Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारि
Line 11: Line 11:     
== आयुर्वेद में ज्योतिष की उपयोगिता ==
 
== आयुर्वेद में ज्योतिष की उपयोगिता ==
ज्योतिषशास्त्र चिकित्साशास्त्र का पूर्ण सहायक है। ज्योतिषशास्त्रके ज्ञान के विना औषधि निर्माण का समय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। ज्योतिषशास्त्रमें औषधि निर्माण के लिये मुहूर्त का विधान किया गया है। शुभ मुहूर्तमें औषधिको छेदकर निर्माण करने से वह औषधि विशिष्ट ग्रहरश्मियों से प्रभावित होकर विशिष्ट गुण सम्पन्न हो जाती है।
+
ज्योतिषशास्त्र चिकित्साशास्त्र का पूर्ण सहायक है। ज्योतिषशास्त्रके ज्ञान के विना औषधि निर्माण का समय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। ज्योतिषशास्त्रमें औषधि निर्माण के लिये मुहूर्त का विधान किया गया है। शुभ मुहूर्तमें औषधिको छेदकर निर्माण करने से वह औषधि विशिष्ट ग्रहरश्मियों से प्रभावित होकर विशिष्ट गुण सम्पन्न हो जाती है। मानव शरीर में रोग के कारण, रोग की मात्रा एवं रोग की काल अवधि जानने में भी ज्योतिषशास्त्र सहायक सिद्ध होता है।<blockquote>आतुरमुपक्रममाणेन भिषजायुरादावेव परीक्षितव्यम् ।( सु० सं० सूत्रस्थानम् ३५/३)</blockquote>
 
  −
मानव शरीर में रोग के कारण, रोग की मात्रा एवं रोग की काल अवधि जानने में भी ज्योतिषशास्त्र सहायक सिद्ध होता है।
  −
 
  −
आतुरमुपक्रममाणेन भिषजायुरादावेव परीक्षितव्यम् ।( सु० सं० सूत्रस्थानम् ३५/३)
      
भगवान् धन्वन्तरि ने [[Acharya Sushruta (आचार्य सुश्रुतः)|आचार्य सुश्रुत]] से कहा है कि-<blockquote>आयुः पूर्वं परीक्षेत् पश्चाल्लक्षणमादिशेत् । अनायुषां हि मनुष्याणां लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥(प्र० मा० ९/३)</blockquote>रोगी की चिकित्सा प्रारम्भ करनेसे पूर्व वैद्यको उसकी आयु परीक्षाकर लेनी चाहिये। यदि आयु शेष हो तो रोग, ऋतु(मौसम), वय, बल और औषधि का विचार कर चिकित्सा करनी चाहिये।
 
भगवान् धन्वन्तरि ने [[Acharya Sushruta (आचार्य सुश्रुतः)|आचार्य सुश्रुत]] से कहा है कि-<blockquote>आयुः पूर्वं परीक्षेत् पश्चाल्लक्षणमादिशेत् । अनायुषां हि मनुष्याणां लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥(प्र० मा० ९/३)</blockquote>रोगी की चिकित्सा प्रारम्भ करनेसे पूर्व वैद्यको उसकी आयु परीक्षाकर लेनी चाहिये। यदि आयु शेष हो तो रोग, ऋतु(मौसम), वय, बल और औषधि का विचार कर चिकित्सा करनी चाहिये।
Line 23: Line 19:     
==रोगों का वर्गीकरण==
 
==रोगों का वर्गीकरण==
ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में रोगों का गम्भीरता पूर्वक विचार करने से सर्वप्रथम उनके भेदों का विचार किया गया है, इस शास्त्र में रोगों को मुख्यतः दो प्रकार का माना गया है<ref>अर्चना शुक्ला, उदररोगमें ग्रहयोगकी समीक्षा वर्तमान सन्दर्भमें समालोचनात्मक अध्ययन, मेवाड विश्वविद्यालय, सन् २०२१, अध्य्याय०२, (पृ० ३८)</ref>-
+
स्वास्थ्य संबंधी विचार के कई योग ग्रह,राशि और भाव आदि के माध्यम ज्योतिष शास्त्र में बताये गये हैं। ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में रोगों का गम्भीरता पूर्वक विचार करने से सर्वप्रथम उनके भेदों का विचार किया गया है, प्रश्नमार्ग के अनुसार रोगों को मुख्यतः दो प्रकार का माना गया है<ref>अर्चना शुक्ला, उदररोगमें ग्रहयोगकी समीक्षा वर्तमान सन्दर्भमें समालोचनात्मक अध्ययन, मेवाड विश्वविद्यालय, सन् २०२१, अध्य्याय०२, (पृ० ३८)</ref>-<blockquote>सन्ति प्रकार भेदाश्च रोगभेदनिरूपणे। ते चाप्यत्र विलिख्यन्ते यथा शास्त्रान्तरोदिताः।
 +
रोगास्तु द्विविधा ज्ञेया निजागन्तुविभेदितः। निजाश्चागन्तुकाश्चापि प्रत्येकं द्विविधाः पुनः॥
 +
 
 +
निजा शरीरचित्तोत्था दृष्टादृष्टनिमित्तजाः। तथैवागन्तुकाश्चैवं व्याधयः स्युश्चतुर्विधाः॥(प्रश्नमा० १२/१७-१९)<ref>आर० सुब्रह्मण्यम उपाध्याय, [https://archive.org/details/prasnamarga-035823mbp-1/page/n179/mode/1up?view=theater प्रश्नमार्ग पार्ट-१,]  श्रीगीर्वाणवाणी पुस्तकशाला, अध्याय-१२, श्लोक- १७-१९, (पृ०१६७)।</ref></blockquote>
 
#'''सहज-''' जन्मजात रोगों को सहज रोग कहते हैं।
 
#'''सहज-''' जन्मजात रोगों को सहज रोग कहते हैं।
 
#'''आगन्तुक-''' जन्म के बाद होने वाले रोगों को आगन्तुक रोग कहते हैं।
 
#'''आगन्तुक-''' जन्म के बाद होने वाले रोगों को आगन्तुक रोग कहते हैं।
746

edits

Navigation menu