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We shall see the कारक - meaning initially.
 
We shall see the कारक - meaning initially.
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=== '''अनभिहिते''' ===
+
=== कारकार्थः ===
 +
 
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===='''अनभिहिते'''====
 
० The सुप्-प्रत्यय is prescribed for a प्रातिपदिक to give a specific कारक meaning only if that कारक is अनभिहित (सूत्र- अनभिहिते 2-3-1)
 
० The सुप्-प्रत्यय is prescribed for a प्रातिपदिक to give a specific कारक meaning only if that कारक is अनभिहित (सूत्र- अनभिहिते 2-3-1)
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For eg.
 
For eg.
 
{| class="wikitable"
 
{| class="wikitable"
|+'''अभिहित'''
   
!
 
!
 
!कर्तृ अभिहित, other कारकs अनभिहित
 
!कर्तृ अभिहित, other कारकs अनभिहित
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|शयन -> अधिकरण अभिहित by कृत्
 
|शयन -> अधिकरण अभिहित by कृत्
 
|}
 
|}
कारकार्थः
     −
           ०   अनभिहिते
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==== द्वितीया-विभक्ति ====
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'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति – अं औट् शस्'''
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० The sutra कर्मणि द्वितीया (2-3-2), prescribes द्वितीया-विभक्ति for a प्रातिपदिक that refers to कर्म-कारक in a particular action.
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 +
० Only if  कर्म-कारक is not already mentioned/indicated (अभिहित) by any other MEANS, i.e. अनभिहित
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० If it is already mentioned then प्रातिपदिक will get प्रथमा-विभक्ति, because प्रातिपदिक without सुप्-प्रत्यय cannot be used in a sentence.
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'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्'''
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Eg: Rama killed Ravana
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क्रिया- हननम् (act of killing) कर्तृकारक - राम ,कर्मकारक - रावण
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Let us see how to represent this -
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      ०   Let us take तिङ्न्त-पद indicating कर्तृ-कारक in भूतकाल (past tense)
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      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
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      ०   in लङ् लकार (past tense), प्रथम-पुरुष ,एकवचन =>अहन्
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The कर्मकारक is रावण and तिङ्न्त-पद अहन् is indicating कर्तृ-कारक and not कर्मकारक, hence कर्मकारक is अनभिहित
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Therefore the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक will get =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्
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रावणं अहन्।
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'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्'''
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Eg: Rama killed Ravana
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क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण
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Let us see how to represent this little differently-
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      ०   Let us take तिङ्न्त-पद indicating कर्म-कारक in भूतकाल (past tense)
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      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
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      ०   in लङ् लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्यत
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 +
      ०   As अहन्यत is indicating कर्मकारक hence कर्मकारक is अभिहित by तिङन्त-पद
 +
 
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      ०   Therefore, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here for the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक and thus gets प्रथमा-विभक्ति
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रावणः अहन्यत।
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'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with कृदन्तम्'''
 +
 
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Eg: Rama killed Ravana
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क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this -
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   Let us consider कृदन्त indicating कर्तृ-कारक
 +
 
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      ०  हन् + क्तवतु =>हतवत् (प्रातिपदिकम्)
 +
 
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      ०  हतवत् + सु =>हतवान्
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The कर्मकारक is रावण and कृदन्त-पद is indicating कर्तृ-कारक and not कर्मकारक, hence कर्मकारक अनभिहित
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Therefore the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक will get =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्
 +
 
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रावणं हतवान्।
 +
 
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'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with कृदन्तम्'''
 +
 
 +
Eg: Rama killed Ravana
 +
 
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क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this little differently-
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   let us consider, कृदन्त indicating कर्म-कारक
 +
 
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      ०  हन् + क्त =>हत (प्रातिपदिकम्) is indicating कर्मकारक
 +
 
 +
      ०   In this case, कर्मकारक अभिहित by कृदन्त-प्रातिपदिकम्
 +
 
 +
      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here thus gets प्रथमा-विभक्ति
 +
 
 +
रावणः हतः।
 +
 
 +
==== तृतीया-विभक्ति ====
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति(टा भ्याम् भिस्)'''
 +
 
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      ०   The sutra कर्तृकरणयोः तृतीया (2-3-18), prescribes तृतीया-विभक्ति for a प्रातिपदिक that is कर्तृ-कारक or करण-कारक in the action.
 +
 
 +
      ०   Only if कर्तृ-कारक or करण-कारक is not already mentioned/indicated by any other MEANS (अनभिहिते)
 +
 
 +
      ०   If it is already mentioned then प्रातिपदिक will get प्रथमा-विभक्ति , because प्रातिपदिक without सुप्-प्रत्यय cannot be used in a sentence.
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्'''
 +
 
 +
Eg: Rama killed Ravana
 +
 
 +
क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this -
 +
 
 +
      ०  तिङ्न्त-पद indicating कर्तृ-कारक in past tense
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   in लङ्-लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्
 +
 
 +
      ०  कर्मकारक - रावण =>द्वितीया विभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्
 +
 
 +
      ०   Here कर्तृकारक is indicated by तिङन्त-पद hence कर्तृ-कारक will not get the prescribed तृतीया-विभक्ति, instead will get प्रथमा-विभक्ति (रामः)
 +
 
 +
रामः रावणं अहन्।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्'''
 +
 
 +
क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this differently-
 +
 
 +
      ०  तिङ्न्त-पद indicating कर्म-कारक past tense
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   in लङ्-लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्यत
 +
 
 +
      ०  अहन्यत is indicating कर्मकारक
 +
 
 +
      ०   In this case, कर्मकारक is अभिहित by तिङन्त-पद but not कर्तृ-कारक
 +
 
 +
      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here, कर्म-कारक gets प्रथमा-विभक्ति
 +
 
 +
      ०   Where as, कर्तृ-कारक is अनभिहित, so,कर्तृ-कारक will get prescribed
 +
 
 +
तृतीया-विभक्ति =>रामेण
 +
 
 +
रामेण रावणः अहन्यत।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with कृदन्तम्'''
 +
 
 +
Eg: Rama killed Ravana
 +
 
 +
क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this –
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   with कृदन्त indicating कर्तृ-कारक
 +
 
 +
      ०  हन् + क्तवतु =>हतवत् (प्रातिपदिकम्)
 +
 
 +
      ०  हतवत् + सु =>हतवान्
 +
 
 +
      ०  कर्मकारक - रावण =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक is indicated by कृदन्त-प्रातिपदिक हतवत्, hence राम-प्रातिपदिक will not get the prescribed तृतीया-विभक्ति, instead gets प्रथमा-विभक्ति (रामः)
 +
 
 +
रामः रावणं हतवान्।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with कृदन्तम्'''
 +
 
 +
Eg: Rama killed Ravana
 +
 
 +
क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण
 +
 
 +
Let us see how to represent this in another way-
 +
 
 +
      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः
 +
 
 +
      ०   with कृदन्त indicating कर्म-कारक
 +
 
 +
      ०  हन्+ क्त =>हत (प्रातिपदिकम्)
 +
 
 +
      ०  हत is indicating कर्मकारक
 +
 
 +
In this case, कर्मकारक is अभिहित by कृदन्त-प्रातिपदिकम्
 +
 
 +
      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here, thus gets प्रथमा-विभक्ति
 +
 
 +
      ०   Whereas, कर्तृकारक is not अभिहित, so, कर्तृ-कारक will get prescribed तृतीया-विभक्ति (रामेण)
 +
 
 +
रामेण रावणः हतः।
 +
 
 +
'''सुप-अर्थः - तृतीया-विभक्ति - करणकारक'''
 +
 
 +
Eg: Rama killed Ravana with an arrow.
 +
 
 +
क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण
 +
 
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Rama used an arrow (बाण) to kill Ravana, so बाण is करण-कारक
 +
 
 +
      ०  तृतीया-विभक्ति is prescribed for करण-कारक if अनभिहित
 +
 
 +
      ०  तृतीया-विभक्ति of बाण =>बाणेन, in all earlier cases we shall add this
 +
 
 +
      ०  रामः बाणेन रावणं अहन्।
 +
 
 +
      ०  रामेण बाणेन रावणः अहन्यत।
 +
 
 +
      ०  रामः बाणेन रावणं हतवान्।
 +
 
 +
      ०  रामेण बाणेन रावणः हतः।
 +
 
 +
==== चतुर्थी-विभक्ति ====
 +
'''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक'''
 +
 
 +
The sutra चतुर्थी सम्प्रदाने (2-3-13), Prescribes चतुर्थी-विभक्ति (ङे-भ्यां-भ्यस) on प्रातिपदिक that is संप्रदान-कारक (if it is अनभिहित only)
 +
 
 +
Eg: Krishna is giving a cow to the teacher.
 +
 
 +
क्रिया - दान (act of giving), कर्तृ - कृष्ण, कर्म - गो, संप्रदान-कारक - अध्यापक
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - ददाति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - कृष्णः
 +
 
 +
      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - गाम्
 +
 
 +
      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - अध्यापकाय
 +
 
 +
कृष्णः अध्यापकाय गां ददाति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक'''
 +
 
 +
Eg: Radha desires flowers
 +
 
 +
क्रिया - स्पृहा (act of desiring), कर्तृ - राधा
 +
 
 +
संप्रदान-कारक - पुष्पाणि
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – स्पृह ईप्सायाम्, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - स्पृहयति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - राधा
 +
 
 +
      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - पुष्पेभ्यः
 +
 
 +
राधा पुष्पेभ्यः स्पृहयति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक'''
 +
 
 +
Eg: Kamsa is angry towards Krishna
 +
 
 +
क्रिया - क्रोधः (act of getting angry), कर्तृ- कंस, संप्रदान-कारक - कृष्ण
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – क्रुधँ क्रोधे, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - क्रुध्यति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - कंसः
 +
 
 +
      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - कृष्णाय
 +
 
 +
कंसः कृष्णाय क्रुध्यति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - कर्म-कारक'''
 +
 
 +
When the action is that of movement from one place to another then कर्म-कारक also will get the चतुर्थी-विभक्ति optionally.
 +
 
 +
Eg: Boy is going to school
 +
 
 +
क्रिया - गमनम् (act of going), कर्तृ - बालक, कर्मकारक - शाला
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – गम्लृ गतौ, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - गच्छति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - बालकः
 +
 
 +
      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया or चतुर्थी विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) -
 +
 
 +
शालां/शालायै
 +
 
 +
बालकः शालायै गच्छति। or
 +
 
 +
बालकः शालां गच्छति।
 +
 
 +
==== पञ्चमी-विभक्ति ====
 +
'''सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति - अपादान-कारक'''
 +
 
 +
The sutra अपादाने पञ्चमी (2-3-28), prescribes पञ्चमी विभक्ति (ङसि-भ्यां-भ्यस्) on प्रातिपदिक that is अपादान-कारक (if it is अनभिहित only)
 +
 
 +
Eg: Leaf is falling from a tree.
 +
 
 +
क्रिया - पतन (act of falling), कर्तृ – पर्ण अपादान-कारक - वृक्षः
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु - पतॢँगतौ, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन कर्तरि - पतति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - पर्णम्
 +
 
 +
      ०  अपादान-कारक =>पञ्चमी-विभक्ति (because अपादान-कारक is NOT अभिहित) - वृक्षात्
 +
 
 +
पर्णं वृक्षात प तति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति - अपादान-कारक'''
 +
 
 +
Eg: The boy is afraid of thief.
 +
 
 +
क्रिया - भय (act of fearing), कर्तृ - बालक, अपादान-कारक - चोर
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – भी भये, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - बिभेति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - बालकः
 +
 
 +
      ०  अपादान-कारक =>पञ्चमी-विभक्ति (because अपादान-कारक is NOT अभिहित) - चोरात्
 +
 
 +
बालकः चोरात् बिभेति।
 +
 
 +
Similarly, आरक्षकः व्यघ्रात् रक्षति।
 +
 
 +
==== सप्तमी-विभक्ति ====
 +
'''सुप्-अर्थः - सप्तमीविभक्ति - अधिकरण-कारक'''
 +
 
 +
The sutra सप्तमीअधिकरणेच (2-3-36), prescribes सप्तमीविभक्ति on प्रातिपदिक that is अधिकरण-कारक (if it is अनभिहित only)
 +
 
 +
Eg: Man is sitting in a cart.
 +
 
 +
क्रिया - उपवेशन (act of sitting), कर्तृ- नर
 +
 
 +
अधिकरण-कारक - शकट
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – विशँ प्रवेशने, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - उपविशति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - नरः
 +
 
 +
      ०  अधिकरण-कारक =>सप्तमी-विभक्ति (because अधिकरण-कारक is NOT अभिहित) - शकटे
 +
 
 +
नरः शकटे उपविशति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - सप्तमीविभक्ति - अधिकरण-कारक'''
 +
 
 +
Eg: Bheema is cooking rice in a Vessel
 +
 
 +
क्रिया - पाक (act of cooking), कर्तृ - भीम
 +
 
 +
अधिकरण-कारक - स्थाली, कर्मकारक - ओदन
 +
 
 +
      ०  तिङ् =>धातु – डुपचँष् पाके, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - पचति
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - भीमः
 +
 
 +
      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - ओदनम्
 +
 
 +
      ०  अधिकरण-कारक =>सप्तमी-विभक्ति (because अधिकरण-कारक is NOT अभिहित) - स्थाल्यां
 +
 
 +
भीमः ओदनं स्थाल्यां पचति।
 +
 
 +
==== षष्ठी-विभक्ति ====
 +
'''सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कर्म-कारक'''
 +
 
 +
The sutra कर्तृकर्मणोः कृति (2-3-65) Prescribes षष्ठी-विभक्ति (ङस-ओस्-आम्) for कर्तृकारक and कर्मकारक if they are associated with कृदन्त-प्रातिपदिक only if it is अनभिहित।
 +
 
 +
Eg: God is creator of the world
 +
 
 +
क्रिया - करण (act of doing), कर्तृ - देवकर्मकारक - जगत्
 +
 
 +
      ०  कृत् =>धातु – डुकृञ् करणे, तृच-प्रत्यय, एकवचन, कर्तरि - कर्तृ - कर्ता (प्रथमा-विभक्ति to be in सामानाधिकरण with the कर्तृ-कारक)
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित in अस्ति) - देवः
 +
 
 +
      ०  कर्म-कारक =>षष्ठी-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - जगतः
 +
 
 +
देवः जगतः कर्ता अस्ति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कर्म-कारक'''
 +
 
 +
Eg: The boy is drinking milk
 +
 
 +
क्रिया - पानं (act of drinking), कर्तृ - बालक, कर्मकारक - पयस्
 +
 
 +
      ०  कृत् =>धातु – पा पाने, ल्युट्-प्रत्ययः, एकवचनम्, भावे - पान - पानम्
 +
 
 +
      ०  कर्तृ-कारक =>षष्ठी or तृतीया विभक्ति (because कर्तृ-कारक is NOT अभिहित) - बालकस्य or बालकेन
 +
 
 +
      ०  कर्म-कारक =>षष्ठी-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - पयसः
 +
 
 +
बालकस्य पयसःपानम् भवति। or
 +
 
 +
बालकेन पयसः पानम् भवति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कारक Exception'''
 +
 
 +
The sutra कृत्यानां कर्तरि वा (2-3-71) gives an exception to the earlier sutra. When these कृत्य-प्रत्ययऽ - यत् ण्यत तव्यत तव्य अनीयर क्यप् are used then षष्टी-विभक्ति is optional for कर्तृ-कारक।
 +
 
 +
1. यत्/ण्यत्/क्यप् - रामस्य/रामेण गम्यः ग्रामः।
 +
 
 +
2. तव्यत्/तव्य - कुम्भकारस्य/कुम्भकारेण घटः कर्तव्यः।
 +
 
 +
3. अनीयर् - छात्रस्य/छात्रेण व्याकरणम् अध्ययनीयम्।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कारक Exception'''
 +
 
 +
The sutra न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतृनाम् (2-3-69) gives an exception to the earlier sutra. When these कृत-प्रत्ययऽ - शतृ शानच् उ क्त क्तवतु क्त्वा तुमुन् तृन् are used then षष्ठी-विभक्ति is NOT prescribed for कर्तृ-कारक or कर्मकारक।
 +
 
 +
० 1. शतृ- रामः ग्रामं गच्छन् वृक्षं पश्यति ।  
 +
 
 +
० 2. शानच्- कुम्भकारः घटं कुर्वाणः क्षीरं पिबति।
 +
 
 +
० 3. उ - छात्रः व्याकरणम् जिज्ञासुः अस्ति।
 +
 
 +
० 4. क्त - रामेण रवणः हतः।
 +
 
 +
० 5. क्तवतु - रामः रावणं हतवान् ।
 +
 
 +
० 6. क्त्वा - रामः रावणं हत्वा सीतां आनीतवान् ।
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 +
० 7. तुमुन्- हनूमान् सीतां अन्वेष्टुं लङ्कां गतवान् ।
 +
 
 +
० 8. तृन्- कटान् कर्ता पुरुष आगच्छति।
 +
 
 +
=== Non-कारक - meaning ===
 +
We saw कारक - meaning of the सुप्-प्रत्यय, now we shall see the meanings of सुप्-प्रत्यय that are different from कारक
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==== '''सुप्-अर्थः - प्रथमा-विभक्ति''' ====
 +
The sutra प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा (२/३/४६) prescribes प्रथमा-विभक्ति (सु-औ-जस्) on प्रातिपदिक when no other विभक्ति is possible. This is the default विभक्ति, since ONLY-प्रातिपदिक cannot be used in a sentence, only पद can be used. The प्रथमा-विभक्ति gives only meaning of the प्रातिपदिक, लिङ्ग, परिमाण, वचन
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० रामः रावणं हन्ति ।
 +
 
 +
० रामेण वाली बाणेन हन्यते ।
 +
 
 +
० राजा अध्यापकाय गां ददाति ।
 +
 
 +
० बालकः चोरात् बिभेति ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - प्रथमा-विभक्ति - सम्बोधन''' ====
 +
The sutra सम्बोधने च (२/३/४७) prescribes प्रथमा-विभक्ति (सु-औ-जस्) on प्रातिपदिक while addressing/calling someone. Note that there would be a different form only in the एकवचन, other वचनऽ will be same as the प्रथमा-विभक्ति.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० हे राम ।
 +
 
 +
० हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
 +
 
 +
० हे रमे ।
 +
 
 +
० हे वायो।
 +
 
 +
Observe the संबोधन-प्रथमा विभक्ति of राजन् पितृ मातृ etc.
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति''' ====
 +
कालाध्वनोः अत्यन्तसंयोगे (२/३/५)
 +
 
 +
अत्यन्तसंयोग - क्रिया, गुण, द्रव्य that has continuous contact with काल (time unit), अध्वन् (distance unit) without any breaks in between, then काल, अध्वन् mentioning प्रातिपदकऽ will get द्वितीया विभक्ति ।
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० मासं अधीते ।
 +
 
 +
० मासं गुडधानाः ।
 +
 
 +
० संवत्सरं कल्याणी ।
 +
 
 +
० योजनम् अधीते ।
 +
 
 +
० क्रोशं कुटिला नदी ।
 +
 
 +
० योजनं पर्वतः ।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति'''
 +
 
 +
द्वितीया-विभक्ति is prescribed when some words are associated with specific words.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० अन्तराऽन्तरेण युक्ते
 +
 
 +
The words associated with अन्तरा / अन्तरेण will get द्वितीया विभक्ति ।
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० अन्तरेण पुरुषकारं न किंचित् लभ्यते । (अन्तरेण - without)
 +
 
 +
० अन्तरा त्वां च मां च कमण्डलुः (अन्तरा - in-between)
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति'''
 +
 
 +
० अभितःपरितःसमयानिकषाहाप्रतियोगेषु च दृश्यते (वा)
 +
 
 +
The words associated with अभितः (on both sides) परितः (all around) समया निकषा (near, in the middle) हा (expressing grief/emotion) प्रति (for, towards, in the direction of, at, in) will get द्वितीया विभक्ति ।
 +
 
 +
० अभितो ग्रामम् ।
 +
 
 +
० परितो ग्रामम् ।
 +
 
 +
० समया ग्रामम् ।
 +
 
 +
० निकषा ग्रामम् ।
 +
 
 +
० हा देवदत्तम् ।
 +
 
 +
० बुभुक्षितं पुरुषं प्रति न भाति किञ्चित् ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति''' ====
 +
० अपवर्गे तृतीया (२/३/६)
 +
 
 +
अत्यन्तसंयोग - क्रिया, गुण, द्रव्य that has continuous contact with काल (time unit), अध्वन् (distance unit) without any breaks in between, then काल, अध्वन् will get तृतीया विभक्ति if the result is obtained/successfull
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० मासेन अनुवाकः अधीतः।
 +
 
 +
० संवत्सरेण अनुवाकः अधीतः।
 +
 
 +
० क्रोशेन अनुवाकः अधीतः।
 +
 
 +
० योजनेन अनुवाकः अधीतः ।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति'''
 +
 
 +
० तृतीयाविधाने प्रकृत्यादीनाम् उपसख्ङ्यानम् (वा)
 +
 
 +
The words like प्रकृति, प्राय, सम, विषम, सहस्र will get तृतीया-विभक्ति
 +
 
 +
० प्रकृत्या अभिरूपः । प्रायेण वैय्याकरणः ।
 +
 
 +
           ० समेन धावति । विषमेण गच्छति ।
 +
 
 +
           ० सहस्रेण अश्वान् क्रीणाति।
 +
 
 +
० सहयुक्तेप्रधाने (२/३/१९)
 +
 
 +
The word that is associated with सह and not प्रधान (not primary) will get तृतीया-विभक्ति
 +
 
 +
           ० पुत्रेण सह आगतः पिता । ।
 +
 
 +
           ० छात्रेण सार्धं अध्यापकः गच्छति।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति'''
 +
 
 +
० इत्थंभूतलक्षणे (२/३/२१)
 +
 
 +
When an object being in some form is inferred, the sign/symbol that helps in inferring will get तृतीया-विभक्ति ।
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
           ० जटाभिः तापसः अस्ति।
 +
 
 +
           ० छात्रैः अध्यापकं पश्यति ।
 +
 
 +
० हेतौ (२-३-२३)
 +
 
 +
The word that specifies a cause/reason will get तृतीया-विभक्ति.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
           ० पुण्येन दृष्टः हरिः ।
 +
 
 +
           ० अध्ययनेन भारते वसति ।
 +
 
 +
           ० विद्यया यशः भवति ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति''' ====
 +
० चतुर्थीविधाने तादर्थ्य उपसख्ङ्यानम् (वा)
 +
 
 +
An entity is used for a purpose or when a क्रिया is done for a purpose, or some material is reserved for making some product, then the purpose or product will get the चतुर्थी-विभक्ति. Also, in cases where तुमुन-प्रत्ययान्तं is implied then the कर्मकारक in that implied action gets चतुर्थी-विभक्ति
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
           ० रन्धनाय स्थाली । मुक्तये हरि भजत ।
 +
 
 +
           ० अध्ययनाय शालां गच्छति । कुण्डलाय हिरण्यम् ।
 +
 
 +
           ० फलेभ्यः ब्रजति (फलानि आहर्तुं ब्रजति) ।
 +
 
 +
           ० शालायै यानं आरूढवान् । (शालां गन्तुं यानं आरूढवान्।)
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति'''
 +
 
 +
० हितयोगे चतुर्थी वक्तव्या (वा)
 +
 
 +
When हित-word is used, the thing that is associated with हित, will get the चतुर्थी.
 +
 
 +
           ० बालकाय हितं क्षीरम् । (Milk is good for the boy)
 +
 
 +
(Good for whom? For the boy, hence boy is associated with हित)
 +
 
 +
० नमःस्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च (२/३/१६)
 +
 
 +
The word that is associated with the one of these नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधा अलम् वषट् will get चतुर्थी विभक्ति.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० नमः देवेभ्यः ।                         स्वस्ति प्रजाभ्यः ।
 +
 
 +
० स्वाहा अग्नये ।                       स्वधा पितृभ्यः ।
 +
 
 +
० अलं मल्लः मल्लाय ।               वषट् अग्नये ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति''' ====
 +
० विभाषा गुणेऽस्त्रियाम् (२/३/२५)
 +
 
 +
The प्रातिपदिक (not in स्त्रीलिङ्ग) that gives the reason (हेतु) and referring to quality (गुण) will get पञ्चमी विभक्ति optionally (else तृतीया)
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
           ० जाड्यात् बद्धः । जाड्येन बद्धः ।
 +
 
 +
० पाण्डित्यात् मुक्तः । पाण्डित्येन मुक्तः ।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति'''
 +
 
 +
० अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते (२/३/२९)
 +
 
 +
The words that are associated with
 +
 
 +
अन्य-भिन्न-इतर-बहि-ऋते-प्रभृति-आरभ्य-विना-दूर-अन्तिक etc will get पञ्चमी विभक्ति
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० प्राध्यापकात् प्राचार्यः अन्यः । ग्रामात् दूरं नगरम् ।
 +
 
 +
० न्यायाधीशात् न्यायवादी भिन्नः । गृहात् अन्तिकं गोष्ठम् ।
 +
 
 +
० अर्जुनात् कार्तवीर्यार्जुनः इतरः । आ हिमालयात् भारतम् ।
 +
 
 +
० ग्रामात् बहिः उद्यानवनम् । आ बाल्यात् हरिभक्तिः ।
 +
 
 +
० संस्कृतात् ऋते संस्कृतिः दुर्ज्ञेया ।
 +
 
 +
पञ्चमीविधाने ल्यब्लोपे कर्मण्युपसख्ङ्यानम् (वा) ।
 +
 
 +
When there is a ल्यबन्तपद-लोप, the कर्म-कारक of the क्रिया referred by the ल्यबन्तपद will get पञ्चमीविभक्ति.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
प्रासादं आरुह्य वृक्षं प्रेक्षते । In आरोहण-क्रिया, कर्म किं? प्रासाद
 +
 
 +
In प्रेक्षण-क्रिया, what is कर्म? वृक्ष
 +
 
 +
Here if we do not want to explicitly say आरुह्य which is a ल्यबन्तपद, then the कर्म-कारक of आरोहण-क्रिया will get पञ्चमीविभक्ति. प्रासादात् वृक्षं प्रेक्षते ।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति'''
 +
 
 +
० अधिकरणे च उपसख्ङ्यानम् (वा) ।।
 +
 
 +
When there is a ल्यपन्तपद-लोप, the अधिकरण-कारक of the क्रिया referred by the ल्यपन्तपद will get पञ्चमीविभक्ति.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
आसने उपविश्य पुस्तकं पठति ।
 +
 
 +
Here if we don’t want to say उपविश्य which is a ल्यपन्तपद, then the अधिकरण-कारक of उपवेशन-क्रिया will get पञ्चमीविभक्ति.
 +
 
 +
उपवेशन-क्रिया, what is अधिकरण? आसन
 +
 
 +
आसनात् पुस्तकं पठति ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - शेषे''' ====
 +
The sutra षष्ठी शेषे (२/३/५०), prescribes षष्ठी विभक्ति (ङस-ओस्-आम्) on प्रातिपदिकं in the remainder of the cases which are not explicitly mentioned. Those remainders are meanings of relationship, possession/belonging etc
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० Vasudeva’s son is Krishna. Indicating relationship of Vasudeva to Krishna, so Vasudeva gets षष्ठी-विभक्ति
 +
 
 +
वसुदेवस्य पुत्रः कृष्णः ।
 +
 
 +
० Similarly, This is my book. इदं मम पुस्तकम् ।
 +
 
 +
० Foot of an animal. पशोः पादः ।
 +
 
 +
==== '''सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति''' ====
 +
० निमित्तात् कर्मसंयोगे सप्तमी वक्तव्या (वा)
 +
 
 +
If the purpose of the action is physically attached to the कर्मकारक of the same action, then सप्तमी-विभक्ति is prescribed for the purpose.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
चर्मणि द्वीपिनं हन्ति । हनन-क्रिया, what is कर्म? What is the निमित्त?
 +
 
 +
Here the निमित्त is the skin, that is found attached to the कर्मकारकं that is the tiger, then निमित्त - चर्मन् will get the सप्तमीविभक्ति.
 +
 
 +
चर्मणि द्वीपिनं हन्ति दन्तयोः हन्ति कुञ्जरम् ।
 +
 
 +
केशेषु चमरीं हन्ति सीम्नि पुष्कलको हतः।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति'''
 +
 
 +
० यस्य च भावेन भावलक्षणम् (२/३/३७) ।
 +
 
 +
There is क्रिया-1 happenning, and that क्रिया-1 indicates when क्रिया-2 happenned then the कर्तृ/कर्म कारक of क्रिया-1, सप्तमीविभक्ति is prescribed.
 +
 
 +
Eg:
 +
 
 +
० Student went to school. When did he go? When the cow was milking. The milking indicates when the student went to school. So the cow (कर्म) gets the सप्तमीविभक्ति.
 +
 
 +
गोषु दुह्यमानासु छात्रः शालां गतः ।
 +
 
 +
           ० गोषु दुग्धासु छात्रः गृहम् आगतः।
 +
 
 +
           ० रवौ कर्काटके अभ्युदिते लक्ष्मणः अजनि ।
 +
 
 +
'''सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति'''
 +
 
 +
० यतश्च निर्धारणम् (२/३/४१) ।
 +
 
 +
When specifying/highlighting a subset out of superset (Generally based on जातिगुणक्रिया) is called निर्धारण. षष्ठी/सप्तमी विभक्ति is prescribed for the super set. Eg:
   −
           ०   द्वितीया-विभक्ति
+
           ० मनुष्याणाम् क्षत्रियः शूरतमः, मनुष्येषु क्षत्रियः शूरतमः।
   −
           ०   तृतीया-विभक्ति
+
           ० गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा, गोषु कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा ।
   −
           ०   चतुर्थी-विभक्ति
+
           ० अध्वगानां धावन्तः शीघ्रतमाः, अध्वगेषु धावन्तः शीघ्रतमाः ।
   −
             पञ्चमी-विभक्ति
+
० पञ्चमी विभक्ते (२/३/४२) ।
   −
           ०   सप्तमी-विभक्ति
+
If you are highlighting something not belonging to the same group then पञ्चमी is prescribed instead of षष्ठी/सप्तमी.
   −
           ०   षष्ठी-विभक्ति
+
Eg: माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्यः सुकुमारतराः ।
 +
[[Category:Vyakarana]]

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