Line 107: |
Line 107: |
| | | |
| यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥३- २३॥ | | यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥३- २३॥ |
| + | |
| + | yadi hy ahaṁ na varteyaṁ jātu karmaṇy atandritaḥ mama vartmānuvartante manuṣyāḥ pārtha sarvaśaḥ ॥ 3-23 ॥ |
| | | |
| उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥३- २४॥ | | उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥३- २४॥ |
| + | |
| + | utsīdeyur ime lokā na kuryāṁ karma ced aham saṅkarasya ca kartā syām saṅkarasya ca kartā syām upahanyām imāḥ prajāḥ ॥ 3-24 ॥ |
| | | |
| सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत । कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥३- २५॥ | | सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत । कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥३- २५॥ |
| + | |
| + | saktāḥ karmaṇy avidvāṁso yathā kurvanti bhārata kuryād vidvāṁs tathāsaktaś cikīrṣur loka-saṅgraham ॥ 3-25 ॥ |
| | | |
| न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् । जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥३- २६॥ | | न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् । जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥३- २६॥ |
| + | |
| + | na buddhi-bhedaṁ janayed ajñānāṁ karma-saṅginām joṣayet sarva-karmāṇi vidvān yuktaḥ samācaran ॥ 3-26 ॥ |
| | | |
| प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः । अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥३- २७॥ | | प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः । अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥३- २७॥ |
| + | |
| + | prakṛteḥ kriyamāṇāni guṇaiḥ karmāṇi sarvaśaḥ ahaṅkāra-vimūḍhātmā kartāham iti manyate ॥ 3-27 ॥ |
| | | |
| तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥३- २८॥ | | तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥३- २८॥ |
| + | |
| + | tattva-vit tu mahā-bāho guṇa-karma-vibhāgayoḥ guṇā guṇeṣu vartanta iti matvā na sajjate ॥ 3-28 ॥ |
| | | |
| प्रकृतेर्गुणसंमूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु । तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥३- २९॥ | | प्रकृतेर्गुणसंमूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु । तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥३- २९॥ |
| + | |
| + | prakṛter guṇa-sammūḍhāḥ sajjante guṇa-karmasu tān akṛtsna-vido mandān kṛtsna-vin na vicālayet ॥ 3-29 ॥ |
| | | |
| मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥३- ३०॥ | | मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥३- ३०॥ |
| + | |
| + | mayi sarvāṇi karmāṇi sannyasyādhyātma-cetasā nirāśīr nirmamo bhūtvā yudhyasva vigata-jvaraḥ ॥ 3-30 ॥ |
| | | |
| ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥३- ३१॥ | | ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥३- ३१॥ |
| + | |
| + | ye me matam idaṁ nityam anutiṣṭhanti mānavāḥ śraddhāvanto ’nasūyanto mucyante te ’pi karmabhiḥ ॥ 3-31 ॥ |
| | | |
| ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥३- ३२॥ | | ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥३- ३२॥ |
| + | |
| + | ye tv etad abhyasūyanto nānutiṣṭhanti me matam sarva-jñāna-vimūḍhāṁs tān viddhi naṣṭān acetasaḥ ॥ 3-32 ॥ |
| | | |
| सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥३- ३३॥ | | सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥३- ३३॥ |
| + | |
| + | sadṛśaṁ ceṣṭate svasyāḥ prakṛter jñānavān api prakṛtiṁ yānti bhūtāni nigrahaḥ kiṁ kariṣyati ॥ 3-33 ॥ |
| | | |
| इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥३- ३४॥ | | इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥३- ३४॥ |
| + | |
| + | indriyasyendriyasyārthe rāga-dveṣau vyavasthitau tayor na vaśam āgacchet tau hy asya paripanthinau ॥ 3-34 ॥ |
| | | |
| श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥३- ३५॥ | | श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥३- ३५॥ |
| | | |
− | '''अर्जुन उवाच'''
| + | śreyān sva-dharmo viguṇaḥ para-dharmāt sv-anuṣṭhitāt sva-dharme nidhanaṁ śreyaḥ para-dharmo bhayāvahaḥ ॥ 3-35 ॥ |
− | अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥३- ३६॥
| |
| | | |
− | '''श्रीभगवानुवाच''' | + | '''अर्जुन उवाच''' अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥३- ३६॥ |
− | काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ | + | |
| + | arjuna uvāca atha kena prayukto ’yaṁ pāpaṁ carati pūruṣaḥ anicchann api vārṣṇeya balād iva niyojitaḥ ॥ 3-36 ॥ |
| + | |
| + | '''श्रीभगवानुवाच''' काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ |
| + | |
| + | śrī-bhagavān uvāca kāma eṣa krodha eṣa rajo-guṇa-samudbhavaḥ mahāśano mahā-pāpmā viddhy enam iha vairiṇam ॥ 3-37 ॥ |
| | | |
| धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ | | धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ |
| + | |
| + | dhūmenāvriyate vahnir yathādarśo malena ca yatholbenāvṛto garbhas tathā tenedam āvṛtam ॥ 3-38 ॥ |
| | | |
| आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥३- ३९॥ | | आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥३- ३९॥ |
| + | |
| + | āvṛtaṁ jñānam etena jñānino nitya-vairiṇā kāma-rūpeṇa kaunteya duṣpūreṇānalena ca ॥ 3-39 ॥ |
| | | |
| इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥३- ४०॥ | | इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥३- ४०॥ |
| + | |
| + | indriyāṇi mano buddhir asyādhiṣṭhānam ucyate etair vimohayaty eṣa jñānam āvṛtya dehinam ॥ 3-40 ॥ |
| | | |
| तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥३- ४१॥ | | तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥३- ४१॥ |
| + | |
| + | tasmāt tvam indriyāṇy ādau niyamya bharatarṣabha pāpmānaṁ prajahi hy enaṁ jñāna-vijñāna-nāśanam ॥ 3-41 ॥ |
| | | |
| इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥३- ४२॥ | | इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥३- ४२॥ |
| + | |
| + | indriyāṇi parāṇy āhur indriyebhyaḥ paraṁ manaḥ manasas tu parā buddhir yo buddheḥ paratas tu saḥ ॥ 3-42 ॥ |
| | | |
| एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥३- ४३॥ | | एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥३- ४३॥ |
| + | |
| + | evaṁ buddheḥ paraṁ buddhvā saṁstabhyātmānam ātmanā jahi śatruṁ mahā-bāho kāma-rūpaṁ durāsadam ॥ 3-43 ॥ |
| | | |
| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ |