Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 1: Line 1: −
यह स्कन्ध गणित नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत त्रुटि(कालकी लघुत्तम इकाई) से लेकर कल्पकाल तक की कालगणना, पर्व आनयन, अब्द विचार, ग्रहगतिनिरूपण, मासगणना, ग्रहों का उदयास्त, वक्रमार्ग, सूर्य वा चन्द्रमा के ग्रहण प्रारंभ एवं अस्त ग्रहण की दिशा, ग्रहयुति, ग्रहों की कक्ष स्थिति, उसका परिमाण, देश भेद, देशान्तर, पृथ्वी का भ्रमण, पृथ्वी की दैनिक गति, वार्षिक गति, ध्रुव प्रदेश आदि, अक्षांश, लम्बांश, गुरुत्वाकर्षण, नक्षत्र, संस्थान, अन्यग्रहों की स्थिति, भगण, चरखण्ड, द्युज्या, चापांश, लग्न, पृथ्वी की छाया, पलभा, नाडी, आदि विषय सिद्धान्त स्कन्ध के अन्तर्गत आते हैं।
+
ज्योतिषशास्त्र सिद्धान्त, संहिता, होरा भेद से तीन स्कन्धों में विभक्त है। उनमें से सिद्धान्त ज्योतिषशास्त्र गणित शब्द से भी जाना जाता है। यह स्कन्ध भी ग्रहगणित, पाटीगणित व बीजगणित भेद से तीन भागों में विभक्त है। ब्रह्मा, वसिष्ठ, सोम, सूर्य आदि इसके प्रवर्तक आचार्य माने गये हैं। इसके उपरान्त आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, कमलाकर आदि ने इसका विकास किया। आर्ष सूर्यसिद्धान्त, आर्यभट रचित आर्यभटीय, ब्रह्मगुप्त रचित ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, वराहमिहिर रचित पञ्चसिद्धान्तिका, भास्कराचार्य रचित सिद्धान्तशिरोमणि और कमलाकर रचित सिद्धान्ततत्वविवेक आदि सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ हैं।
 +
 
 +
 
 +
नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत त्रुटि(कालकी लघुत्तम इकाई) से लेकर कल्पकाल तक की कालगणना, पर्व आनयन, अब्द विचार, ग्रहगतिनिरूपण, मासगणना, ग्रहों का उदयास्त, वक्रमार्ग, सूर्य वा चन्द्रमा के ग्रहण प्रारंभ एवं अस्त ग्रहण की दिशा, ग्रहयुति, ग्रहों की कक्ष स्थिति, उसका परिमाण, देश भेद, देशान्तर, पृथ्वी का भ्रमण, पृथ्वी की दैनिक गति, वार्षिक गति, ध्रुव प्रदेश आदि, अक्षांश, लम्बांश, गुरुत्वाकर्षण, नक्षत्र, संस्थान, अन्यग्रहों की स्थिति, भगण, चरखण्ड, द्युज्या, चापांश, लग्न, पृथ्वी की छाया, पलभा, नाडी, आदि विषय सिद्धान्त स्कन्ध के अन्तर्गत आते हैं।
    
सिद्धान्तके क्षेत्रमें पितामह, वसिष्ठ, रोमक, पौलिश तथा सूर्य-इनके नामसे गणितकी पॉंचसिद्धान्त पद्धतियाँ प्रमुख हैं, जिनका विवेचन आचार्यवराहमिहिरने अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थमें किया है।
 
सिद्धान्तके क्षेत्रमें पितामह, वसिष्ठ, रोमक, पौलिश तथा सूर्य-इनके नामसे गणितकी पॉंचसिद्धान्त पद्धतियाँ प्रमुख हैं, जिनका विवेचन आचार्यवराहमिहिरने अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थमें किया है।
Line 7: Line 10:     
== परिचय ==
 
== परिचय ==
 +
    
== परिभाषा ==
 
== परिभाषा ==
   −
== सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ ==
+
== सिद्धान्त ज्योतिष के भेद ==
वराहमिहिर- पञ्चसिद्धान्तिका
+
सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख तीन भेद होते हैं- प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण।
 +
 
 +
* '''1.''' '''सिद्धान्त-''' सिद्धान्त ग्रन्थों में सृष्ट्यादि से अथवा कल्पादि से ग्रहगणित की जाती है।
 +
 
 +
<blockquote>सृष्ट्यादेर्यद् ग्रहज्ञानं सिद्धान्तः स उदाहृतः।</blockquote>आज उपलब्ध प्रमुख सिद्धान्त ग्रन्थों में सुप्रसिद्ध आर्षग्रन्थ सूर्यसिद्धान्त है। इसके उपरान्त मानव रचित ग्रन्थों में ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, शिष्यधीवृद्धिद, सिद्धान्तशिरोमणि, सिद्धान्तसार्वभौम, सिद्धान्ततत्त्वविवेक आदि अनेक सिद्धान्त ग्रन्थ प्राप्त होते है। वस्तुतः सिद्धान्त ज्योतिष के मूलभूत सिद्धान्तो का वर्णन सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ में ही कर दिया गया है परन्तु अत्यन्त प्राचीन होने के कारण उसके आधार पर साधित ग्रहों में कुछ स्थूलता प्राप्त होती है, किन्तु यह आर्ष ग्रन्थ होने से इसके द्वारा वर्णित विषयों को आज भी अत्यन्त प्रामाणिक माना जाता है। सिद्धान्ततत्त्वविवेक भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वा तात्त्विक ग्रन्थ माना जाता है। तथा भारतीय सिद्धान्त ज्योतिष परम्परा का अन्तिम ग्रन्थ भी माना जाता है। ग्रन्थ के रचयिता भट्ट कमलाकर ने मुनीश्वर भास्कर ब्रह्मगुप्त आदि पूर्वाचार्यों का पद पद पर सयुक्तिक खण्डन भी किया है। सिद्धान्त शिरोमणि सिद्धान्त ज्योतिष का साङ्गोपाङ्ग ग्रन्थ है, जिसमें सिद्धान्त साङ्गोपाङ्ग ग्रन्थ है, जिसमें सिद्धान्त ज्योतिष के सभी विषयों का आद्योपान्त वर्णन किया गया है, अतः इसका प्रमाणत्व स्वीकार किया जाता है।
 +
 
 +
* '''2. तन्त्र-''' अर्थात् जिस भाग में युगादि से प्रारम्भ कर ग्रहगणित की जाती है, उसकी तन्त्र संज्ञा होती है।
 +
 
 +
<blockquote>युगादितो यत्र ग्रहज्ञानं तन्त्रं तन्निगद्यते।</blockquote>तन्त्र ग्रन्थों में आर्यभट का आर्यभटीय तन्त्रग्रन्थ सुप्रसिद्ध है। इस तन्त्र ग्रन्थ के गणितपाद में वर्गमूल आनयन, घनमूल आनयन, व्यास मान से परिधि का साधन आदि विषय संभवतः विश्व में प्रथम बार अत्यन्त स्पष्ट रीति से वर्णित किये गये है। ग्रन्थ के गोलपाद में उन्होंने भूमि के अपने अक्ष पर भ्रमण का आधारभूत सिद्धान्त विश्व इतिहास में सर्वप्रथम प्रतिपादित किया। आर्यभट ने उस समय निम्न वाक्यों के द्वारा यह सिद्धान्त उपस्थापित किया। अनुलोमगतिनौस्थ: पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्। अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लङ्कायाम्।
 +
 
 +
* '''3. करण-''' अर्थात् जहां अभीष्ट शकवर्ष ग्रहगणित का निरूपण किया जाय सिद्धान्त ज्योतिष की उस शाखा को 'करण' कहा गया-
 +
 
 +
<blockquote>शकाद् यत्र ग्रहज्ञानं करणं तत् प्रकीर्तितम्।</blockquote>करणग्रन्थों में ग्रहलाघव, केतकी ग्रहगणित, सर्वानन्दकरण आदि ग्रन्थ सुप्रसिद्ध हैं। ग्रहलाघव ग्रन्थ द्वारा साधित ग्रहों में भी कुछ स्थूलता है। अतः आज के समय दृग्गणित की एकता प्राप्त करने हेतु प्रायशः भारतवर्ष के अनेक पञ्चाङ्ग केतकी ग्रहगणित के आधार पर ही निर्मित किये जाते है।
 +
 
 +
इस प्रकार से सिद्धान्त स्कन्ध भी तीन भागों में विभक्त हैं। सिद्धान्त ग्रन्थों में कल्पादि अथावा सृष्ट्यादि से, तन्त्र ग्रन्थों में युगादि से तथा करण ग्रन्थों में अभीष्ट शकाब्द से अहर्गण का साधन कर मध्यम ग्रह का आनयन व ग्रहस्पष्टीकरण किया गया।
 +
 
 +
== सिद्धान्त स्कन्ध के प्रसिद्ध आचार्य व ग्रन्थ ==
 +
आचार्य लगध से प्रारम्भ कर आचार्य सुधाकर पर्यन्त जो मूल सिद्धान्त ग्रन्थ के प्रणेता हैं उनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है-
 +
 
 +
लगधाचार्य - वेदांग ज्योतिष
 +
 
 +
आर्यभट - आर्यभटीय
 +
 
 +
लल्लाचार्य - शिष्यधीवृद्धिदतन्त्रम्
 +
 
 +
वराहमिहिर - पञ्चसिद्धान्तिका
 +
 
 +
भास्कर प्रथम - महाभास्करीय और लघुभास्करीय
   −
आर्यभट्ट- आर्यभट्टीयम्
+
ब्रह्मगुप्त- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त
   −
ब्रह्मगुप्त- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त एवं खण्डखाद्यक
+
आचार्य मुञ्जाल - बृहन्मानस
   −
लल्ल- शिष्यधीवृद्धिदम्
+
द्वितीय आर्यभट - महासिद्धान्त
   −
श्रीपति- सिद्धान्तशेखर
+
श्रीपति - सिद्धान्तशेखर
   −
भास्कराचार्य-सिद्धान्तशिरोमणि
+
भोजदेव - राजमृगांक
 +
 
 +
भास्कराचार्य - सिद्धान्तशिरोमणि
 +
 
 +
गणेश दैवज्ञ - ग्रहलाघवकरण
    
मुनीश्वर- सिद्धान्तसार्वभौम
 
मुनीश्वर- सिद्धान्तसार्वभौम
   −
कमलाकर-
+
आचार्य सुधाकर द्विवेदी - गणकतरंगिणी
 +
 
 +
उपर्युक्त आचार्य एवं उनके ग्रन्थ कालान्तर में अत्यन्त प्रसिद्ध हुये। परन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेक आचार्य हुए जिन्होंने सिद्धान्त विषय में ग्रन्थों की रचना की।
 +
 
 +
== सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख विषय ==
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
748

edits

Navigation menu