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“मैं मार्ग भटक गया था और आपने मेरे प्राण बचाये, बताओ मैं तुम्हारी क्या सेवा करूं?" तुम बोले-“महाराज मैं अति पापी और दुष्ट हूं, भाई- बन्धुओं से त्यागा जाकर इस वन में आ गया और नित्य ही जीवों को मारकर अपनी स्त्री सहित इस घोर वन में निर्वाह करता हूं। भगवन, मैं और कुछ नहीं चाहता केवल यह चाहता हूं कि आप कोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे मुझ जैसे पापी का भी उद्धार हो जाए।" तब वह ब्राह्मण कहने लगा-"मैंने योग द्वारा तुम्हारे सब कार्य जान लिये हैं। पहले जन्म में तुम ब्राह्मण थे। भगवान के परम भक्त थे। परन्तु तुमने दशमी विधा, एकादशी का व्रत किया इसी कारण से तुम्हारी यह दशा हो गई। अब जब भी एकादशी आये तुम भक्तिपूर्वक एकादशी का व्रत करो तो तुम इस दुर्गति से मुक्त हो जाओगे। कुछ दिनों के पश्चात् मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी आई और तुमने अपनी स्त्री सहित इस व्रत को किया और उसी समय तुम देवदूतों सहित स्वर्ग को चले गये और बहुत समय तक स्वर्ग के सुखों को भोग कर उस राज्य तथा वैभव को प्राप्त हो गये, अत: हे राजन! तुम अपने इस भक्ति-भाव तथा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही भगवान सालैक्स मुक्ति को प्राप्त होकर सदैव ही सुख भोगोगे। जो लोग एकादशी के व्रतादि से विमुख रहते हैं, उनकी परलोक में भी गति नहीं होती, अत: कलियुग में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिये।
 
“मैं मार्ग भटक गया था और आपने मेरे प्राण बचाये, बताओ मैं तुम्हारी क्या सेवा करूं?" तुम बोले-“महाराज मैं अति पापी और दुष्ट हूं, भाई- बन्धुओं से त्यागा जाकर इस वन में आ गया और नित्य ही जीवों को मारकर अपनी स्त्री सहित इस घोर वन में निर्वाह करता हूं। भगवन, मैं और कुछ नहीं चाहता केवल यह चाहता हूं कि आप कोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे मुझ जैसे पापी का भी उद्धार हो जाए।" तब वह ब्राह्मण कहने लगा-"मैंने योग द्वारा तुम्हारे सब कार्य जान लिये हैं। पहले जन्म में तुम ब्राह्मण थे। भगवान के परम भक्त थे। परन्तु तुमने दशमी विधा, एकादशी का व्रत किया इसी कारण से तुम्हारी यह दशा हो गई। अब जब भी एकादशी आये तुम भक्तिपूर्वक एकादशी का व्रत करो तो तुम इस दुर्गति से मुक्त हो जाओगे। कुछ दिनों के पश्चात् मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी आई और तुमने अपनी स्त्री सहित इस व्रत को किया और उसी समय तुम देवदूतों सहित स्वर्ग को चले गये और बहुत समय तक स्वर्ग के सुखों को भोग कर उस राज्य तथा वैभव को प्राप्त हो गये, अत: हे राजन! तुम अपने इस भक्ति-भाव तथा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही भगवान सालैक्स मुक्ति को प्राप्त होकर सदैव ही सुख भोगोगे। जो लोग एकादशी के व्रतादि से विमुख रहते हैं, उनकी परलोक में भी गति नहीं होती, अत: कलियुग में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिये।
 
===धन व्रत===
 
===धन व्रत===
यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का होता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिये। प्रातः ही व्रत रखने वाले भगवान की प्रतिमा को स्नान
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यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का होता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिये। प्रातः ही व्रत रखने वाले भगवान की प्रतिमा को स्नान कराकर तथा समस्त सामग्री से पूजन कर भोग लगायें और आरती उतारें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दान देकर विदा करें। रात्रि में भगवान की मूर्ति के सामने देव मन्त्रों से आहुति देकर हवन करें और आरती करके उस मूर्ति को दो लाल वस्त्रों से ढक कर ब्राह्मण को दे दें। जो इस तरह से व्रत रखता है वह मनुष्य धन-धान्य से सम्पन्न होकर स्वर्ग को प्राप्त होता है। हवन करने से अग्निदेव उसके सब पापों को नष्ट कर देते हैं।
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=== नन्दनी नवमी व्रत ===
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यह व्रत मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की नवमी को किया जाता है। इस दिन माता जगदम्बा की पूजा करनी चाहिये। व्रत रखने वाले माता जगदम्बा को स्नान कराकर सजे हुए उच्च आसन पर बैठाकर उसके सामने हवन आदि करें। माता जगदम्बा के हवन में खीर की आहुति दें और भोग लगायें। फिर जगदम्बा की आरती उतारे जो इस प्रकार धारण करते हैं और पूजा करते हैं, पापों से मुक्त होंगे और अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्राप्त करते हैं और अन्त में ब्रह्मलोक को जाकर सब सुखों को प्राप्त करते हैं।
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=== गीता-जयन्ती ===
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यह जयन्ती मार्गशीर्ष शुक्ल की एकादशी को ही मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्णजी ने महाभारत के युद्ध के प्रारम्भ होने से पहले अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस दिन श्री गीताजी का पूजन करें, आरती करें और इसका पाठ भी करें। गीता सभी वेदों का सार है। इसका प्रचार कृष्ण-प्रेमियों में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में विस्तार से फैला हुआ है और अपने सिद्धान्तों और ज्ञान के लिये विख्यात और माननीय है। अगर हर प्राणी इसके एक-एक श्लोक के अनुसार अपने जीवन को बना ले तो वह ईश्वर को बिना तप के प्राप्त कर सकता है। इस दिन मुनि दत्तात्रेयजी का भी जन्म-दिवस मनाया जाता है। इसलिये इसे दत्त जयन्ती भी कहते हैं।
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=== मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत और गंगास्नान ===
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यह व्रत मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को होता है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। सबसे पहले नियमपूर्वक पवित्र होकर स्नान करें और सफेद कपड़े पहनें, फिर आचमन करें। इसके बाद व्रत रखने वाले “ॐ नमो नारायण" कहकर आवाहन करें। आसन और गंध पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें। फिर भगवान का गुणगान करें। भगवान के सामने चौकोर वेदी बनायें। जिसकी लम्बाई व चौड़ाई एक-एक हाथ हो। हवन करने के लिये अग्नि स्थापित करें और उसमें तिल, घी, आदि की आहुति दें। हवन की समाप्ति के बाद फिर भगवान का पूजन करें और अपना व्रत उनको अर्पण करें और कहें-<blockquote>'''पोर्णमास्यं निराहारः स्थिता देवतवा ज्ञया'''
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'''मोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष परेडहिन शरण भवा।'''</blockquote>अर्थात् हे देव पुण्डरीकाक्ष! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा, आप मुझे अपनी शरण दें। इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायं को चन्द्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेककर सफेद फूल, अक्षत, चन्दन, जल सहित अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय चन्द्रमा से कहो-हे भगवन! रोहिणीपते! आपका जन्म अग्निकुल में हुआ और आप क्षीर सागर में प्रकट हुये हैं। मेरे दिये हुए अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी ओर मुंह करके हाथ जोड़कर प्रार्थना "हे भगवन! आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं। आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।" इस प्रकार रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करें। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करायें और दान देकर विदा करें। जो इस प्रकार व्रत धारण करते हैं वो पुत्र-पौत्रादि के साथ सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी 10 पीढ़ियों के साथ बैकुण्ठ को जाते हैं।
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