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वेबस्टर डिक्शनरी में भी कुछ ऐसे ही अर्थ बताया गया है।
 
वेबस्टर डिक्शनरी में भी कुछ ऐसे ही अर्थ बताया गया है।
संस्कृति का अर्थ समझाने की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा की मदद का कोई उपयोग नहीं है। इसे धार्मिक (धार्मिक) साहित्य में ही ढूँढना होगा।   
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संस्कृति का अर्थ समझाने की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा की सहायता का कोई उपयोग नहीं है। इसे धार्मिक (धार्मिक) साहित्य में ही ढूँढना होगा।   
    
मराठी शब्दकोश में खंड १८ में कहा है – सम् और कृति इन दो शब्दों से संस्कृति और संस्कार दोनों शब्द बने हैं। संस्कृति यह समाज की जीवन पद्धति होती है। लेकिन इन से कोई स्पष्टता नहीं होती। किसी समाज की जीवन पद्धति यदि अपने सुख के लिए औरों को लूटने की है तो क्या यह संस्कृति कही जाएगी। यह तो विकृति है। संस्कृति शब्द की और भी एक व्युत्पत्ति है – सम्यक् कृति याने संस्कृति। सम्यक का अर्थ है अच्छी या सबके लिए समान। याने सर्वे भवन्तु सुखिन: से सुसंगत कृति ही संस्कृति है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड १, अध्याय ६, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
 
मराठी शब्दकोश में खंड १८ में कहा है – सम् और कृति इन दो शब्दों से संस्कृति और संस्कार दोनों शब्द बने हैं। संस्कृति यह समाज की जीवन पद्धति होती है। लेकिन इन से कोई स्पष्टता नहीं होती। किसी समाज की जीवन पद्धति यदि अपने सुख के लिए औरों को लूटने की है तो क्या यह संस्कृति कही जाएगी। यह तो विकृति है। संस्कृति शब्द की और भी एक व्युत्पत्ति है – सम्यक् कृति याने संस्कृति। सम्यक का अर्थ है अच्छी या सबके लिए समान। याने सर्वे भवन्तु सुखिन: से सुसंगत कृति ही संस्कृति है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड १, अध्याय ६, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
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एक अलग तरीके से भी धर्म और संस्कृति का संबंध समझा जा सकता है। मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। मोक्षप्राप्ति का साधन पुरुषार्थ चतुष्टय है याने धर्म के अविरोधी काम या इच्छाओं को रखने में है।  
 
एक अलग तरीके से भी धर्म और संस्कृति का संबंध समझा जा सकता है। मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। मोक्षप्राप्ति का साधन पुरुषार्थ चतुष्टय है याने धर्म के अविरोधी काम या इच्छाओं को रखने में है।  
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धर्म के अच्छे अनुपालना के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है शरीर:<blockquote>शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। <ref>कुमारसंभव ५.३३</ref></blockquote>अपने शरीर को ठीक रखने के लिए समाज की मदद आवश्यक होती है। समाज के द्वारा निर्माण की गई वस्तुओं, सेवाओं के बिना हम सुख से जी नहीं सकते। समाज यदि सुखी होगा तो हम भी सुखी हो सकते हैं। अतः समाज के सुखी रहने से ही हम अपने जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। अतः कहा गया है:<blockquote>आत्मनो मोक्षार्थम् जगद् हिताय च।<ref>ऋग्वेद</ref></blockquote>जगत का याने समाज का और पर्यावरण का दोनों का हित करने के लिए किये गए व्यवहार का ही नाम संस्कृति है। समाज ओर पर्यावरण दोनों के हित की कृति ही संस्कृति है।
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धर्म के अच्छे अनुपालना के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है शरीर:<blockquote>शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। <ref>कुमारसंभव ५.३३</ref></blockquote>अपने शरीर को ठीक रखने के लिए समाज की सहायता आवश्यक होती है। समाज के द्वारा निर्माण की गई वस्तुओं, सेवाओं के बिना हम सुख से जी नहीं सकते। समाज यदि सुखी होगा तो हम भी सुखी हो सकते हैं। अतः समाज के सुखी रहने से ही हम अपने जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। अतः कहा गया है:<blockquote>आत्मनो मोक्षार्थम् जगद् हिताय च।<ref>ऋग्वेद</ref></blockquote>जगत का याने समाज का और पर्यावरण का दोनों का हित करने के लिए किये गए व्यवहार का ही नाम संस्कृति है। समाज ओर पर्यावरण दोनों के हित की कृति ही संस्कृति है।
    
धर्म और मजहब या रिलीजन में अंतर है। अतः मजहबी या रिलीजन के अनुसार की हुई कोई भी कृति जब तक धर्म के अनुसार ठीक नहीं है तब तक वह कृति धार्मिक (धार्मिक) संस्कृति नहीं है। इसी तरह किसी मत, पंथ या सम्प्रदाय के द्वारा बताई हुई या समर्थित या पुरस्कृत कोई भी कृति जब धर्म के अनुकूल होगी तब ही वह धार्मिक (धार्मिक) संस्कृति कहलाएगी।
 
धर्म और मजहब या रिलीजन में अंतर है। अतः मजहबी या रिलीजन के अनुसार की हुई कोई भी कृति जब तक धर्म के अनुसार ठीक नहीं है तब तक वह कृति धार्मिक (धार्मिक) संस्कृति नहीं है। इसी तरह किसी मत, पंथ या सम्प्रदाय के द्वारा बताई हुई या समर्थित या पुरस्कृत कोई भी कृति जब धर्म के अनुकूल होगी तब ही वह धार्मिक (धार्मिक) संस्कृति कहलाएगी।

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