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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
वर्त्तमान में ग्राम विकास के नामपर चलनेवाले लगभग सभी उपक्रम ग्रामों के शहरीकरण के उपक्रम हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम जीने ‘पूरा’ की ग्रामविकास की कल्पना सामने रखी थी। इसका पूरा नाम है – प्रोव्हायडींग अर्बन फेसिलिटीज  टू रूरल पूअर। यह ग्रामों के शहरीकरण की कल्पना ही है। ग्रामों का शहरीकरण करना यह विकास की नहीं विनाश की दिशा ही है। ऐसा करना अनर्थकारक ही होगा। आज ही विश्व का जितना शहरीकरण हुआ है उसके फलस्वरूप प्रकृति का बेतहाशा शोषण हो रहा है। विश्व के प्रत्येक ग्राम का शहरीकरण करने से यह शोषण का प्रमाण इतना बढ़ जाएगा कि पृथ्वी पर उपलब्ध मर्यादित संसाधनों को हथियाने के लिए बार बार विश्वयुद्ध होंगे।
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वर्तमान में ग्राम विकास के नामपर चलनेवाले लगभग सभी उपक्रम ग्रामों के शहरीकरण के उपक्रम हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम जीने ‘पूरा’ की ग्रामविकास की कल्पना सामने रखी थी। इसका पूरा नाम है – प्रोव्हायडींग अर्बन फेसिलिटीज  टू रूरल पूअर (Providing Urban Facilities to Rural Poor)। यह ग्रामों के शहरीकरण की कल्पना ही है। ग्रामों का शहरीकरण करना यह विकास की नहीं विनाश की दिशा ही है। ऐसा करना अनर्थकारक ही होगा। आज ही विश्व का जितना शहरीकरण हुआ है उसके फलस्वरूप प्रकृति का बेतहाशा शोषण हो रहा है। विश्व के प्रत्येक ग्राम का शहरीकरण करने से यह शोषण का प्रमाण इतना बढ़ जाएगा कि पृथ्वी पर उपलब्ध मर्यादित संसाधनों को हथियाने के लिए बार बार विश्वयुद्ध होंगे।
इसलिए हमें ग्राम कया होता है इसे सर्वप्रथम ठीक से समझना आवश्यक है।
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इसलिए हमें ग्राम क्या होता है इसे सर्वप्रथम ठीक से समझना आवश्यक है।
    
== सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या ==
 
== सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या ==
जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तरपर लक्ष्य मोक्ष है मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है। स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है। सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता। अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ती नहीं कर सकता। अन्यों की मदद अनिवार्य होती है। एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता। और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता। स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है। जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है। और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है। परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है।  
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जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तर पर लक्ष्य मोक्ष है और मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है। स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है। सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता। अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। अन्यों की मदद अनिवार्य होती है। एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता। और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता। स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है। जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है। और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है। परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है।  
भारतीय ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है। ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ती का समायोजन होता है।
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'''भारतीय ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या''' : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है। ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति का समायोजन होता है।
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== ग्राम की विशेषताएँ ==
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== ग्राम की विशेषताएं ==
१. जीवन के लिए ग्राम ही विश्व है । ज्ञानार्जन, कौशलार्जन और पुण्यार्जन के लिए सारा विश्व ही ग्राम है।  
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# जीवन के लिए ग्राम ही विश्व है । ज्ञानार्जन, कौशलार्जन और पुण्यार्जन के लिए सारा विश्व ही ग्राम है।  
२. ग्राम को एक छोटा विश्व और बड़ा कुटुंब बनाने से सुख और समाधान युक्त समाज की नींव पड़ती है। कुटुंब से आगे वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर बढ़ने का यह दूसरा महत्वपूर्ण चरण है।  
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# ग्राम को एक छोटा विश्व और बड़ा कुटुंब बनाने से सुख और समाधान युक्त समाज की नींव पड़ती है। कुटुंब से आगे वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर बढ़ने का यह दूसरा महत्वपूर्ण चरण है।  
३. ग्राम का क्षेत्र या ग्राम की सीमा कितनी हो? सुबह घर से निकलकर आजीविका के लिए श्रम कर वापस शामतक घर लौट सके यही ग्राम की सीमा है।
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# ग्राम का क्षेत्र या ग्राम की सीमा कितनी हो? सुबह घर से निकलकर आजीविका के लिए श्रम कर वापस शामतक घर लौट सके यही ग्राम की सीमा है।  
४. ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था ग्राम में ही होनी चाहिए।
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# ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था ग्राम में ही होनी चाहिए।  
५. ग्राम यह परस्परावलंबी परिवारों का मर्यादित भूक्षेत्रपर बसा हुआ स्वावलंबी समूह है।  
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# ग्राम परस्परावलंबी परिवारों का मर्यादित भूक्षेत्र पर बसा हुआ स्वावलंबी समूह है।  
६. ग्राम के सभी लोगों की जीवनदृष्टी, जीवनशैली, संगठन और व्यवस्थाओं की मान्यताएँ समान होनी चाहिए।  
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# ग्राम के सभी लोगों की जीवनदृष्टि, जीवनशैली, संगठन और व्यवस्थाओं की मान्यताएँ समान होनी चाहिए।  
७. जहांतक हो सके ग्राम के सभी परस्पर व्यवहार कुटुम्ब के व्यवहारोंजैसे ही होने चाहिए। याने – - धन का या पैसे का हस्तांतरण नहीं हो। - अन्न, वस्त्र और भवन इन तीन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती ग्राम की सीमा में ही होनी चाहिए।   - प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं की सम्मान के साथ पूर्ती होनी चाहिए। - सभी लोग अपनी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अन्यों के प्रति अपने कर्ताव्यों का पालन करें। - ग्राम की सीमा में उपलब्ध संसाधनों से ही आवश्यकताओं की पूर्ती की जाए।
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# जहां तक हो सके ग्राम के सभी परस्पर व्यवहार कुटुम्ब के व्यवहारों जैसे ही होने चाहिए। याने –  
८. ग्राम यह राष्ट्र की सबसे लघुतम आर्थिक इकाई है। यत पिंडे तत ब्रह्मांडे के न्याय से राष्ट्र में जो कुछ संभव है वह सभी ग्राम में संभव है। अंतर केवल मात्रात्मक का है।  
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#* धन का या पैसे का हस्तांतरण नहीं हो
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#* अन्न, वस्त्र और भवन इन तीन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति ग्राम की सीमा में ही होनी चाहिए।  
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#* प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं की सम्मान के साथ पूर्ति होनी चाहिए।  
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#* सभी लोग अपनी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अन्यों के प्रति अपने कर्ताव्यों का पालन करें।  
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#* ग्राम की सीमा में उपलब्ध संसाधनों से ही आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए।  
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# ग्राम यह राष्ट्र की सबसे लघुतम आर्थिक इकाई है। यत पिंडे तत ब्रह्मांडे के न्याय से राष्ट्र में जो कुछ संभव है वह सभी ग्राम में संभव है। अंतर केवल मात्रात्मक का है।  
    
== ग्रामकुल की अर्थव्यवस्था ==
 
== ग्रामकुल की अर्थव्यवस्था ==
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ग्राम, गृह ये शब्द ' गृ ' धातु से बने हैं। ग्राम का भी अर्थ घर से ही है । गृह से ही है । जैसे परिवार यह एक जीवंत लोगों की जीवत ईकाई होती है। उसी प्रकार से ग्राम भी जीवंत परिवारों की जीवंत ईकाई होती है। इसीलिये हिन्दुस्तान में ग्राम के लिये देहात (मानव के देहजैसा) या रावलपिंडी (मनुष्य का जैसे पिण्ड होता है उसी तरह) जैसे शब्दों का उपयोग होता है। इसलिये परिवार में जैसे जीवंत परिवार सदस्यों के परस्पर संबंध होते हैं, उसी प्रकार से ग्राम के परिवारों के परस्पर संबंधों का भी स्वरूप पारिवारिक संबंधोंजैसा ही होता है ।
 
ग्राम, गृह ये शब्द ' गृ ' धातु से बने हैं। ग्राम का भी अर्थ घर से ही है । गृह से ही है । जैसे परिवार यह एक जीवंत लोगों की जीवत ईकाई होती है। उसी प्रकार से ग्राम भी जीवंत परिवारों की जीवंत ईकाई होती है। इसीलिये हिन्दुस्तान में ग्राम के लिये देहात (मानव के देहजैसा) या रावलपिंडी (मनुष्य का जैसे पिण्ड होता है उसी तरह) जैसे शब्दों का उपयोग होता है। इसलिये परिवार में जैसे जीवंत परिवार सदस्यों के परस्पर संबंध होते हैं, उसी प्रकार से ग्राम के परिवारों के परस्पर संबंधों का भी स्वरूप पारिवारिक संबंधोंजैसा ही होता है ।
 
परिवार में परस्पर (आर्थिक) संबंधों का और व्यवहारों का स्वरूप अर्थात् पारिवारिक अर्थव्यवस्था का स्वरूप  
 
परिवार में परस्पर (आर्थिक) संबंधों का और व्यवहारों का स्वरूप अर्थात् पारिवारिक अर्थव्यवस्था का स्वरूप  
भारतीय मान्यता के अनुसार हमने देखा की अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ती के लिये जो काम किये जाते हैं या परस्पर व्यवहार होते हैं, उन्हें 'अर्थ ' पुरूषार्थ कहते हैं। इन में धन या पैसे का लेनेदेन होता हप्र, तब भी और नही होता है तब भी, उन्हें अर्थ पुरूषार्थही कहा जाता है। परिवार के सभी सदस्यों के परस्पर व्यवहार को ही उपर्युक्त 'अर्थ' की कल्पना के अनुसार आर्थिक व्यवहार कहा जाता है। अब यह परस्पर (आर्थिक) व्यवहार परिवार में कैसे चलते हप्त उस का विवरण देखते हैं।     
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भारतीय मान्यता के अनुसार हमने देखा की अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये जो काम किये जाते हैं या परस्पर व्यवहार होते हैं, उन्हें 'अर्थ ' पुरूषार्थ कहते हैं। इन में धन या पैसे का लेनेदेन होता हप्र, तब भी और नही होता है तब भी, उन्हें अर्थ पुरूषार्थही कहा जाता है। परिवार के सभी सदस्यों के परस्पर व्यवहार को ही उपर्युक्त 'अर्थ' की कल्पना के अनुसार आर्थिक व्यवहार कहा जाता है। अब यह परस्पर (आर्थिक) व्यवहार परिवार में कैसे चलते हप्त उस का विवरण देखते हैं।     
    
१.  इन संबंधों में कोई पैसे का विनिमय नही होता । परिवार के सदस्यों में आवश्यकता और इच्छाओं की पूर्ति के लिये परस्पर वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता है ।
 
१.  इन संबंधों में कोई पैसे का विनिमय नही होता । परिवार के सदस्यों में आवश्यकता और इच्छाओं की पूर्ति के लिये परस्पर वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता है ।
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९.  परिवार में कोई सदस्य निकम्मा नही माना जाता । वह आलसी होगा, प्रमादी होगा । फिर भी उस के स्वभाव और योग्यता-क्षमता के अनुसार घर के काम की जिम्मेदारी उसे सौंपी जाती ही है । ऐसी जिम्मेदारी सौंपते समय उस के स्वभाव से परिवार को न्यूनतम हानी हो ऐसा देखा जाता है।  
 
९.  परिवार में कोई सदस्य निकम्मा नही माना जाता । वह आलसी होगा, प्रमादी होगा । फिर भी उस के स्वभाव और योग्यता-क्षमता के अनुसार घर के काम की जिम्मेदारी उसे सौंपी जाती ही है । ऐसी जिम्मेदारी सौंपते समय उस के स्वभाव से परिवार को न्यूनतम हानी हो ऐसा देखा जाता है।  
 
१०. पूरे परिवार के हित और सुख में प्रत्येक का हित और सुख होता है। इसी तरह प्रत्येक के हित और सुख में परिवार का हित और सुख निहित होता है। किन्तु हमेशा प्राधान्य परिवार के हित और सुख को ही दिया जाता है।
 
१०. पूरे परिवार के हित और सुख में प्रत्येक का हित और सुख होता है। इसी तरह प्रत्येक के हित और सुख में परिवार का हित और सुख निहित होता है। किन्तु हमेशा प्राधान्य परिवार के हित और सुख को ही दिया जाता है।
११. परिवार के सदस्यों के सभी परस्पर व्यवहारों का आधार आत्मीयता होता है। जिस दिन उन के परस्पर व्यवहार में स्वार्थ घुस जाता है, परिवार टूट जाता है। इसीलिये अपने कर्तव्यपालन और दूसरों के अधिकारों की पूर्तीपर बल दिया जाता था ।
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११. परिवार के सदस्यों के सभी परस्पर व्यवहारों का आधार आत्मीयता होता है। जिस दिन उन के परस्पर व्यवहार में स्वार्थ घुस जाता है, परिवार टूट जाता है। इसीलिये अपने कर्तव्यपालन और दूसरों के अधिकारों की पूर्तिपर बल दिया जाता था ।
    
== ग्रामकुल के परिवारों के परस्पर (आर्थिक) संबंध ==
 
== ग्रामकुल के परिवारों के परस्पर (आर्थिक) संबंध ==
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== स्वावलंबी ग्राम योजना ==
 
== स्वावलंबी ग्राम योजना ==
 
कौटुम्बिक उद्योग के प्रयोग स्वावलंबी ग्राम के साथ ही करने होंगे। ऐसा करने से सफलता की संभावनाएं बढेंगी।  
 
कौटुम्बिक उद्योग के प्रयोग स्वावलंबी ग्राम के साथ ही करने होंगे। ऐसा करने से सफलता की संभावनाएं बढेंगी।  
१. ग्राम से प्रारम्भ / ग्राम में निवास की मानसिकता : ग्राम को आधार बनाकर प्रयोग करना होगा। शहर में इसका प्रयोग वर्त्तमान में संभव नहीं है। ग्राम का चयन ग्राम के लोगों की मानसिकता के आधारपर करना होगा। ग्राम के लोगों की पहल, समझ और सहयोग इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं।  
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१. ग्राम से प्रारम्भ / ग्राम में निवास की मानसिकता : ग्राम को आधार बनाकर प्रयोग करना होगा। शहर में इसका प्रयोग वर्तमान में संभव नहीं है। ग्राम का चयन ग्राम के लोगों की मानसिकता के आधारपर करना होगा। ग्राम के लोगों की पहल, समझ और सहयोग इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं।  
२. ग्राम के लोगों की मानसिकता / निश्चय, कुटुंब भावना, सर्वसहमति से नेतृत्व निश्चिती : ग्राम के लोगों में सहज कुटुंब भावना होना आवश्यक है। इस दृष्टी से एक ही जाति के लोगों के ग्राम का चयन शायद उपयुक्त साबित हो सकता है। एक ही जाति के होने से उनमें भाईचारे की भावना अधिक होने की संभावनाएं हो सकती हैं।
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२. ग्राम के लोगों की मानसिकता / निश्चय, कुटुंब भावना, सर्वसहमति से नेतृत्व निश्चिती : ग्राम के लोगों में सहज कुटुंब भावना होना आवश्यक है। इस दृष्टि से एक ही जाति के लोगों के ग्राम का चयन शायद उपयुक्त साबित हो सकता है। एक ही जाति के होने से उनमें भाईचारे की भावना अधिक होने की संभावनाएं हो सकती हैं।
 
३. स्वावलंबी ग्राम के निर्माण का संकल्प। ग्राम के लोग यह संकल्प करें कि ग्राम को स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए ग्राम से युवक, धन और पानी ग्राम से बाहर न जाने की व्यवस्था करनी होगी। यह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता। सहभागियों को प्रेम, सम्मान और सुखपूर्ण आजीविका की आश्वस्ति मिलनी चाहिए। ग्राम का विद्यालय इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगली पीढी के लोगों में संकल्प और श्रेष्ठ परम्परा का संक्रमण विद्यालय के माध्यम से किया जा सकेगा। इसी प्रकार से नए जन्म लेनेवाले बच्चों के जन्म से पूर्व से ही श्रेष्ठ जीवात्मा को आवाहन करना होगा। प्रयोग को सफल बनाने की क्षमतावाले ऐसे जीवात्माको गर्भ में धारण करने की मानसिकता युवा दम्पत्ती में रहे।   
 
३. स्वावलंबी ग्राम के निर्माण का संकल्प। ग्राम के लोग यह संकल्प करें कि ग्राम को स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए ग्राम से युवक, धन और पानी ग्राम से बाहर न जाने की व्यवस्था करनी होगी। यह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता। सहभागियों को प्रेम, सम्मान और सुखपूर्ण आजीविका की आश्वस्ति मिलनी चाहिए। ग्राम का विद्यालय इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगली पीढी के लोगों में संकल्प और श्रेष्ठ परम्परा का संक्रमण विद्यालय के माध्यम से किया जा सकेगा। इसी प्रकार से नए जन्म लेनेवाले बच्चों के जन्म से पूर्व से ही श्रेष्ठ जीवात्मा को आवाहन करना होगा। प्रयोग को सफल बनाने की क्षमतावाले ऐसे जीवात्माको गर्भ में धारण करने की मानसिकता युवा दम्पत्ती में रहे।   
४. संसाधनों की उपलब्धता के आधारपर ग्राम की आवश्यकताओं की सूचि और उत्पादनों की आपूर्ति की योजना करना। ग्राम को स्वावलंबी बनाने में स्थानिक संसाधनों की अच्छी जानकारी आवश्यक है। उपलब्ध संसाधनों में से ही भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक कल्पनाशीलता भी लगेगी। जिन आवश्यक उत्पादनों के लिए सस्न्साधन उपलब्ध नहीं हैं ऐसे सभी आवश्यक उत्पादनों के निर्माण के लिए वैकल्पिक संसाधनों के माध्यम से वस्तुओं के निर्माण की योजना बनानी होगी।   
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४. संसाधनों की उपलब्धता के आधारपर ग्राम की आवश्यकताओं की सूचि और उत्पादनों की आपूर्ति की योजना करना। ग्राम को स्वावलंबी बनाने में स्थानिक संसाधनों की अच्छी जानकारी आवश्यक है। उपलब्ध संसाधनों में से ही भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक कल्पनाशीलता भी लगेगी। जिन आवश्यक उत्पादनों के लिए सस्न्साधन उपलब्ध नहीं हैं ऐसे सभी आवश्यक उत्पादनों के निर्माण के लिए वैकल्पिक संसाधनों के माध्यम से वस्तुओं के निर्माण की योजना बनानी होगी।   
४. पस्परावलंबन की दृष्टी से आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उत्पादनों का चयन और वितरण, विभाजन करना। आवश्यकताओं की पूर्ती और उपलब्ध कुशलताओं का तालमेल बिठाना होगा। ग्राम के लिए किसी आवश्यक वस्तू की कमी न रहे इस लिए उत्पादन की जिम्मेदारी का वितरण भी ठीक से करना होगा। एकबार यह संतुलन ठीक से बैठ जाने से आनुवांशिकता से उस की पूर्ती नित्य होने की व्यवस्था बन जाएगी।   
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४. पस्परावलंबन की दृष्टि से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादनों का चयन और वितरण, विभाजन करना। आवश्यकताओं की पूर्ति और उपलब्ध कुशलताओं का तालमेल बिठाना होगा। ग्राम के लिए किसी आवश्यक वस्तू की कमी न रहे इस लिए उत्पादन की जिम्मेदारी का वितरण भी ठीक से करना होगा। एकबार यह संतुलन ठीक से बैठ जाने से आनुवांशिकता से उस की पूर्ति नित्य होने की व्यवस्था बन जाएगी।   
 
५. ग्राम की वितरण व्यवस्था : ग्राम की वितरण व्यवस्था बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह वितरण विवेकपूर्ण होना चाहिए। ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था होनी चाहिए।  
 
५. ग्राम की वितरण व्यवस्था : ग्राम की वितरण व्यवस्था बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह वितरण विवेकपूर्ण होना चाहिए। ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था होनी चाहिए।  
  
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