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गर्भाधान एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो स्वाभाविक रूप से होती है । वो इंसान, ऐसा ही जानवरों और पक्षियों के साथ सामान रूप से होता है । इस प्राकृतिक प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने वाली विधि को ' गर्भाधान संस्कार ' कहा जाता है । है। यह भारतीय शास्त्रों में वर्णित पहला संस्कार है। इनमें से कुछ क्रियाएं आज अप्रासंगिक लग सकती हैं या सामाजिक परिवर्तन के बीच व्यावहारिक नहीं लग सकती हैं , लेकिन कुछ क्रियाएं आज भी प्रासंगिक/प्रयोगात्मक हैं और उनकी सफलता विवाद से परे है।
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गर्भाधान एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो स्वाभाविक रूप से होती है । वो इंसान, ऐसा ही जानवरों और पक्षियों के साथ सामान रूप से होता है । इस प्राकृतिक प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने वाली विधि को ' गर्भाधान संस्कार ' कहा जाता है । है। यह भारतीय शास्त्रों में वर्णित पहला संस्कार है। इनमें से कुछ क्रियाएं आज अप्रासंगिक लग सकती हैं या सामाजिक परिवर्तन के बीच व्यावहारिक नहीं लग सकती हैं , लेकिन कुछ क्रियाएं आज भी प्रासंगिक/प्रयोगात्मक हैं और उनकी सफलता विवाद से परे है।<ref name=":0">रा.मा.पुजारी (२०१५),विज्ञाननिष्ठ हिन्दू १६ संस्कार ,नागपुर : नचिकेतन प्रकाशन </ref>
    
=== '''प्राचीन प्रारूप''' ===
 
=== '''प्राचीन प्रारूप''' ===
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प्रजनन प्रक्रिया में स्त्री और पुरुष की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है वे क्रमशः राज और वीर्य हैं। अन्य चिकित्सा उपचार कि अपेक्षा आयुर्वेद द्वारा की हजारो वर्ष पहले शरीर में इन रसायनों के बनने की विधि और प्रक्रिया के बारे में बताया गया। आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार, भोजन शरीर के अंदर के रसायन का सार है। भोजन से वीर्य और राज की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है। भोजन , उससे, भोजन, उससे अन्नरस, उससे रक्त, रक्त से मांस, मांस से मांस , इससे हड्डी (हड्डी) इसके माध्यम से मज्जा शुक्र या मासिक धर्म होती है । भोजन से शुक्र या रज बनने की प्रक्रिया आमतौर पर एक से तीन महिने  तक होती है । इस अवधि मे प्रत्येक महिला और प्रत्येक पुरुष अलग अलग होते हैं . क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति मे प्रकृती (वात , पित्त और कफ) का स्वभाव अलग होता है | भोजन मे मुख्य घटक अन्न होणे के बाद भी , इसमें पानी और हवा का भी समावेश होता है । इसलिए तीनों की पवित्रता जरूरी है।
 
प्रजनन प्रक्रिया में स्त्री और पुरुष की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है वे क्रमशः राज और वीर्य हैं। अन्य चिकित्सा उपचार कि अपेक्षा आयुर्वेद द्वारा की हजारो वर्ष पहले शरीर में इन रसायनों के बनने की विधि और प्रक्रिया के बारे में बताया गया। आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार, भोजन शरीर के अंदर के रसायन का सार है। भोजन से वीर्य और राज की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है। भोजन , उससे, भोजन, उससे अन्नरस, उससे रक्त, रक्त से मांस, मांस से मांस , इससे हड्डी (हड्डी) इसके माध्यम से मज्जा शुक्र या मासिक धर्म होती है । भोजन से शुक्र या रज बनने की प्रक्रिया आमतौर पर एक से तीन महिने  तक होती है । इस अवधि मे प्रत्येक महिला और प्रत्येक पुरुष अलग अलग होते हैं . क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति मे प्रकृती (वात , पित्त और कफ) का स्वभाव अलग होता है | भोजन मे मुख्य घटक अन्न होणे के बाद भी , इसमें पानी और हवा का भी समावेश होता है । इसलिए तीनों की पवित्रता जरूरी है।
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गर्भधारण के लिए दो से तीन महीने पहले से तैयारी करना लाभदायक होता है। इसके लिए आहार कि शुद्धता , पोषक पदार्थ तत्वों की प्रकृती अनुसार आपको चुनाव करना है। खाए गए भोजन से आवश्यक तत्व पाचन तंत्र द्वारा निर्मित होते हैं इसलिये पाचनक्रिया का कार्य उचित होना चाहिए। उसके लिए  श्रम , व्यायाम , रात की अच्छी नींद की भूमिका को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। गर्भाधान संस्कार के पूर्व शरीर , मन , बुद्धि और आत्मा पर विचार करना होगा। मानव शरीर को बनाने वाले पांच सिद्धांत हैं : पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि और आकाश। विकसित बुद्धि और दया के कारण  मनुष्य जानवरों की तुलना में एक उच्च वर्ग में विकसित हुआ है। आत्मा का अस्तित्व मानना  , साथ ही इसे जीवन के केंद्र के रूप में महत्व देना,यह भारतीय दर्शन कि महत्वपूर्ण उपलब्धी और भूमिका है। यही इस विचारधारा की प्रमुख विशेषता है |
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गर्भधारण के लिए दो से तीन महीने पहले से तैयारी करना लाभदायक होता है। इसके लिए आहार कि शुद्धता , पोषक पदार्थ तत्वों की प्रकृती अनुसार आपको चुनाव करना है। खाए गए भोजन से आवश्यक तत्व पाचन तंत्र द्वारा निर्मित होते हैं इसलिये पाचनक्रिया का कार्य उचित होना चाहिए। उसके लिए  श्रम , व्यायाम , रात की अच्छी नींद की भूमिका को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। गर्भाधान संस्कार के पूर्व शरीर , मन , बुद्धि और आत्मा पर विचार करना होगा। मानव शरीर को बनाने वाले पांच सिद्धांत हैं : पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि और आकाश। विकसित बुद्धि और दया के कारण  मनुष्य जानवरों की तुलना में एक उच्च वर्ग में विकसित हुआ है। आत्मा का अस्तित्व मानना  , साथ ही इसे जीवन के केंद्र के रूप में महत्व देना,यह भारतीय दर्शन कि महत्वपूर्ण उपलब्धी और भूमिका है। यही इस विचारधारा की प्रमुख विशेषता है |<ref name=":0" />
    
=== '''शरीर''' ===
 
=== '''शरीर''' ===
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=== गर्भाधान प्रक्रिया ===
 
=== गर्भाधान प्रक्रिया ===
 
शास्त्रों के अनुसार ऋतु के बाद के दिनों की रातें उपयुक्त मानी गई हैं , क्योंकि यह भ्रूण को विकसित होने के लिए पर्याप्त समय मिलता है। निषिद्ध तिथी और त्योहारो के दिन अपने कुलधर्म के अनुसार बचने की सलाह दी जाती है। उसी के अनुसार गर्भधारण की योजना बनानी चाहिए। घर का वातावरण शुभ , मंगलमय , निर्मल होता है तो इस अनुष्ठान के लिए घर एक उत्तम स्थान है। स्नान करने का मतलब शुद्ध होना , सुगंधित पदार्थ और मधुर संगीत मन को प्रसन्न करता है। वास्तविक स्खलन के समय धारणा , श्लोक , शुभवचन, सुयोगल संकल्पप्रपति संकल्प या प्रार्थना क्रिया करता है। इसलिए अपनी आस्था और मन की कला के अनुसार भगवान के नाम का जाप करें या कोई मंत्र बोलें । स्खलन के बाद प्रकृति द्वारा किया गया कार्य अपने आप हो जाता है । उस समय यदि शरीर शांत हो, मन प्रसन्न हो और ईश्वर प्रदत्त स्मरण बना रहे , तो शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
 
शास्त्रों के अनुसार ऋतु के बाद के दिनों की रातें उपयुक्त मानी गई हैं , क्योंकि यह भ्रूण को विकसित होने के लिए पर्याप्त समय मिलता है। निषिद्ध तिथी और त्योहारो के दिन अपने कुलधर्म के अनुसार बचने की सलाह दी जाती है। उसी के अनुसार गर्भधारण की योजना बनानी चाहिए। घर का वातावरण शुभ , मंगलमय , निर्मल होता है तो इस अनुष्ठान के लिए घर एक उत्तम स्थान है। स्नान करने का मतलब शुद्ध होना , सुगंधित पदार्थ और मधुर संगीत मन को प्रसन्न करता है। वास्तविक स्खलन के समय धारणा , श्लोक , शुभवचन, सुयोगल संकल्पप्रपति संकल्प या प्रार्थना क्रिया करता है। इसलिए अपनी आस्था और मन की कला के अनुसार भगवान के नाम का जाप करें या कोई मंत्र बोलें । स्खलन के बाद प्रकृति द्वारा किया गया कार्य अपने आप हो जाता है । उस समय यदि शरीर शांत हो, मन प्रसन्न हो और ईश्वर प्रदत्त स्मरण बना रहे , तो शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
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