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=== तारा भोजन ===
 
=== तारा भोजन ===
 
कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से लेकर एक माह तक नित्य प्रति व्रत करें। प्रतिदिन रात्रि में तारों को अर्घ्य देकर फिर स्वयं भोजन करें। व्रत के आखिरी दिन उजमन करें। उजमन में पांच सीदे और पांच सुराई ब्राह्मणों को दें। साड़ी, ब्लाउज और रुपये रखकर अपनी सासु मां को पैर छू कर दें।
 
कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से लेकर एक माह तक नित्य प्रति व्रत करें। प्रतिदिन रात्रि में तारों को अर्घ्य देकर फिर स्वयं भोजन करें। व्रत के आखिरी दिन उजमन करें। उजमन में पांच सीदे और पांच सुराई ब्राह्मणों को दें। साड़ी, ब्लाउज और रुपये रखकर अपनी सासु मां को पैर छू कर दें।
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=== छोटी सांकली ===
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छोटो सांकलौ कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से करें। उस दिन बिल्कुल न खायें। फिर दो दिन भोजन करें। इसके पश्चात् फिर एक दिन भोजन न करें। इसके बीच में रविवार या एकादशी पड़ जाये तो दो दिन तक बिल्कुल भोजन न करें। इस प्रकार एक माह तक यह क्रम चलता रहे। व्रत पूरे होने पर हवन तथा उजमन करें। तैंतीस ब्राह्मणों को भोजन करायें-और एक ब्राह्मण जोड़े को (पति-पत्नी) को भोजन करायें। फिर साड़ी और रुपये अपनी सासु मां को पैर छूकर दें।
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=== बड़ी सांकली ===
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बड़ी सांकली पूर्णभासी से करें। इसमें एक दिन भोजन बिल्कुल न करें। फिर दूसरे दिन भोजन करें। फिर तीसरे दिन भोजन न करें। एकोदशी या रविवार बीच में पड़ जाने पर दो दिन तक भोजन न करें। इस प्रकार एक माह तक क्रम चलता रहे। उजमन आदि छोटी सांकली की तरह ही करें।
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=== चन्द्रायण व्रत ===
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यह व्रत कार्तिक लगते ही पूर्णमासी से लेकर कार्तिक उतरते पूर्णमासी तक करें। प्रतिदिन गंगा या यमुना में स्नान कर भगवान विष्णु और तुलसीजी की पूजा करें। अपने घर में किसी स्थान पर एक घी का अखण्ड दीपक पूरे माह तक जलायें। दीपक के पास ही नदी की मिट्टी में जौ या गेहूं उगा दें। एक तुलसीनी तथा भगवान की मूर्ति रखकर नित्य उन सबकी पूजा करें और व्रत रखें। व्रत के पहले दिन शाम को एक गिलास दूध या रस या एक छटांक पिसे हुए बादाम खा लें। दूसरे दिन इसको दुगनी मात्रा, तीसरे दिन तिगुनी, चौथे दिन चौगुनी मात्रा लें। इस प्रकार पन्द्रहवें दिन पन्द्रहगुनी मात्रा भोजन में लें। सोलहवें दिन फिर एक-एक मात्रा घटाते जायें, सोलहवें दिन चौदहगुनी, सत्रहवें दिन तेरहगुनी इस प्रकार महीने के आखिरी दिन फिर वही मात्रा रह जायेगी, जो मात्रा व्रत के पहले दिन थी। व्रत के आखिरी दिन पूजा करने के बाद 36 ब्राह्मणियों को भोजन कराकर सुहाग पिटारी देकर विदा करें और साड़ी पर रुपये रखकर अपनी सासु मां को पैर छूकर दें।
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=== तीरायत व्रत ===
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कार्तिक उतरते ही नवमी-दशमी, एकादशी-इन तीनों दिन व्रत रखें। द्वादशी के दिन 3 ब्राह्मण और तीन ब्राह्मणियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।
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[[Category:हिंदी भाषा के लेख]]
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[[Category:Hindi Articles]]
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[[Category:Festivals]]
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