Changes

Jump to navigation Jump to search
editing content
Line 1: Line 1: −
कुशा का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्त्व??
+
कु पाप श्यति नाशयति इति कुश:  अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसको कुश ,दर्भ अथवा दाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है। यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है।
 
  −
अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है।
  −
 
  −
इसको कुश ,दर्भ अथवा दाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है। यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है।
      
== यज्ञादिमें कुश धारणकी आवश्यकता ==
 
== यज्ञादिमें कुश धारणकी आवश्यकता ==
स्नाने होमे जपे दाने स्वाध्याये पितृकर्मणि ।
+
<blockquote>स्नाने होमे जपे दाने स्वाध्याये पितृकर्मणि । करौ सदर्भी कुर्वीत तथा सन्ध्याभिवादने । (प्रयोगपारिजात )</blockquote>'स्नानमें, हवन, जपमें, दान, स्वाध्यायमें, पितृकर्ममें, सन्ध्योपासनमें और अभिवादनमें दोनों हाथों में कुश धारण करने चाहिये। कुशेन रहिता कुशादिके बिना कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता <blockquote>कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया । उदकेन विना पूजा विना दर्भेण या क्रिया ॥ श्राज्येन च विना होमः फलं दास्यन्ति नैव ते।( यज्ञ-मीमांसा)</blockquote>'कुशके बिना जो पूजा होती है, वह निष्फल कही गई है । जलके बिना जो पूजा है, कुशके बिना जो यज्ञादि क्रिया है और घृतके बिना जो होम है, वह कदापि फलप्रद नहीं होता।'<blockquote></blockquote>'कुशके बिना किया हुआ स्नान, जलके बिना किया हुआ दान
 
  −
करौ सदर्भी कुर्वीत तथा सन्ध्याभिवादने । (प्रयोगपारिजात )
  −
 
  −
'स्नानमें, हवन, जपमें, दान, स्वाध्यायमें, पितृकर्ममें, सन्ध्योपासनमें और अभिवादनमें दोनों हाथों में कुश धारण करने चाहिये। कुशेन रहिता कुशादिके बिना कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता  
  −
 
  −
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया ।
  −
 
  −
उदकेन विना पूजा विना दर्भेण या क्रिया ॥
  −
 
  −
श्राज्येन च विना होमः फलं दास्यन्ति नैव ते।( यज्ञ-मीमांसा)
  −
 
  −
'कुशके बिना जो पूजा होती है, वह निष्फल कही गई है । जलके
  −
 
  −
बिना जो पूजा है, कुशके बिना जो यज्ञादि क्रिया है और घृतके
  −
 
  −
बिना जो होम है, वह कदापि फलप्रद नहीं होता।'
  −
 
  −
विना दर्भेण यत्स्नानं यच्च दानं विनोदकम् ।
  −
 
  −
असंख्यातं च यजप्यं तत्सर्वम् निष्फलं भवेत् ॥(प्रयोगपारिजात )
  −
 
  −
'कुशके बिना किया हुआ स्नान, जलके बिना किया हुआ दान
      
संख्याके बिना किया हुआ जप-यह सभी निष्फल होता है।'
 
संख्याके बिना किया हुआ जप-यह सभी निष्फल होता है।'

Navigation menu