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→‎भैया दूज टीका: लेख सम्पादित किया
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एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नन्द बाबा  से कहा, हमारे गांव में ये तरह तरह के पकवान क्यों बनाये जा रहे हैं। इनका क्या महत्त्व है? नन्द बाबा बोले- हे कृष्णा काल इन्द्र की पूजा होगी। इन्द्र रोप वर्षा कर हमें अन्न देते है। गायों के लिए चारा देते हैं। तब भगवान कृष्ण कहने लो, बाबा हमारे गांव में गोवर्धन पर्वत साक्षात देवता हैं उनकी पूजा करो। ये हमारी पूजा स्वीकार करेंगे और प्रकट होकर स्वयं भोजन करेंगे। इन्द्र कुछ भी नहीं है उसकी आप व्यर्थ में ही पूजा करते हैं। कृष्ण की बात मानकर सभी गोप गोपिकायें गोवर्धन को पूजने के लिए गये। तब भगवान श्रीकृष्ण अपना चतुर्भुज रूप धरकर स्वयं गोवरधन पर्वत पर बैठ गये। गोपने गोपियों के भोग को खाने लगे। तभी से गोबरधन पर्वत का महत्व बढ़ गया। इन्द्र के स्थान पर सभी गोवरधन की ही पूजा करने लगे।
 
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नन्द बाबा  से कहा, हमारे गांव में ये तरह तरह के पकवान क्यों बनाये जा रहे हैं। इनका क्या महत्त्व है? नन्द बाबा बोले- हे कृष्णा काल इन्द्र की पूजा होगी। इन्द्र रोप वर्षा कर हमें अन्न देते है। गायों के लिए चारा देते हैं। तब भगवान कृष्ण कहने लो, बाबा हमारे गांव में गोवर्धन पर्वत साक्षात देवता हैं उनकी पूजा करो। ये हमारी पूजा स्वीकार करेंगे और प्रकट होकर स्वयं भोजन करेंगे। इन्द्र कुछ भी नहीं है उसकी आप व्यर्थ में ही पूजा करते हैं। कृष्ण की बात मानकर सभी गोप गोपिकायें गोवर्धन को पूजने के लिए गये। तब भगवान श्रीकृष्ण अपना चतुर्भुज रूप धरकर स्वयं गोवरधन पर्वत पर बैठ गये। गोपने गोपियों के भोग को खाने लगे। तभी से गोबरधन पर्वत का महत्व बढ़ गया। इन्द्र के स्थान पर सभी गोवरधन की ही पूजा करने लगे।
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==== भैया दूज टीका ====
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=== भैया दूज टीका ===
 
भैया दूज टीका को कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन को साथ साथ यमुना स्नान करना, तिलक लगवाना, भाई को बहिन के घर भोजन करना अति फलदायी होता इस दिन बहन भाई की पूजा करके उसको दीर्घायु और अपने सुहाग की हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। इस दिन सूर्य तनया जमुनाजी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन श्रद्धा अनुसार भाई स्वर्ण वस्त्र, मुद्रा आदि बहन को दे। भैया दूज की कहानी-सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा देवी था। उसके एक पुत्र तथा एक पुत्री थी। लड़के का नाम यमराज और लड़की का नाम यमुना था। अपने पति सूर्य नारायण की तेज गर्मी के कारण संज्ञा उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। उस लाया से ताप्ती नदी और शनिश्चर का जन्म हुआ। उसके पश्चात संज्ञा से ही अश्विनी कुमार हुए जो आगे चलकर देवताओं के वैद्य बने। जी संज्ञा छाया बनकर उत्तरी धूप में रहती थी वह यमराज च यमुना के साथ सौतेली माँ का
 
भैया दूज टीका को कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन को साथ साथ यमुना स्नान करना, तिलक लगवाना, भाई को बहिन के घर भोजन करना अति फलदायी होता इस दिन बहन भाई की पूजा करके उसको दीर्घायु और अपने सुहाग की हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। इस दिन सूर्य तनया जमुनाजी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन श्रद्धा अनुसार भाई स्वर्ण वस्त्र, मुद्रा आदि बहन को दे। भैया दूज की कहानी-सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा देवी था। उसके एक पुत्र तथा एक पुत्री थी। लड़के का नाम यमराज और लड़की का नाम यमुना था। अपने पति सूर्य नारायण की तेज गर्मी के कारण संज्ञा उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। उस लाया से ताप्ती नदी और शनिश्चर का जन्म हुआ। उसके पश्चात संज्ञा से ही अश्विनी कुमार हुए जो आगे चलकर देवताओं के वैद्य बने। जी संज्ञा छाया बनकर उत्तरी धूप में रहती थी वह यमराज च यमुना के साथ सौतेली माँ का
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