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→‎3 वसुधैव कुटुंबकम्: लेख सम्पादित किया
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== 3 वसुधैव कुटुंबकम् ==
 
== 3 वसुधैव कुटुंबकम् ==
 
<blockquote>अयं निज: परोवेत्ति गणनां लघुचेतसाम्</blockquote><blockquote>उदार चरितानां तु वसुधैव कुटु्म्बकम्</blockquote> भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण हैं । जिन के हृदय बडे होते हैं, मन विशाल होते हैं उन के लिये तो सारा विश्व ही एक कुटुंब होता है। ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित कुटुंब जिस भावना और व्यवस्थाओं के आधारपर सुव्यवस्थित ढँग से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है। यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे। इस दृष्टि से दस दस हजार से अधिक संख्या की आबादी वाले गुरुकुल विस्तारित कुटुंब ही हुआ करते थे। इसीलिये वे कुल कहलाए जाते थे। इसी तरह ग्राम भी ग्रामकुल हुआ करते थे। गुरुकुल, ग्रामकुल की तरह ही राष्ट्र(कुल) में भी यही परिवार भावना ही परस्पर संबंधों का आधार हुआ करती थी।
 
<blockquote>अयं निज: परोवेत्ति गणनां लघुचेतसाम्</blockquote><blockquote>उदार चरितानां तु वसुधैव कुटु्म्बकम्</blockquote> भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण हैं । जिन के हृदय बडे होते हैं, मन विशाल होते हैं उन के लिये तो सारा विश्व ही एक कुटुंब होता है। ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित कुटुंब जिस भावना और व्यवस्थाओं के आधारपर सुव्यवस्थित ढँग से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है। यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे। इस दृष्टि से दस दस हजार से अधिक संख्या की आबादी वाले गुरुकुल विस्तारित कुटुंब ही हुआ करते थे। इसीलिये वे कुल कहलाए जाते थे। इसी तरह ग्राम भी ग्रामकुल हुआ करते थे। गुरुकुल, ग्रामकुल की तरह ही राष्ट्र(कुल) में भी यही परिवार भावना ही परस्पर संबंधों का आधार हुआ करती थी।
यह विश्वास और एप्रसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी । यह बात आज भी असंभव नहीं है । वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा ।
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यह विश्वास और ऐसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी। यह बात आज भी असंभव नहीं है। वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा। वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएँ तो बस दिखावा और छलावा मात्र हैं। जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नहीं सकते उन्हे हम भारतीयों को वैश्वीकरण सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हमें भी अपने पूर्वजों से फिर से सीखना चाहिये और अभारतीयों को भी सिखाना चाहिये।
वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएँ तो बस दिखावा और छलावा मात्र हैं। जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नहीं सकते उन्हे हम भारतीयों को वैश्वीकरण सिखाने का कोई अधिकार नहीं है । वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हमें भी अपने पूर्वजों से फिर से सीखना चाहिये और अभारतीयों को भी सिखाना चाहिये ।
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कुटुंब भावना के विकास की महत्वपुर्ण बातें  
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कुटुंब भावना के विकास की महत्वपुर्ण बातें:
- अधिकारों के स्थानपर कर्तव्य भावना के संस्कार होते हैं। केवल अपने लिये जीनेवाला अर्भक परिवार भावना के कारण अपनों के लिये जीनेवाला, सर्वस्व न्यौछावर करनेवाला बन जाता है।
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# अधिकारों के स्थानपर कर्तव्य भावना के संस्कार होते हैं। केवल अपने लिये जीनेवाला अर्भक परिवार भावना के कारण अपनों के लिये जीनेवाला, सर्वस्व न्यौछावर करनेवाला बन जाता है।
- सामाजिकता की नींव डलती है। विभिन्न स्वभावों के लोगों के साथ आदर के साथ मिलजुलकर रहने की आदत बनती है। सहयोग, सहकारिता, नि:स्वार्थ भावना से अन्यों के लिये काम आदि के संस्कार होते हैं।
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# सामाजिकता की नींव डलती है। विभिन्न स्वभावों के लोगों के साथ आदर के साथ मिलजुलकर रहने की आदत बनती है। सहयोग, सहकारिता, नि:स्वार्थ भावना से अन्यों के लिये काम आदि के संस्कार होते हैं।
- विविध प्रकार के संयम आचरण में आते हैं। जैसे वाणि संयम, स्वादसंयम, आहार संयम, व्यवहार संयम, विकारसंयम, उपभोग संयम आदि। इन सब का सामाजिक जीवन में अनोखा महत्व है।
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# विविध प्रकार के संयम आचरण में आते हैं। जैसे वाणी संयम, स्वाद संयम, आहार संयम, व्यवहार संयम, विकार संयम, उपभोग संयम आदि। इन सब का सामाजिक जीवन में अनोखा महत्व है।
- जो कमाएगा खिलाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा - में श्रध्दा निर्माण होती है। इससे बाल, विधवा, वृध्द, विकलांग, रोगी आदि को सम्मान से प्रेम और पोषण प्राप्त होता है। अध्यापक, कलाकार, वैद्य, समाज के हित में नि:स्वार्थ भाव से काम करनेवाले, अतिथी आदि की जीविका की आश्वस्ति हो जाती है। अतिथी, तीर्थयात्रियों को आजकल जैसी एटीएम्, होटल आदि की आवश्यकता नहीं होती।
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# जो कमाएगा खिलाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा - में श्रध्दा निर्माण होती है। इससे बाल, विधवा, वृध्द, विकलांग, रोगी आदि को सम्मान से प्रेम और पोषण प्राप्त होता है। अध्यापक, कलाकार, वैद्य, समाज के हित में नि:स्वार्थ भाव से काम करनेवाले, अतिथि आदि की जीविका की आश्वस्ति हो जाती है। अतिथि, तीर्थयात्रियों को आजकल जैसी एटीएम्, होटल आदि की आवश्यकता नहीं होती।
- छोटों के लिये प्रेम, ममता, अपनापन और बडों के लिये आदर का भाव रखना।
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# छोटों के लिये प्रेम, ममता, अपनापन और बडों के लिये आदर का भाव रखना।
- घर के सभी काम अपने मानना। उन्हें करने की क्षमता, कुशलता और मानसिकता बनाना।
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# घर के सभी काम अपने मानना। उन्हें करने की क्षमता, कुशलता और मानसिकता बनाना।
- बडों (श्रेष्ठों) का अनुसरण करना। छोटों के लिये अनुसरणीय बनना। (इसी को कहा गया है स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्)
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# बडों (श्रेष्ठों) का अनुसरण करना। छोटों के लिये अनुसरणीय बनना। (इसी को कहा गया है स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्)
- अपनों के काम करना, उन की सेवा करना, परिचर्या करना, उन की सहायता करना।
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# अपनों के काम करना, उन की सेवा करना, परिचर्या करना, उन की सहायता करना।
- कुटुंब की विरासत (परंपराएँ, कौशल, व्यावसायिक कौशल, कुलधर्म, कुलाचार आदि) को अधिक श्रेष्ठ बनाकर अगली पीढि को सौंपना।
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# कुटुंब की विरासत (परंपराएँ, कौशल, व्यावसायिक कौशल, कुलधर्म, कुलाचार आदि) को अधिक श्रेष्ठ बनाकर अगली पीढ़ी को सौंपना।
- अपने व्यवहार से समाज में कुटुंब की प्रतिष्ठा बढाना।
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# अपने व्यवहार से समाज में कुटुंब की प्रतिष्ठा बढाना।
- कुटुंब भावना का दायरा परिवार के संबंध में आनेवाले अतिथी, विक्रेता, याचक, पशु, पक्षी, पौधे, धरतीमाता, नदीमाता आदि सभी घटकोंतक बढाना।
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# कुटुंब भावना का दायरा परिवार के संबंध में आनेवाले अतिथी, विक्रेता, याचक, पशु, पक्षी, पौधे, धरतीमाता, नदी माता आदि सभी घटकोंतक बढाना।
- विवाह, अधिक वेतन की या अच्छी नौकरी या व्यवसाय, आपसी झगडे आदि किसी भी हालत में कुटुंब से अलग नहीं होना।
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# विवाह, अधिक वेतन की या अच्छी नौकरी या व्यवसाय, आपसी झगडे आदि किसी भी हालत में कुटुंब से अलग नहीं होना।
- कुटुंब के सभी सदस्यों के लिये अपनेपन की भावना रखना। अच्छा है या बुरा है, जैसा भी है मेरा है। अच्छा है तो उसे और अच्छा मैं बनाऊँगा। और बुरा है तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी मेरी है ऐसा मानना।      
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# कुटुंब के सभी सदस्यों के लिये अपनेपन की भावना रखना। अच्छा है या बुरा है, जैसा भी है मेरा है। अच्छा है तो उसे और अच्छा मैं बनाऊँगा। और बुरा है तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी मेरी है ऐसा मानना
सामाजिक समस्याओं से छुटकारा
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नीचे दी गई ९४ सामाजिक समस्याओं की सूचि में से लगभग ६६ समस्याओं का हल संयुक्त परिवारों की प्रतिष्ठापना में है। वैसे तो संयुक्त परिवार के साथ में अन्य भी बातें आवश्यक होंगी। लेकिन समस्या के हल में संयुक्त परिवार की प्रधानता होगी।  
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== सामाजिक समस्याओं से छुटकारा ==
समस्याओं की सूचि
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नीचे दी गई ९४ सामाजिक समस्याओं की सूची में से लगभग ६६ समस्याओं का हल संयुक्त परिवारों की प्रतिष्ठापना में है। वैसे तो संयुक्त परिवार के साथ में अन्य भी बातें आवश्यक होंगी। लेकिन समस्या के हल में संयुक्त परिवार की प्रधानता होगी।  
रासायनिक प्रदूषण पगढ़ीलापन टूटते परिवार गोवंश नाश टूटते कौटुंबिक उद्योग गलाकाट स्पर्धा         ७ अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ९ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  १० संपर्क भाषा      ११ लंबित न्याय  १२ अक्षम न्याय व्यवस्था  १३ नौकरों का समाज  १४ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण      १५ मँहंगाई  १६ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १७ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १८ किसानों की आत्महत्याएँ        १९ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  २० आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  २१ विपरीत शिक्षा २२ असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २३ संस्कारहीनता  २४ स्वैराचार  २५ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २६ जातिभेद    २७ शिशू-संगोपन गृह  २८ अनाथाश्रम  २९ विधवाश्रम  ३० अपंगाश्रम      ३१ बाल सुधार गृह  ३२ वृध्दाश्रम  ३३ श्रध्दाहीनता    ३४  अपराधीकरण  ३५ व्यसनाधीनता  ३६ असामाजिकीकरण  ३७ आत्मसंभ्रम    ३८ विदेशियों का अंधानुकरण        ३९  आतंकवाद  ४० संपर्क भाषा  ४१ प्रज्ञा पलायन  ४२ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४३ नदी-जल विवाद    ४४ विदेशियों की घूसखोरी  ४५ विदेशी शक्तियों का व्यापक समर्थन  ४६ राष्ट्रीय हीनताबोध ४७ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४८ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)  ४९ अस्वच्छता  ५० स्त्रियोंपर अत्याचार  ५१ अयोग्यों को अधिकार        ५२ सांस्कृतिक प्रदूषण  ५४ भ्रष्टाचार (धर्म, शिक्षा, शासन ऐसे सभी क्षेत्रों में)  ५५ लव्ह जिहाद ५६ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार  ५७ सामाजिक विद्वेष ५८ जातियों में वैमनस्य ५९ सृष्टि का शोषण  ६० वैचारिक प्रदूषण  ६१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ६३ मजहबी मूलतत्ववाद  ६४ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६५ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६६ बेरोजगारी  ६७ उपभोक्तावाद  ६८ बालमृत्यू  ६९ कुपोषण  ७० स्त्रियों का पुरूषीकरण / बढती नपुंसकता    ७१ भुखमरी  ७२ भ्रूणहत्या  ७३ स्त्री-भ्रूणहत्या  ७४ तनाव    ७५ जिद्दी बच्चे        ७६ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व    ७७ बढती घरेलू हिंसा  ७८ झूठे विज्ञापन ७९ घटता संवाद  ८० देशी भाषाओं का नाश  ८१ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८२ बढते दुर्धर रोग  ८३ असंगठित सज्जन  ८४ उपभोक्तावाद  ८५ बढती अश्लीलता  ८६ अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे   ८७ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ८८ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८९ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी           ९० लोकशिक्षा का अभाव  ९१ बूढा समाज  ९२ राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९३ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन  ९४ जीवन की असहनीय गति
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समस्याओं की सूची:
संयुक्त कुटुंबों से हल होनेवाली समस्याओं की सूचि  
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# रासायनिक प्रदूषण
१ पगढ़ीलापन  २ उपभोक्तावाद  ३ गोवंश नाश  ४ टूटते पारिवारिक उद्योग  ५ गलाकाट स्पर्धा  ६ अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ७ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ८ संपर्क भाषा  ९ नौकरों का समाज  १० जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण  ११ मँहंगाई  १२ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १३ किसानों की आत्महत्याएँ  १४ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १५ संस्कारहीनता  १६ स्वैराचार  १७ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  १८ जातिभेद  १९ शिशू-संगोपन गृह  २० अनाथाश्रम    २१ विधवाश्रम  २२ अपंगाश्रम  २३ बाल सुधार गृह  २४ वृध्दाश्रम  २५ श्रध्दाहीनता  २६ अपराधीकरण  २७ व्यसनाधीनता    २९ असामाजिकीकरण  ३० प्रज्ञा पलायन  ३१ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ३२ नदी-जल विवाद  ३३ अस्वच्छता ३४ स्त्रियोंपर अत्याचार  ३५ सांस्कृतिक प्रदूषण  ३६ लव्ह जिहाद  ३७ सामाजिक विद्वेष  ३८ जातियों में वैमनस्य  ३९ जिद्दी बच्चे      ४०  वैचारिक प्रदूषण  ४१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ४२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ४३ बालमृत्यू  ४४ कुपोषण  ४५ भुखमरी  ४६ सृष्टि का शोषण  ४४ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ४५ बेरोजगारी  ४९ भ्रूणहत्या ५० स्त्री-भ्रूणहत्या  ५१  तनाव  ५२ उपभोक्तावाद  ५३ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व  ५४ घटता संवाद  ५५ बढती घरेलू हिंसा  ५६ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ५७ बढते दुर्धर रोग  ५८ ग्राम के तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ५९ बढती अश्लीलता    ६० अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे  ६१ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ६२ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ६३ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ६४ लोकशिक्षा का अभाव  ६५ बूढा समाज  ६६ जीवन की असहनीय गति
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# पगढ़ीलापन
संयुक्त परिवारों के दृढीकरण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया
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# टूटते परिवार
सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरीपर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियोंतक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढीयों की योजना बनानी होगी।
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# गोवंश नाश
सरल गणीतीय हल निम्न होगा।
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# टूटते कौटुंबिक उद्योग
- पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा।
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# गलाकाट स्पर्धा
- दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा। कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।      
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# अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ९ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  १० संपर्क भाषा      ११ लंबित न्याय  १२ अक्षम न्याय व्यवस्था  १३ नौकरों का समाज  १४ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण      १५ मँहंगाई  १६ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १७ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १८ किसानों की आत्महत्याएँ        १९ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  २० आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  २१ विपरीत शिक्षा २२ असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २३ संस्कारहीनता  २४ स्वैराचार  २५ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २६ जातिभेद    २७ शिशू-संगोपन गृह  २८ अनाथाश्रम  २९ विधवाश्रम  ३० अपंगाश्रम      ३१ बाल सुधार गृह  ३२ वृध्दाश्रम  ३३ श्रध्दाहीनता    ३४  अपराधीकरण  ३५ व्यसनाधीनता  ३६ असामाजिकीकरण  ३७ आत्मसंभ्रम    ३८ विदेशियों का अंधानुकरण        ३९  आतंकवाद  ४० संपर्क भाषा  ४१ प्रज्ञा पलायन  ४२ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४३ नदी-जल विवाद    ४४ विदेशियों की घूसखोरी  ४५ विदेशी शक्तियों का व्यापक समर्थन  ४६ राष्ट्रीय हीनताबोध ४७ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४८ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)  ४९ अस्वच्छता  ५० स्त्रियोंपर अत्याचार  ५१ अयोग्यों को अधिकार        ५२ सांस्कृतिक प्रदूषण  ५४ भ्रष्टाचार (धर्म, शिक्षा, शासन ऐसे सभी क्षेत्रों में)  ५५ लव्ह जिहाद ५६ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार  ५७ सामाजिक विद्वेष ५८ जातियों में वैमनस्य ५९ सृष्टि का शोषण  ६० वैचारिक प्रदूषण  ६१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ६३ मजहबी मूलतत्ववाद  ६४ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६५ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६६ बेरोजगारी  ६७ उपभोक्तावाद  ६८ बालमृत्यू  ६९ कुपोषण  ७० स्त्रियों का पुरूषीकरण / बढती नपुंसकता    ७१ भुखमरी  ७२ भ्रूणहत्या  ७३ स्त्री-भ्रूणहत्या  ७४ तनाव    ७५ जिद्दी बच्चे        ७६ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व    ७७ बढती घरेलू हिंसा  ७८ झूठे विज्ञापन ७९ घटता संवाद  ८० देशी भाषाओं का नाश  ८१ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८२ बढते दुर्धर रोग  ८३ असंगठित सज्जन  ८४ उपभोक्तावाद  ८५ बढती अश्लीलता  ८६ अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे   ८७ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ८८ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८९ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी           ९० लोकशिक्षा का अभाव  ९१ बूढा समाज  ९२ राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९३ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन  ९४ जीवन की असहनीय गति संयुक्त कुटुंबों से हल होनेवाली समस्याओं की सूचि १ पगढ़ीलापन  २ उपभोक्तावाद  ३ गोवंश नाश  ४ टूटते पारिवारिक उद्योग  ५ गलाकाट स्पर्धा  ६ अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ७ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ८ संपर्क भाषा  ९ नौकरों का समाज  १० जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण  ११ मँहंगाई  १२ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १३ किसानों की आत्महत्याएँ  १४ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १५ संस्कारहीनता  १६ स्वैराचार  १७ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  १८ जातिभेद  १९ शिशू-संगोपन गृह  २० अनाथाश्रम    २१ विधवाश्रम  २२ अपंगाश्रम  २३ बाल सुधार गृह  २४ वृध्दाश्रम  २५ श्रध्दाहीनता  २६ अपराधीकरण  २७ व्यसनाधीनता    २९ असामाजिकीकरण  ३० प्रज्ञा पलायन  ३१ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ३२ नदी-जल विवाद  ३३ अस्वच्छता ३४ स्त्रियोंपर अत्याचार  ३५ सांस्कृतिक प्रदूषण  ३६ लव्ह जिहाद  ३७ सामाजिक विद्वेष  ३८ जातियों में वैमनस्य  ३९ जिद्दी बच्चे      ४०  वैचारिक प्रदूषण  ४१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ४२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ४३ बालमृत्यू  ४४ कुपोषण  ४५ भुखमरी  ४६ सृष्टि का शोषण  ४४ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ४५ बेरोजगारी  ४९ भ्रूणहत्या ५० स्त्री-भ्रूणहत्या  ५१  तनाव  ५२ उपभोक्तावाद  ५३ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व  ५४ घटता संवाद  ५५ बढती घरेलू हिंसा  ५६ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ५७ बढते दुर्धर रोग  ५८ ग्राम के तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ५९ बढती अश्लीलता    ६० अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे  ६१ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ६२ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ६३ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ६४ लोकशिक्षा का अभाव  ६५ बूढा समाज  ६६ जीवन की असहनीय गति संयुक्त परिवारों के दृढीकरण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरीपर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियोंतक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढीयों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा। - पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा। - दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा। कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।         - तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा। अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।               संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पिढी की मानसिकता बिगाड डाली है। अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है'। ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है ऐसी मानसिकता समाजव्यापि बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होनेवाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा। १.  अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना। २.  अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना।
- तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा। अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।            
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संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण
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संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पिढी की मानसिकता बिगाड डाली है। अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है'। ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है ऐसी मानसिकता समाजव्यापि बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता।
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नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होनेवाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा।
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१.  अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।  
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२.  अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना।
   
     यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु     
 
     यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु     
 
     विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
 
     विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
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