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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
वर्त्तमान में ग्राम विकास के नामपर चलनेवाले लगभग सभी उपक्रम ग्रामों के शहरीकरण के उपक्रम हैं| पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम जीने ‘पूरा’ की ग्रामविकास की कल्पना सामने रखी थी| इसका पूरा नाम है – प्रोव्हायडींग अर्बन फेसिलिटीज  टू रूरल पूअर| यह ग्रामों के शहरीकरण की कल्पना ही है| ग्रामों का शहरीकरण करना यह विकास की नहीं विनाश की दिशा ही है| ऐसा करना अनर्थकारक ही होगा| आज ही विश्व का जितना शहरीकरण हुआ है उसके फलस्वरूप प्रकृति का बेतहाशा शोषण हो रहा है| विश्व के प्रत्येक ग्राम का शहरीकरण करने से यह शोषण का प्रमाण इतना बढ़ जाएगा कि पृथ्वी पर उपलब्ध मर्यादित संसाधनों को हथियाने के लिए बार बार विश्वयुद्ध होंगे|
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वर्त्तमान में ग्राम विकास के नामपर चलनेवाले लगभग सभी उपक्रम ग्रामों के शहरीकरण के उपक्रम हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम जीने ‘पूरा’ की ग्रामविकास की कल्पना सामने रखी थी। इसका पूरा नाम है – प्रोव्हायडींग अर्बन फेसिलिटीज  टू रूरल पूअर। यह ग्रामों के शहरीकरण की कल्पना ही है। ग्रामों का शहरीकरण करना यह विकास की नहीं विनाश की दिशा ही है। ऐसा करना अनर्थकारक ही होगा। आज ही विश्व का जितना शहरीकरण हुआ है उसके फलस्वरूप प्रकृति का बेतहाशा शोषण हो रहा है। विश्व के प्रत्येक ग्राम का शहरीकरण करने से यह शोषण का प्रमाण इतना बढ़ जाएगा कि पृथ्वी पर उपलब्ध मर्यादित संसाधनों को हथियाने के लिए बार बार विश्वयुद्ध होंगे।
इसलिए हमें ग्राम कया होता है इसे सर्वप्रथम ठीक से समझना आवश्यक है|
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इसलिए हमें ग्राम कया होता है इसे सर्वप्रथम ठीक से समझना आवश्यक है।
    
== सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या ==
 
== सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या ==
जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तरपर लक्ष्य मोक्ष है औ मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है| स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है| सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता| अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ती नहीं कर सकता| अन्यों की मदद अनिवार्य होती है| एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता| और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता| स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है| जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है| और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है| परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं| यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है|
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जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तरपर लक्ष्य मोक्ष है औ मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है। स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है। सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता। अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ती नहीं कर सकता। अन्यों की मदद अनिवार्य होती है। एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता। और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता। स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है। जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है। और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है। परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है।
भारतीय ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है| ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ती का समायोजन होता है|
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भारतीय ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है। ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ती का समायोजन होता है।
    
== ग्राम की विशेषताएँ ==
 
== ग्राम की विशेषताएँ ==
१. जीवन के लिए ग्राम ही विश्व है | ज्ञानार्जन, कौशलार्जन और पुण्यार्जन के लिए सारा विश्व ही ग्राम है|
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१. जीवन के लिए ग्राम ही विश्व है ज्ञानार्जन, कौशलार्जन और पुण्यार्जन के लिए सारा विश्व ही ग्राम है।
२. ग्राम को एक छोटा विश्व और बड़ा कुटुंब बनाने से सुख और समाधान युक्त समाज की नींव पड़ती है| कुटुंब से आगे वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर बढ़ने का यह दूसरा महत्वपूर्ण चरण है|
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२. ग्राम को एक छोटा विश्व और बड़ा कुटुंब बनाने से सुख और समाधान युक्त समाज की नींव पड़ती है। कुटुंब से आगे वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर बढ़ने का यह दूसरा महत्वपूर्ण चरण है।
३. ग्राम का क्षेत्र या ग्राम की सीमा कितनी हो? सुबह घर से निकलकर आजीविका के लिए श्रम कर वापस शामतक घर लौट सके यही ग्राम की सीमा है|  
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३. ग्राम का क्षेत्र या ग्राम की सीमा कितनी हो? सुबह घर से निकलकर आजीविका के लिए श्रम कर वापस शामतक घर लौट सके यही ग्राम की सीमा है।  
४. ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था ग्राम में ही होनी चाहिए|
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४. ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था ग्राम में ही होनी चाहिए।
५. ग्राम यह परस्परावलंबी परिवारों का मर्यादित भूक्षेत्रपर बसा हुआ स्वावलंबी समूह है|
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५. ग्राम यह परस्परावलंबी परिवारों का मर्यादित भूक्षेत्रपर बसा हुआ स्वावलंबी समूह है।
६. ग्राम के सभी लोगों की जीवनदृष्टी, जीवनशैली, संगठन और व्यवस्थाओं की मान्यताएँ समान होनी चाहिए|
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६. ग्राम के सभी लोगों की जीवनदृष्टी, जीवनशैली, संगठन और व्यवस्थाओं की मान्यताएँ समान होनी चाहिए।
७. जहांतक हो सके ग्राम के सभी परस्पर व्यवहार कुटुम्ब के व्यवहारोंजैसे ही होने चाहिए| याने – - धन का या पैसे का हस्तांतरण नहीं हो| - अन्न, वस्त्र और भवन इन तीन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती ग्राम की सीमा में ही होनी चाहिए|   - प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं की सम्मान के साथ पूर्ती होनी चाहिए| - सभी लोग अपनी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अन्यों के प्रति अपने कर्ताव्यों का पालन करें| - ग्राम की सीमा में उपलब्ध संसाधनों से ही आवश्यकताओं की पूर्ती की जाए|
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७. जहांतक हो सके ग्राम के सभी परस्पर व्यवहार कुटुम्ब के व्यवहारोंजैसे ही होने चाहिए। याने – - धन का या पैसे का हस्तांतरण नहीं हो। - अन्न, वस्त्र और भवन इन तीन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती ग्राम की सीमा में ही होनी चाहिए।   - प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं की सम्मान के साथ पूर्ती होनी चाहिए। - सभी लोग अपनी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अन्यों के प्रति अपने कर्ताव्यों का पालन करें। - ग्राम की सीमा में उपलब्ध संसाधनों से ही आवश्यकताओं की पूर्ती की जाए।
८. ग्राम यह राष्ट्र की सबसे लघुतम आर्थिक इकाई है| यत पिंडे तत ब्रह्मांडे के न्याय से राष्ट्र में जो कुछ संभव है वह सभी ग्राम में संभव है| अंतर केवल मात्रात्मक का है|
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८. ग्राम यह राष्ट्र की सबसे लघुतम आर्थिक इकाई है। यत पिंडे तत ब्रह्मांडे के न्याय से राष्ट्र में जो कुछ संभव है वह सभी ग्राम में संभव है। अंतर केवल मात्रात्मक का है।
    
== ग्रामकुल की अर्थव्यवस्था ==
 
== ग्रामकुल की अर्थव्यवस्था ==
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मनुष्य एक जीवन्त ईकाई है । मनुष्य के भिन्न भिन्न अवयव होते हैं। हर अवयव की अपनी विशेषता और काम करने की सामर्थ्य होती है । हर अवयव जब अपनी अपनी क्षमता के और उपयुक्तता के अनुसार काम करता है तब ऐसा कहा जाता है की उस मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा है। जब कोई अवयव अपना काम कर नही पाता तब उस मनुष्य को लकवा मार गया है ऐसा कहा जाता है । ऐसा करने में कोई अवयव ऐसा होता है, जिसे उस की क्षमता और उपयुक्तता अधिक होने से बहुत काम करना पडता है। निरंतर करना पडता है। किन्तु इसलिये वह अवयव झगडा नही करता ।  
 
मनुष्य एक जीवन्त ईकाई है । मनुष्य के भिन्न भिन्न अवयव होते हैं। हर अवयव की अपनी विशेषता और काम करने की सामर्थ्य होती है । हर अवयव जब अपनी अपनी क्षमता के और उपयुक्तता के अनुसार काम करता है तब ऐसा कहा जाता है की उस मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा है। जब कोई अवयव अपना काम कर नही पाता तब उस मनुष्य को लकवा मार गया है ऐसा कहा जाता है । ऐसा करने में कोई अवयव ऐसा होता है, जिसे उस की क्षमता और उपयुक्तता अधिक होने से बहुत काम करना पडता है। निरंतर करना पडता है। किन्तु इसलिये वह अवयव झगडा नही करता ।  
 
मनुष्य शरीर की तरह ही परिवार भी एक जीवन्त ईकाई होती है। परिवार का भी हर सदस्य अपनी क्षमता के और उपयुक्तता के अनुसार काम करता है। किसी को अधिक काम करना पडता है और किसी को कम । किन्तु इसलिये परिवार के सदस्यों में झगडे नही होते । पाण्डवों को जब वनवास हुवा था तब भीम की आवश्यकता के अनुसार उसे आधा अन्न खिलाया जाता था। आधे में बाकी चार पांडव और माता कुन्ती खाना खाते थे । इस के लिये कोई अन्य सदस्य झगडा नही करता था । इसी प्रकार जब कुन्तीमाता या नकुल, सहदेव इन में से कोई चलते चलते थक जाता था तो भीम उसे अपने कंधेपर उठाकर चलता था ।
 
मनुष्य शरीर की तरह ही परिवार भी एक जीवन्त ईकाई होती है। परिवार का भी हर सदस्य अपनी क्षमता के और उपयुक्तता के अनुसार काम करता है। किसी को अधिक काम करना पडता है और किसी को कम । किन्तु इसलिये परिवार के सदस्यों में झगडे नही होते । पाण्डवों को जब वनवास हुवा था तब भीम की आवश्यकता के अनुसार उसे आधा अन्न खिलाया जाता था। आधे में बाकी चार पांडव और माता कुन्ती खाना खाते थे । इस के लिये कोई अन्य सदस्य झगडा नही करता था । इसी प्रकार जब कुन्तीमाता या नकुल, सहदेव इन में से कोई चलते चलते थक जाता था तो भीम उसे अपने कंधेपर उठाकर चलता था ।
२. ग्रामकुल व्यवस्था : गाँव भी एक परिवार ही होता था । व्यक्तियों के एकत्रित रहने से परिवार बनता है| कई परिवारों का मिलाकर एक बडा ग्राम परिवार बनता था ।
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२. ग्रामकुल व्यवस्था : गाँव भी एक परिवार ही होता था । व्यक्तियों के एकत्रित रहने से परिवार बनता है। कई परिवारों का मिलाकर एक बडा ग्राम परिवार बनता था ।
 
परिवार में परस्पर व्यवहार जिस प्रकार से चलते हैं उसी तरह ग्रामकुल में भी चलते थे । ऐसे ग्राम का स्वरूप ग्रामकुल का सा बनता था ।
 
परिवार में परस्पर व्यवहार जिस प्रकार से चलते हैं उसी तरह ग्रामकुल में भी चलते थे । ऐसे ग्राम का स्वरूप ग्रामकुल का सा बनता था ।
 
ग्राम, गृह ये शब्द ' गृ ' धातु से बने हैं। ग्राम का भी अर्थ घर से ही है । गृह से ही है । जैसे परिवार यह एक जीवंत लोगों की जीवत ईकाई होती है। उसी प्रकार से ग्राम भी जीवंत परिवारों की जीवंत ईकाई होती है। इसीलिये हिन्दुस्तान में ग्राम के लिये देहात (मानव के देहजैसा) या रावलपिंडी (मनुष्य का जैसे पिण्ड होता है उसी तरह) जैसे शब्दों का उपयोग होता है। इसलिये परिवार में जैसे जीवंत परिवार सदस्यों के परस्पर संबंध होते हैं, उसी प्रकार से ग्राम के परिवारों के परस्पर संबंधों का भी स्वरूप पारिवारिक संबंधोंजैसा ही होता है ।
 
ग्राम, गृह ये शब्द ' गृ ' धातु से बने हैं। ग्राम का भी अर्थ घर से ही है । गृह से ही है । जैसे परिवार यह एक जीवंत लोगों की जीवत ईकाई होती है। उसी प्रकार से ग्राम भी जीवंत परिवारों की जीवंत ईकाई होती है। इसीलिये हिन्दुस्तान में ग्राम के लिये देहात (मानव के देहजैसा) या रावलपिंडी (मनुष्य का जैसे पिण्ड होता है उसी तरह) जैसे शब्दों का उपयोग होता है। इसलिये परिवार में जैसे जीवंत परिवार सदस्यों के परस्पर संबंध होते हैं, उसी प्रकार से ग्राम के परिवारों के परस्पर संबंधों का भी स्वरूप पारिवारिक संबंधोंजैसा ही होता है ।
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== स्वावलंबी ग्राम योजना ==
 
== स्वावलंबी ग्राम योजना ==
कौटुम्बिक उद्योग के प्रयोग स्वावलंबी ग्राम के साथ ही करने होंगे| ऐसा करने से सफलता की संभावनाएं बढेंगी|
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कौटुम्बिक उद्योग के प्रयोग स्वावलंबी ग्राम के साथ ही करने होंगे। ऐसा करने से सफलता की संभावनाएं बढेंगी।
१. ग्राम से प्रारम्भ / ग्राम में निवास की मानसिकता : ग्राम को आधार बनाकर प्रयोग करना होगा| शहर में इसका प्रयोग वर्त्तमान में संभव नहीं है| ग्राम का चयन ग्राम के लोगों की मानसिकता के आधारपर करना होगा| ग्राम के लोगों की पहल, समझ और सहयोग इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं|
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१. ग्राम से प्रारम्भ / ग्राम में निवास की मानसिकता : ग्राम को आधार बनाकर प्रयोग करना होगा। शहर में इसका प्रयोग वर्त्तमान में संभव नहीं है। ग्राम का चयन ग्राम के लोगों की मानसिकता के आधारपर करना होगा। ग्राम के लोगों की पहल, समझ और सहयोग इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं।
२. ग्राम के लोगों की मानसिकता / निश्चय, कुटुंब भावना, सर्वसहमति से नेतृत्व निश्चिती : ग्राम के लोगों में सहज कुटुंब भावना होना आवश्यक है| इस दृष्टी से एक ही जाति के लोगों के ग्राम का चयन शायद उपयुक्त साबित हो सकता है| एक ही जाति के होने से उनमें भाईचारे की भावना अधिक होने की संभावनाएं हो सकती हैं|
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२. ग्राम के लोगों की मानसिकता / निश्चय, कुटुंब भावना, सर्वसहमति से नेतृत्व निश्चिती : ग्राम के लोगों में सहज कुटुंब भावना होना आवश्यक है। इस दृष्टी से एक ही जाति के लोगों के ग्राम का चयन शायद उपयुक्त साबित हो सकता है। एक ही जाति के होने से उनमें भाईचारे की भावना अधिक होने की संभावनाएं हो सकती हैं।
३. स्वावलंबी ग्राम के निर्माण का संकल्प| ग्राम के लोग यह संकल्प करें कि ग्राम को स्वावलंबी बनाना है| इसके लिए ग्राम से युवक, धन और पानी ग्राम से बाहर न जाने की व्यवस्था करनी होगी| यह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता| सहभागियों को प्रेम, सम्मान और सुखपूर्ण आजीविका की आश्वस्ति मिलनी चाहिए| ग्राम का विद्यालय इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है| अगली पीढी के लोगों में संकल्प और श्रेष्ठ परम्परा का संक्रमण विद्यालय के माध्यम से किया जा सकेगा| इसी प्रकार से नए जन्म लेनेवाले बच्चों के जन्म से पूर्व से ही श्रेष्ठ जीवात्मा को आवाहन करना होगा| प्रयोग को सफल बनाने की क्षमतावाले ऐसे जीवात्माको गर्भ में धारण करने की मानसिकता युवा दम्पत्ती में रहे|    
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३. स्वावलंबी ग्राम के निर्माण का संकल्प। ग्राम के लोग यह संकल्प करें कि ग्राम को स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए ग्राम से युवक, धन और पानी ग्राम से बाहर न जाने की व्यवस्था करनी होगी। यह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता। सहभागियों को प्रेम, सम्मान और सुखपूर्ण आजीविका की आश्वस्ति मिलनी चाहिए। ग्राम का विद्यालय इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगली पीढी के लोगों में संकल्प और श्रेष्ठ परम्परा का संक्रमण विद्यालय के माध्यम से किया जा सकेगा। इसी प्रकार से नए जन्म लेनेवाले बच्चों के जन्म से पूर्व से ही श्रेष्ठ जीवात्मा को आवाहन करना होगा। प्रयोग को सफल बनाने की क्षमतावाले ऐसे जीवात्माको गर्भ में धारण करने की मानसिकता युवा दम्पत्ती में रहे।    
४. संसाधनों की उपलब्धता के आधारपर ग्राम की आवश्यकताओं की सूचि और उत्पादनों की आपूर्ति की योजना करना| ग्राम को स्वावलंबी बनाने में स्थानिक संसाधनों की अच्छी जानकारी आवश्यक है| उपलब्ध संसाधनों में से ही भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक कल्पनाशीलता भी लगेगी| जिन आवश्यक उत्पादनों के लिए सस्न्साधन उपलब्ध नहीं हैं ऐसे सभी आवश्यक उत्पादनों के निर्माण के लिए वैकल्पिक संसाधनों के माध्यम से वस्तुओं के निर्माण की योजना बनानी होगी|  
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४. संसाधनों की उपलब्धता के आधारपर ग्राम की आवश्यकताओं की सूचि और उत्पादनों की आपूर्ति की योजना करना। ग्राम को स्वावलंबी बनाने में स्थानिक संसाधनों की अच्छी जानकारी आवश्यक है। उपलब्ध संसाधनों में से ही भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक कल्पनाशीलता भी लगेगी। जिन आवश्यक उत्पादनों के लिए सस्न्साधन उपलब्ध नहीं हैं ऐसे सभी आवश्यक उत्पादनों के निर्माण के लिए वैकल्पिक संसाधनों के माध्यम से वस्तुओं के निर्माण की योजना बनानी होगी।  
४. पस्परावलंबन की दृष्टी से आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उत्पादनों का चयन और वितरण, विभाजन करना| आवश्यकताओं की पूर्ती और उपलब्ध कुशलताओं का तालमेल बिठाना होगा| ग्राम के लिए किसी आवश्यक वस्तू की कमी न रहे इस लिए उत्पादन की जिम्मेदारी का वितरण भी ठीक से करना होगा| एकबार यह संतुलन ठीक से बैठ जाने से आनुवांशिकता से उस की पूर्ती नित्य होने की व्यवस्था बन जाएगी|    
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४. पस्परावलंबन की दृष्टी से आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उत्पादनों का चयन और वितरण, विभाजन करना। आवश्यकताओं की पूर्ती और उपलब्ध कुशलताओं का तालमेल बिठाना होगा। ग्राम के लिए किसी आवश्यक वस्तू की कमी न रहे इस लिए उत्पादन की जिम्मेदारी का वितरण भी ठीक से करना होगा। एकबार यह संतुलन ठीक से बैठ जाने से आनुवांशिकता से उस की पूर्ती नित्य होने की व्यवस्था बन जाएगी।    
५. ग्राम की वितरण व्यवस्था : ग्राम की वितरण व्यवस्था बहुत ही महत्त्वपूर्ण है| यह वितरण विवेकपूर्ण होना चाहिए| ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था होनी चाहिए|
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५. ग्राम की वितरण व्यवस्था : ग्राम की वितरण व्यवस्था बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह वितरण विवेकपूर्ण होना चाहिए। ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति की सम्मानपूर्ण आजीविका की व्यवस्था होनी चाहिए।
    
== समारोप ==
 
== समारोप ==
वर्तमान अर्थशास्त्री यह जानते हैं और कहते भी हैं की, ' मनी इज द बिगेस्ट डिस्टॉर्टर ऑफ एकॉनॉमी, अनलेस इट इज केप्ट अंडर स्ट्रिक्ट कंट्रोल ' । अर्थात् पैसे का चलन अर्थव्यवस्था को बिगाडनेवाला सबसे बडा घटक होता है। किन्तु फिर भी पैसे के कारण निर्माण होनेवाली गडबडियों से छुटकारे के लिये कोई प्रयास करता दिखाई नहीं देता| इस का कारण यह है की यह अर्थव्यवस्था का बिगाड बलवानों के स्वार्थ के लिये हितकारी होता है। यही पश्चिमी अर्थशास्त्र का समाजशास्त्रीय आधार है। सर्व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट यह पश्चिमी समाज का वर्तनसूत्र भी बलवानों के हित की ही बात करता है।   
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वर्तमान अर्थशास्त्री यह जानते हैं और कहते भी हैं की, ' मनी इज द बिगेस्ट डिस्टॉर्टर ऑफ एकॉनॉमी, अनलेस इट इज केप्ट अंडर स्ट्रिक्ट कंट्रोल ' । अर्थात् पैसे का चलन अर्थव्यवस्था को बिगाडनेवाला सबसे बडा घटक होता है। किन्तु फिर भी पैसे के कारण निर्माण होनेवाली गडबडियों से छुटकारे के लिये कोई प्रयास करता दिखाई नहीं देता। इस का कारण यह है की यह अर्थव्यवस्था का बिगाड बलवानों के स्वार्थ के लिये हितकारी होता है। यही पश्चिमी अर्थशास्त्र का समाजशास्त्रीय आधार है। सर्व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट यह पश्चिमी समाज का वर्तनसूत्र भी बलवानों के हित की ही बात करता है।   
 
भारतवर्ष में सर्वे भवन्तु सुखिन: को ध्यान में रखकर अर्थव्यवस्था को विकसित और स्थापित किया गया था । इस अर्थव्यवस्था में पेसे के लेनदेन से होनेवाले व्यवहारों को न्यूनतम रखने के कारण पप्रसे या चलनपर कडा नियंत्रण रहता था । पैसे के कारण व्यवहारों में बिगाड नही निर्माण होते थे । लगभग सभी व्यवहार आत्मीयता के, प्यार के आधारपर वस्तुओं के आदानप्रदान की व्यवस्था से चलाए जाते थे । यही कारण था की भारत एक श्रेष्ठ संस्कृति का अनुसरण करनेवाला और फिर भी अत्यंत समृध्द देश बना था । आज भी हमें आत्मीयतापर आधारित वर्तमान युग के अनुरूप अपनी अर्थव्यवस्था की फिर से स्थापना के प्रयास करने होंगे ।
 
भारतवर्ष में सर्वे भवन्तु सुखिन: को ध्यान में रखकर अर्थव्यवस्था को विकसित और स्थापित किया गया था । इस अर्थव्यवस्था में पेसे के लेनदेन से होनेवाले व्यवहारों को न्यूनतम रखने के कारण पप्रसे या चलनपर कडा नियंत्रण रहता था । पैसे के कारण व्यवहारों में बिगाड नही निर्माण होते थे । लगभग सभी व्यवहार आत्मीयता के, प्यार के आधारपर वस्तुओं के आदानप्रदान की व्यवस्था से चलाए जाते थे । यही कारण था की भारत एक श्रेष्ठ संस्कृति का अनुसरण करनेवाला और फिर भी अत्यंत समृध्द देश बना था । आज भी हमें आत्मीयतापर आधारित वर्तमान युग के अनुरूप अपनी अर्थव्यवस्था की फिर से स्थापना के प्रयास करने होंगे ।
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वाचनीय साहित्य :
   
==References==
 
==References==
 
आज भी खरे हैं तालाब, लेखक अनुपम मिश्र, प्रकाशक स्वदेशी साहित्य सदन वर्धा
 
आज भी खरे हैं तालाब, लेखक अनुपम मिश्र, प्रकाशक स्वदेशी साहित्य सदन वर्धा
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