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→‎८. वसुधैव कुटुंबकम्: लेख सम्पादित किया
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==== ८.१ कुटुंब ====
 
==== ८.१ कुटुंब ====
भारतीय एकत्रित परिवार यह आज भी विदेशी लोगों के लिये आकर्षण का विषय है । बडी संख्या में वर्तमान जीवनशैली और वर्तमान शिक्षा के कारण टूट रहे यह परिवार अब तो भारतीयों के भी चिंता और अध्ययन का विषय बन गये है ।  
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भारतीय एकत्रित परिवार आज भी विदेशी लोगों के लिये आकर्षण का विषय है । बडी संख्या में वर्तमान जीवनशैली और वर्तमान शिक्षा के कारण टूट रहे यह परिवार अब तो भारतीयों के भी चिंता और अध्ययन का विषय बन गये है ।   
अंग्रेजी में एक काहावत है ' क्राईंग चाईल्ड ओन्ली गेट्स् मिल्क् ' अर्थात् यदि बच्चा भूख से रोएगा नही तो उसे दूध नहीं मिलेगा । इस कहावत का जन्म उन के अधिकारों के लिये संघर्ष के वर्तनसूत्र में है । अन्यथा ऐसी कोई माँ (अंग्रेज भी) नहीं हो सकती जो बच्चा रोएगा नहीं तो उसे भूखा रखेगी । 
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स्त्री यह परिवार व्यवस्था का आधारस्तंभ है । घर के मुख्य स्त्री की भूमिका घर में अत्यंत महत्वपूर्ण है । वह ठीक रहेगी तो वह घर कुटुंब बनता है । स्त्री को सम्मान से देखना और उस के अनुसार व्यवहार करना हर कुटुंब के लिये अनिवार्य ऐसी बात है । वेसे तो घर में स्त्री की भिन्न भिन्न भूमिकाएं होतीं है । किन्तु इन सब में माता की भूमिका ही स्त्री की प्रमुख भूमिका मानी गई है । उसे विषयवासणा का साधन नहीं माना गया है । वह क्षण काल की पत्नी और अनंत काल की माता मानी जाती है । इसीलिये स्त्री को  जिस घर में आदर, सम्मान मिलता है और जिस घर की स्त्री ऐसे आदर सम्मान के पात्र होती है वह घर कुटुंब बन जाता है ।
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बच्चा जब पैदा होता है तो उसे केवल अपनी भूख और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिये । इतनी ही समझ होती है । वह केवल अपने लिये जीनेवाला जीव होता है । परिवार उसे सामाजिक बनाता है । पैवार उसे केवल अपने हित की सोचनेवाले अर्भक को संस्कारित कर उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठाकर, केवल अपनों के लिये जीनेवाला घर का मुखिया बना देता है ।
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अमरिका एक बडे प्रमाण में टूटे परिवारों का देश है । परिवारों को फिर से व्यवस्थित कैसे किया जाए इस की चिंता अमरिका के हितचिंतक विद्वान करने लगे है । किन्तु प्रेम, आत्मीयता, कर्तव्य भावना, औरों के हित को प्राधान्य देना, औरों के लिये त्याग करने की मानसिकता, इन सब को पुन: लोगों के मन में जगाना सरल बात नहीं है । हमारे यहाँ परिवार व्यवस्था अब भी कुछ प्रमाण में टिकी हुई है, उस की हमें कीमत नहीं है।
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हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझकर, परिश्रमपूर्वक परिवार व्यवस्था का निर्माण किया था । केवल व्यवस्था ही निर्माण नहीं की तो उसे पूर्णत्व की स्थितितक ले गये । उस व्यवस्था में ही ऐसे घटक विकसित किये जो उस व्यवस्था को बनाए भी रखते थे और बलवान भी बनाते थे । इसीलिये भारतीय परिवार व्यवस्था कालजयी बनी है । इस कुटुंब व्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण विशेष निम्न है ।
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- सुसंस्कृत, सुखी, समाधानी और सामाजिक सहनिवास के संस्कारों की व्यवस्था
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- सामान्य ज्ञान एका पीढी से अगली पीढीतक संक्रमित करने की व्यवस्था
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- अपने परिवार की विशेषताएं जैसे ज्ञान, अनुभव और कुशलताएं एक पीढी से दुसरी पीढी को विरासत के रूप में संक्रमित करने की व्यवस्था
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- कुटुंब प्रमुख परिवार के सब के हित में जिये ऐसी मानसिकता । और केवल जिये इतना ही नहें तो ऐसा परिवार के सभी घटकों को मनपूर्वक लगे भी यह महत्वपूर्ण बात है।
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- जो कमाएगा वह खिलाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा ।
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- अपनी क्षमता के अनुसार पारिवारिक जिम्मेदारी उठाना परिवार की समृध्दि बढाने में योगदान देना और परिवार के साझे संचय में से न्यूनतम का उपयोग करना । इसी व्यवहार के कारण देश समृध्द था ।
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- बडों का आदर करना, छोटों को प्यार देना, अतिथी का सत्कार करना, स्त्री का सम्मान करना, परिवार के हित में ही अपना हित देखना, अपनों के लिये किये त्याग के आनंद की अनूभूति, घर के नौकर-चाकर, भिखारी, मधुकरी माँगनेवाले, पशू, पक्षी, पाप्रधे आदि परिवार के घटक ही है ऐसा उन सब से व्यवहार करना आदि बातें बच्चे परिवार में बढते बढते अपने आप सीख जाते थे । 
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- मृत्यू का डर बताकर बीमे के दलाल कहते है की ‘आयुर्बीमा का कोई विकल्प नही है’। किन्तु बडे परिवार के किसी भी घटक को आयुर्विमा की कोई आवश्यकता नहीं होती । आपात स्थिति में पूरा परिवार उस घटक का केवल आर्थिक ही नहीं तो भावनिक और शारिरिक बोझ भी सहज ही उठा लेता है । इस भावनिक सुरक्षा के लिये आयुर्बीमा में कोई विकल्प नहीं है ।
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- अनाथालय, विधवाश्रम, वृध्दाश्रम आदि की आवश्यकता वास्तव में समाज जीवन में आई विकृतियों के कारण है । इन सब समस्याओं की जड़ तो अभारतीय जीवनशप्रली में है। टूटते घरों में है। टूटती ग्रामव्यवस्था और ग्रामभावना में है ।
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- आर्थिक दृष्टि से देखें तो विभक्त परिवार को उत्पादक अधिक आसानी से लुट सकते है । विज्ञापनबाजी का प्रभाव जितना विभक्त परिवारपर होता है एकत्रित परिवारपर नहीं होता है ।
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- एकत्रित परिवार एक शक्ति केंद्र होता है । अपने हर सदस्य को शक्ति और आत्मविश्वास देता है । विभक्त परिवार से एकत्रित परिवार के सदस्य का आत्मविश्वास बहुत अधिक होता है । पूरे परिवार की शक्ति मेरे पीछे खडी है ऐसी भावना के कारण  एकत्रित परिवार के सदस्य को यह आत्मविश्वास प्राप्त होता है । इस संदर्भ में एक मजेदार और मार्मिक ऐसी दो पंक्तियाँ हिंदी प्रदेश में सुनने में आती है ।
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जा के घर में चार लाठी वो चौधरी जा के घर में पाँच वो पंच । और जा के घर में छ: वो ना चौधरी गणे ना पंच ॥
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अर्थात् जिस के एकत्रित परिवार में चार लाठी यानी चार मर्द हों वह चौधरी याने लोगों का मुखिया बन जाता है । जिस के घर में पाँच मर्द हों वह गाँव का पंच बन सकता है । और जिस के घर में छ: मर्द हों उस के साथ तो गाँव का चौधरी और गाँव का पंच भी उस से सलाह लेने आता है ।
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- एकत्रित परिवार का प्रतिव्यक्ति खर्च भी विभक्त परिवार से बहुत कम होता है । सामान्यत: विभक्त परिवार का खर्च एकत्रित परिवार के खर्चे से देढ गुना अधिक होता है ।  
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अंग्रेजी में एक काहावत है ' क्राईंग चाईल्ड ओन्ली गेट्स् मिल्क् ' अर्थात् यदि बच्चा भूख से रोएगा नही तो उसे दूध नहीं मिलेगा । इस कहावत का जन्म उन के अधिकारों के लिये संघर्ष के वर्तनसूत्र में है । अन्यथा ऐसी कोई माँ (अंग्रेज भी) नहीं हो सकती जो बच्चा रोएगा नहीं तो उसे भूखा रखेगी । 
- वर्तमान भारत की तुलना यदि ५० वर्ष पूर्व के भारत से करें तो यह समझ में आता है कि ५० वर्षपूर्व परिवार बडे और संपन्न थे । उद्योग छोटे थे । उद्योगपति अमीर नहीं थे । किन्तु आज चन्द उद्योग बहुत विशाल और उद्योजक अमीर बन बैठे हैं। परिवार छोटे और उद्योगपतियों की तुलना में कंगाल या गरीब बन गये है । चंद उद्योगपति और राजनेता अमीर बन गये है । सामान्य आदमी ( देश की आधी से अधिक जनसंख्या ) गरीबी की रेखा के नीचे धकेला गया है ।  
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स्त्री परिवार व्यवस्था का आधारस्तंभ है । घर के मुख्य स्त्री की भूमिका घर में अत्यंत महत्वपूर्ण है । वह ठीक रहेगी तो वह घर कुटुंब बनता है । स्त्री को सम्मान से देखना और उस के अनुसार व्यवहार करना हर कुटुंब के लिये अनिवार्य ऐसी बात है । वेसे तो घर में स्त्री की भिन्न भिन्न भूमिकाएं होतीं है । किन्तु इन सब में माता की भूमिका ही स्त्री की प्रमुख भूमिका मानी गई है । उसे विषयवासणा का साधन नहीं माना गया है । वह क्षण काल की पत्नी और अनंत काल की माता मानी जाती है । इसीलिये स्त्री को  जिस घर में आदर, सम्मान मिलता है और जिस घर की स्त्री ऐसे आदर सम्मान के पात्र होती है वह घर कुटुंब बन जाता है ।
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बच्चा जब पैदा होता है तो उसे केवल अपनी भूख और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिये । इतनी ही समझ होती है । वह केवल अपने लिये जीनेवाला जीव होता है । परिवार उसे सामाजिक बनाता है । पैवार उसे केवल अपने हित की सोचनेवाले अर्भक को संस्कारित कर उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठाकर, केवल अपनों के लिये जीनेवाला घर का मुखिया बना देता है ।
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अमरिका एक बडे प्रमाण में टूटे परिवारों का देश है । परिवारों को फिर से व्यवस्थित कैसे किया जाए इस की चिंता अमरिका के हितचिंतक विद्वान करने लगे है । किन्तु प्रेम, आत्मीयता, कर्तव्य भावना, औरों के हित को प्राधान्य देना, औरों के लिये त्याग करने की मानसिकता, इन सब को पुन: लोगों के मन में जगाना सरल बात नहीं है । हमारे यहाँ परिवार व्यवस्था अब भी कुछ प्रमाण में टिकी हुई है, उस की हमें कीमत नहीं है।
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हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझकर, परिश्रमपूर्वक परिवार व्यवस्था का निर्माण किया था । केवल व्यवस्था ही निर्माण नहीं की तो उसे पूर्णत्व की स्थितितक ले गये । उस व्यवस्था में ही ऐसे घटक विकसित किये जो उस व्यवस्था को बनाए भी रखते थे और बलवान भी बनाते थे । इसीलिये भारतीय परिवार व्यवस्था कालजयी बनी है । इस कुटुंब व्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण विशेष निम्न हैं:
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* सुसंस्कृत, सुखी, समाधानी और सामाजिक सहनिवास के संस्कारों की व्यवस्था
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* सामान्य ज्ञान एका पीढी से अगली पीढी तक संक्रमित करने की व्यवस्था
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* अपने परिवार की विशेषताएं जैसे ज्ञान, अनुभव और कुशलताएं एक पीढी से दुसरी पीढी को विरासत के रूप में संक्रमित करने की व्यवस्था
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* कुटुंब प्रमुख परिवार के सब के हित में जिये ऐसी मानसिकता। और केवल जिये इतना ही नहीं अपितु परिवार के सभी घटकों को मनपूर्वक लगे भी यह महत्वपूर्ण बात है।
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* जो कमाएगा वह खिलाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा ।
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* अपनी क्षमता के अनुसार पारिवारिक जिम्मेदारी उठाना परिवार की समृध्दि बढाने में योगदान देना और परिवार के साझे संचय में से न्यूनतम का उपयोग करना । इसी व्यवहार के कारण देश समृध्द था ।
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* बडों का आदर करना, छोटों को प्यार देना, अतिथि का सत्कार करना, स्त्री का सम्मान करना, परिवार के हित में ही अपना हित देखना, अपनों के लिये किये त्याग के आनंद की अनूभूति, घर के नौकर-चाकर, भिखारी, मधुकरी माँगनेवाले, पशू, पक्षी, पौधे आदि परिवार के घटक ही हैं, इस प्रकार उन सब से व्यवहार करना आदि बातें बच्चे परिवार में बढते बढते अपने आप सीख जाते थे । 
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* मृत्यू का डर बताकर बीमे के दलाल कहते है की ‘आयुर्बीमा का कोई विकल्प नही है’। किन्तु बडे परिवार के किसी भी घटक को आयुर्विमा की कोई आवश्यकता नहीं होती । आपात स्थिति में पूरा परिवार उस घटक का केवल आर्थिक ही नहीं, भावनात्मक और शारिरिक बोझ भी सहज ही उठा लेता है । इस भावनात्मक सुरक्षा के लिये आयुर्बीमा में कोई विकल्प नहीं है ।
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* अनाथालय, विधवाश्रम, वृध्दाश्रम आदि की आवश्यकता वास्तव में समाज जीवन में आई विकृतियों के कारण है । इन सब समस्याओं की जड़ तो अभारतीय जीवनशैली में है। टूटते घरों में है। टूटती ग्रामव्यवस्था और ग्रामभावना में है ।
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* आर्थिक दृष्टि से देखें तो विभक्त परिवार को उत्पादक अधिक आसानी से लुट सकते है । विज्ञापनबाजी का प्रभाव जितना विभक्त परिवार पर होता है एकत्रित परिवार पर नहीं होता है ।
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* एकत्रित परिवार एक शक्ति केंद्र होता है । अपने हर सदस्य को शक्ति और आत्मविश्वास देता है । विभक्त परिवार से एकत्रित परिवार के सदस्य का आत्मविश्वास बहुत अधिक होता है । पूरे परिवार की शक्ति मेरे पीछे खडी है ऐसी भावना के कारण  एकत्रित परिवार के सदस्य को यह आत्मविश्वास प्राप्त होता है । इस संदर्भ में एक मजेदार और मार्मिक ऐसी दो पंक्तियाँ हिंदी प्रदेश में सुनने में आती है । जा के घर में चार लाठी वो चौधरी जा के घर में पाँच वो पंच । और जा के घर में छ: वो ना चौधरी गणे ना पंच ॥ अर्थात् जिस के एकत्रित परिवार में चार लाठी यानी चार मर्द हों  वह चौधरी याने लोगों का मुखिया बन जाता है । जिस के घर में पाँच मर्द हों वह गाँव का पंच बन सकता है । और जिस के घर में छ: मर्द हों उस के साथ तो गाँव का चौधरी और गाँव का पंच भी उस से सलाह लेने आता है ।
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* एकत्रित परिवार का प्रतिव्यक्ति खर्च भी विभक्त परिवार से बहुत कम होता है । सामान्यत: विभक्त परिवार का खर्च एकत्रित परिवार के खर्चे से डेढ़ गुना अधिक होता है ।
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* वर्तमान भारत की तुलना यदि ५० वर्ष पूर्व के भारत से करें तो यह समझ में आता है कि ५० वर्ष पूर्व परिवार बडे और संपन्न थे । उद्योग छोटे थे । उद्योगपति अमीर नहीं थे । किन्तु आज चन्द उद्योग बहुत विशाल और उद्योजक अमीर बन बैठे हैं। परिवार छोटे और उद्योगपतियों की तुलना में कंगाल या गरीब बन गये है । चंद उद्योगपति और राजनेता अमीर बन गये है । सामान्य आदमी ( देश की आधी से अधिक जनसंख्या ) गरीबी की रेखा के नीचे धकेला गया है ।  
    
==== ८.२ ग्रामकुल ====
 
==== ८.२ ग्रामकुल ====
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