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| मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥३- ३०॥ | | मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥३- ३०॥ |
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| + | mayi sarvāṇi karmāṇi sannyasyādhyātma-cetasā nirāśīr nirmamo bhūtvā yudhyasva vigata-jvaraḥ ॥ 3-30 ॥ |
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| ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥३- ३१॥ | | ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥३- ३१॥ |
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| + | ye me matam idaṁ nityam anutiṣṭhanti mānavāḥ śraddhāvanto ’nasūyanto mucyante te ’pi karmabhiḥ ॥ 3-31 ॥ |
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| ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥३- ३२॥ | | ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥३- ३२॥ |
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| + | ye tv etad abhyasūyanto nānutiṣṭhanti me matam sarva-jñāna-vimūḍhāṁs tān viddhi naṣṭān acetasaḥ ॥ 3-32 ॥ |
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| सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥३- ३३॥ | | सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि । प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥३- ३३॥ |
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| + | sadṛśaṁ ceṣṭate svasyāḥ prakṛter jñānavān api prakṛtiṁ yānti bhūtāni nigrahaḥ kiṁ kariṣyati ॥ 3-33 ॥ |
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| इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥३- ३४॥ | | इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ । तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥३- ३४॥ |
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| + | indriyasyendriyasyārthe rāga-dveṣau vyavasthitau tayor na vaśam āgacchet tau hy asya paripanthinau ॥ 3-34 ॥ |
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| श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥३- ३५॥ | | श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥३- ३५॥ |
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− | '''अर्जुन उवाच''' | + | śreyān sva-dharmo viguṇaḥ para-dharmāt sv-anuṣṭhitāt sva-dharme nidhanaṁ śreyaḥ para-dharmo bhayāvahaḥ ॥ 3-35 ॥ |
− | अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥३- ३६॥ | + | |
| + | '''अर्जुन उवाच''' अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥३- ३६॥ |
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| + | arjuna uvāca atha kena prayukto ’yaṁ pāpaṁ carati pūruṣaḥ anicchann api vārṣṇeya balād iva niyojitaḥ ॥ 3-36 ॥ |
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− | '''श्रीभगवानुवाच''' | + | '''श्रीभगवानुवाच''' काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ |
− | काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥३- ३७॥ | |
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| धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ | | धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३- ३८॥ |