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हिंदुत्व से अभिप्राय है हिन्दुस्तान देश के रहनेवाले लोगों के विचार, व्यवहार और व्यवस्थाएं | सामान्यत: आदिकाल से इन तीनों बातों का समावेश हिंदुत्व में होता है| वर्तमान में इन तीनों की स्थिति वह नहीं रही जो ३००० वर्ष पूर्व थी | वर्तमान  के बहुसंख्य भारतीय इतिहासकार यह समझते हैं कि हिन्दू भी हिन्दुस्तान के मूल निवासी नहीं हैं | उनके यहाँ के मूल निवासी तो भील, गौंड, नाग आदि जाति के लोग हैं| वे कहते हैं कि आर्यों के आने से पहले इस देश का नाम क्या था पता नहीं| जब विदेशियों ने यहाँ बसे हुए आर्योंपर आक्रमण शुरू किये तब उन्होंने इस देश को हिन्दुस्तान नाम दिया| आज भारत में जो लोग बसते हैं वे एक जाति के नहीं हैं| वे यह भी कहते हैं कि उत्तर में आर्य और दक्षिण में द्रविड़ जातियां रहतीं हैं| हमारा इतिहास अंग्रेजों से बहुत पुराना है| फिर भी हमारे तथाकथित विद्वान हमारे इतिहास के अज्ञान के कारण इस का खंडन और हिन्दू ही इस देश के आदि काल से निवासी रहे हैं इस बात का मंडन नहीं कर पाते हैं| यह विपरीत शिक्षा के कारण निर्माण हुए हीनता बोध, अज्ञान और अन्धानुकरण की प्रवृत्ति के कारण ही है| वस्तुस्थिति यह है कि आज का हिन्दू इस देश में जबसे मानव पैदा ह़ा है तब से याने लाखों वर्षों से रहता आया है| हिन्दू जाति से तात्पर्य एक जैसे रंगरूप या नस्ल के लोगों से नहीं वरन् जिन का आचार-विचार एक होता है उनसे है| लाखों वर्षपूर्व यहाँ रहनेवाले लोगों की जो मान्याताएँ थीं, मोटे तौरपर वही मान्यताएँ आज भी हैं|  
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हिंदुत्व से अभिप्राय है हिन्दुस्तान देश के रहनेवाले लोगों के विचार, व्यवहार और व्यवस्थाएं | सामान्यत: आदिकाल से इन तीनों बातों का समावेश हिंदुत्व में होता है| वर्तमान में इन तीनों की स्थिति वह नहीं रही जो ३००० वर्ष पूर्व थी | वर्तमान  के बहुसंख्य भारतीय इतिहासकार यह समझते हैं कि हिन्दू भी हिन्दुस्तान के मूल निवासी नहीं हैं | उनके अनुसार यहाँ के मूल निवासी तो भील, गौंड, नाग आदि जाति के लोग हैं | वे कहते हैं कि आर्यों के आने से पहले इस देश का नाम क्या था पता नहीं | जब विदेशियों ने यहाँ बसे हुए आर्यों पर आक्रमण शुरू किये तब उन्होंने इस देश को हिन्दुस्तान नाम दिया |  
हिन्दूओं की मान्यताएँ  
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प्रसिद्ध विद्वान श्री गुरूदत्त अपने ‘हिंदुत्व की यात्रा’ इस पुस्तक में नौ मान्यताएँ बताते हैं|  
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आज भारत में जो लोग बसते हैं वे एक जाति के नहीं हैं | वे यह भी कहते हैं कि उत्तर में आर्य और दक्षिण में द्रविड़ जातियां रहतीं हैं | हमारा इतिहास अंग्रेजों से बहुत पुराना है | फिर भी हमारे तथाकथित विद्वान हमारे इतिहास के अज्ञान के कारण इस का '''खंडन''' '''और''' हिन्दू ही इस देश के आदि काल से निवासी रहे हैं इस बात का '''मंडन''' नहीं कर पाते हैं| यह विपरीत शिक्षा के कारण निर्माण हुए हीनता बोध, अज्ञान और अन्धानुकरण की प्रवृत्ति के कारण ही है | वस्तुस्थिति यह है कि आज का हिन्दू इस देश में जबसे मानव पैदा हुआ है तब से याने लाखों वर्षों से रहता आया है | हिन्दू जाति से तात्पर्य एक जैसे रंगरूप या नस्ल के लोगों से नहीं वरन् जिन का आचार-विचार एक होता है उनसे है | लाखों वर्ष पूर्व यहाँ रहनेवाले लोगों की जो मान्याताएँ थीं, मोटे तौर पर वही मान्यताएँ आज भी हैं|
१. एक परमात्मा है जो इस जगत् का निर्माण करनेवाला है| ओर करोड़ों वर्षों से इसे चला रहा है|  
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२. मनुष्य में एक तत्त्व है जीवात्मा| जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है| इसके कर्म करने की सामर्थ्य पर सीमा है| वह इस की अल्प शक्ति और अल्प ज्ञान के कारण है| फिर भी इस सीमा में वह कर्म करने स्वतन्त्र है|
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== हिन्दूओं की मान्यताएँ<ref>हिंदुत्व की यात्रा : लेखक – गुरुदत्त, प्रकाशक, शाश्वत संस्कृति परिषद्, नई दिल्ली</ref> ==
३. कर्म का फल इस जीवात्मा के हाथ में नहीं है| वह उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार ही मिलता है|
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प्रसिद्ध विद्वान श्री गुरूदत्त अपनी  ‘हिंदुत्व की यात्रा’ पुस्तक में नौ मान्यताएँ बताते हैं | यह इस प्रकार हैं:
४. परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं| परमात्मा की सामर्थ्य असीम है| जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है| यह अल्पज्ञान होनेसे बारबार जन्म लेता है| अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी| उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है|  
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# एक परमात्मा है जो इस जगत् का निर्माण करनेवाला है ओर करोड़ों वर्षों से इसे चला रहा है |
५. प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है| प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है| जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा|  
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# मनुष्य में एक तत्व है जीवात्मा | जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है | इसके कर्म करने की सामर्थ्य पर सीमा है | वह जीवात्मा की अल्प शक्ति और अल्प ज्ञान के कारण है | फिर भी इस सीमा में वह कर्म करने को वह स्वतन्त्र है |
६. मानव का स्तर मनुष्य जीवन में उसके गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार होता है| परिवार में जाति में या राष्ट्र में सभी स्तरपर मूल्यांकन इन्हीं के आधारपर होता है|
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# कर्म का फल इस जीवात्मा के हाथ में नहीं है | वह उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार ही मिलता है |
७. व्यवहार में यह सिद्द्धांत है कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए औरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार हम उनसे करें|
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# परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं | परमात्मा की सामर्थ्य असीम है | जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है | जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है | अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी | उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है |
८. धैर्य, क्षमा, दया, मनपर नियंत्रण, चोरी न करना, शरीर और व्यवहार की शुद्धता, इन्दियोंपर नियंत्रण, बुद्धि का प्रयोग, ज्ञान का संचय, सत्य(मन, वचन और कर्मसे) व्यवहार और क्रोध न करना ऐसा दास लक्षणोंवाला धर्म माना जाता है|  
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# प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है | प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है | जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा |
९. प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुद्धि, तर्क और प्रकृति के नियमों की बात ही माननीय है| यही श्रेष्ठ व्यवहार है|
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# मानव का स्तर मनुष्य जीवन में उसके गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार होता है | परिवार में जाति में या राष्ट्र में सभी स्तर पर मूल्यांकन इन्हीं के आधारपर होता है |
इस देश में कभी ये लोग वेदमत के माने जाते थे| पीछे इनका नाम हिन्दू हुआ| वर्तमान  में यह नाम हिन्दू है| इस जनसमूह में बाहर से भी लोग आये| लेकिन यहाँ के आचार विचार स्वीकार कर वे हिन्दू बन गए|  
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# व्यवहार में यह सिद्धांत है कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए औरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार हम उनसे करें |
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# धैर्य, क्षमा, दया, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, शरीर और व्यवहार की शुद्धता, इन्दियोंपर नियंत्रण, बुद्धि का प्रयोग, ज्ञान का संचय, सत्य (मन, वचन और कर्म से) व्यवहार और क्रोध न करना ऐसा दस लक्षणों वाला धर्म माना जाता है|
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# प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुद्धि, तर्क और प्रकृति के नियमों की बात ही माननीय है| यही श्रेष्ठ व्यवहार है|  
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इस देश में कभी ये लोग वेदमत के माने जाते थे | पीछे इनका नाम हिन्दू हुआ | वर्तमान  में यह नाम हिन्दू है | इस जनसमूह में बाहर से भी लोग आये | लेकिन यहाँ के आचार विचार स्वीकार कर वे हिन्दू बन गए |
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भारतीय सोच में बुद्धि को बहुत महत्त्व दिया गया है| उपर्युक्त सभी मान्यताएँ बुद्धि के प्रयोग से सिद्ध की जा सकती है|
 
भारतीय सोच में बुद्धि को बहुत महत्त्व दिया गया है| उपर्युक्त सभी मान्यताएँ बुद्धि के प्रयोग से सिद्ध की जा सकती है|
भारत शब्द की ऐतिहासिकता : ऋग्वेद में सन्दर्भ : विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेंद्रम् भारतम् जनम् (सन्दर्भ: पृष्ठ २२. भारतीय राज्यशास्त्र. लेखक : गो.वा. टोकेकर और मधुकर महाजन. विद्या प्रकाशन. प्रकाशक : सुशीला महाजन. ५/५७ विष्णू प्रसाद. विले पार्ले, मुम्बई.  
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- महाभारत युद्ध का नाम ही (महा-भारत) ‘भारत‘ के अस्तित्व का प्रमाण हैं| भरतवंशियों का नाम ‘भारत’ - सन्दर्भ श्रीमद्भगवद्गीता| कई स्थानोंपर उल्लेख है - जैसे धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोस्मि भरतर्षभ (७ – ११), एवमुक्तो ऋषीकेशो गुडाकेशेन भारत (१-२४) आदि|   
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== भारत शब्द की ऐतिहासिकता ==
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ऋग्वेद में सन्दर्भ : विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेंद्रम् भारतम् जनम्<ref>भारतीय राज्यशास्त्र. लेखक : गो.वा. टोकेकर और मधुकर महाजन. विद्या प्रकाशन, पृष्ठ २२. प्रकाशक : सुशीला महाजन. ५/५७ विष्णू प्रसाद. विले पार्ले, मुम्बई.</ref>
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महाभारत युद्ध का नाम ही (महा-भारत) ‘भारत‘ के अस्तित्व का प्रमाण हैं | भरतवंशियों का नाम ‘भारत’ (सन्दर्भ श्रीमद्भगवद्गीता) | कई स्थानों पर उल्लेख है - जैसे धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोस्मि भरतर्षभ (७ – ११), एवमुक्तो ऋषीकेशो गुडाकेशेन भारत (१-२४) आदि|   
 
- उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र संतती||  ..विष्णू पुराण  
 
- उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र संतती||  ..विष्णू पुराण  
 
हमारे किसी भी मंगलकार्य या संस्कार विधि के समय जो संकल्प कहा जाता है उसमें भी ‘जम्बुद्वीपे भरतखंडे’ ऐसा भारत का उल्लेख आता है| हिन्दू यह नाम तुलना में नया है| फिर भी कम से कम २५०० वर्ष पुराना यह शब्द हो सकता है ऐसा इतिहासकारों का कहना है|   
 
हमारे किसी भी मंगलकार्य या संस्कार विधि के समय जो संकल्प कहा जाता है उसमें भी ‘जम्बुद्वीपे भरतखंडे’ ऐसा भारत का उल्लेख आता है| हिन्दू यह नाम तुलना में नया है| फिर भी कम से कम २५०० वर्ष पुराना यह शब्द हो सकता है ऐसा इतिहासकारों का कहना है|   
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उपर्युक्त आंकड़े स्वयंस्पष्ट हैं| यहाँ हिन्दू धर्म के लोगों को ही भारतधर्मी कहा गया है|  
 
उपर्युक्त आंकड़े स्वयंस्पष्ट हैं| यहाँ हिन्दू धर्म के लोगों को ही भारतधर्मी कहा गया है|  
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साहित्य सूचि: १. सिस्टर निवेदिता अकादमी पब्लिकेशन – द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू – १९९३ में प्रकाशित पुस्तक   २. विष्णू पुराण ३ वायु पुराण ४. अधिजनन शास्त्र – प्रकाशन : पुनरुत्थान विद्यापीठ ५. समाजनीति समीक्षण केन्द्र, चेन्नई द्वारा २००५ में प्रकाशित ‘भारतवर्ष की धर्मानुसार जनसांख्यिकी’ पुस्तिका) ६. भारतीय राज्यशास्त्र. लेखक : गो.वा. टोकेकर और मधुकर महाजन. विद्या प्रकाशन. प्रकाशक : सुशीला महाजन. ५/५७ विष्णू प्रसाद. विले पार्ले, मुम्बई.   ७. हिंदुत्व की यात्रा : लेखक – गुरुदत्त, प्रकाशक, शाश्वत संस्कृति परिषद्, नई दिल्ली ८. हिन्दू राष्ट्र का सत्य इतिहास. लेखक श्रीराम साठे. प्रकाशिका सुनीता रतिवाल, हैदराबाद ५०००२९ ९. रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित, विवेकानंदजी द्वारा लिखित पुस्तक “हिन्दू धर्म” १०. हिन्दू अल्पसंख्य होणार का? लेखक मिलिंद थत्ते, प्रकाशक हिन्दुस्थान प्रकाशन संस्था, प्रभादेवी, मुम्बई
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साहित्य सूचि: १. सिस्टर निवेदिता अकादमी पब्लिकेशन – द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू – १९९३ में प्रकाशित पुस्तक   २. विष्णू पुराण ३ वायु पुराण ४. अधिजनन शास्त्र – प्रकाशन : पुनरुत्थान विद्यापीठ ५. समाजनीति समीक्षण केन्द्र, चेन्नई द्वारा २००५ में प्रकाशित ‘भारतवर्ष की धर्मानुसार जनसांख्यिकी’ पुस्तिका) ६. भारतीय राज्यशास्त्र. लेखक : गो.वा. टोकेकर और मधुकर महाजन. विद्या प्रकाशन. प्रकाशक : सुशीला महाजन. ५/५७ विष्णू प्रसाद. विले पार्ले, मुम्बई.   ७. ८. हिन्दू राष्ट्र का सत्य इतिहास. लेखक श्रीराम साठे. प्रकाशिका सुनीता रतिवाल, हैदराबाद ५०००२९ ९. रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित, विवेकानंदजी द्वारा लिखित पुस्तक “हिन्दू धर्म” १०. हिन्दू अल्पसंख्य होणार का? लेखक मिलिंद थत्ते, प्रकाशक हिन्दुस्थान प्रकाशन संस्था, प्रभादेवी, मुम्बई
    
==References==
 
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