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=== रूप चतुर्दशी ===
 
=== रूप चतुर्दशी ===
यह चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चौदस को आती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण रूप-सौंदर्य को देते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। रूप चतुर्दशी की कथा-एक समय भारतवर्ष में हिरण्यगर्भ नाम के नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अत: उन्होंने समाधि लगायी। उनके शरीर में कीड़े पड़ गये। बालों में छोटे-छोटे कीड़े लग गये। आंखों में, भौंहों में और माथे पर जुये जम गयौं, इससे योगिराज बहुत दुःखी हुए। इतने में वहां नारदजी घूमते-घूमते वीणा और खरसाल बजाते हुए आ गये। तब योगिराज बोले- भगवन भगवान के चिन्तन में लोन होना चाहता था परन्तु मेरी यह दशा हो गयी।"
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यह चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चौदस को आती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण रूप-सौंदर्य को देते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। रूप चतुर्दशी की कथा-एक समय भारतवर्ष में हिरण्यगर्भ नाम के नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अत: उन्होंने समाधि लगायी। उनके शरीर में कीड़े पड़ गये। बालों में छोटे-छोटे कीड़े लग गये। आंखों में, भौंहों में और माथे पर जुये जम गयौं, इससे योगिराज बहुत दुःखी हुए। इतने में वहां नारदजी घूमते-घूमते वीणा और खरसाल बजाते हुए आ गये। तब योगिराज बोले- भगवन भगवान के चिन्तन में लोन होना चाहता था परन्तु मेरी यह दशा हो गयी।"सब नारदजो बोले- हे योगिराज म चिन्तन करना जानते हो परन्तु देह आचार पालन नहीं जानते इसलिए तुम्हारी यह दशा हुई है।" उन योगिराज ने नारदजी से देहाचार पूछा। तब नारदजी बोले-आचार से अब कोई लाभ नहीं है अब मैं जैसा कहूँ तुम जैसा ही करना। फिर देहआचार बताऊगा। नारदजी बोले अब के कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को तुम व्रत रखकर भगवान की पूजा करना उस पूजा से तुम्हारा शरीर पहले जैसा रूपवान हो जायेगा। योगिराज ने ऐसा ही किया उसका शरीर स्वर्ण के समान हो गया। उसी दिन से इसको रूप चतुर्दशी  भी कहा जाता है |
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=== नरक चतुर्दशी ===
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यह कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौदस को आती है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन निम्न मन्त्र पढ़कर भगवान पर फूल चढ़ाते हैं-
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मन्त्र -
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            '''बसुदेव सुतं देव नरकासुर भदैनम्।'''<blockquote>'''देवकी परमानन्दम् कृष्णाम् वन्दे जगदगुरुमा।'''</blockquote>दोहा-<blockquote>'''वासुदेव के पुत्र जो, नरकासुर के काल।'''
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'''रखे देवकी पुत्र सम, सभी झुकोव भाला।'''</blockquote>इस प्रकार जो पूजा करते हैं, नरक छोड़कर स्वर्ग को जाते हैं। नरक चतुर्दशी की कथा-बहुत समय पहले की बात है एक रन्तिदेव नाम का राजा हुआ था। वह पूर्व जन्म में बहुत धर्मात्मा और दानी था। उस पुण्य के प्रताप से महाराजा हुआ। इस जन्म में भी उसने बहुत पुण्य किये। जब उसका अन्त समय आया तो उसे यमदूत लेने को आये तो राजा ने बड़े दु.खी मन से कहा-यमदूतों, मैंने जीवन में कभी अधर्म न करके सदैव दान-पुण्य किए हैं फिर मुझे नरकों को यातना क्यों दी जा रही है-
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यमदूतों ने कहा, राजन! एक बार आपके द्वार पर आकर एक अतिथि भूखा-प्यासा चला गया और आपने उसका वाणी से भी सत्कार नहीं किया। इसलिए इस पाप में आपको कुछ दिन के लिए नरक का दुःख अवश्य भोगना पड़ेगा। यमदूतों की यह बात सुनकर राजा ने उनको कुछ क्षण ठहरने के लिए प्रार्थना की और तत्पश्चात् तुरन्त अपने मन्त्रियों को बुलवाकर दोन-अनाथों को इच्छानुसार धन-द्रव्य देकर उन्हें सन्तुष्ट करने को कहा। चूंकि उस दिन नरक चतुर्दशी थी इसी कारण उस दिन के दान-पुण्य से सन्तुष्ट हो गये। राजा नरक ना जाकर स्वर्ग को चला गया।
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