण और परीक्षण, शैशव में भी शासक निर्माण के लिये अनुकूल वातावरण के साथ शासक बनने के लिये योग्य संस्कार, विद्यालय में भी बालक का स्वभाव शासक जैसा है या नहीं यह जाँचने के लिये निरंतर स्वभाव का निरीक्षण और परीक्षण, शिक्षण और प्रशिक्षण इन बातों की आश्वस्ति करने से कोई कारण नहीं कि अच्छा शासक निर्माण न हो।
    - शासक के लिये अनिवार्य बातें : राजनीति, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, तर्कशास्त्र, युद्धशास्त्र, इतिहास, भूगोल इन विषयों में बालक पारंगत हो।        
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- शासक के लिये अनिवार्य बातें : राजनीति, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, तर्कशास्त्र, युद्धशास्त्र, इतिहास, भूगोल इन विषयों में बालक पारंगत हो।        
    - राजसी स्वभाव की वरीयता लेकिन सात्विक स्वभाव के भी प्रखर गुणों से पूर्ण ऐसा व्यक्ति ही श्रेष्ठ शासक बन सकता है।
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- राजसी स्वभाव की वरीयता लेकिन सात्विक स्वभाव के भी प्रखर गुणों से पूर्ण ऐसा व्यक्ति ही श्रेष्ठ शासक बन सकता है।
    २.२.२ मंत्रीमंडल : मंत्रीमंडल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण बातें निम्न हैं।  
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२.२.२ मंत्रीमंडल : मंत्रीमंडल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण बातें निम्न हैं।  
    - मंत्रीयों की संख्या में समाज के सभी महत्वपूर्ण सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
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- मंत्रीयों की संख्या में समाज के सभी महत्वपूर्ण सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
    - मंत्रियों की निष्ठा राष्ट्र के प्रति हो। शासकपर निष्ठा भी महत्वपूर्ण है। लेकिन प्राथमिकता राष्ट्र हित को देनेवाला मनुष्य ही मंत्री बनाया जाए।  
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- मंत्रियों की निष्ठा राष्ट्र के प्रति हो। शासकपर निष्ठा भी महत्वपूर्ण है। लेकिन प्राथमिकता राष्ट्र हित को देनेवाला मनुष्य ही मंत्री बनाया जाए।  
    - मंत्री के गुण : शास्त्रों का जानकार, सात्त्विक और राजसी स्वभाव का मिश्रण है ऐसा, विपरीत परिस्थिती में भी शांत रहनेवाला, राष्ट्रनिष्ठ, शासकनिष्ठ, संवादकुशल, सदैव जाग्रत, दूर की भी सोचनेवाला आदि हो|   
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- मंत्री के गुण : शास्त्रों का जानकार, सात्त्विक और राजसी स्वभाव का मिश्रण है ऐसा, विपरीत परिस्थिती में भी शांत रहनेवाला, राष्ट्रनिष्ठ, शासकनिष्ठ, संवादकुशल, सदैव जाग्रत, दूर की भी सोचनेवाला आदि हो|   
    २.२.३ गुप्तचर : गुप्तचर की ऑंखों से शासक अपने राज्य और अन्य राज्यों को भी को देखता है। गुप्तचर विभाग का प्रभावी होना अच्छे शासक का लक्षण है। गुप्तचर संवादचतुर, भेष बदलने में माहिर, विविध कलाओं में पारंगत, राष्ट्रनिष्ठ, शासननिष्ठ, इंद्रियविजयी, खरीदा नहीं जानेवाला, उचितभाषी, बहुभाषी, प्रत्युत्पन्नमति आदि गुणों से संपन्न हो। मजहबी और आसुरी विस्तारवादी जनता और देशों की सूक्ष्मतम जानकारी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है|
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२.२.३ गुप्तचर : गुप्तचर की ऑंखों से शासक अपने राज्य और अन्य राज्यों को भी को देखता है। गुप्तचर विभाग का प्रभावी होना अच्छे शासक का लक्षण है। गुप्तचर संवादचतुर, भेष बदलने में माहिर, विविध कलाओं में पारंगत, राष्ट्रनिष्ठ, शासननिष्ठ, इंद्रियविजयी, खरीदा नहीं जानेवाला, उचितभाषी, बहुभाषी, प्रत्युत्पन्नमति आदि गुणों से संपन्न हो। मजहबी और आसुरी विस्तारवादी जनता और देशों की सूक्ष्मतम जानकारी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है|
    २.२.४ सेना : राष्ट्र की सेना दो प्रकार की होनी चाहिये। पहली प्रकट सेना और दूसरी अप्रकट सेना। प्रकट सेना तो नित्य और वेतनभोग़ी होगी। लेकिन अप्रकट सेना यह जनता का रजोगुणी वर्ग है जिसमें दूसरे क्रमांकपर सात्विक गुण उपस्थित है। अप्रकट सेना के प्रशिक्षण की नियमित व्यवस्था आवश्यक है।     
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२.२.४ सेना : राष्ट्र की सेना दो प्रकार की होनी चाहिये। पहली प्रकट सेना और दूसरी अप्रकट सेना। प्रकट सेना तो नित्य और वेतनभोग़ी होगी। लेकिन अप्रकट सेना यह जनता का रजोगुणी वर्ग है जिसमें दूसरे क्रमांकपर सात्विक गुण उपस्थित है। अप्रकट सेना के प्रशिक्षण की नियमित व्यवस्था आवश्यक है।     
२.२.५ दुर्ग : दुर्ग का महत्त्व आज भी बहुत अधिक है| दुर्ग से तात्पर्य सुरक्षित स्थान से है| वर्तमान में इस दृष्टी से भूमिगत बकर यह तुलना में सबसे सुरक्षित माना जा सकता है| दुर्ग से एक मतलब गूढ़ स्थान से भी है| ढूँढने में अत्यंत कठिन, मार्गदर्शन के बिना जहाँ पहुँचना अत्यंत कठिन और पेंचिदा हो ऐसा दुर्गम स्थान|  
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२.२.५ दुर्ग : दुर्ग का महत्त्व आज भी बहुत अधिक है| दुर्ग से तात्पर्य सुरक्षित स्थान से है| वर्तमान में इस दृष्टी से भूमिगत बकर यह तुलना में सबसे सुरक्षित माना जा सकता है| दुर्ग से एक मतलब गूढ़ स्थान से भी है| ढूँढने में अत्यंत कठिन, मार्गदर्शन के बिना जहाँ पहुँचना अत्यंत कठिन और पेंचिदा हो ऐसा दुर्गम स्थान|  
    २.२.६ धन : शासन कर के रूप में जनता से धन प्राप्त करे यह सर्वमान्य है। यह प्रमाण कितना हो यही विवाद का विषय बनता है। जब शिक्षा व्यवस्था अच्छी होती है तब शासन अधिक से अधिक १६ % कर ले। कर की वसूली ग्रामों से की जाए। परिवारों से नहीं। शासन व्यवस्था का खर्चा उचित होता है तो कर १६% से अधिक लेने की आवश्यकता नहीं होती।
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२.२.६ धन : शासन कर के रूप में जनता से धन प्राप्त करे यह सर्वमान्य है। यह प्रमाण कितना हो यही विवाद का विषय बनता है। जब शिक्षा व्यवस्था अच्छी होती है तब शासन अधिक से अधिक १६ % कर ले। कर की वसूली ग्रामों से की जाए। परिवारों से नहीं। शासन व्यवस्था का खर्चा उचित होता है तो कर १६% से अधिक लेने की आवश्यकता नहीं होती।
  २.२.७ मित्र : यहाँ मित्र से तात्पर्य प्रत्यक्ष जिनसे मित्रता है ऐसे लोग, हितचिंतक, सहानुभूति रखनेवाले, सज्जन आदि सभी से है। यह वर्ग जितना अधिक होगा शासन करना उतना ही सरल होगा। इसी प्रकार से यदि शासन अच्छा होगा तो यह वर्ग बहुत बडा होगा। अर्थात् यह अन्योन्याश्रित बातें हैं। इसका प्रारंभबिंदू हमेशा शासक ही होगा। वह कितना श्रेष्ठ शासन प्रजा को दे सकता है इसपर उसके मित्र-कुटुम्ब की संख्या और प्रभाव बढेगा।  
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२.२.७ मित्र : यहाँ मित्र से तात्पर्य प्रत्यक्ष जिनसे मित्रता है ऐसे लोग, हितचिंतक, सहानुभूति रखनेवाले, सज्जन आदि सभी से है। यह वर्ग जितना अधिक होगा शासन करना उतना ही सरल होगा। इसी प्रकार से यदि शासन अच्छा होगा तो यह वर्ग बहुत बडा होगा। अर्थात् यह अन्योन्याश्रित बातें हैं। इसका प्रारंभबिंदू हमेशा शासक ही होगा। वह कितना श्रेष्ठ शासन प्रजा को दे सकता है इसपर उसके मित्र-कुटुम्ब की संख्या और प्रभाव बढेगा।  
 
२.३ शासन का स्वरूप  
 
२.३ शासन का स्वरूप  
  २.३.१ प्रजा के साथ पिता-संतान जैसा संबंध। 
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२.३.१ प्रजा के साथ पिता-संतान जैसा संबंध। 
  २.३.२ प्रांत, जनपद/जिला, महानगरपालिका, शहरपालिका, ग्रामपंचायत, जातिपंचायत, कुटुम्ब आदि में विकेंद्रित शासन व्यवस्था में जबतक कोई वर्धिष्णु समस्या की सम्भावना नहीं दिखाई देती हस्तक्षेप नहीं करना। लेकिन ऐसी संभावनाओं की दृष्टि से सदैव जागरूक और कार्यवाही के लिये तत्पर रहना।
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२.३.२ प्रांत, जनपद/जिला, महानगरपालिका, शहरपालिका, ग्रामपंचायत, जातिपंचायत, कुटुम्ब आदि में विकेंद्रित शासन व्यवस्था में जबतक कोई वर्धिष्णु समस्या की सम्भावना नहीं दिखाई देती हस्तक्षेप नहीं करना। लेकिन ऐसी संभावनाओं की दृष्टि से सदैव जागरूक और कार्यवाही के लिये तत्पर रहना।
  २.३.३ राष्ट्र को वर्धिष्णु रखना यह भी शासक की सुरक्षा नीति का अनिवार्य हिस्सा होता है।
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२.३.३ राष्ट्र को वर्धिष्णु रखना यह भी शासक की सुरक्षा नीति का अनिवार्य हिस्सा होता है।
  २.३.४ आदर्श के रूप में तो सर्वसहमति के लोकतंत्र से श्रेष्ठ अन्य कोई शासन व्यवस्था नहीं हो सकती। सामान्यत: जैसे जैसे आबादी और भौगोलिक क्षेत्र बढता जाता है लोकतंत्र की परिणामकारकता कम होती जाती है। फिर भी ग्राम स्तरपर ग्रामसभाओं जैसा सर्वसहमति का लोकतंत्र तो शीघ्रतासे शुरू किया जा सकता है। नगर और महानगरों में भी प्रभागों की रचना हो। प्रभागों की आबादी ५००० तक ही रहे। ग्राम की तरह ही प्रभागों में सर्वसहमति से पंचायत समिती सदस्य और प्रतिनिधि का चयन (निर्वाचन नहीं) हो।
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२.३.४ आदर्श के रूप में तो सर्वसहमति के लोकतंत्र से श्रेष्ठ अन्य कोई शासन व्यवस्था नहीं हो सकती। सामान्यत: जैसे जैसे आबादी और भौगोलिक क्षेत्र बढता जाता है लोकतंत्र की परिणामकारकता कम होती जाती है। फिर भी ग्राम स्तरपर ग्रामसभाओं जैसा सर्वसहमति का लोकतंत्र तो शीघ्रतासे शुरू किया जा सकता है। नगर और महानगरों में भी प्रभागों की रचना हो। प्रभागों की आबादी ५००० तक ही रहे। ग्राम की तरह ही प्रभागों में सर्वसहमति से पंचायत समिती सदस्य और प्रतिनिधि का चयन (निर्वाचन नहीं) हो।
  जनपद/नगर/महानगर जैसे बडे भौगोलिक/आबादीवाले क्षेत्र के लिये ग्रामसभाओं/प्रभागों द्वारा (सर्वसहमति से) चयनित (निर्वाचित नहीं) प्रतिनिधियों की समिती का शासन रहे। इस समिती का प्रमुख भी सर्वसहमति से ही तय हो। किसी ग्राम/प्रभाग से सर्वसहमति से प्रतिनिधि चयन नहीं होनेसे उस ग्राम/प्रभाग का प्रतिनिधित्व समिती में नहीं रहेगा। लेकिन समिती के निर्णय ग्राम/प्रभाग को लागू होंगे। समिती भी निर्णय करते समय जिस ग्राम का प्रतिनिधित्व नहीं है उसके हित को ध्यान में रखकर ही निर्णय करे।  
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जनपद/नगर/महानगर जैसे बडे भौगोलिक/आबादीवाले क्षेत्र के लिये ग्रामसभाओं/प्रभागों द्वारा (सर्वसहमति से) चयनित (निर्वाचित नहीं) प्रतिनिधियों की समिती का शासन रहे। इस समिती का प्रमुख भी सर्वसहमति से ही तय हो। किसी ग्राम/प्रभाग से सर्वसहमति से प्रतिनिधि चयन नहीं होनेसे उस ग्राम/प्रभाग का प्रतिनिधित्व समिती में नहीं रहेगा। लेकिन समिती के निर्णय ग्राम/प्रभाग को लागू होंगे। समिती भी निर्णय करते समय जिस ग्राम का प्रतिनिधित्व नहीं है उसके हित को ध्यान में रखकर ही निर्णय करे।  
जनपद समितीयाँ प्रदेश के शासक का चयन करेंगी। ऐसा शासक भी सर्वसहमति से ही चयनित होगा। प्रदेशों के शासक फिर सर्वसहमतिसे राष्ट्र के प्रधान शासक का या सम्राट का चयन करेंगे। जनपद/नगर/ महानगर, प्रदेश, राष्ट्र आदि सभी स्तरों के चयनित प्रमुख अपने अपने सलाहकार और सहयोगियों का चयन करेंगे।
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जनपद समितीयाँ प्रदेश के शासक का चयन करेंगी। ऐसा शासक भी सर्वसहमति से ही चयनित होगा। प्रदेशों के शासक फिर सर्वसहमतिसे राष्ट्र के प्रधान शासक का या सम्राट का चयन करेंगे। जनपद/नगर/ महानगर, प्रदेश, राष्ट्र आदि सभी स्तरों के चयनित प्रमुख अपने अपने सलाहकार और सहयोगियों का चयन करेंगे।
  सर्वसहमति के अभाव में धर्म व्यवस्था याने विद्वानों की सभा जनमत को ध्यान में लेकर और शासक बनने की योग्यता और क्षमता को ध्यान में लेकर शासक कौन बनेगा इसका निर्णय करेगी।           २.३.५ शासक निर्माण : श्रेष्ठ शासक निर्माण करने की दृष्टि से धर्मव्यवस्था अपनी व्यवस्था निर्माण करे। इस व्यवस्था द्वारा चयनित, संस्कारित, शिक्षित और प्रशिक्षित शासक अन्य किसी भी शासक से सामान्यत: श्रेष्ठ होगा। इस व्यवस्था के कारण समाज में प्रधान शासक बनने की क्षमता रखनेवाले लोगों का अभाव नहीं निर्माण होगा।  
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सर्वसहमति के अभाव में धर्म व्यवस्था याने विद्वानों की सभा जनमत को ध्यान में लेकर और शासक बनने की योग्यता और क्षमता को ध्यान में लेकर शासक कौन बनेगा इसका निर्णय करेगी।           २.३.५ शासक निर्माण : श्रेष्ठ शासक निर्माण करने की दृष्टि से धर्मव्यवस्था अपनी व्यवस्था निर्माण करे। इस व्यवस्था द्वारा चयनित, संस्कारित, शिक्षित और प्रशिक्षित शासक अन्य किसी भी शासक से सामान्यत: श्रेष्ठ होगा। इस व्यवस्था के कारण समाज में प्रधान शासक बनने की क्षमता रखनेवाले लोगों का अभाव नहीं निर्माण होगा।  
 
२.४ शासन का आधार : शासन के दो आधार हैं| पहला है राजधर्म का पालन (प्रजा को पुत्रवत मानकर व्यवहार करना) और दूसरा है कर-प्रणाली|
 
२.४ शासन का आधार : शासन के दो आधार हैं| पहला है राजधर्म का पालन (प्रजा को पुत्रवत मानकर व्यवहार करना) और दूसरा है कर-प्रणाली|
 
२.४.१ लोकानुरंजन और धर्माचरण : शासन का आधार केवल भौतिक सत्ता नहीं तो धर्माचरण और लोकानुरंजन का आचरण होना चाहिये। सज्जन आश्वस्त रहें और दुर्जन दण्ड से नियंत्रित रहें यही शासन से अपेक्षा होती है। शिक्षा, धर्म (रिलीजन/मजहब/पंथों के नहीं)के काम जैसे धर्मशाला, अन्नछत्र, सड़कें बनाना आदि जो भी बातें समाज को धर्माचरण सिखानेवाली या करवानेवाली होंगी शासन का काम सरल करेंगी। इसलिये शासनने ऐसे सभी कामों को संरक्षण, समर्थन और आवश्यकतानुसार सहायता भी देनी चाहिये।  
 
२.४.१ लोकानुरंजन और धर्माचरण : शासन का आधार केवल भौतिक सत्ता नहीं तो धर्माचरण और लोकानुरंजन का आचरण होना चाहिये। सज्जन आश्वस्त रहें और दुर्जन दण्ड से नियंत्रित रहें यही शासन से अपेक्षा होती है। शिक्षा, धर्म (रिलीजन/मजहब/पंथों के नहीं)के काम जैसे धर्मशाला, अन्नछत्र, सड़कें बनाना आदि जो भी बातें समाज को धर्माचरण सिखानेवाली या करवानेवाली होंगी शासन का काम सरल करेंगी। इसलिये शासनने ऐसे सभी कामों को संरक्षण, समर्थन और आवश्यकतानुसार सहायता भी देनी चाहिये।  
 
जिस प्रकार से धर्माचरण करनेवाले लोगों को शासन की ओर से समर्थन, सहायता और संरक्षण मिलना चाहिये उसी प्रकार जो अधर्माचरणी हैं, अधर्मयुक्त कामनाएँ करनेवाले और/या अधर्मयुक्त धन, साधन संसाधनों का प्रयोग करनेवाले हैं, उन के लिये दण्डविधान की व्यवस्था चलाना भी शासन की जिम्मेदारी है।
 
जिस प्रकार से धर्माचरण करनेवाले लोगों को शासन की ओर से समर्थन, सहायता और संरक्षण मिलना चाहिये उसी प्रकार जो अधर्माचरणी हैं, अधर्मयुक्त कामनाएँ करनेवाले और/या अधर्मयुक्त धन, साधन संसाधनों का प्रयोग करनेवाले हैं, उन के लिये दण्डविधान की व्यवस्था चलाना भी शासन की जिम्मेदारी है।
  २.४.२ करप्राप्ति : शासकीय व्यय के लिये शासन को जनता से कर लेना चाहिये। कर के विषय में भारतीय विचार स्पष्ट हैं। जिस प्रकार से और प्रमाण में भूमीपर के जल के बाष्पीभवन से मेघ बनते हैं उसी प्रमाण में ‘कर’ लेना चाहिये। मेघ बनने के बाद जिस प्रकार से वह मेघ पूरी धरती को वह पानी फिर से लौटा देते हैं, उसी प्रकार से शासन अपने लिये उस कर से न्यूनतम व्यय कर बाकी सब जनता के हित के लिये व्यय करे यह अपेक्षा है। यह करते समय वह जनता में कोई भेदभाव नहीं करे। कर के संबंध में भ्रमर की भी उपमा दी गई है। भ्रमर फूल से उतना ही रस लेता है कि जिससे वह फूल मुरझा नहीं जाए। शासन भी जनता से इतना ही कर ले जिससे जनता को कर देने में कठिनाई अनुभव न हो। शासकों के अभोगी होने से शासन तंत्रपर होनेवाला व्यय कम होता है| शेष धन को शासन समाज हित के कार्यों में व्यय करे|                   
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२.४.२ करप्राप्ति : शासकीय व्यय के लिये शासन को जनता से कर लेना चाहिये। कर के विषय में भारतीय विचार स्पष्ट हैं। जिस प्रकार से और प्रमाण में भूमीपर के जल के बाष्पीभवन से मेघ बनते हैं उसी प्रमाण में ‘कर’ लेना चाहिये। मेघ बनने के बाद जिस प्रकार से वह मेघ पूरी धरती को वह पानी फिर से लौटा देते हैं, उसी प्रकार से शासन अपने लिये उस कर से न्यूनतम व्यय कर बाकी सब जनता के हित के लिये व्यय करे यह अपेक्षा है। यह करते समय वह जनता में कोई भेदभाव नहीं करे। कर के संबंध में भ्रमर की भी उपमा दी गई है। भ्रमर फूल से उतना ही रस लेता है कि जिससे वह फूल मुरझा नहीं जाए। शासन भी जनता से इतना ही कर ले जिससे जनता को कर देने में कठिनाई अनुभव न हो। शासकों के अभोगी होने से शासन तंत्रपर होनेवाला व्यय कम होता है| शेष धन को शासन समाज हित के कार्यों में व्यय करे|                   
२.५ सत्ता सन्तुलन  : सत्ता का खडा और आडा विकेंद्रीकरण करने से सत्ताधारी बिगडने की संभावनाएँ कम हो जातीं हैं। धर्मव्यवस्था के पास केवल नैतिक सत्ता होती है। शासन के पास भौतिक सत्ता होती है। सत्ता का इस प्रकार से विभाजन करने से शासन बिगडने से बचता है। इसमें भी धर्म की सत्ता याने नैतिक सत्ता को जब अधिक सम्मान समाज देता है तब स्वाभाविक ही भौतिक शासन धर्म के नियंत्रण में रहता है।  
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२.५ सत्ता सन्तुलन  : सत्ता का खडा और आडा विकेंद्रीकरण करने से सत्ताधारी बिगडने की संभावनाएँ कम हो जातीं हैं। धर्मव्यवस्था के पास केवल नैतिक सत्ता होती है। शासन के पास भौतिक सत्ता होती है। सत्ता का इस प्रकार से विभाजन करने से शासन बिगडने से बचता है। इसमें भी धर्म की सत्ता याने नैतिक सत्ता को जब अधिक सम्मान समाज देता है तब स्वाभाविक ही भौतिक शासन धर्म के नियंत्रण में रहता है।
    
== समृद्धि व्यवस्था ==
 
== समृद्धि व्यवस्था ==
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