Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎सूर्य छठ: लेख सम्पादित किया
Line 170: Line 170:     
=== सूर्य छठ ===
 
=== सूर्य छठ ===
यह छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आती है। इस दिन व्रत रखकर सूर्य नारायण की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम सूर्यदेव को अर्घ्य दें, फूल चढ़ायें, फिर आरती उतारकर साष्टांग प्रणाम करें। सूर्य भगवान की पूजा करने से धन और सन्तान को प्राप्ति होती है और संतान के कष्ट दूर हो जाते हैं। आंखों की बीमारी दूर हो जाती है। अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणों को जल में अवश्य देखें। सूर्य छठ की कथा-बहुत समय पहले की बात है कि बिन्दुसार तीर्थ में एक महीपाल नाम का वैश्य रहता था। वह धर्म का कट्टर विरोधी था। देवताओं की पूजा कभी नहीं करता था। एक दिन उसने सूर्य भगवान को गाली देते हुए उनकी
+
यह छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आती है। इस दिन व्रत रखकर सूर्य नारायण की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम सूर्यदेव को अर्घ्य दें, फूल चढ़ायें, फिर आरती उतारकर साष्टांग प्रणाम करें। सूर्य भगवान की पूजा करने से धन और सन्तान को प्राप्ति होती है और संतान के कष्ट दूर हो जाते हैं। आंखों की बीमारी दूर हो जाती है। अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणों को जल में अवश्य देखें। सूर्य छठ की कथा-बहुत समय पहले की बात है कि बिन्दुसार तीर्थ में एक महीपाल नाम का वैश्य रहता था। वह धर्म का कट्टर विरोधी था। देवताओं की पूजा कभी नहीं करता था। एक दिन उसने सूर्य भगवान को गाली देते हुए उनकी प्रतिमा के समक्ष मल-मूत्र त्याग दिया। इसको देखकर सूर्यदेव क्रोधित हो बोले-"हे दुष्ट! तू अभी अन्धा हो जा।" इतने कहते ही वह महीपाल नामक वैश्य अन्धा हो गया। अन्धा होने के कारण वह वैश्य दुःखी रहने लगा।
 +
 
 +
एक दिन उसने सोचा, इससे तो अच्छा है भगवान मेरे प्राण ही ले लें। इतना सोचकर वह गंगाजी में प्राण त्यागने के लिए चल पड़ा। जब वह रास्ते में जा रहा तभी उसे नारदजी मिले और कहने लगे-लालाजी, इतनी जल्दी कहां जा रहे है? तब वह वैश्य बोला-महाराज! मैं अन्धा हूं अत: इस कष्ट से दुःखी होकर गंगा में गिरकर प्राण त्यागने जा रहा हूं। तब नारदजी बोले, अरे मूर्ख! तुझे यह कष्ट सूर्य भगवान के क्रोध के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है, इसलिए तू कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टमी को व्रत रखकर सूर्य भगवान की पूजा करना। तब सूर्य भगवान तुझे क्षमा करके तेरे नेत्रों को पुन: ठीक कर देंगे। महीपाल ने ऐसा ही किया और उसकी आंखें उसे पुनः प्राप्त हो गयौं।
 +
 
 +
=== आंवला नवमी या युगादि नवमी ===
 +
यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आती है। कहते हैं इस दिन से सतयुग प्रारम्भ हुआ था। इसलिए यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण तिथि है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है। हजारों नर-नारियां आंवलों की पूजा करते हैं और ब्राह्मणों को आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन कराकर उन्हें दान-दक्षिणा देते हैं। उन्हें इस दिन आंवला भी दान देना चाहिए।
 +
 
 +
==== आंवला या युगादि नवमी की कथा- ====
 +
काशी नगरी में एक वैश्य रहता था। वह बात धमात्मा और दानी था, परन्तु उसके कोई सन्तान न थी। एक दिन उस वैश्य की स्त्री से एक औरत ने कहा-"तू किसी बच्चे की बलि भैरव पर चढ़ा दे तो तेरे सन्तान हो जायेगी। यह बात उस स्त्री ने अपने पति से कही। पति बोला, यह ठीक नहीं है, यदि किसी के बच्चे को मारकर मुझे भगवान भी मिलें तब भी मुझे स्वीकार नहीं है-बच्चे को प्राप्त करने की बात तो बहुत दूर है। पति की बात सुनकर वह चुप रही, परन्तु वह अपनी सहेली की बात नहीं भूली।
 +
 
 +
बात को सोचते-सोचते एक दिन उस वैश्य की स्त्री ने एक लड़की को भैरो बाबा के नाम पर कुएं में डाल दिया। लड़की की मृत्यु हो गयी, परन्तु उसके सन्तान नहीं हुई। सन्तान के बदले उसके शरीर से पाप फूट-फूट कर निकलने लगा। उसको कोढ़ हो गया। लड़की की मृत्यु उसकी आंखों के सामने नाचने लगी। वैश्य ने जब अपनी स्त्री से उसकी हालत का कारण पूछा तो उसने उस लड़की के विषय में बता दिया। तब वैश्य बोला, यह तुमने अच्छा नहीं किया क्योंकि ब्राह्मणवघ, गौवध और बालवध के अपराध से कोई मुक्त नहीं होता। अत: तुम गंगा के किनारे रहो और नित्यप्रति गंगा स्नान करो।
1,192

edits

Navigation menu