Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎उत्पन्ना एकादशी: लेख सम्पादित किया
Line 6: Line 6:  
'''एक दिवस दो कुकुर लड़ावा॥'''</blockquote>उक्ति को चरितार्थ करते हुए, ऋषिराज वीणातान में मस्त, विष्णुलोक पहुंचे। वहां भी लक्ष्मीजी से अनुसूइया की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भला लक्ष्मी कब परगुणगान सुनने वाली थी। नारद के अदृश्य होते ही विष्णु से अनुसूइयां का प्रतिव्रत नष्ट करने का आग्रह किया। उधर ब्रह्मलोक में भी जाकर नारद ने सरस्वती से इसी तरह की अनुसूइया की बड़ाई सुनाई। सरस्वती ने भी इन दोनों देवियों का अनुकरण करते हुए प्रजापति से अत्रि पत्नी के सतीत्व, मर्यादा भंग करने की प्रार्थना की। इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देव अनुसूइया का व्रत भंग करने के लिये चल दिये। अत्रि ऋषि की कुटिया के पास ही तीनों का समागम हुआ। तब एक ही समस्या का समाधान वाले तीनों देव भिखारियों का रूप बनाकर भिक्षाटन करते हुए अनुसूइया के द्वार पर पहुंचे। अनुसूइया के भिक्षा देने पर सब लोगों ने इंकार कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की।  
 
'''एक दिवस दो कुकुर लड़ावा॥'''</blockquote>उक्ति को चरितार्थ करते हुए, ऋषिराज वीणातान में मस्त, विष्णुलोक पहुंचे। वहां भी लक्ष्मीजी से अनुसूइया की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भला लक्ष्मी कब परगुणगान सुनने वाली थी। नारद के अदृश्य होते ही विष्णु से अनुसूइयां का प्रतिव्रत नष्ट करने का आग्रह किया। उधर ब्रह्मलोक में भी जाकर नारद ने सरस्वती से इसी तरह की अनुसूइया की बड़ाई सुनाई। सरस्वती ने भी इन दोनों देवियों का अनुकरण करते हुए प्रजापति से अत्रि पत्नी के सतीत्व, मर्यादा भंग करने की प्रार्थना की। इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देव अनुसूइया का व्रत भंग करने के लिये चल दिये। अत्रि ऋषि की कुटिया के पास ही तीनों का समागम हुआ। तब एक ही समस्या का समाधान वाले तीनों देव भिखारियों का रूप बनाकर भिक्षाटन करते हुए अनुसूइया के द्वार पर पहुंचे। अनुसूइया के भिक्षा देने पर सब लोगों ने इंकार कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की।  
   −
अतिथि सत्कार को ही जीवन समझने वाली अनुसूइया ने भिक्षुकों की बात स्वीकार कर ली। इसके बाद उन्हें स्नानादि से निवृत होने को कहा। तीनों देवों के आते ही श्रद्धा से अनुसूइया जब भोजन की थाली परोसकर लायी। उन लोगों ने इन्कार करते हुए कहा कि-"जब तक तू नग्न होकर नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन ग्रहण नहीं करेंगे।" यह सुनकर अनुसूइया पहले तो सिर से पैर तक क्रोध में जल उठी, परन्तु पतिव्रत शक्ति से देवों का प्रयोजन जानकर पतिव्रत के प्रभाव से तीनों देवों को बालक बना दिया। उसके द्वार अत्रि ऋषि के चरणोदक को छिड़कते ही त्रिदेव छोटे-छोटे बच्चों की तरह खेलने लगे। तब सती ने उन्हें भरपेट भोजन कराया और पालने में झुलाती हुई वात्सल्य प्रेम में दिन व्यतीत करने लगी। इधर काफी समय बीत जाने पर भी त्रिदेवों के ना लौटने पर तीनों देवियां घबराने लगी। तब एक दिन ज्ञात हुआ कि तीनों देव एक बार अनुसूइया के घर जाते दिखाई दिये थे। इतना सुनते ही लक्ष्मी, ब्राह्मणी और पार्वतीजी अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंची
+
अतिथि सत्कार को ही जीवन समझने वाली अनुसूइया ने भिक्षुकों की बात स्वीकार कर ली। इसके बाद उन्हें स्नानादि से निवृत होने को कहा। तीनों देवों के आते ही श्रद्धा से अनुसूइया जब भोजन की थाली परोसकर लायी। उन लोगों ने इन्कार करते हुए कहा कि-"जब तक तू नग्न होकर नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन ग्रहण नहीं करेंगे।" यह सुनकर अनुसूइया पहले तो सिर से पैर तक क्रोध में जल उठी, परन्तु पतिव्रत शक्ति से देवों का प्रयोजन जानकर पतिव्रत के प्रभाव से तीनों देवों को बालक बना दिया। उसके द्वार अत्रि ऋषि के चरणोदक को छिड़कते ही त्रिदेव छोटे-छोटे बच्चों की तरह खेलने लगे। तब सती ने उन्हें भरपेट भोजन कराया और पालने में झुलाती हुई वात्सल्य प्रेम में दिन व्यतीत करने लगी। इधर काफी समय बीत जाने पर भी त्रिदेवों के ना लौटने पर तीनों देवियां घबराने लगी। तब एक दिन ज्ञात हुआ कि तीनों देव एक बार अनुसूइया के घर जाते दिखाई दिये थे। इतना सुनते ही लक्ष्मी, ब्राह्मणी और पार्वतीजी अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंची और अनुसूइया से अपने अपने पतियों के विषय में पूछा। अनुसूइया ने पालने की  ओर संकेत करके अपने-अपने स्वामियों को पहचानने को कहा। लक्ष्मी ने अत्यधिक चालाकी से विष्णुजी को पहचानना चाहा मगर जब पति समझकर उठाया तो भगवान शंकर निकले. इस पर उनका बड़ा उपहास हुआ। इस प्रकार तीनों देवियों है. इसलिए इन्हें बच्चों के रूप में ही रहना होगा। इस पर तीनों के अंग में एक के अनुनय विनय करने पर अनुसूइया ने कहा कि इन लोगों ने मेरा दूध पिया विशिष्ट अवतार हुआ। जिसके तीन सिर और छ: भुजाए थी। यही दत्तात्रेय ऋषि को उत्पत्ति को कथा है। अनुसूइया ने पुनः पति चरणोदक से तीनों देवताओं को पूर्ववत् कर दिया।
 +
===मोक्षदा एकादशी===
 +
यह व्रत मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व मोहित हुए अर्जुन को श्रीमदभागवत गीता का उपदेश दिया था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण व गोता की पूजन आरती करके उसका पाठ करना चाहिये। इसी दिन महर्षि को पत्नी सती अनुसूइया से दत्तात्रेय उत्पन्न हुए थे। जिन्होंने 24 गुण धारण कर लोगों को शिक्षा दी कि तुच्छ समझी जाने वाली छोटी-छोटी चीजों से भी ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिये और किसी भी प्राणी की अवहेलना नहीं करनी चाहिये। यह उत्तमव्रत मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। मोक्षदा एकादशी के दिन मिथ्या भाषण, चुगली व अन्य दुष्कर्मों का परित्याग करना चाहिये। भगवान दामोदार को धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा करनी चाहिये। ब्राह्मण को भोजन कराकर दानादि देने से इस व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन कृष्ण भगवान का पूजन करके आरती करनी चाहिये।
 +
====व्रत कथा-====
 +
प्राचीन समय में कम्पिल्य नगर में बीरबाहु नाम वाला राजा था। वह राजा बड़ा धर्मात्मा, सत्यवादी और ब्राह्मण-भक्त सदैव ही भक्ति में लीन रहता था। वह राजा रण में विजयी, ऋषि में कुबेर के समान और पुत्रवान था, उस राजा की स्त्री का नाम कोनिमती धा। वह अति सुन्दर और पतिव्रता थी और वह राजा अपनी स्त्री के साथ प्रजा का पालन किया करता था। एक दिन उस राजा के घर महामुनि भारद्वाज आये। राजा ने बड़ा सत्कार किया, पाद्य, अर्घ्य उन्हें अर्पण करके उनके बैठने के लिए स्वयं अपने हाथ से आसन बिछाया और उनको बिठाकर बड़े विनीत भाव से उनको कहने लगा, "हे महात्मन! मेरे अहो भाग्य हैं, तथा मेरे करोड़ों जन्मों के पाप नाश हो गये जो यहां पर पधार कर आपने दर्शन दिये।" फिर राजा कहने लगा - "हे मुनिश्वर पहले जन्म में मैंने कौन-से पुण्य-कर्म किये जिससे मुझे यह राज्य व अतुल सम्पत्ति प्राप्त हुई?"
 +
 
 +
यह सुनकर मुनि भारद्वाज कुछ विचार कर कहने लगे, “राजन, मुझको योग बल द्वारा तुम्हारे पूर्व जन्म के संचित कर्म मालूम हो गये। सो मैं तुमसे कहता हूं। राजा पूर्व जन्म में तुम शूद्र जाति में उत्पन्न हुए थे, हिंसा में सदैव रत, दुष्ट चरित्र, नास्तिक तथा पापी थे और पूर्व जन्म में भी यही स्त्री तुम्हारी पत्नी थी। यह बड़ी पतिव्रता और निरन्तर आपकी सेवा किया करती थी। तुम्हारे दुष्ट कर्मों से तुम्हारे सब बन्धुओं ने तुमको त्याग दिया तथा तुम्हारे पूर्वजों से साँचत किया हुआ धन भी सब तुमने जब नष्ट कर दिया, परन्तु इस क्षीण अवस्था में भी उस  पतिव्रता ने अपको नहीं त्यागा। इस पर तुम दु:खी होकर निर्जन वन में चले गये। एक समय उस निर्जन वन में एक अति भूखा-प्यासा ब्राह्मण,आ गया तब तुम्हारी स्त्री ने उसकी बड़ी सेवा की इस ब्राह्मण के संसर्ग से तुम्हारी बुद्धि में धर्म का संचार हो गया और नुमने उस ब्राह्मण से पूछा कि-हे ब्राह्मण, तुम इस घोर वन में कैसे आये? तब ब्राह्मण बोला-
 +
 
 +
“मैं मार्ग भटक गया था और आपने मेरे प्राण बचाये, बताओ मैं तुम्हारी क्या सेवा करूं?" तुम बोले-“महाराज मैं अति पापी और दुष्ट हूं, भाई- बन्धुओं से त्यागा जाकर इस वन में आ गया और नित्य ही जीवों को मारकर अपनी स्त्री सहित इस घोर वन में निर्वाह करता हूं। भगवन, मैं और कुछ नहीं चाहता केवल यह चाहता हूं कि आप कोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे मुझ जैसे पापी का भी उद्धार हो जाए।" तब वह ब्राह्मण कहने लगा-"मैंने योग द्वारा तुम्हारे सब कार्य जान लिये हैं। पहले जन्म में तुम ब्राह्मण थे। भगवान के परम भक्त थे। परन्तु तुमने दशमी विधा, एकादशी का व्रत किया इसी कारण से तुम्हारी यह दशा हो गई। अब जब भी एकादशी आये तुम भक्तिपूर्वक एकादशी का व्रत करो तो तुम इस दुर्गति से मुक्त हो जाओगे। कुछ दिनों के पश्चात् मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी आई और तुमने अपनी स्त्री सहित इस व्रत को किया और उसी समय तुम देवदूतों सहित स्वर्ग को चले गये और बहुत समय तक स्वर्ग के सुखों को भोग कर उस राज्य तथा वैभव को प्राप्त हो गये, अत: हे राजन! तुम अपने इस भक्ति-भाव तथा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही भगवान सालैक्स मुक्ति को प्राप्त होकर सदैव ही सुख भोगोगे। जो लोग एकादशी के व्रतादि से विमुख रहते हैं, उनकी परलोक में भी गति नहीं होती, अत: कलियुग में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिये।
 +
===धन व्रत===
 +
यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का होता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिये। प्रातः ही व्रत रखने वाले भगवान की प्रतिमा को स्नान
1,192

edits

Navigation menu