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→‎अहोई व्रत कथा-: लेख सम्पादित किया
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जब दोनों चलते-चलते थक जाते तब बैठ जाते फिर चलने लगे। इसी तरह वे बद्रिकाश्रम के निकट एक शील कुण्ड के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने अन्न-जल त्याग दिया। जब उन्हें भूखे-प्यासे सात दिन हो गये तो वहां आकाशवाणी हुई कि तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो। यह दु:ख तुम्हें पूर्व जन्म के कारण मिला है। अतएव हे साहूकार! अब तुम अपनी पत्नी से अहोई अष्टमी के दिन जो कार्तिक कृष्ण पक्ष को आती है व्रत रखवाना। इस व्रत के प्रभाव से अहोई से अपने पुत्रों की दीर्घायु मांगना। व्रत के दिन रात्रि को राधाकुण्ड में स्नान करवाना। कार्तिक पक्ष की अष्टमी आने पर चंद्रिका में बड़ी श्रद्धा से अहोई देवी का व्रत धारण किया एवं रात्रि को साहूकार राधा कुण्ड में स्नान करने गया। साहूकार जब स्नान करके घर वापस आ रहा था तो मार्ग में अहोई देवी ने उसे दर्शन दिया एवं बोली-"साहूकार!
 
जब दोनों चलते-चलते थक जाते तब बैठ जाते फिर चलने लगे। इसी तरह वे बद्रिकाश्रम के निकट एक शील कुण्ड के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने अन्न-जल त्याग दिया। जब उन्हें भूखे-प्यासे सात दिन हो गये तो वहां आकाशवाणी हुई कि तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो। यह दु:ख तुम्हें पूर्व जन्म के कारण मिला है। अतएव हे साहूकार! अब तुम अपनी पत्नी से अहोई अष्टमी के दिन जो कार्तिक कृष्ण पक्ष को आती है व्रत रखवाना। इस व्रत के प्रभाव से अहोई से अपने पुत्रों की दीर्घायु मांगना। व्रत के दिन रात्रि को राधाकुण्ड में स्नान करवाना। कार्तिक पक्ष की अष्टमी आने पर चंद्रिका में बड़ी श्रद्धा से अहोई देवी का व्रत धारण किया एवं रात्रि को साहूकार राधा कुण्ड में स्नान करने गया। साहूकार जब स्नान करके घर वापस आ रहा था तो मार्ग में अहोई देवी ने उसे दर्शन दिया एवं बोली-"साहूकार!
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मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे कुछ भी वर मांग लो।" साहूकार अहोई देवी के दर्शन कर, बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, मां! मेरे बच्चे कम उम्र में ही देवलोक को चले जाते हैं। इसलिए मां उनकी दीर्घायु होने का आशीर्वाद दीजिये। अहोई देवी बोलीं, ऐसा ही होगा। इतना कहकर देवी अन्तध्यान हो गयीं।
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मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे कुछ भी वर मांग लो।" साहूकार अहोई देवी के दर्शन कर, बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, मां! मेरे बच्चे कम उम्र में ही देवलोक को चले जाते हैं। इसलिए मां उनकी दीर्घायु होने का आशीर्वाद दीजिये। अहोई देवी बोलीं, ऐसा ही होगा। इतना कहकर देवी अन्तध्यान हो गयीं। कुछ दिन उपरान्त साहूकार के एक पुत्र पैदा हुआ, जो बड़ा होने पर विद्वान, बलशाली, प्रतापी और आयुष्मान हुआ। अगर किसी स्त्री के पुत्र हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ तो अहोई व्रत की समाप्ति का उत्सव करे। एक थाली में सात जगह पूड़ी एवं श्रोड़ा-सा मीठा रखे। इसके अतिरिक्त एक साड़ी ब्लाउज एक रूपया रखकर थाली में रखे एवं थाली में चारों ओर हाथ फेरकर पूड़ी का वायना वितरण कर दे, अगर लड़की कहीं अन्य जगह हो तो उसके लिए बायना वहीं भेज देना चाहिए।
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अहोई का उजमन-यदि किसी स्त्री के बेटा हुआ हो या बेटे का विवाह हो तो होई का उजमन करे। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा थोड़ा सीरा रखे। साथ ही एक साड़ी ब्लाउज रखे। फिर थाली के चारों ओर जल का हाथ फेरकर अपनी सासु मां को पैर छूकर दे दे। साड़ी-ब्लाउज सास पहन ले और बायना बांट दे। यदि लड़की कहीं दूर हो तो उसके लिए बायना वहीं भेज दे।
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=== रमा या रम्भा एकादशी ===
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यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान का समस्त सामग्री से पूजन करें! भोग लगाकर आरती उतारें, आरती के उपरान्त भोग को बांट दें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपनी शक्ति के अनुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इस प्रकार जो व्रत धारण करता है, उसे इस लोक व परलोक दोनों में सुख मिलता है। एकादशी की कृपा से स्वर्ग में रम्भा या रमा आदि अप्सरायें सेवा करती हैं। रमा या रम्भा एकादशी की कथा-एक समय भारतवर्ष में एक मृचुकन्द नाम का दानी, धर्मपरायण और महाप्रतापी राजा हुआ था। उसको एकादशी व्रत पर पूरा विश्वास था, इसी कारण वह एकादशी व्रत धारण भी करता था। साथ ही साथ उसके राज्य में सभी नियमपूर्वक एकादशी का व्रत भी करते थे। उसके एक चन्द्रभागा नाम की एक रूपवती, गुणवती और धर्मपरायण पुत्री थी! बाप और बेटी दोनों ही भगवान केशव के पूर्ण भक्त थे। उनकी पुत्री चन्द्रभागा का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र के साथ हुआ, जो राजा मृचुकुन्द के पास ही रहता था। जब एकादशो आयी तो सभी व्यक्तियों ने व्रत धारण किया। सोभन कुमार ने कमजोर होते हुए भी व्रत धारण किया। सोभन कुमार को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल पर्वत पर स्थित देवनगर में निवास मिला। वहां उसकी सेवा में रम्भादिक अप्सरायें भी धीं। एक दिन राजा मृचुकुन्द घूमता-घूमता मन्दराचल पर्वत पहुंचा, उसने वहां अपने दामाद को देखा। वह तभी अपनी पुत्री के पास लौट आया और आकर सम्पूर्ण वृतान्त अपनी पुत्री को कह सुनाया।
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