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                               '''ॐ जय लक्ष्मी माता'''
 
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'''शान्तिः  शांतिः  शान्तिः'''</blockquote>लक्ष्मी मैया की जय। जय लक्ष्मी माता। भारती की थाली नीचे रख लीजिए। जरा-सा जल छोड़ दीजिए। आरती के बाद थोड़ा-सा उल्न छोटना जरूरी है और
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'''शान्तिः  शांतिः  शान्तिः'''</blockquote>लक्ष्मी मैया की जय। जय लक्ष्मी माता। भारती की थाली नीचे रख लीजिए। जरा-सा जल छोड़ दीजिए। आरती के बाद थोड़ा-सा उल्न छोटना जरूरी है और अब हाथ में पुष्प ले लीजिए और पुष्पांजलि कीजिए। अंजलि-भर जो फूल ले रखे हैं, उन्हें लक्ष्मी माता के चरणों में अर्पित कर दीजिए। मां को प्रणाम कीजिए। माथा टेक लीजिए। नमस्कार करके सामर्थ्य के अनुसार कुछ द्रव्य चढ़ा दीजिए- शान्तिः शान्तिः शान्तिः। पूजा सम्पन्न हो गयी।
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==== दीपावली पूजन कथा ====
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एक बार अनेक मुनियों ने श्री सनत कुमार से पूछा-"भगवान! दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के साथ अनेक देवी-देवताओं की पूजा का जो महत्त्व बताया गया है, उसका क्या कारण है? क्योंकि दीपावली तो केवल लक्ष्मी का पर्व है?" मुनि की उचित शंका का समाधान करते हुए सनत कुमार ने कहा- "मुनिवृन्द! दैत्यराज! बलि का प्रताप जब समस्त भुवनों में फैल गया तो उसने अपने प्रतिद्वन्द्वी देवताओं को बन्दी बना लिया था। उसके कारागार में लक्ष्मी के साथ सभी देवी-देवता बन्दी थे। कार्तिक की अमावस्या के दिन वामन रूपधारी भगवान विष्णु ने जब बलि को बांध लिया तो सब लोग कारागार से मुक्त हुये। कारागार से मुक्त होकर सबने लक्ष्मी के साथ ही क्षीर सागर में जाकर शयन किया था, इसलिये दीपावली के दिन लक्ष्मी-पूजन के साथ ही क्षीर सागर में जाकर शयन किया था, इसलिये दीपावली के दिन लक्ष्मी-पूजन के साथ हमें उन सबके शयन का अपने-अपने घरों में उत्तम प्रबन्ध कर देना चाहिये जिससे कि लक्ष्मी के साथ वहां निवास करें, अन्यत्र न जायें। देवताओं और लक्ष्मी की यह शय्या मनुष्यं द्वारा कभी प्रयुक्त न हो। उस पर स्वच्छ सुन्दर तकिया, रजाई आदि भी रहें, कोमल एवं सुगन्धित कमल पुष्पों को भी रखना चाहिए, क्योंकि लक्ष्मी कमलामयी कही गयी हैं। हे मुनिवृन्द! जो लोग इस विधि से लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उनको छोड़कर लक्ष्मी अन्यत्र कहीं नहीं जातीं। इसके विपरीत जो लोग दीपावली को प्रमाद और निद्रा में विताते हैं, उनके घर पर दरिद्रता का निवास होता है। दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी का आह्वान करते समय उनके मनोहर स्वरूप का ध्यान करना चाहिए, फिर गाय के दूध का खोया बनाकर उसमें मिश्री, कपूर, इलायची आदि सुगन्धित चीजें डालकर लड्डू बनाना चाहिये जिससे लक्ष्मीजी का भोग लगाया जाए।
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इसके अतिरिक्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार भोज्य, भज्य पेय, घोल, चारों प्रकार के व्यंजन एवं पुष्प फलादि भी लक्ष्मीजी को भेंट करने चाहियें। तदनन्तर दीपदान का विधान है। दीपदान के समय कुछ दीपकों को अपने प्रियजनों के अनिष्ट की निवृत्ति के लिए मस्तष्क के चारों ओर से घुमाकर किसी चौराहे या श्मशान भूमि में रखवा देना चाहिये। नदी, तालाब, कुएं, चौराहे आदि सार्वजनिक स्थानों पर दीपदान करना चाहिये तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा एवं भोजन वस्त्रादि से सत्कृत करना चाहिये।
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