Line 10: |
Line 10: |
| करौ सदर्भी कुर्वीत तथा सन्ध्याभिवादने । (प्रयोगपारिजात ) | | करौ सदर्भी कुर्वीत तथा सन्ध्याभिवादने । (प्रयोगपारिजात ) |
| | | |
− | 'स्नानमें, हवन, जपमें, दान, स्वाध्यायमें, पितृकर्ममें, सन्ध्योपासनमें और अभिवादनमें दोनों हाथोंम कुश धारण करने चाहिये। कुशेन रहिता कुशादिके बिना कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता | + | 'स्नानमें, हवन, जपमें, दान, स्वाध्यायमें, पितृकर्ममें, सन्ध्योपासनमें और अभिवादनमें दोनों हाथों में कुश धारण करने चाहिये। कुशेन रहिता कुशादिके बिना कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता |
| | | |
| कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया । | | कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया । |
Line 53: |
Line 53: |
| करते हैं।' | | करते हैं।' |
| | | |
− | कुशके अभाव में दूर्वा ग्राह्य है | + | कुशके अभाव में दूर्वा ग्राह्य है 'कुशस्थाने च दूर्वाः स्युर्मङ्गलस्याभिवृद्धये।' |
− | | |
− | 'कुशस्थाने च दूर्वाः स्युर्मङ्गलस्याभिवृद्धये।' | |
| | | |
| ( हेमाद्रौ) | | ( हेमाद्रौ) |
| | | |
− | 'माङ्गलिक कार्योंकी अभिवृद्धिके लिये कुशके स्थानमें | + | 'माङ्गलिक कार्योंकी अभिवृद्धिके लिये कुशके स्थानमें दूर्वा ग्राह्य है। |
− | | |
− | दूर्वा ग्राह्य है।' | |
− | | |
− | मान्यता है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं तो राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। ये केश राशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई।
| |
| | | |
− | इसके सिरे नुकीले होते हैं उखाडते समय सावधानी रखनी पडती है कि जड सहित उखडे और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना ।" ऊँ हुम् फट " मन्त्र का उच्चारण करते हुए उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाडी जाती है । | + | इसके सिरे नुकीले होते हैं उखाडते समय सावधानी रखनी पडती है कि जड सहित उखडे और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना । मन्त्र का उच्चारण करते हुए उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाडी जाती है । |
| | | |
| == कुशा का प्रयोग == | | == कुशा का प्रयोग == |
Line 79: |
Line 73: |
| | | |
| == कुशा आसन का महत्त्व : == | | == कुशा आसन का महत्त्व : == |
− | कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। -देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। | + | कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। (देवी भागवत 19/32) अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। |
| | | |
| उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है। | | उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है। |
Line 94: |
Line 88: |
| यथा वज्रं सुरेन्द्रस्य यथा चकं हरेस्तथा। | | यथा वज्रं सुरेन्द्रस्य यथा चकं हरेस्तथा। |
| | | |
− | त्रिशूलं च त्रिनेत्रस्य ब्राह्मणस्य पवित्रकम् ।। | + | त्रिशूलं च त्रिनेत्रस्य ब्राह्मणस्य पवित्रकम् ।।( हारीतः) |
− | | |
− | ( हारीतः) | |
| | | |
| 'जप और होमके फलको हरण करनेवाले दैत्यरूपी असुर | | 'जप और होमके फलको हरण करनेवाले दैत्यरूपी असुर |
Line 164: |
Line 156: |
| | | |
| == कुशोत्पाटिनी या कुशाग्रहणीअमावस्या ! == | | == कुशोत्पाटिनी या कुशाग्रहणीअमावस्या ! == |
− | भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शास्त्रों में कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। खास बात ये है कि कुश उखाडऩे से एक दिन पहले बड़े ही आदर के साथ उसे अपने घर लाने का निमंत्रण दिया जाता है। हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है। | + | भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शास्त्रों में कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है।इस दिन उखाड़ा गया कुश एक वर्ष तक चलता है; खास बात ये है कि कुश उखाडऩे से एक दिन पहले बड़े ही आदर के साथ उसे अपने घर लाने का निमंत्रण दिया जाता है। हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है। |
| | | |
| == ऐसे दें कुश को निमंत्रन् == | | == ऐसे दें कुश को निमंत्रन् == |
Line 183: |
Line 175: |
| बल्वजाः पुण्डरीकाश्च कुशाः सप्त प्रकीर्तिताः॥( पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड ४६।३४,३५) | | बल्वजाः पुण्डरीकाश्च कुशाः सप्त प्रकीर्तिताः॥( पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड ४६।३४,३५) |
| | | |
− | 'कुश, काश, दूर्वा, जौका पत्ता, धानका पत्ता, बल्वज और | + | 'कुश, काश, दूर्वा, जौका पत्ता, धानका पत्ता, बल्वज और कमल--ये सात प्रकारके कुश कहे गये हैं।' |
− | | |
− | कमल--ये सात प्रकारके कुश कहे गये हैं।' | |
| | | |
| यानि कुश, काश , दूर्वा, जौ पत्र इत्यादि कोई भी कुश आज उखाड़ी जा सकती है और उसका घर में संचय किया जा सकता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि हरी पत्तेदार कुश जो कहीं से भी कटी हुई ना हो , एक विशेष बात और जान लीजिए कुश का स्वामी केतु है लिहाज़ा कुश को अगर आप अपने घर में रखेंगे तो केतु के बुरे फलों से बच सकते हैं। | | यानि कुश, काश , दूर्वा, जौ पत्र इत्यादि कोई भी कुश आज उखाड़ी जा सकती है और उसका घर में संचय किया जा सकता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि हरी पत्तेदार कुश जो कहीं से भी कटी हुई ना हो , एक विशेष बात और जान लीजिए कुश का स्वामी केतु है लिहाज़ा कुश को अगर आप अपने घर में रखेंगे तो केतु के बुरे फलों से बच सकते हैं। |
Line 204: |
Line 194: |
| | | |
| == कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व- == | | == कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व- == |
− | शास्त्रों में में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है. इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है!
| + | अमायाश्च पितर:॥ (बृहदवकहड़ा चक्रम्) |
− | | |
− | आचार्य वरुण चन्द्र दीक्षित
| |
| | | |
− | श्री काशीधर्मपीठ
| + | शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है । |
| | | |
− | [वाराणसी]
| + | इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है! |