Subartha (सुबर्थः)

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search

०    What is सुप्?

०   सुबन्त-पद (सुप्तिङन्तम् प​दम् १-४-१४)

प्रातिपदिक + सुप्-प्रत्यय =>पद

सुबन्त-पद

० सुप् प्रत्ययाः

स्वौजसमौट्छष्टाभ्याम्भिस्ङेभ्याम्भ्यस्ङसिभ्याम्भ्यस्ङसोसाम्ड्योस्सुप् ४-१-२

विभक्तिः/वचनम् एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
प्रथमा सुँ जस्
द्वितीया अम् औट् शस्
तृतीया टा भ्याम् भिस्
चतुर्थी ङे भ्याम् भ्यस्
पञ्चमी ङसिँ भ्याम् भ्यस्
षष्ठी ङस् ओस् आम्
सप्तमी ङि ओस् सुप्

सुप्-अर्थ

There are two types of meaning to सुप्-प्रत्यय

      ०  कारक - meaning

      ०   Non-कारक - meaning

We shall see the कारक - meaning initially.

कारकार्थः

अनभिहिते

० The सुप्-प्रत्यय is prescribed for a प्रातिपदिक to give a specific कारक meaning only if that कारक is अनभिहित (सूत्र- अनभिहिते 2-3-1)

० That is, the कारक meaning is not re-indicated by सुप्

० By what MEANS these कारक meanings are mentioned/indicated ?

By तिङ्, कृत् , तद्धित, सामास.

For eg.

कर्तृ अभिहित, other कारकs अनभिहित कर्म अभिहित, other कारकs अनभिहित भाव अभिहित, other कारकs अनभिहित करण, other कारकs अनभिहित अधिकरण, other कारकs अनभिहित
तिङ् पठति -> कर्तृ अभिहित by तिङ् पठ्यते -> कर्म अभिहित by तिङ् स्थीयते -> भाव अभिहित by तिङ्
वन्दते -> कर्तृ अभिहित by तिङ् वन्द्यते -> कर्म अभिहित by तिङ्
कृत् पठितवत् -> कर्तृ अभिहित by कृत् पठित -> कर्म अभिहित by कृत् भुक्त्वा -> भाव अभिहित by कृत्  प्रहरण -> करण अभिहित by कृत् शयन -> अधिकरण अभिहित by कृत्

द्वितीया-विभक्ति

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति – अं औट् शस्

० The sutra कर्मणि द्वितीया (2-3-2), prescribes द्वितीया-विभक्ति for a प्रातिपदिक that refers to कर्म-कारक in a particular action.

० Only if  कर्म-कारक is not already mentioned/indicated (अभिहित) by any other MEANS, i.e. अनभिहित

० If it is already mentioned then प्रातिपदिक will get प्रथमा-विभक्ति, because प्रातिपदिक without सुप्-प्रत्यय cannot be used in a sentence.

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया- हननम् (act of killing) कर्तृकारक - राम ,कर्मकारक - रावण

Let us see how to represent this -

      ०   Let us take तिङ्न्त-पद indicating कर्तृ-कारक in भूतकाल (past tense)

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   in लङ् लकार (past tense), प्रथम-पुरुष ,एकवचन =>अहन्

The कर्मकारक is रावण and तिङ्न्त-पद अहन् is indicating कर्तृ-कारक and not कर्मकारक, hence कर्मकारक is अनभिहित

Therefore the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक will get =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्

रावणं अहन्।

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण

Let us see how to represent this little differently-

      ०   Let us take तिङ्न्त-पद indicating कर्म-कारक in भूतकाल (past tense)

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   in लङ् लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्यत

      ०   As अहन्यत is indicating कर्मकारक hence कर्मकारक is अभिहित by तिङन्त-पद

      ०   Therefore, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here for the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक and thus gets प्रथमा-विभक्ति

रावणः अहन्यत।

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with कृदन्तम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण

Let us see how to represent this -

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   Let us consider कृदन्त indicating कर्तृ-कारक

      ०  हन् + क्तवतु =>हतवत् (प्रातिपदिकम्)

      ०  हतवत् + सु =>हतवान्

The कर्मकारक is रावण and कृदन्त-पद is indicating कर्तृ-कारक and not कर्मकारक, hence कर्मकारक अनभिहित

Therefore the प्रातिपदिक-रावण referring कर्मकारक will get =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्

रावणं हतवान्।

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति with कृदन्तम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण

Let us see how to represent this little differently-

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   let us consider, कृदन्त indicating कर्म-कारक

      ०  हन् + क्त =>हत (प्रातिपदिकम्) is indicating कर्मकारक

      ०   In this case, कर्मकारक अभिहित by कृदन्त-प्रातिपदिकम्

      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here thus gets प्रथमा-विभक्ति

रावणः हतः।

तृतीया-विभक्ति

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति(टा भ्याम् भिस्)

      ०   The sutra कर्तृकरणयोः तृतीया (2-3-18), prescribes तृतीया-विभक्ति for a प्रातिपदिक that is कर्तृ-कारक or करण-कारक in the action.

      ०   Only if कर्तृ-कारक or करण-कारक is not already mentioned/indicated by any other MEANS (अनभिहिते)

      ०   If it is already mentioned then प्रातिपदिक will get प्रथमा-विभक्ति , because प्रातिपदिक without सुप्-प्रत्यय cannot be used in a sentence.

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण

Let us see how to represent this -

      ०  तिङ्न्त-पद indicating कर्तृ-कारक in past tense

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   in लङ्-लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्

      ०  कर्मकारक - रावण =>द्वितीया विभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्

      ०   Here कर्तृकारक is indicated by तिङन्त-पद hence कर्तृ-कारक will not get the prescribed तृतीया-विभक्ति, instead will get प्रथमा-विभक्ति (रामः)

रामः रावणं अहन्।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with तिङन्त-पदम्

क्रिया - हननम् (act of killing) ,कर्तृ - राम , कर्म - रावण

Let us see how to represent this differently-

      ०  तिङ्न्त-पद indicating कर्म-कारक past tense

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   in लङ्-लकार ,प्रथम-पुरुष , एकवचन =>अहन्यत

      ०  अहन्यत is indicating कर्मकारक

      ०   In this case, कर्मकारक is अभिहित by तिङन्त-पद but not कर्तृ-कारक

      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here, कर्म-कारक gets प्रथमा-विभक्ति

      ०   Where as, कर्तृ-कारक is अनभिहित, so,कर्तृ-कारक will get prescribed

तृतीया-विभक्ति =>रामेण

रामेण रावणः अहन्यत।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with कृदन्तम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण

Let us see how to represent this –

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   with कृदन्त indicating कर्तृ-कारक

      ०  हन् + क्तवतु =>हतवत् (प्रातिपदिकम्)

      ०  हतवत् + सु =>हतवान्

      ०  कर्मकारक - रावण =>द्वितीयाविभक्ति to indicate कर्मकारक =>रावणम्

      ०  कर्तृ-कारक is indicated by कृदन्त-प्रातिपदिक हतवत्, hence राम-प्रातिपदिक will not get the prescribed तृतीया-विभक्ति, instead gets प्रथमा-विभक्ति (रामः)

रामः रावणं हतवान्।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति with कृदन्तम्

Eg: Rama killed Ravana

क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण

Let us see how to represent this in another way-

      ०  धातु for हननम् =>हनँ हिंसागत्योः

      ०   with कृदन्त indicating कर्म-कारक

      ०  हन्+ क्त =>हत (प्रातिपदिकम्)

      ०  हत is indicating कर्मकारक

In this case, कर्मकारक is अभिहित by कृदन्त-प्रातिपदिकम्

      ०   Hence, द्वितीया-विभक्ति is not prescribed here, thus gets प्रथमा-विभक्ति

      ०   Whereas, कर्तृकारक is not अभिहित, so, कर्तृ-कारक will get prescribed तृतीया-विभक्ति (रामेण)

रामेण रावणः हतः।

सुप-अर्थः - तृतीया-विभक्ति - करणकारक

Eg: Rama killed Ravana with an arrow.

क्रिया - हननम् (act of killing), कर्तृ - राम, कर्म - रावण

Rama used an arrow (बाण) to kill Ravana, so बाण is करण-कारक

      ०  तृतीया-विभक्ति is prescribed for करण-कारक if अनभिहित

      ०  तृतीया-विभक्ति of बाण =>बाणेन, in all earlier cases we shall add this

      ०  रामः बाणेन रावणं अहन्।

      ०  रामेण बाणेन रावणः अहन्यत।

      ०  रामः बाणेन रावणं हतवान्।

      ०  रामेण बाणेन रावणः हतः।

चतुर्थी-विभक्ति

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक

The sutra चतुर्थी सम्प्रदाने (2-3-13), Prescribes चतुर्थी-विभक्ति (ङे-भ्यां-भ्यस) on प्रातिपदिक that is संप्रदान-कारक (if it is अनभिहित only)

Eg: Krishna is giving a cow to the teacher.

क्रिया - दान (act of giving), कर्तृ - कृष्ण, कर्म - गो, संप्रदान-कारक - अध्यापक

      ०  तिङ् =>लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - ददाति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - कृष्णः

      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - गाम्

      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - अध्यापकाय

कृष्णः अध्यापकाय गां ददाति।

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक

Eg: Radha desires flowers

क्रिया - स्पृहा (act of desiring), कर्तृ - राधा

संप्रदान-कारक - पुष्पाणि

      ०  तिङ् =>धातु – स्पृह ईप्सायाम्, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - स्पृहयति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - राधा

      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - पुष्पेभ्यः

राधा पुष्पेभ्यः स्पृहयति।

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - संप्रदान-कारक

Eg: Kamsa is angry towards Krishna

क्रिया - क्रोधः (act of getting angry), कर्तृ- कंस, संप्रदान-कारक - कृष्ण

      ०  तिङ् =>धातु – क्रुधँ क्रोधे, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - क्रुध्यति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - कंसः

      ०  संप्रदान-कारक =>चतुर्थी-विभक्ति (because संप्रदान-कारक is NOT अभिहित) - कृष्णाय

कंसः कृष्णाय क्रुध्यति।

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति - कर्म-कारक

When the action is that of movement from one place to another then कर्म-कारक also will get the चतुर्थी-विभक्ति optionally.

Eg: Boy is going to school

क्रिया - गमनम् (act of going), कर्तृ - बालक, कर्मकारक - शाला

      ०  तिङ् =>धातु – गम्लृ गतौ, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - गच्छति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because अभिहित) - बालकः

      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया or चतुर्थी विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) -

शालां/शालायै

बालकः शालायै गच्छति। or

बालकः शालां गच्छति।

पञ्चमी-विभक्ति

सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति - अपादान-कारक

The sutra अपादाने पञ्चमी (2-3-28), prescribes पञ्चमी विभक्ति (ङसि-भ्यां-भ्यस्) on प्रातिपदिक that is अपादान-कारक (if it is अनभिहित only)

Eg: Leaf is falling from a tree.

क्रिया - पतन (act of falling), कर्तृ – पर्ण अपादान-कारक - वृक्षः

      ०  तिङ् =>धातु - पतॢँगतौ, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन कर्तरि - पतति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - पर्णम्

      ०  अपादान-कारक =>पञ्चमी-विभक्ति (because अपादान-कारक is NOT अभिहित) - वृक्षात्

पर्णं वृक्षात प तति।

सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति - अपादान-कारक

Eg: The boy is afraid of thief.

क्रिया - भय (act of fearing), कर्तृ - बालक, अपादान-कारक - चोर

      ०  तिङ् =>धातु – भी भये, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - बिभेति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - बालकः

      ०  अपादान-कारक =>पञ्चमी-विभक्ति (because अपादान-कारक is NOT अभिहित) - चोरात्

बालकः चोरात् बिभेति।

Similarly, आरक्षकः व्यघ्रात् रक्षति।

सप्तमी-विभक्ति

सुप्-अर्थः - सप्तमीविभक्ति - अधिकरण-कारक

The sutra सप्तमीअधिकरणेच (2-3-36), prescribes सप्तमीविभक्ति on प्रातिपदिक that is अधिकरण-कारक (if it is अनभिहित only)

Eg: Man is sitting in a cart.

क्रिया - उपवेशन (act of sitting), कर्तृ- नर

अधिकरण-कारक - शकट

      ०  तिङ् =>धातु – विशँ प्रवेशने, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - उपविशति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - नरः

      ०  अधिकरण-कारक =>सप्तमी-विभक्ति (because अधिकरण-कारक is NOT अभिहित) - शकटे

नरः शकटे उपविशति।

सुप्-अर्थः - सप्तमीविभक्ति - अधिकरण-कारक

Eg: Bheema is cooking rice in a Vessel

क्रिया - पाक (act of cooking), कर्तृ - भीम

अधिकरण-कारक - स्थाली, कर्मकारक - ओदन

      ०  तिङ् =>धातु – डुपचँष् पाके, लट्-लकार, प्रथम-पुरुष, एकवचन, कर्तरि - पचति

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित) - भीमः

      ०  कर्म-कारक =>द्वितीया-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - ओदनम्

      ०  अधिकरण-कारक =>सप्तमी-विभक्ति (because अधिकरण-कारक is NOT अभिहित) - स्थाल्यां

भीमः ओदनं स्थाल्यां पचति।

षष्ठी-विभक्ति

सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कर्म-कारक

The sutra कर्तृकर्मणोः कृति (2-3-65) Prescribes षष्ठी-विभक्ति (ङस-ओस्-आम्) for कर्तृकारक and कर्मकारक if they are associated with कृदन्त-प्रातिपदिक only if it is अनभिहित।

Eg: God is creator of the world

क्रिया - करण (act of doing), कर्तृ - देवकर्मकारक - जगत्

      ०  कृत् =>धातु – डुकृञ् करणे, तृच-प्रत्यय, एकवचन, कर्तरि - कर्तृ - कर्ता (प्रथमा-विभक्ति to be in सामानाधिकरण with the कर्तृ-कारक)

      ०  कर्तृ-कारक =>प्रथमा-विभक्ति (because कर्तृ-कारक is अभिहित in अस्ति) - देवः

      ०  कर्म-कारक =>षष्ठी-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - जगतः

देवः जगतः कर्ता अस्ति।

सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कर्म-कारक

Eg: The boy is drinking milk

क्रिया - पानं (act of drinking), कर्तृ - बालक, कर्मकारक - पयस्

      ०  कृत् =>धातु – पा पाने, ल्युट्-प्रत्ययः, एकवचनम्, भावे - पान - पानम्

      ०  कर्तृ-कारक =>षष्ठी or तृतीया विभक्ति (because कर्तृ-कारक is NOT अभिहित) - बालकस्य or बालकेन

      ०  कर्म-कारक =>षष्ठी-विभक्ति (because कर्म-कारक is NOT अभिहित) - पयसः

बालकस्य पयसःपानम् भवति। or

बालकेन पयसः पानम् भवति।

सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कारक Exception

The sutra कृत्यानां कर्तरि वा (2-3-71) gives an exception to the earlier sutra. When these कृत्य-प्रत्ययऽ - यत् ण्यत तव्यत तव्य अनीयर क्यप् are used then षष्टी-विभक्ति is optional for कर्तृ-कारक।

1. यत्/ण्यत्/क्यप् - रामस्य/रामेण गम्यः ग्रामः।

2. तव्यत्/तव्य - कुम्भकारस्य/कुम्भकारेण घटः कर्तव्यः।

3. अनीयर् - छात्रस्य/छात्रेण व्याकरणम् अध्ययनीयम्।

सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - कर्तृ-कारक Exception

The sutra न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतृनाम् (2-3-69) gives an exception to the earlier sutra. When these कृत-प्रत्ययऽ - शतृ शानच् उ क्त क्तवतु क्त्वा तुमुन् तृन् are used then षष्ठी-विभक्ति is NOT prescribed for कर्तृ-कारक or कर्मकारक।

० 1. शतृ- रामः ग्रामं गच्छन् वृक्षं पश्यति ।  

० 2. शानच्- कुम्भकारः घटं कुर्वाणः क्षीरं पिबति।

० 3. उ - छात्रः व्याकरणम् जिज्ञासुः अस्ति।

० 4. क्त - रामेण रवणः हतः।

० 5. क्तवतु - रामः रावणं हतवान् ।

० 6. क्त्वा - रामः रावणं हत्वा सीतां आनीतवान् ।

० 7. तुमुन्- हनूमान् सीतां अन्वेष्टुं लङ्कां गतवान् ।

० 8. तृन्- कटान् कर्ता पुरुष आगच्छति।

Non-कारक - meaning

We saw कारक - meaning of the सुप्-प्रत्यय, now we shall see the meanings of सुप्-प्रत्यय that are different from कारक

सुप्-अर्थः - प्रथमा-विभक्ति

The sutra प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा (२/३/४६) prescribes प्रथमा-विभक्ति (सु-औ-जस्) on प्रातिपदिक when no other विभक्ति is possible. This is the default विभक्ति, since ONLY-प्रातिपदिक cannot be used in a sentence, only पद can be used. The प्रथमा-विभक्ति gives only meaning of the प्रातिपदिक, लिङ्ग, परिमाण, वचन

Eg:

० रामः रावणं हन्ति ।

० रामेण वाली बाणेन हन्यते ।

० राजा अध्यापकाय गां ददाति ।

० बालकः चोरात् बिभेति ।

सुप्-अर्थः - प्रथमा-विभक्ति - सम्बोधन

The sutra सम्बोधने च (२/३/४७) prescribes प्रथमा-विभक्ति (सु-औ-जस्) on प्रातिपदिक while addressing/calling someone. Note that there would be a different form only in the एकवचन, other वचनऽ will be same as the प्रथमा-विभक्ति.

Eg:

० हे राम ।

० हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।

० हे रमे ।

० हे वायो।

Observe the संबोधन-प्रथमा विभक्ति of राजन् पितृ मातृ etc.

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति

कालाध्वनोः अत्यन्तसंयोगे (२/३/५)

अत्यन्तसंयोग - क्रिया, गुण, द्रव्य that has continuous contact with काल (time unit), अध्वन् (distance unit) without any breaks in between, then काल, अध्वन् mentioning प्रातिपदकऽ will get द्वितीया विभक्ति ।

Eg:

० मासं अधीते ।

० मासं गुडधानाः ।

० संवत्सरं कल्याणी ।

० योजनम् अधीते ।

० क्रोशं कुटिला नदी ।

० योजनं पर्वतः ।

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति

द्वितीया-विभक्ति is prescribed when some words are associated with specific words.

Eg:

० अन्तराऽन्तरेण युक्ते

The words associated with अन्तरा / अन्तरेण will get द्वितीया विभक्ति ।

Eg:

० अन्तरेण पुरुषकारं न किंचित् लभ्यते । (अन्तरेण - without)

० अन्तरा त्वां च मां च कमण्डलुः (अन्तरा - in-between)

सुप्-अर्थः - द्वितीया-विभक्ति

० अभितःपरितःसमयानिकषाहाप्रतियोगेषु च दृश्यते (वा)

The words associated with अभितः (on both sides) परितः (all around) समया निकषा (near, in the middle) हा (expressing grief/emotion) प्रति (for, towards, in the direction of, at, in) will get द्वितीया विभक्ति ।

० अभितो ग्रामम् ।

० परितो ग्रामम् ।

० समया ग्रामम् ।

० निकषा ग्रामम् ।

० हा देवदत्तम् ।

० बुभुक्षितं पुरुषं प्रति न भाति किञ्चित् ।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति

० अपवर्गे तृतीया (२/३/६)

अत्यन्तसंयोग - क्रिया, गुण, द्रव्य that has continuous contact with काल (time unit), अध्वन् (distance unit) without any breaks in between, then काल, अध्वन् will get तृतीया विभक्ति if the result is obtained/successfull

Eg:

० मासेन अनुवाकः अधीतः।

० संवत्सरेण अनुवाकः अधीतः।

० क्रोशेन अनुवाकः अधीतः।

० योजनेन अनुवाकः अधीतः ।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति

० तृतीयाविधाने प्रकृत्यादीनाम् उपसख्ङ्यानम् (वा)

The words like प्रकृति, प्राय, सम, विषम, सहस्र will get तृतीया-विभक्ति

० प्रकृत्या अभिरूपः । प्रायेण वैय्याकरणः ।

           ० समेन धावति । विषमेण गच्छति ।

           ० सहस्रेण अश्वान् क्रीणाति।

० सहयुक्तेप्रधाने (२/३/१९)

The word that is associated with सह and not प्रधान (not primary) will get तृतीया-विभक्ति

           ० पुत्रेण सह आगतः पिता । ।

           ० छात्रेण सार्धं अध्यापकः गच्छति।

सुप्-अर्थः - तृतीया-विभक्ति

० इत्थंभूतलक्षणे (२/३/२१)

When an object being in some form is inferred, the sign/symbol that helps in inferring will get तृतीया-विभक्ति ।

Eg:

           ० जटाभिः तापसः अस्ति।

           ० छात्रैः अध्यापकं पश्यति ।

० हेतौ (२-३-२३)

The word that specifies a cause/reason will get तृतीया-विभक्ति.

Eg:

           ० पुण्येन दृष्टः हरिः ।

           ० अध्ययनेन भारते वसति ।

           ० विद्यया यशः भवति ।

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति

० चतुर्थीविधाने तादर्थ्य उपसख्ङ्यानम् (वा)

An entity is used for a purpose or when a क्रिया is done for a purpose, or some material is reserved for making some product, then the purpose or product will get the चतुर्थी-विभक्ति. Also, in cases where तुमुन-प्रत्ययान्तं is implied then the कर्मकारक in that implied action gets चतुर्थी-विभक्ति

Eg:

           ० रन्धनाय स्थाली । मुक्तये हरि भजत ।

           ० अध्ययनाय शालां गच्छति । कुण्डलाय हिरण्यम् ।

           ० फलेभ्यः ब्रजति (फलानि आहर्तुं ब्रजति) ।

           ० शालायै यानं आरूढवान् । (शालां गन्तुं यानं आरूढवान्।)

सुप्-अर्थः - चतुर्थी-विभक्ति

० हितयोगे चतुर्थी वक्तव्या (वा)

When हित-word is used, the thing that is associated with हित, will get the चतुर्थी.

           ० बालकाय हितं क्षीरम् । (Milk is good for the boy)

(Good for whom? For the boy, hence boy is associated with हित)

० नमःस्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च (२/३/१६)

The word that is associated with the one of these नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधा अलम् वषट् will get चतुर्थी विभक्ति.

Eg:

० नमः देवेभ्यः ।                         स्वस्ति प्रजाभ्यः ।

० स्वाहा अग्नये ।                       स्वधा पितृभ्यः ।

० अलं मल्लः मल्लाय ।               वषट् अग्नये ।

सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति

० विभाषा गुणेऽस्त्रियाम् (२/३/२५)

The प्रातिपदिक (not in स्त्रीलिङ्ग) that gives the reason (हेतु) and referring to quality (गुण) will get पञ्चमी विभक्ति optionally (else तृतीया)

Eg:

           ० जाड्यात् बद्धः । जाड्येन बद्धः ।

० पाण्डित्यात् मुक्तः । पाण्डित्येन मुक्तः ।

सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति

० अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते (२/३/२९)

The words that are associated with

अन्य-भिन्न-इतर-बहि-ऋते-प्रभृति-आरभ्य-विना-दूर-अन्तिक etc will get पञ्चमी विभक्ति

Eg:

० प्राध्यापकात् प्राचार्यः अन्यः । ग्रामात् दूरं नगरम् ।

० न्यायाधीशात् न्यायवादी भिन्नः । गृहात् अन्तिकं गोष्ठम् ।

० अर्जुनात् कार्तवीर्यार्जुनः इतरः । आ हिमालयात् भारतम् ।

० ग्रामात् बहिः उद्यानवनम् । आ बाल्यात् हरिभक्तिः ।

० संस्कृतात् ऋते संस्कृतिः दुर्ज्ञेया ।

पञ्चमीविधाने ल्यब्लोपे कर्मण्युपसख्ङ्यानम् (वा) ।

When there is a ल्यबन्तपद-लोप, the कर्म-कारक of the क्रिया referred by the ल्यबन्तपद will get पञ्चमीविभक्ति.

Eg:

प्रासादं आरुह्य वृक्षं प्रेक्षते । In आरोहण-क्रिया, कर्म किं? प्रासाद

In प्रेक्षण-क्रिया, what is कर्म? वृक्ष

Here if we do not want to explicitly say आरुह्य which is a ल्यबन्तपद, then the कर्म-कारक of आरोहण-क्रिया will get पञ्चमीविभक्ति. प्रासादात् वृक्षं प्रेक्षते ।

सुप्-अर्थः - पञ्चमी-विभक्ति

० अधिकरणे च उपसख्ङ्यानम् (वा) ।।

When there is a ल्यपन्तपद-लोप, the अधिकरण-कारक of the क्रिया referred by the ल्यपन्तपद will get पञ्चमीविभक्ति.

Eg:

आसने उपविश्य पुस्तकं पठति ।

Here if we don’t want to say उपविश्य which is a ल्यपन्तपद, then the अधिकरण-कारक of उपवेशन-क्रिया will get पञ्चमीविभक्ति.

उपवेशन-क्रिया, what is अधिकरण? आसन

आसनात् पुस्तकं पठति ।

सुप्-अर्थः - षष्ठी-विभक्ति - शेषे

The sutra षष्ठी शेषे (२/३/५०), prescribes षष्ठी विभक्ति (ङस-ओस्-आम्) on प्रातिपदिकं in the remainder of the cases which are not explicitly mentioned. Those remainders are meanings of relationship, possession/belonging etc

Eg:

० Vasudeva’s son is Krishna. Indicating relationship of Vasudeva to Krishna, so Vasudeva gets षष्ठी-विभक्ति

वसुदेवस्य पुत्रः कृष्णः ।

० Similarly, This is my book. इदं मम पुस्तकम् ।

० Foot of an animal. पशोः पादः ।

सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति

० निमित्तात् कर्मसंयोगे सप्तमी वक्तव्या (वा)

If the purpose of the action is physically attached to the कर्मकारक of the same action, then सप्तमी-विभक्ति is prescribed for the purpose.

Eg:

चर्मणि द्वीपिनं हन्ति । हनन-क्रिया, what is कर्म? What is the निमित्त?

Here the निमित्त is the skin, that is found attached to the कर्मकारकं that is the tiger, then निमित्त - चर्मन् will get the सप्तमीविभक्ति.

चर्मणि द्वीपिनं हन्ति दन्तयोः हन्ति कुञ्जरम् ।

केशेषु चमरीं हन्ति सीम्नि पुष्कलको हतः।

सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति

० यस्य च भावेन भावलक्षणम् (२/३/३७) ।

There is क्रिया-1 happenning, and that क्रिया-1 indicates when क्रिया-2 happenned then the कर्तृ/कर्म कारक of क्रिया-1, सप्तमीविभक्ति is prescribed.

Eg:

० Student went to school. When did he go? When the cow was milking. The milking indicates when the student went to school. So the cow (कर्म) gets the सप्तमीविभक्ति.

गोषु दुह्यमानासु छात्रः शालां गतः ।

           ० गोषु दुग्धासु छात्रः गृहम् आगतः।

           ० रवौ कर्काटके अभ्युदिते लक्ष्मणः अजनि ।

सुप्-अर्थः - सप्तमी-विभक्ति

० यतश्च निर्धारणम् (२/३/४१) ।

When specifying/highlighting a subset out of superset (Generally based on जातिगुणक्रिया) is called निर्धारण. षष्ठी/सप्तमी विभक्ति is prescribed for the super set. Eg:

           ० मनुष्याणाम् क्षत्रियः शूरतमः, मनुष्येषु क्षत्रियः शूरतमः।

           ० गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा, गोषु कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा ।

           ० अध्वगानां धावन्तः शीघ्रतमाः, अध्वगेषु धावन्तः शीघ्रतमाः ।

० पञ्चमी विभक्ते (२/३/४२) ।

If you are highlighting something not belonging to the same group then पञ्चमी is prescribed instead of षष्ठी/सप्तमी.

Eg: माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्यः सुकुमारतराः ।