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== जप ==
 
== जप ==
 
मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है।
 
मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है।
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== ध्यान ==
 
== ध्यान ==
 
{{Main|Dhyana (ध्यानम्)}}
 
{{Main|Dhyana (ध्यानम्)}}
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ध्यानाभ्यास ब्रह्ममुहूर्त में किया जाये तो सर्वश्रेष्ठ है, ध्यान करने का स्थान पवित्र एवं स्वच्छ होना चाहिये एवं ध्यान योग के साधक को हठ्योग में वर्णित पथ्य-अपथ्य आहार का पालन दृढता से करना चाहिये।
 
ध्यानाभ्यास ब्रह्ममुहूर्त में किया जाये तो सर्वश्रेष्ठ है, ध्यान करने का स्थान पवित्र एवं स्वच्छ होना चाहिये एवं ध्यान योग के साधक को हठ्योग में वर्णित पथ्य-अपथ्य आहार का पालन दृढता से करना चाहिये।
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== '''लय''' ==
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== लय ==
 
लय शब्द ली धातु से बना है जिसका अर्थ है विलीन होना, विश्रांति, संयोग, एक रूप होना, मिलन अर्थात् जब दो के बीच एकरूपता या साम्य, इस प्रकार सम्पन्न हो जाए कि उसका अन्तराल न कम हो और न अधिक तो उसे लय कहते हैं। मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है।<blockquote>यो वात्मानं तु वै तस्मिन् मानवः कुरुते लयम्। भवबन्धविनिर्मुक्तो लययोगं स आप्नुते॥</blockquote>जो मनुष्य अपने आपको स्वयं में लय कर देता है, वह मनुष्य सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर लययोग को प्राप्त करता है।<blockquote>लययोगस्तु स एषो येन संधौतकल्मषः। सच्चिदानन्दरूपेण साधकः सुखमाप्नुते॥</blockquote>यह लययोग वह है जिस सच्चिदानन्द रूपयोग से जिसके पाप नष्ट हो गये हैं इस प्रकार का साधक सुखं को प्राप्त करता है।
 
लय शब्द ली धातु से बना है जिसका अर्थ है विलीन होना, विश्रांति, संयोग, एक रूप होना, मिलन अर्थात् जब दो के बीच एकरूपता या साम्य, इस प्रकार सम्पन्न हो जाए कि उसका अन्तराल न कम हो और न अधिक तो उसे लय कहते हैं। मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है।<blockquote>यो वात्मानं तु वै तस्मिन् मानवः कुरुते लयम्। भवबन्धविनिर्मुक्तो लययोगं स आप्नुते॥</blockquote>जो मनुष्य अपने आपको स्वयं में लय कर देता है, वह मनुष्य सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर लययोग को प्राप्त करता है।<blockquote>लययोगस्तु स एषो येन संधौतकल्मषः। सच्चिदानन्दरूपेण साधकः सुखमाप्नुते॥</blockquote>यह लययोग वह है जिस सच्चिदानन्द रूपयोग से जिसके पाप नष्ट हो गये हैं इस प्रकार का साधक सुखं को प्राप्त करता है।
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लय का अर्थ है लीन होना, किसी में घुल जाना विलीन हो जाना। आत्मा को परमात्मा में घुला देना, लीन कर देना लय योग का उद्देश्य है। मुक्ति या समाधि अवस्था में आत्म विस्मृति हो जाती है, द्वैत मिट जाता है और एकता की सायुज्यता का आनन्द प्राप्त होता है। लययोग में अपने मन को भुलाने का अभ्यास किया जाता है। जिससे वर्तमान स्थूल स्थिति में रहते हुए भी उसका विस्मरण हो जाय और ऐसी किसी स्थिति का अनुभव होता रहे जो यद्यपि स्थूल रूप से नहीं है पर मन जिसे चाहता है। जो स्थूल स्थित है उसका अनुभव न करना और जो बात भले ही प्रत्यक्ष रूप से नहीं है पर उसे अपनी भावना के बल पर अनुभव करना- यही कार्य प्रणाली लय योग में होती है। इस अभ्यास में प्रवीण हो जाने पर मनुष्य वर्तमान परिस्थितियों को सांसारिक दृष्टि से देखना भूल जाता है, फल स्वरूप वे बातें भी उसे दुखदायी प्रतीत नहीं होती जिनके कारण साधारण लोग बहुत भयभीत और दुःखी रहते हैं। लययोग का साधक कष्ट, पीडा या  विपत्ति में भी आनन्द एवं कल्याण का अनुभव करता हुआ संतुष्ट रह सकता है।
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लय का अर्थ है लीन होना, किसी में घुल जाना विलीन हो जाना। आत्मा को परमात्मा में घुला देना, लीन कर देना लय योग का उद्देश्य है। मुक्ति या समाधि अवस्था में आत्म विस्मृति हो जाती है, द्वैत मिट जाता है और एकता की सायुज्यता का आनन्द प्राप्त होता है। लययोग में अपने मन को भुलाने का अभ्यास किया जाता है। जिससे वर्तमान स्थूल स्थिति में रहते हुए भी उसका विस्मरण हो जाय और ऐसी किसी स्थिति का अनुभव होता रहे जो यद्यपि स्थूल रूप से नहीं है पर मन जिसे चाहता है। जो स्थूल स्थित है उसका अनुभव न करना और जो बात भले ही प्रत्यक्ष रूप से नहीं है पर उसे अपनी भावना के बल पर अनुभव करना- यही कार्य प्रणाली लय योग में होती है। इस अभ्यास में प्रवीण हो जाने पर मनुष्य वर्तमान परिस्थितियों को सांसारिक दृष्टि से देखना भूल जाता है, फल स्वरूप वे बातें भी उसे दुखदायी प्रतीत नहीं होती जिनके कारण साधारण लोग बहुत भयभीत और दुःखी रहते हैं। लययोग का साधक कष्ट, पीडा या  विपत्ति में भी आनन्द एवं कल्याण का अनुभव करता हुआ संतुष्ट रह सकता है।<ref>श्री राम शर्मा, आचार्य, [http://literature.awgp.org/book/gayatri_yog/v1.23 अखण्ड ज्योति], गायत्री योग,  (पृ० २३)।</ref>
    
लययोग का आरंभ पंच इन्द्रियों की, पंच तत्वों की, तन्मात्राओं पर काबू करने से होता है, धीरे-धीरे यह अभ्यास बढ कर आत्मविस्मृति की पूर्ण सफलता तक पहुंच जाता है और जीवभाव से छुटकारा पाकर आत्म भाव दिव्य स्थिति का आनन्द लेता है।
 
लययोग का आरंभ पंच इन्द्रियों की, पंच तत्वों की, तन्मात्राओं पर काबू करने से होता है, धीरे-धीरे यह अभ्यास बढ कर आत्मविस्मृति की पूर्ण सफलता तक पहुंच जाता है और जीवभाव से छुटकारा पाकर आत्म भाव दिव्य स्थिति का आनन्द लेता है।
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