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→‎चाना छठ की कहानी: लेख सम्पादित किया
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=== चाना-छठ ===
 
=== चाना-छठ ===
यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह व्रत केवल कुंवारी कन्याओं को करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाली कुंवारियां निराहार रहकर पूजन करती हैं। एक पट्टे पर जल से भरे लोटे पर रोली से एक स्वास्तिक (सतिया) बनायें और लोटे की किनारी पर रोली से सात बिन्दी लगायें। एक गिलास गेहूं से भरकर उस पर दक्षिणा रखें। फिर हाथ में सात-सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के पश्चात् लोटे में भरे जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और गेहूं और दक्षिणा को ब्राह्मणी को दे दें। जिस समय कहानी सुनते हैं उस समय एक कलश जल का भरकर रख लेते हैं और बाद में उसी जल से भोजन तैयार करें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें |
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यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह व्रत केवल कुंवारी कन्याओं को करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाली कुंवारियां निराहार रहकर पूजन करती हैं। एक पट्टे पर जल से भरे लोटे पर रोली से एक स्वास्तिक (सतिया) बनायें और लोटे की किनारी पर रोली से सात बिन्दी लगायें। एक गिलास गेहूं से भरकर उस पर दक्षिणा रखें। फिर हाथ में सात-सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के पश्चात् लोटे में भरे जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और गेहूं और दक्षिणा को ब्राह्मणी को दे दें। जिस समय कहानी सुनते हैं उस समय एक कलश जल का भरकर रख लेते हैं और बाद में उसी जल से भोजन तैयार करें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें
    
==== चाना छठ की कहानी  ====
 
==== चाना छठ की कहानी  ====
एक नगर में एक सहकर और उसकी पत्नी रहते थे | वे अपना कोई भी कार्य स्वयं ना करके नौकरों से करवाते थे। साहूकार की पत्नी बर्तनों को सूंघ-सूंघकर देखती थी कि बर्तन गंदा तो नहीं है। कुछ समय पश्चार उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। उसकी उन्होंने बड़े होने पर शादी कर दी। विवाह के कुछ समय उपरान्त साहूकार व उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद साहूकार तो बैल बना और साहूकारनी कुतिया। वे दोनों अपने बेटे के घर ही पहुंच गये। साहूकार का बेटा बैल से खूब काम करवाता, दिन भर खेत जुतवाता और कुएं से पानी खिंचवाता। कुतिया उसके घर की रखवाली करती थी। एक वर्ष के पश्चात् उसके पिता का श्राद्ध आया। श्राद्ध के दिन खूब पकवान बनाये। गये उसमें खीर भी बनायी गयी। खीर को ठण्डा करने के लिए बहू ने उसे थाली में रख दिया। उसी समय एक चील उड़ती हुई आई उसके में भरा हुआ सर्प था। वह सर्प चील के मुंह से छूटकर खीर में गिर गया। यह सब कुतिया बैठी हुई देख रही थी परन्तु उसकी बहू को कुछ पता नहीं था। कुतिया सोचने लगी, यदि खीर किसी ने खायी तो तुरन्त ही मर जायेगा। अत: अब क्या करना चाहिए। कुतिया अभी सोचने लगी ही थी कि भीतर से उसकी बहू खीर उठाने आई। कुतिया ने खीर में मुंह दे दिया। जब लड़के की बहू ने कुतिया को खीर में मुंह देते हुए देखा तो वह उसके पीछे डण्डा लेकर भागी। जब बहू ने कुतिया की पीठ पर डण्डा मारा तो उसकी पीठ की हड्डी टूट गयी। रात्रि में कुतिया बैल के पास आयी और बोली-आज तो तुम्हारा श्राद्ध था। तुम्हें तो खूब भोजन मिला होगा।
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एक नगर में एक सहकर और उसकी पत्नी रहते थे वे अपना कोई भी कार्य स्वयं ना करके नौकरों से करवाते थे। साहूकार की पत्नी बर्तनों को सूंघ-सूंघकर देखती थी कि बर्तन गंदा तो नहीं है। कुछ समय पश्चार उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। उसकी उन्होंने बड़े होने पर शादी कर दी। विवाह के कुछ समय उपरान्त साहूकार व उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद साहूकार तो बैल बना और साहूकारनी कुतिया। वे दोनों अपने बेटे के घर ही पहुंच गये। साहूकार का बेटा बैल से खूब काम करवाता, दिन भर खेत जुतवाता और कुएं से पानी खिंचवाता। कुतिया उसके घर की रखवाली करती थी। एक वर्ष के पश्चात् उसके पिता का श्राद्ध आया। श्राद्ध के दिन खूब पकवान बनाये। गये उसमें खीर भी बनायी गयी। खीर को ठण्डा करने के लिए बहू ने उसे थाली में रख दिया। उसी समय एक चील उड़ती हुई आई उसके में भरा हुआ सर्प था। वह सर्प चील के मुंह से छूटकर खीर में गिर गया। यह सब कुतिया बैठी हुई देख रही थी परन्तु उसकी बहू को कुछ पता नहीं था। कुतिया सोचने लगी, यदि खीर किसी ने खायी तो तुरन्त ही मर जायेगा। अत: अब क्या करना चाहिए। कुतिया अभी सोचने लगी ही थी कि भीतर से उसकी बहू खीर उठाने आई। कुतिया ने खीर में मुंह दे दिया। जब लड़के की बहू ने कुतिया को खीर में मुंह देते हुए देखा तो वह उसके पीछे डण्डा लेकर भागी। जब बहू ने कुतिया की पीठ पर डण्डा मारा तो उसकी पीठ की हड्डी टूट गयी। रात्रि में कुतिया बैल के पास आयी और बोली-आज तो तुम्हारा श्राद्ध था। तुम्हें तो खूब भोजन मिला होगा।
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बैल बोला-मैं तो दिन भर खेत में ही कार्य करता रहा। आज तो मुझे कुछ भी नहीं मिला। कुतिया बोली, जो आज श्राद्ध की खीर बनी थी उसमें चील ने सर्प डाल दिया था। उस खीर को कोई खाकर मर न जाये इसी कारण मैंने उस खीर में मुंह दे दिया था जिस कारण बहू ने मेरी पीठ पर ऐसा डण्डा मारा कि मेरी हड्डी टूट गयी। इससे बहुत दर्द हो रहा है और कुछ खाने को भी नहीं मिला।यह सब बातें बहू सुन रही थी। उसने कुतिया और बैल की सब बातें अपने पति से कहीं। तब लड़के ने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा कि मेरे माता-पिता किस योनि में हैं? तब ज्योतिष बोला-तुम्हारे यहां जो बैल है वह तुम्हारे पिता और तुम्हारे घर में जो कुतिया है वही तुम्हारी मां है। लड़का बोला--तब इनका उद्धार कैसे होगा? ज्योतिष बोला, तुम अपनी कुंवारी कन्याओं को भाद्रपद लगते ही जो चाना छठ आती है उसका व्रत रखवाओ तब तुम्हारे माता-पिता का उद्धार हो जायेगा। लड़के ने ऐसा ही किया जिससे उसके माता-पिता पशु योनि से छूटकर दिव्य देह धारण कर स्वर्ग को चले गये। चाना छठ का उजमन-जिस साल जिस लड़की का विवाह हो उस साल वह लड़की चाना छठ का उजमन करे। व्रत पूजा पहले की तरह करे। कहानी सुनकर
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बैल बोला-मैं तो दिन भर खेत में ही कार्य करता रहा। आज तो मुझे कुछ भी नहीं मिला। कुतिया बोली, जो आज श्राद्ध की खीर बनी थी उसमें चील ने सर्प डाल दिया था। उस खीर को कोई खाकर मर न जाये इसी कारण मैंने उस खीर में मुंह दे दिया था जिस कारण बहू ने मेरी पीठ पर ऐसा डण्डा मारा कि मेरी हड्डी टूट गयी। इससे बहुत दर्द हो रहा है और कुछ खाने को भी नहीं मिला।यह सब बातें बहू सुन रही थी। उसने कुतिया और बैल की सब बातें अपने पति से कहीं। तब लड़के ने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा कि मेरे माता-पिता किस योनि में हैं? तब ज्योतिष बोला-तुम्हारे यहां जो बैल है वह तुम्हारे पिता और तुम्हारे घर में जो कुतिया है वही तुम्हारी मां है। लड़का बोला--तब इनका उद्धार कैसे होगा? ज्योतिष बोला, तुम अपनी कुंवारी कन्याओं को भाद्रपद लगते ही जो चाना छठ आती है उसका व्रत रखवाओ तब तुम्हारे माता-पिता का उद्धार हो जायेगा। लड़के ने ऐसा ही किया जिससे उसके माता-पिता पशु योनि से छूटकर दिव्य देह धारण कर स्वर्ग को चले गये। चाना छठ का उजमन-जिस साल जिस लड़की का विवाह हो उस साल वह लड़की चाना छठ का उजमन करे। व्रत पूजा पहले की तरह करे। कहानी सुनकर सात जगह 4-4 पूरी और सोरा रखे। उन पर कुछ मीठा और दक्षिणा रखकर सासू जी को पांव छूकर दे। अपने साथ सात कुंवारी कन्याओं को व्रत कराये। रात्रि चन्द्रमा को अर्घ्य देकर सातों लड़कियों सहित भोजन करे। साथ में एक चार लड़य, को भी भोजन कराये। यदि उन सात कन्याओं में कोई ब्राह्मण की लड़की होता उसे दक्षिणा दे।
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=== ललिता व्रत ===
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यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ही किया जाता है। इस दिन ललिता देवी की पूजा होती है। इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियों को सुबह स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिएं। नदी में से बालू या रेत लाकर पिंड (आकृति) बनाकर उसे कांसे के पात्र में रखें। इसी प्रकार पांच पिण्ड बनायें। उन पिण्डों का पूजन ललिता देवी का ध्यान करके करें। फिर कमल, कनेर, मालती, गुलाब आदि के फूल चढ़ायें। पूजा के उपरान्त हाथ जोड़कर खड़े हो जायें और निम्न प्रकार प्रार्थना करें- <blockquote>'''गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नील पर्वत।'''
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'''स्नात्वा कनखले देवि हर लब्धावती पतिम्॥'''
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'''ललिते सुभमे देवि सुख सौभाग्यदायिनी।'''
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'''अनन्त देहि सौभाग्यं मध्य तुम्यं नमो नमः॥'''</blockquote>अर्थात् हे देवी! आपने गंगाद्वार, कुश्ववर्त्त, बिल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शिव की पत्नी रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बार-बार नमस्कार है, आप मुझे अक्षय सौभाग्य दीजिये। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए चम्पा के फूलों द्वारा ललिता देवी की विधिपूर्वक पूजा करें और भोग लगायें। खीर, ककड़ी, कुम्हड़ा, नारियल, अनार, बिजौरा नींबू, तुण्डीर कारवेल्स आदि देवी के आगे रखें। साथ ही धान, दीप, अगर, धूप, लक, करंजक, गुड़, फूल आदि कान के आभूषण, लड्डू आदि वस्तुएं रखकर भोग लगायें। रात्रि में जागरण करें। प्रात: देवीजी को नदी के किनारे ले जायें। वहां पर उनकी पूजा करें। जो सामान करें। उनके सामने रखा था वह ब्राह्मणों को दे दें। फिर नदी में स्नान करके घर आकर हवन करें । देवताओं और पितरों का पूजन करके और १५ ब्राह्मणों को भोजन करायें । भोजन के बाद दक्षिणा देकर बिदा करे । इस ललिता व्रत के करनेवाली स्त्री की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । यह व्रत सभी प्रकार को दान,व्रत आदि से ऊपर है। मृत्यु के बाद वह स्त्री ललिता देवी
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