# वर्तमान प्रतिमान मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट कर समाज को विघटित कर देता है। व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना देता है। हिन्दुस्थान में अब तक २.५ - ३ लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं हैं। लेकिन कुछ सम्मान योग्य अपवाद छोडकर, बोल बच्चन के अलावा न तो व्यक्तिगत स्तरपर एकात्मता की भावना से और ना ही सामाजिक स्तरपर एकात्मता की दृष्टि से इस की ओर देखा जा रहा है। किसान भी आज समूचे समाज के लिये अन्न का उत्पादन करना मेरा जाति-धर्म है, ऐसा नहीं मानता। धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान में किसान ही क्या, किसी भी बाल, वृद्ध, विधवा, विकलांग और दुर्बल को भी आत्महत्या करने की नौबत नहीं आए ऐसी व्यवस्था होगी। अपवाद से यदि कोई आत्महत्या करता है तो व्यापक कुटुम्ब भावना के कारण पूरे समाज के लिये यह चिंता, चिन्तन और क्रियान्वयन का विषय बन जायेगा। | # वर्तमान प्रतिमान मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट कर समाज को विघटित कर देता है। व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना देता है। हिन्दुस्थान में अब तक २.५ - ३ लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं हैं। लेकिन कुछ सम्मान योग्य अपवाद छोडकर, बोल बच्चन के अलावा न तो व्यक्तिगत स्तरपर एकात्मता की भावना से और ना ही सामाजिक स्तरपर एकात्मता की दृष्टि से इस की ओर देखा जा रहा है। किसान भी आज समूचे समाज के लिये अन्न का उत्पादन करना मेरा जाति-धर्म है, ऐसा नहीं मानता। धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान में किसान ही क्या, किसी भी बाल, वृद्ध, विधवा, विकलांग और दुर्बल को भी आत्महत्या करने की नौबत नहीं आए ऐसी व्यवस्था होगी। अपवाद से यदि कोई आत्महत्या करता है तो व्यापक कुटुम्ब भावना के कारण पूरे समाज के लिये यह चिंता, चिन्तन और क्रियान्वयन का विषय बन जायेगा। |