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→‎ललिता व्रत: लेख सम्पादित कित्य
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'''ललिते सुभमे देवि सुख सौभाग्यदायिनी।'''
 
'''ललिते सुभमे देवि सुख सौभाग्यदायिनी।'''
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'''अनन्त देहि सौभाग्यं मध्य तुम्यं नमो नमः॥'''</blockquote>अर्थात् हे देवी! आपने गंगाद्वार, कुश्ववर्त्त, बिल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शिव की पत्नी रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बार-बार नमस्कार है, आप मुझे अक्षय सौभाग्य दीजिये। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए चम्पा के फूलों द्वारा ललिता देवी की विधिपूर्वक पूजा करें और भोग लगायें। खीर, ककड़ी, कुम्हड़ा, नारियल, अनार, बिजौरा नींबू, तुण्डीर कारवेल्स आदि देवी के आगे रखें। साथ ही धान, दीप, अगर, धूप, लक, करंजक, गुड़, फूल आदि कान के आभूषण, लड्डू आदि वस्तुएं रखकर भोग लगायें। रात्रि में जागरण करें। प्रात: देवीजी को नदी के किनारे ले जायें। वहां पर उनकी पूजा करें। जो सामान करें। उनके सामने रखा था वह ब्राह्मणों को दे दें। फिर नदी में स्नान करके घर आकर हवन करें । देवताओं और पितरों का पूजन करके और १५ ब्राह्मणों को भोजन करायें । भोजन के बाद दक्षिणा देकर बिदा करे । इस ललिता व्रत के करनेवाली स्त्री की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । यह व्रत सभी प्रकार को दान,व्रत आदि से ऊपर है। मृत्यु के बाद वह स्त्री ललिता देवी
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'''अनन्त देहि सौभाग्यं मध्य तुम्यं नमो नमः॥'''</blockquote>अर्थात् हे देवी! आपने गंगाद्वार, कुश्ववर्त्त, बिल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शिव की पत्नी रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बार-बार नमस्कार है, आप मुझे अक्षय सौभाग्य दीजिये। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए चम्पा के फूलों द्वारा ललिता देवी की विधिपूर्वक पूजा करें और भोग लगायें। खीर, ककड़ी, कुम्हड़ा, नारियल, अनार, बिजौरा नींबू, तुण्डीर कारवेल्स आदि देवी के आगे रखें। साथ ही धान, दीप, अगर, धूप, लक, करंजक, गुड़, फूल आदि कान के आभूषण, लड्डू आदि वस्तुएं रखकर भोग लगायें। रात्रि में जागरण करें। प्रात: देवीजी को नदी के किनारे ले जायें। वहां पर उनकी पूजा करें। जो सामान करें। उनके सामने रखा था वह ब्राह्मणों को दे दें। फिर नदी में स्नान करके घर आकर हवन करें । देवताओं और पितरों का पूजन करके और १५ ब्राह्मणों को भोजन करायें । भोजन के बाद दक्षिणा देकर बिदा करे । इस ललिता व्रत के करनेवाली स्त्री की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । यह व्रत सभी प्रकार को दान,व्रत आदि से ऊपर है। मृत्यु के बाद वह स्त्री ललिता देवी की सखी बनकर शिव-धाम में चिरकाल तक सुख भोगती है और उसका पति शिव के समीप रहकर सुख भोगता है।
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=== केसरिया की जात ===
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भाद्रपद की कृष्ण पक्ष अष्टमी को केसरिया की जात लगती है। इस दिन हाथ में दाल का दाना लेकर किसी भी दिशा में जल चढ़ा दें और नारियल भी चढ़ा दें। केसरियाजी के नाम का दूध, रोली, चावल, फूल, प्रसाद तथा दक्षिणा भी चढ़ायें।
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=== जन्माष्टमी ===
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भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र के अर्द्ध-रात्रि को परम-पावन भगवान श्री कृष्ण ने भूतल पर भारतवर्ष की नगरी मथुरा में अवतार लेकर भक्तों का उद्धार करते हुए कंस आदि को मौत के घाट उतार दिया था, इतना ही नहीं उन्होंने धर्मात्मा पाण्डवों की रक्षा करते हुए कौरवों का नाश करने और संसार को ज्ञान सूर्य से प्रकाशित करने के लिए गीता जैसे अमूल्य ग्रन्थ का निर्माण किया था। स्वयं गीता में भगवान ने कहा है कि जब-जब भूतल पर धर्म का पालन न होकर पाप का साम्राज्य होगा, तब-तब मैं अवतार धारण करके पापियों का संहार करता हुआ भक्तों का उद्धार करूंगा। अत: समय-समय पर विष्णु भगवान भूतल पर अवतार धारण करके दुष्टों का दमन और सज्जन साधुओं की रक्षा किया करते हैं। जन्माष्टमी को भगवान का व्रत करते हुए यम-नियमों का पालन करना चाहिए। पूजा-पाठ के साथ ही भागवत गीता व महाभारत का श्रवण करना चाहिए। भगवान के चरित्रों का भली प्रकार वर्णन सुनना चाहिए और उनके कार्यों के उद्देश्यों से भली प्रकार परिचित होना चाहिए। इसके अलावा मन्दिरों की प्रतिमाओं को नवीन वस्त्राभूषण पहनाकर मन्दिरों को विशेष रूप से सजाते हुए भगवान की झांकि निकाली जाती हैं।
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=== गूंगा नवमी ===
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भादवा बदी नवमी को गूंगा नवमी कहते हैं। इस दिन महापराक्रमी पीरवर गूंगा ने जन्म लेकर मलेच्छों का मान-मर्दन करते हुए हिन्दू धर्म की रक्षा की थी। इस दिन तेल के गुलगुले बनाकर और पूरी बनाकर वीरवर की पूजा कर बच्चों को भोजन खिलाकर उत्सव मनाया जाता है । कई महानुभाओं का यह भी विशवास है की गूंगा के पूजन से सर्पो का भय कम हो जाता है |
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