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== वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान के लक्षण ==
 
== वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान के लक्षण ==
अब हम जीवन के वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान और जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान के लक्षणों/परिणामों का  विभिन्न प्रकार के उदाहरणों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करेंगे:
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अब हम जीवन के वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान और जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान के लक्षणों/परिणामों का  विभिन्न प्रकार के उदाहरणों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करेंगे:<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय २२, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
 
# वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान ने धार्मिक (भारतीय) एकत्रित कुटुम्ब का ध्वंस कर दिया है। पहले उसे छोटा कुटुम्ब बनाया। फिर उसे फॅमिली याने ‘पति, पत्नि और उनके बच्चे’ तक सीमित कर दिया। अब उस से भी आगे स्वेच्छा-सहनिवास तक बढ गये हैं। यह तो मानव जाति को नष्ट करने की दिशा है।
 
# वर्तमान अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान ने धार्मिक (भारतीय) एकत्रित कुटुम्ब का ध्वंस कर दिया है। पहले उसे छोटा कुटुम्ब बनाया। फिर उसे फॅमिली याने ‘पति, पत्नि और उनके बच्चे’ तक सीमित कर दिया। अब उस से भी आगे स्वेच्छा-सहनिवास तक बढ गये हैं। यह तो मानव जाति को नष्ट करने की दिशा है।
 
# वर्तमान प्रतिमान मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट कर समाज को विघटित कर देता है। व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना देता है। हिन्दुस्थान में अब तक २.५ - ३ लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं हैं। लेकिन कुछ सम्मान योग्य अपवाद छोडकर, बोल बच्चन के अलावा न तो व्यक्तिगत स्तरपर एकात्मता की भावना से और ना ही सामाजिक स्तरपर एकात्मता की दृष्टि से इस की ओर देखा जा रहा है। किसान भी आज समूचे समाज के लिये अन्न का उत्पादन करना मेरा जाति-धर्म है, ऐसा नहीं मानता। धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान में किसान ही क्या, किसी भी बाल, वृद्ध, विधवा, विकलांग और दुर्बल को भी आत्महत्या करने की नौबत नहीं आए ऐसी व्यवस्था होगी। अपवाद से यदि कोई आत्महत्या करता है तो व्यापक कुटुम्ब भावना के कारण पूरे समाज के लिये यह चिंता, चिन्तन और क्रियान्वयन का विषय बन जायेगा।
 
# वर्तमान प्रतिमान मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट कर समाज को विघटित कर देता है। व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना देता है। हिन्दुस्थान में अब तक २.५ - ३ लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं हैं। लेकिन कुछ सम्मान योग्य अपवाद छोडकर, बोल बच्चन के अलावा न तो व्यक्तिगत स्तरपर एकात्मता की भावना से और ना ही सामाजिक स्तरपर एकात्मता की दृष्टि से इस की ओर देखा जा रहा है। किसान भी आज समूचे समाज के लिये अन्न का उत्पादन करना मेरा जाति-धर्म है, ऐसा नहीं मानता। धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान में किसान ही क्या, किसी भी बाल, वृद्ध, विधवा, विकलांग और दुर्बल को भी आत्महत्या करने की नौबत नहीं आए ऐसी व्यवस्था होगी। अपवाद से यदि कोई आत्महत्या करता है तो व्यापक कुटुम्ब भावना के कारण पूरे समाज के लिये यह चिंता, चिन्तन और क्रियान्वयन का विषय बन जायेगा।

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