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भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, वृक्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती।
 
भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, वृक्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती।
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== संहिता स्कन्ध का मूलाधार ==
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गणित, गोल-गोलीय, यन्त्र तथा मानवीय बुद्धि का समवेत रूप है। मानवीय पिण्ड से गोलीय पिण्ड तक तथा गोलीय पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक का पञ्चमहाभूतात्मक त्रिगुणात्मक विस्तार न्यूनाधिक रूप भूत निष्पत्ति, प्राणांश, क्षेत्रांश तथा कालांश का योगज एवं वियोगज चमत्कार मात्र है। तदवदानुकरण से आविष्कारों का प्रादुर्भाव विश्वव्यापी दृष्टान्त से प्रत्यक्ष है। सजीव क्रम में पञ्चमहाभूत, त्रिगुण, मन, बुद्धि, अहंकार, आत्मा तथा काल प्रभृति अवयव आत्मकेन्द्रिक हैं।
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नीति शास्त्रगत मानवीय तथा सामाजिक सौहार्द्र को स्थापित करना सुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयत्व, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूल लक्ष्य है।
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== संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध ==
 
== संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध ==
 
संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं-
 
संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं-
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