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=== सृष्टि निर्माण की भारतीय मान्यता ===
 
=== सृष्टि निर्माण की भारतीय मान्यता ===
सृष्टि निर्माण से पूर्व अकेले परमात्मा का ही अस्तित्व था। जो अनादि है, अनंत है, सर्वशक्तिमान है, सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी है। वह अनंत चैतन्यमय है। अकेलेपन से वह उकता गया। उसे इच्छा हुई कि:<blockquote>'एकाकी न रमते । सोऽकामयत्। एकोऽहं बहुस्याम:।'</blockquote><blockquote>अकेले मन नहीं रमता। इसलिये अनेक हो जाऊँ। </blockquote>परमात्मा ने तप किया। वह अनेक हो गया। विविध रूपों में प्रकट हो गया। अपने में से ही सारी सृष्टि का निर्माण किया। इस लिये कण कण, चर अचर सब परमात्मा के ही रूप हैं। मिट्टी, जल, जंगल, जमीन, जानवर, जन, ग्रह, तारे और ब्रह्मांड आदि सभी परमात्मा के ही व्यक्त रूप हैं। सारी सृष्टि यह उस परमात्म तत्व का या आत्मतत्व का ही विस्तार मात्र है। इसलिये चराचर में परस्पर आत्मीयता का संबंध है। इस आत्मीयता की भावना को ही सामान्य शब्दावलि में ‘परिवार भावना’ कहा जाता है। जब किसी की आत्मीयता का या परिवार भावना का दायरा चराचर सृष्टि के सभी अस्तित्वों तक बढता है तब वह परमात्मस्वरूप हो जाता है। इसी को संत तुकाराम ‘उरलो उपकारापुरता’ (अब जीना तो बस केवल परोपकार के लिये ही रह गया है) कहते हैं। इसी को भारतीय मान्यताएँ मोक्ष कहतीं हैं।
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सृष्टि निर्माण से पूर्व अकेले परमात्मा का ही अस्तित्व था। जो अनादि है, अनंत है, सर्वशक्तिमान है, सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी है। वह अनंत चैतन्यमय है। अकेलेपन से वह उकता गया। उसे इच्छा हुई कि:<blockquote>'एकाकी न रमते । सोऽकामयत्। एकोऽहं बहुस्याम:।{{Citation needed}}'</blockquote><blockquote>अकेले मन नहीं रमता। इसलिये अनेक हो जाऊँ। </blockquote>परमात्मा ने तप किया। वह अनेक हो गया। विविध रूपों में प्रकट हो गया। अपने में से ही सारी सृष्टि का निर्माण किया। इस लिये कण कण, चर अचर सब परमात्मा के ही रूप हैं। मिट्टी, जल, जंगल, जमीन, जानवर, जन, ग्रह, तारे और ब्रह्मांड आदि सभी परमात्मा के ही व्यक्त रूप हैं। सारी सृष्टि यह उस परमात्म तत्व का या आत्मतत्व का ही विस्तार मात्र है। इसलिये चराचर में परस्पर आत्मीयता का संबंध है। इस आत्मीयता की भावना को ही सामान्य शब्दावलि में ‘परिवार भावना’ कहा जाता है। जब किसी की आत्मीयता का या परिवार भावना का दायरा चराचर सृष्टि के सभी अस्तित्वों तक बढता है तब वह परमात्मस्वरूप हो जाता है। इसी को संत तुकाराम ‘उरलो उपकारापुरता’ (अब जीना तो बस केवल परोपकार के लिये ही रह गया है) कहते हैं। इसी को भारतीय मान्यताएँ मोक्ष कहतीं हैं।
    
अंडज, स्वेदज, योनिज, उद्भिज आदि चार प्रकार के जीव जी सकें इस लिये परमात्मा ने अपने में से ही सर्वप्रथम जड जगत का निर्माण किया।  
 
अंडज, स्वेदज, योनिज, उद्भिज आदि चार प्रकार के जीव जी सकें इस लिये परमात्मा ने अपने में से ही सर्वप्रथम जड जगत का निर्माण किया।  
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# सृष्टि की व्यवस्था के नियमों को धर्म कहते हैं । इन धर्म के नियमों का अनुपालन करने से प्रकृति के उपभोग से सुख शान्ति मिलती है।  नियमों को तोड़ने की सामर्थ्य केवल मनुष्य को प्राप्त है । अन्य किसी प्राणी में सृष्टि के संतुलन को बिगाड़ने या प्रदूषित करने की सामर्थ्य नहीं है। इसलिए प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी मानव जाति की ही है ।   
 
# सृष्टि की व्यवस्था के नियमों को धर्म कहते हैं । इन धर्म के नियमों का अनुपालन करने से प्रकृति के उपभोग से सुख शान्ति मिलती है।  नियमों को तोड़ने की सामर्थ्य केवल मनुष्य को प्राप्त है । अन्य किसी प्राणी में सृष्टि के संतुलन को बिगाड़ने या प्रदूषित करने की सामर्थ्य नहीं है। इसलिए प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी मानव जाति की ही है ।   
 
# विविधता सृष्टि का वास्तव है । अनंत प्रकारकी विविधता सृष्टि में है । अरबों पत्तोंवाले पेड़ के कोई भी दो पत्ते एकदम एक जैसे नहीं होते । दोनों में अंतर होता ही है । इसलिए विविधता बनाए रखना सृष्टि सुसंगत होता है ।  इस दृष्टि से यांत्रिकता सृष्टि के स्वभाव की विरोधी होती है । सामान्यत: यंत्र निर्माण किये हुए पदार्थों में समानता लाने का प्रयास करते हैं । ऐसे यंत्र सृष्टि के स्वाभाविक जीवन के विरोधी हैं ।   
 
# विविधता सृष्टि का वास्तव है । अनंत प्रकारकी विविधता सृष्टि में है । अरबों पत्तोंवाले पेड़ के कोई भी दो पत्ते एकदम एक जैसे नहीं होते । दोनों में अंतर होता ही है । इसलिए विविधता बनाए रखना सृष्टि सुसंगत होता है ।  इस दृष्टि से यांत्रिकता सृष्टि के स्वभाव की विरोधी होती है । सामान्यत: यंत्र निर्माण किये हुए पदार्थों में समानता लाने का प्रयास करते हैं । ऐसे यंत्र सृष्टि के स्वाभाविक जीवन के विरोधी हैं ।   
# सृष्टि में सीधी रेखा में कोई चीज नहीं होती । सीधी रेखा हिंसा निर्माण करती है । तीर या बन्दूक की गोली सीधी रेखा में ही जाते हैं । और हिंसा के ये सबसे बड़े साधन हैं । भारतीय शिल्प में, इमारतों या घरों की बनावट में इसीलिये यथासंभव सीधी रेखाओं को टाला जाता है ।
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# सृष्टि में सीधी रेखा में कोई चीज नहीं होती । सीधी रेखा हिंसा निर्माण करती है । तीर या बन्दूक की गोली सीधी रेखा में ही जाते हैं । और हिंसा के ये सबसे बड़े साधन हैं । भारतीय शिल्प में, इमारतों या घरों की बनावट में इसीलिये यथासंभव सीधी रेखाओं को टाला जाता है ।
    
==References==
 
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